सरगुजा: पितृपक्ष में श्राद्ध का खाना कौवों को खिलाया जाता है. लेकिन अगर कौवे ही ना हो तो क्या होगा. हालांकी शहरों में बढ़ती भीड़ में कौवे और अन्य पक्षी कम दिखते हैं. लेकिन सरगुजा जैसे वनांचल क्षेत्र में कौवे और अन्य जीव काफी तादात में पाए जाते हैं. ये बात हम आपको इसलिए बता रहे हैं, क्योंकी सरगुजा के कुछ गांव ऐसे हैं, जहां कौवे ही नहीं दिखते. मान्यता है कि त्रेता युग में लक्ष्मण के क्रोध के चलते ऐसा हुआ है.
पहाड़ गांव में नहीं पाये जाते कौवे: हम बात कर रहे हैं अम्बिकापुर से 17 किलोमीटर दूर बसे पहाड़ गांव की. इस गांव में कौवे देखने को भी नहीं मिलते हैं. पहाड़ गांव के आस पास के कुछ गांव में भी कौवे नहीं दिखते हैं. जबकि यह गांव पिलखा पहाड़ के नीचे बसा है. यहां जंगली जानवरों समेत मोर, तोता, गौरैया, मैना जैसी जैव विविधता भी देखी जा सकती है. बावजूद इसके यहां कौवा नहीं पाया जाता है.
कौवे नहीं आने की क्या है वजह? : ग्रामीण बताते हैं कि गांव में कौवा कभी नहीं दिखता है. अन्य पशु पक्षी आते रहते हैं. हम लोग पितृ पक्ष में श्राद्ध का खाना निकाल देते हैं, जिसे अन्य पक्षी या जानवर खा लेते हैं. लेकिन कौवा कभी नहीं दिखता है. हम बचपन से कौवा और लक्ष्मण के श्राप की कथा सुनते आ रहे हैं. माना जाता है कि लक्ष्मण के गुस्से और श्राप की वजह से ही कौवों ने गांव और आस पास का इलाका छोड़ दिया था. तब से लेकर अब तक ऐसी ही स्थिति है.
"दंत कथाओं में सुना जाता है कि वनवास के समय यहां भगवान राम के साथ लक्ष्मण आये थे. त्रेता युग में कौवा यहां से रावण को संदेश पहुंचाता था. जिसका पता चलते ही लक्ष्मण ने क्रोधित होकर कौवे को एक तीर उसकी आंख में मारा था. तभी ये यहां कौवे नहीं दिखते हैं." - दितेश, कृषि एक्सपर्ट
आज भी रहस्य है बरकरार: विज्ञान का तर्क भी कौवे के गायब होने पर विज्ञान का तर्क पेस्टीसाइड का उपयोग और मोबाइल रेडिएशन हो सकता है. लेकिन फिर उसका असर बाकी के गांवों में क्यों नहीं होता? यह एक रहस्य बना हुआ है. इस गांव में सभी पक्षी रहते हैं, केवल कौवा नहीं पाया जाता. जबकि गांव के आस पास के गांव में ज्यादा खेती होती है. वहां अधिक पेस्टीसाइड का उपयोग भी होता है और वहां कौवे भी देखे जाते हैं. जबकि ग्रामीणों की दंत कथाओं की मानें, तो यहां त्रेता युग से ही कौवे गायब हैं. भगवान लक्ष्मण के क्रोध में छोड़े गये तीर और श्राप के कारण यहां कौवे नहीं दिखते हैं.