सरगुजा: कार्तिक महीना (Kartik Month) शरू होते ही कभी घर की छतों पर काफी ऊंचाई में दिया टिमटिमाते दिखता था, बदलते वक्त के साथ दिये की जगह लोग इलेक्ट्रिक लाइट्स (Electric lights) लगाने लगे. हर घर की छत पर काफी ऊंचाई में लगी यह लाइट्स काफी आकर्षक दिखती थी, लेकिन अब धीरे धीरे यह चलन से बाहर हो चुकी है, इन्हें आकाश दीप या स्काई लैम्प कहा जाता था, लेकिन अब एक भी स्काई लैम्प (Sky Lamp) शहरी क्षेत्रों में नहीं दिखाई देते हैं. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी यह परंपरा जीवित है.
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आकाश दीप की मांग घटी
अम्बिकापुर में दीपावली (Diwali) से पहले बाजार सजा हुआ है. इस बाजार में स्काई लैम्प ( Sky Lamp) बिक भी रही है, लेकिन अब ये स्काई लैम्प नहीं बल्कि घर की सजावट के काम आते हैं, अब इन्हें कोई बड़े से डंडे में छत के ऊपर अधिक ऊंचाई पर नहीं लटकाता है. स्काई लैम्प बहुत आकर्षक डिजाइन में आ गये हैं और आकर्षक के साथ-साथ सस्ते भी हैं, प्लास्टिक या लकड़ी से बने ये लैम्प बाजार में 100 रुपये से 250 रुपये की कीमत पर उपलब्ध हैं.
शहरों में नहीं दिखता आकाशदीप
वहीं दुकानदार ने भी बताया कि लोग अपनी मेहनत बचाने के लिए अब आकाश दीप नहीं लगाते लेकिन लैम्प अब भी बिकते हैं. उन्हें अब कम ऊंचाई पर ही घरों की सजावट के लिए लटकाया जाता है. इस दौरान एक ग्राहक ने आकाशदीप के संबंध में बताया कि उनके गांव में आज भी आकाशदीप लगाने की परंपरा है लेकिन शहरी माहौल में लोगों के पास समय की कमी है. इसलिए शहरों में यह नहीं दिखता है.
बहरहाल बदलते वक्त के साथ त्योहारों का स्वरूप भी बदलता जा रहा है, बहुत सी मान्यताएं अब नहीं दिखती हैं. हर इंसान इतना व्यस्त है कि वो पर्व पूजा पाठ भी कम समय मे करना चाह रहा है. इसी व्यस्तता का परिणाम है कि आकाशदीप जैसी परंपराएं अब चलन से बाहर हो चुकी है.