सरगुजाः बललरामपुर जिले के रामचंद्रपुर विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत गाजर बाजार पारा निवासी 4 वर्षीया वीना पंडों को दस दिनों से बुखार था, जिसके बाद परिजन गांव में ही एक झोलाछाप डॉक्टर (Fake doctor) से बच्ची का उपचार करा रहे थे. हालांकि हालत में सुधार नहीं हुआ. जिसके बाद बच्ची की हालत लगातार बिगड़ती गई, लेकिन जानकारी का आभाव व आर्थिक तंगी (Financial scarcity) के कारण परिजन बच्ची को लेकर अस्पताल (Hospital)नहीं जा पाये. आखिरकार 15 सितम्बर को अचानक बच्ची के पेट में तेज दर्द शुरू हुआ और बच्ची रातभर पेटदर्द से तड़पती रही.इस बीच ग्रामीणों ने संजीवनी एम्बुलेंस (ambulance) 108 को फोन कर सूचना दी जिसके बाद रात 3.30 बजे सनवाल के शासकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया और वहां से रामानुजगंज सीएचसी में रिफर किया गया लेकिन अस्पताल पहुंचने के बाद बच्ची की मौत हो गई.
वहीं, दूसरी ओर वाड्रफनगर विकासखंड ग्राम पंचायत वीरेंद्रनगर से भी इसी तरह की घटना सामने आयी है. बताया जा रहा है कि वीरेंद्रनगर निवासी 60 वर्षीया मनकुंवर पंडों पति काशी पंडो की 15 दिनों से तबियत खराब थी. वृद्धा पहले से ही लकवाग्रस्त थी, आर्थिक तंगी के कारण परिजन जड़ीबूटी से वृद्धा का उपचार करा रहे थे. इसके अलावा वृद्धा के इलाज के लिए झाड़फूंक का भी सहारा लिया जा था. हालांकि बाद में महिला की मौत हो गई. वहीं, इस विषय में ग्रामीणों का कहना है कि उपचार के आभाव में वृद्धा की मौत हो गई . इसके साथ ही घर में अन्य सदस्यों की हालत भी गंभीर बताई जा रही है.
कुपोषण व अंधविश्वास में जकड़े पंडो जनजाति
आपको बता दें कि इन दोनों ही घटनाओं में पंडों जनजाति की आर्थिक तंगी और डिजिटल इंडिया होने के बावजूद भी अंधविश्वास पर भरोसा मौत का कारण माना जा रहा है. बलरामपुर जिले में पंडो परिवार के लोगों का मौत का सिलसिला लगातार जारी है. यहां कुपोषण व अंधविश्वास ले जाल में जकड़े ग्रामीण बेवजह काल के गाल में समा का रहे हैं. बताया जा रहा है कि जिले में पिछले कुछ महीनों में 20 ग्रामीणों की मौत अंधविश्वास व आर्थिक तंगी के कारण हो चुकी है.
जागरुकता अभियान व एनजीओ के खर्चे पंडो के नाम पर बेकार
वहीं, इन दोनों ही घटनाओं में पंडों जनजाति की आर्थिक तंगी और धविश्वास पर भरोसा मौत का कारण माना जा रहा है. आर्थिक तंगी व जानकारी के अभाव में विशेष पिछड़ी जनजाति गांव में झाड़फूक व जड़ीबूटी का सहारा ले रही है. ऐसे में ये साफ है कि तमाम जागरूकता अभियान, एनजीओ के लंबे चौड़े खर्चे, पंडो जनजाति पर शोध और व्याख्यान सब बेमानी साबित हो रहे हैं. इधर, डॉ. बसंत सिंह सीएमएचओ का उक्त मामले में कहना है कि बच्ची की तबियत खराब थी. परिजन स्वास्थ्य केंद्र जाने के बजाए एक झोलाछाप डॉक्टर के पास चले गए जिससे उसकी हालत बिगड़ गई. सूचना मिलने पर उसे रामानुजगंज रिफर किया गया था जहां उसकी मौत हो गई. अभी वृद्धा के मौत की जानकारी नहीं आ पाई है. फिलहाल दोनों मौत की जांच कराई जा रही है.