सरगुजा: सीतापुर विधानसभा सीट से अमरजीत भगत 4 बार चुनाव जीत चुके हैं. यह सीट कांग्रेस का अभेद्य किला मानी जाती है. खास बात यह भी है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक कभी भी यहां भाजपा अपना खाता नहीं खोल पाई है. हालांकि 3 बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने यहां से चुनाव जीता है. इसे छोड़ हर बार यहां से कांग्रेस का ही प्रत्याशी चुनाव जीतता है. इस बार स्थानीय नेता की मांग भी उठ रही है.
भाजपा ने किया जीत का दावा: भाजपा नेता और सीतापुर प्रभारी प्रशांत त्रिपाठी के मुताबिक भाजपा सीतापुर सीट से कभी जीत नहीं पाई है. लेकिन सीतापुर के स्थानीय नेताओं को कोई फायदा नहीं पहुंचा है. 20 साल से क्षेत्र के लोग उसी स्थिति में हैं. वर्तमान विधायक और मंत्री के साथ ही उनके आसपास के लोगों को ही लाभ मिला है. वहां के लोगों का अहित हुआ है. बीजेपी का दावा है कि सीतापुर में बूथ और शक्ति केन्द्र से लेकर मंडल तक खूब मेहनत हो रही है.
"निश्चित तौर पर यहां से बीजेपी ही चुनाव जीतेगी. हम सीतापुर से ऐसा चेहरा देने वाले हैं, जिसके सामने वर्तमान विधायक या कांग्रेस का और कोई भी प्रत्याशी नहीं टिकेगा." - प्रशांत त्रिपाठी, भाजपा नेता
भाजपा के दावे पर कांग्रेस का तंज: कांग्रेस जिलाध्यक्ष राकेश गुप्ता का कहना है कि सीतापुर से 18 लोगों ने दावेदारी की है. कांग्रेस में लोकतंत्र है तो दावेदारी सामने आनी भी चाहिये. लोग अपने समर्थकों के साथ उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के पास आ रहे हैं, ताकि उनके समर्थक को टिकट मिल जाये. यहां कांग्रेस का अच्छा माहौल है. यहां से कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतती है. भाजपा का खाता भी वहां नहीं खुला है.
"भाजपा पहले प्रदेश नेतृत्व का चेहरा तो खोज ले, फिर वो सीतापुर में कैंडिडेट का चेहरा खोजने का प्रयास करे. भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है तो वो अपना प्रत्याशी उतारेगी ही. लेकिन सीतापुर में हम लोग रिकॉर्ड मतों से जीते हैं. इस बार भी कांग्रेस अपने हिसाब से वहां तैयारी कर रही है. इस बार भी हम वहां चुनाव जीतेंगे." - राकेश गुप्ता, जिलाध्यक्ष, कांग्रेस
सीतापुर में अबतक हुए 15 विधानसभा चुनाव में से 12 कांग्रेस जीती है. 3 चुनाव यहां कांग्रेस हारी है, लेकिन वो निर्दलीय उम्मीदवार थे. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस की स्थिति यहां खराब नहीं है. हालांकि थोड़ी सत्ता विरोधी लहर अमरजीत भगत के खिलाफ है, क्योंकि वह 20 साल से विधायक हैं. अब आम जनता में चर्चा है कि यहां बाहरी लोगों का दखल ज्यादा है.
"उस क्षेत्र में विधायक अमरजीत भगत के लिये धारणा खराब नहीं है. कांग्रेस सरकार के खिलाफ भी कोई विरोधी बात लोगों में नहीं है. जातिगत समीकरण भी यहां बहुत मायने रखते हैं. यहां करीब 75 हजार वोटर उरांव समाज से हैं और करीब 45 हजार वोटर कंवर समाज से हैं. उरांव वोटर कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है. पहले कंवर समाज भाजपा का वोट माना जाता था, लेकिन अब वो भी कांग्रेस के साथ है." - मनोज गुप्ता, राजनीतिक विश्लेषक
सरगुजा की सीतापुर विधानसभा सीट पर कभी भी जन संघ, जनता पार्टी या भाजपा को जीत नहीं मिल सकी. देश की आजादी के बाद 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से अब तक यहां कभी भाजपा नहीं जीत सकी. अब तक हुए 15 विधानसभा चुनाव में से 3 बार यहां निर्दलीय प्रत्याशी जीते, तो 12 बार कांग्रेस में जीत दर्ज की है. भाजपा का स्कोर यहां शून्य रहा है. 1952 में सीतापुर से निर्दलीय प्रत्याशी हरिभजन विधायक बने. 1990 में निर्दलीय प्रत्याशी राम खेलावन और 1998 सीतापुर से निर्दलीय प्रत्याशी प्रो. गोपाल राम विधायक चुने गये.