सरगुजा : अविभाजित सरगुजा में 2007 में भारत सरकार के पांडुलिपि संरक्षण विभाग ने पांडुलिपियों का संरक्षण किया था. सरगुजा प्रशासन ने पांडुलिपियों के संरक्षण का काम कराया था. इस काम में शिक्षक और इतिहासकार अजय चतुर्वेदी को स्थानीय स्तर पर जिम्मेदारी दी गई थी. तब अजय चतुर्वेदी ने 101 से अधिक पांडुलिपियों का प्रमाण खोज निकाला था.
जड़ी बूटियों से इलाज की पद्धति का पता चला: पांडुलिपि संरक्षण के वक्त बहुत से ग्रंथों को पढ़ा नहीं जा सका. लेकिन कुछ ग्रंथ पढ़े गये. इसे पढ़ने के लिए एक्सपर्ट भी बाहर से बुलाये गये थे. इन्हें पढ़ने के बाद पता चला कि इसमें विवाह पद्धति लिखी हुई है. जड़ी बूटियों से इलाज की पद्धति भी लिखी गई है. हालांकि इलाज पद्धति को इतनी आसानी से स्थानीय स्तर पर पढ़ा नहीं जा सकता था, लेकिन अजय कहते हैं कि अगर उसे पढ़कर उस जड़ी बूटी के जरिए इलाज किया जाये तो निश्चित ही वो समाज के काम आयेगा. आज चरक की पद्धति पर इलाज हो रहा है. ऐसे ही पांडुलिपियों में लिखे इलाज पर भी विचार करना चाहिए.
12वीं शताब्दी की पांडुलिपि से ऐसे सुधर सकती है आपकी हैंड राइटिंग ! - 12वीं शताब्दी की पांडुलिपि
सरगुजा समृद्धशाली इतिहास के लिए हमेशा जाना जाता रहा है. सरगुजा में कई वर्ष पुरानी पांडुलिपि पाई गई है. इन पांडुलिपियों की मदद से कई कार्यों में मदद मिल सकती है. जैसे चिकित्सा, पढ़ाई और हैंडराइटिंग सुधार के कार्य में. देखिए जानकार इस बारे में क्या कहते हैं
सरगुजा : अविभाजित सरगुजा में 2007 में भारत सरकार के पांडुलिपि संरक्षण विभाग ने पांडुलिपियों का संरक्षण किया था. सरगुजा प्रशासन ने पांडुलिपियों के संरक्षण का काम कराया था. इस काम में शिक्षक और इतिहासकार अजय चतुर्वेदी को स्थानीय स्तर पर जिम्मेदारी दी गई थी. तब अजय चतुर्वेदी ने 101 से अधिक पांडुलिपियों का प्रमाण खोज निकाला था.
जड़ी बूटियों से इलाज की पद्धति का पता चला: पांडुलिपि संरक्षण के वक्त बहुत से ग्रंथों को पढ़ा नहीं जा सका. लेकिन कुछ ग्रंथ पढ़े गये. इसे पढ़ने के लिए एक्सपर्ट भी बाहर से बुलाये गये थे. इन्हें पढ़ने के बाद पता चला कि इसमें विवाह पद्धति लिखी हुई है. जड़ी बूटियों से इलाज की पद्धति भी लिखी गई है. हालांकि इलाज पद्धति को इतनी आसानी से स्थानीय स्तर पर पढ़ा नहीं जा सकता था, लेकिन अजय कहते हैं कि अगर उसे पढ़कर उस जड़ी बूटी के जरिए इलाज किया जाये तो निश्चित ही वो समाज के काम आयेगा. आज चरक की पद्धति पर इलाज हो रहा है. ऐसे ही पांडुलिपियों में लिखे इलाज पर भी विचार करना चाहिए.