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SPECIAL : गोबर से ब्रिक्स बनाकर होगा पर्यावरण संरक्षण, जलावन लकड़ी की जगह होगी इस्तेमाल - wood from cow dung

देशभर में सफाई के लिए मशहूर, गार्बेज कैफे के लिए फेमस अंबिकापुर नगर निगम का नया आइडिया भी कमाल है. ये गोल्डन ट्रिक है, गोबर से ब्रिक यानी ईंटें बनाने की. पर्यावरण को बचाने के लिए ये एक अच्छा कदम है. नगर निगम ने गोबर से बनी इस लकड़ी को 6 रुपए किलो बेचने का निर्णय लिया है. देखिए पूरी रिपोर्ट...।

bricks made from cow dung in surguja
गोबर से ब्रिक्स बनाकर होगा पर्यावरण संरक्षण
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Published : Dec 5, 2020, 6:27 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: गोबर को गोधन बनाने की कोशिश अंबिकापुर में सफल होता दिख रही है. नगर निगम ने गोबर से खाद निर्माण के बाद गोबर की लकड़ियों के निर्माण का कार्य भी शुरू कर दिया है . गोबर की ब्रिक्स बनाकर जलावन लकड़ियों के रूप में उपयोग करने के लिए नगर निगम ने दो मशीनें लगाई हैं. इन्हीं मशीनों से गोबर और लकड़ी के बुरादे के मिश्रण को ब्रिक्स का रूप दिया जा रहा है.

गोबर से ब्रिक्स बनाकर होगा पर्यावरण संरक्षण
नगर निगम द्वारा इन लकड़ियों का उपयोग अलाव के लिए किया जाएगा. इसके साथ ही केंद्रीय जेल अंबिकापुर में खाना पकाने के लिए गोबर की बनी इन लकड़ियों की मांग की है. लिहाजा इनकी सप्लाई जेल के लिए भी की जाएगी. नगर निगम के इस प्रयास से पर्यावरण का भी संरक्षण होगा क्योंकि चूल्हा या अलाव की लकड़ी के लिए लोग पेड़ काटते हैं. गोबर से बनी इन लकड़ियों के सदुपयोग से न सिर्फ वन संरक्षित होंगे बल्कि सड़क पर पड़े रहने वाले गोबर का भी सदुपयोग हो सकेगा.

पढ़ें- सरगुजा साइकिल यात्रा : 'केंद्र सरकार ने किसान और जवानों के बीच पैदा की दरार'

2 यूनिट में काम शुरू
नरवा-गरुवा-घुरवा-बाड़ी योजना के तहत शहर में भी गौठानों का निर्माण किया गया है. सरकार द्वारा गोबर खरीदने की योजना के बाद यहां गोबर इकट्ठा किया जा रहा है. जिससे खाद बनाने का काम किया जा रहा है. खाद बनाने के बाद भी नगर निगम के पास गोबर बच रहा था. ऐसे में इसका इस्तेमाल जलावन लकड़ी के रूप में करने की योजना बनाई गई और अब यह काम शहर में 2 स्थानों पर यूनिट स्थापित कर काम शुरू कर दिया गया है.

6 रुपए प्रति किलो बिकेगी लकड़ी
नगर निगम 2 रुपये किलो गोबर खरीदता है और ब्रिक्स बनाने की 2 मशीन 80-80 हजार रुपए में आई है जो बिजली से चलती है. गोबर के बाद ब्रिक्स तैयार होने लगभग साढ़े चार रुपए प्रति किलो का खर्च आ रहा है. ऐसे में नगर निगम ने गोबर से बनी इस लकड़ी को 6 रुपए किलो बेचने का निर्णय लिया है. लिहाजा लकड़ी से कम दाम में अब यह गोबर ब्रिक्स उपलब्ध होगा, जिसका उपयोग खाना पकाने, अलाव जलाने सहित अंतिम संस्कार में भी किया जा सकता है.

बनाने की विधि
गोबर ब्रिक्स बनाने के लिए गौठान में एकत्र गोबर में लकड़ी मीलों से निकलने वाला लकड़ी का चूरा (बुरादा) मिलाया जाता है. 20 किलो गोबर में लगभग 3 किलो बुरादा मिलाया जाता है. इस मिश्रण को गो-कास्ट मशीन में डाला जाता है और मशीन इसे मिक्स कर लगभग 3 फिर के गोलाकार पाइप नुमा आकर के ब्रिक्स बनाती है. कार्य मे लगी महिलाएं इस गोबर ब्रिक्स को धूप में सुखाती हैं. दो - तीन दिन में सूखने के बाद यह ब्रिक्स उपयोग के लिये तैयार हो जाती है.

पढ़ें- SPECIAL: गुटखा खाकर खुले में थूकना 'काल' को बुलावा, कोरोना काल में सतर्कता ही वैक्सीन !

बहरहाल वेस्ट से बेस्ट बनाने के हर फार्मूले में अव्वल अंबिकापुर नगर निगम ने एक बार फिर साबित किया है कि गोबर से आजीविका का साधन उपलब्ध करा कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी अपना योगदान दिया है.

सरगुजा: गोबर को गोधन बनाने की कोशिश अंबिकापुर में सफल होता दिख रही है. नगर निगम ने गोबर से खाद निर्माण के बाद गोबर की लकड़ियों के निर्माण का कार्य भी शुरू कर दिया है . गोबर की ब्रिक्स बनाकर जलावन लकड़ियों के रूप में उपयोग करने के लिए नगर निगम ने दो मशीनें लगाई हैं. इन्हीं मशीनों से गोबर और लकड़ी के बुरादे के मिश्रण को ब्रिक्स का रूप दिया जा रहा है.

गोबर से ब्रिक्स बनाकर होगा पर्यावरण संरक्षण
नगर निगम द्वारा इन लकड़ियों का उपयोग अलाव के लिए किया जाएगा. इसके साथ ही केंद्रीय जेल अंबिकापुर में खाना पकाने के लिए गोबर की बनी इन लकड़ियों की मांग की है. लिहाजा इनकी सप्लाई जेल के लिए भी की जाएगी. नगर निगम के इस प्रयास से पर्यावरण का भी संरक्षण होगा क्योंकि चूल्हा या अलाव की लकड़ी के लिए लोग पेड़ काटते हैं. गोबर से बनी इन लकड़ियों के सदुपयोग से न सिर्फ वन संरक्षित होंगे बल्कि सड़क पर पड़े रहने वाले गोबर का भी सदुपयोग हो सकेगा.

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2 यूनिट में काम शुरू
नरवा-गरुवा-घुरवा-बाड़ी योजना के तहत शहर में भी गौठानों का निर्माण किया गया है. सरकार द्वारा गोबर खरीदने की योजना के बाद यहां गोबर इकट्ठा किया जा रहा है. जिससे खाद बनाने का काम किया जा रहा है. खाद बनाने के बाद भी नगर निगम के पास गोबर बच रहा था. ऐसे में इसका इस्तेमाल जलावन लकड़ी के रूप में करने की योजना बनाई गई और अब यह काम शहर में 2 स्थानों पर यूनिट स्थापित कर काम शुरू कर दिया गया है.

6 रुपए प्रति किलो बिकेगी लकड़ी
नगर निगम 2 रुपये किलो गोबर खरीदता है और ब्रिक्स बनाने की 2 मशीन 80-80 हजार रुपए में आई है जो बिजली से चलती है. गोबर के बाद ब्रिक्स तैयार होने लगभग साढ़े चार रुपए प्रति किलो का खर्च आ रहा है. ऐसे में नगर निगम ने गोबर से बनी इस लकड़ी को 6 रुपए किलो बेचने का निर्णय लिया है. लिहाजा लकड़ी से कम दाम में अब यह गोबर ब्रिक्स उपलब्ध होगा, जिसका उपयोग खाना पकाने, अलाव जलाने सहित अंतिम संस्कार में भी किया जा सकता है.

बनाने की विधि
गोबर ब्रिक्स बनाने के लिए गौठान में एकत्र गोबर में लकड़ी मीलों से निकलने वाला लकड़ी का चूरा (बुरादा) मिलाया जाता है. 20 किलो गोबर में लगभग 3 किलो बुरादा मिलाया जाता है. इस मिश्रण को गो-कास्ट मशीन में डाला जाता है और मशीन इसे मिक्स कर लगभग 3 फिर के गोलाकार पाइप नुमा आकर के ब्रिक्स बनाती है. कार्य मे लगी महिलाएं इस गोबर ब्रिक्स को धूप में सुखाती हैं. दो - तीन दिन में सूखने के बाद यह ब्रिक्स उपयोग के लिये तैयार हो जाती है.

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बहरहाल वेस्ट से बेस्ट बनाने के हर फार्मूले में अव्वल अंबिकापुर नगर निगम ने एक बार फिर साबित किया है कि गोबर से आजीविका का साधन उपलब्ध करा कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी अपना योगदान दिया है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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