अम्बिकापुर: पूरे छत्तीसगढ़ में मानसून दस्तक के साथ ही धान की खेती भी शुरू हो गई है. इस बीच सरगुजा संभाग में परम्परागत रूप से जीरा फूल और अन्य लोकल वैरायटी के धान लगाए जाते हैं. हालांकि साल 2000 में छत्तीसगढ़ में एक ऐसी धान बीज की कंपनी ने कदम रखा, जिसने धान की खेती में बदलाव ला दिया था. धान की फसल लगाने वाले किसानों को 4 गुना मुनाफा होने लगा. हाइब्रिड धान के बढ़े हुए उत्पादन से किसान मालामाल हो गये थे.
हालांकि समय के साथ-साथ काफी कुछ बदल गया. 23 सालों में मुनाफा कम होने लगा. मौजूदा समय में हाइब्रिड धान के अधिक उत्पादन की तुलना में कम उत्पादन वाले जीरा फूल की खेती से अधिक मुनाफा कमाया जा रहा है. आइए आपको हम बताते हैं कि कैसे 23 सालों में इतना बदलाव हुआ.
अगर किसान बेहतर ढंग से जीरा फूल धान की खेती करें और बेहतर मार्केट खोजें. खुद मिलिंग करके इसे सीधे बाजार में बेच दें, तो उन्हें निश्चित ही मोटे चावल की तुलना में अधिक मुनाफा होगा. लेकिन लोग हाइब्रिड धान लगाकर उसका धान सीधे और सस्ते दर पर सोसायटी में बेच देते हैं. सरकार बोनस भी दे देती है तो, किसान भाई इससे संतुष्ट हो जाते हैं -अभिषेक सिंह, कृषि बीज विक्रेता
23 सालों में बदले हालात : साल 2000 के आस-पास जीरा फूल धान की खेती सरगुजा में पर्याप्त मात्रा में होती थी. ये आसानी से उपलब्ध हो जाता था. 25 से 30 रुपये किलो में जीरा फूल चावल लोगों को बाजार में मिल जाया करता था. लेकिन हाइब्रिड धान के आगे जीरा फूल धान की खेती जैसे की खत्म होती चली गई. इसका परिणाम यह हुआ कि 23 वर्ष बाद आज असली जीरा फूल चावल खोजना एक चुनौती बन चुकी है. लोग किसी भी कीमत में यह चावल खरीदने को तैयार हैं. सरगुजा से जीरा फूल दिल्ली और विदेश भेजा जा रहा है. उत्पादन कम होने के कारण यह चावल लोकल में 80 से 90 रुपये किलो मिल रहा है जबकि विदेश में इसे 120 से 150 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है.
जीरा फूल धान एक वर्ग विशेष में लोकप्रिय है. इसकी डिमांड विदेशों तक है. मूल्य अधिक होने के कारण इससे अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है. लेकिन किसान भाई ध्यान दें कि कम पानी या सिर्फ बारिश के पानी के भरोसे जीरा फूल की खेती सम्भव नहीं है. उसे पर्याप्त पानी चाहिए. 130 दिन की वैरायटी होने के कारण जीरा फूल की नर्सरी अर्ली करनी चाहिये. -संतोष सिंह,अधिष्ठाता, इन्दिरा गांधी कृषि विज्ञान केंद्र
कम उत्पादन के कारण दाम अधिक: जीरा फूल का उत्पादन प्रति एकड़ 8 से 10 क्विंटल ही होता है. जबकि हाइब्रिड धान 25 से 30 क्विंटल तक उत्पादन देता है. दोनों के पैदावार में 3 गुना का फर्क है. हाइब्रिड से पैदा होने वाला मोटा चावल बाजार में 15 से 20 रुपये किलो बिकता है. जबकि जीरा फूल चावल को आप 120 से 150 रुपये किलो तक बेच सकते हैं. भले ही उत्पादन कम हो लेकिन 23 वर्षों में इसकी कीमत में जो उछाल हुआ है, उससे यह मोटे चावल की तुलना में 6 से 7 गुना अधिक लाभ देने वाला चावल बन गया है.