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भारत-चीन युद्ध में यादव जवानों ने निभाई थी बड़ी भूमिका, आज तक क्यों नहीं बन सका अहीर रेजिमेंट? - 1857 का गदर

सीमा विवाद को लेकर 1962 में भारत-चीन युद्ध (Indo-China war in 1962) में अपनी जान की बाजी लगाने वाले अहीर (यादव) समाज के लिए रेजिमेंट बनाए जाने की मांग अब छत्तीसढ़ में भी तेजी के साथ उठने लगी है. इस संबंध में कहा जा रहा है कि जहां सरकारों से मांग की जाएगी, वहीं जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में भी गुहार लगाई जाएगी. इस संबंध में ईटीवी भारत ने रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु (Retired Brigadier Pradeep Yadu) से बात की.

Demand for Ahir Regiment
अहीर रेजिमेंट की मांग
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Published : Nov 17, 2021, 12:45 PM IST

Updated : Nov 17, 2021, 3:16 PM IST

रायपुरः 18 नवंबर 1962 को हुए भारत और चीन के बीच के युद्ध के दौरान उन 120 सैनिकों के शौर्य पराक्रम (valor of 120 soldiers) को जन-जन तक पहुंचाने व उन वीर सैनिकों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के उद्देश्य प्रतिवर्ष 18 नवंबर को याद और शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है.

यहां पर महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारतीय सेना में करीब 13% सैनिक यादव हैं, जो अलग-अलग सैन्य यूनिट्स (military units) में सेवारत हैं. पर सेना में अहीर रेजिमेंट नहीं हैं. इसका मूल कारण यह है कि अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई (First War of Independence against the British) में अंग्रेजों ने यादव (Yadav) और गुर्जरों को गद्दार कौम बताया था. क्योंकि इन दोनों कौमों ने बड़ी संख्या में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह (rebellion against the British) किया था और देश की आजादी में हिस्सा लिया था.

अहीर रेजिमेंट की मांग

अब एक बार फिर देश में अहीर रेजिमेंट (Ahir Regiment) बनाए जाने की मांग उठने लगी है और इस मुहिम को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया है रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने. जो इस मुहिम को आगे बढ़ाने जा रहे हैं. आइए जानते हैं कि आखिर अब अचानक से अहीर रेजीमेंट बनाए जाने की मांग क्यों उठ रही है. इसके पीछे मुख्य वजह क्या है. इस रेजिमेंट के बनने से देश और अहीर समाज को क्या फायदा होगा? इन सारे सवालों का जवाब ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने दिया. आइए सुनते हैं कि उन्होंने इन सारे मुद्दों पर क्या कहा?

सवाल: 19 नवंबर 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान क्या हुआ था?
जवाब : 1962 भारत चीन के द्वारा लेह लद्दाख के रेजांगला चौकी पर चीन के 3 हजार से अधिक सैनिकों और भारत के 13 कुमायूं रेजीमेंट रेजीमेंट के चार्ली कंपनी के 120 सैनिकों के बीच आमने-सामने कि विश्व विख्यात युद्ध हुआ था. भारत की तरफ से लड़ रहे सभी 120 सिपाही यादव जाति के थे. दो रात चले युद्ध में भारत के वीर अहीरों ने चीन के 14 से अधिक सैनिकों को मार गिराया था. चीन के बाकी बचे सैनिक जान बचाकर भाग खड़े हुए. लेकिन इस युद्ध में 114 वीर भी शहीद हो गए. वहीं, 5 जवानों को चीन ने अगवा कर लिया था. इसके अलावा एक जवान को वापस दूसरी पोस्ट पर सूचना भेजने के लिए भेजा गया था. जिसमें वह बच गया और उसने इस पूरी घटना की जानकारी दी. युद्ध के बाद जब इन जवानों का शव को बर्फ से निकाला गया, तो उस दौरान भी इन जवानों के हाथ में बंदूक, ग्रेनाइट सहित अन्य हथियार मौजूद थे. जो बताता था कि किस तरह यह जवान बड़ी बहादुरी के साथ चीन के सैनिकों से लड़े और शहीद हो गए.

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सवाल: आज इतने सालों बाद अचानक से अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग क्यों उठ रही है?
जवाब : यह मांग आज नहीं, अंग्रेजों के समय से ही उठ रही है. जब 1857 में गदर हुआ था. उस दौरान अंग्रेजी सेना में शामिल यादव और गुर्जर सैनिकों ने विद्रोह कर देश की आजादी में हिस्सा लिया. उस दौरान भारत में जो ब्रिटिश इंडियन आर्मी (British Indian Army) थी. उनका अंग्रेजों ने नामकरण, धर्म (Religion), संप्रदाय (sect) और क्षेत्र के नाम पर (In the name of religion, sect and region) किया गया. जैसे जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स, कुमाऊं, जाट, सिख, पंजाब, नागा, आसाम, गोरखा रेजीमेंट है, लेकिन अहिर रेजीमेंट नहीं. जब अंग्रेजों ने अहीर को बागी करार दिया.

उसके बाद सेना में अहीरों की भर्ती को बंद कर दिया गया. उसके 40-50 साल बाद अंग्रेजों को एक बार फिर ऐसा लगा कि सेना में अहीरों की जरूरत है. क्योंकि वह जानते थे कि अहीर एक लड़ाकू कौम है. जब पहला विश्व युद्ध 1914 में शुरू हुआ है तो एक बार फिर अग्रेजों को अहीरों की याद आई और उन्होंने सेना में अहीरों की भर्ती शुरू की. उस दौरान आश्वासन दिया गया था कि युद्ध के बाद अहीर रेजिमेंट बनाया जाएगा. पहला विश्व युद्ध हुआ.

उस दौरान बहुत सारे अवार्ड अहीरों को मिले लेकिन अंग्रेजों के मन में था कि अहिर कौम विद्रोही कौम है. क्योंकि उन्होंने पूर्व में विद्रोह किया है. इसलिए अहिर रेजीमेंट नहीं बनाया गया. दूसरा विश्व युद्ध हुआ उस दौरान फिर इन्हें अहीरों की याद आई. फिर से सेना में अहिरो को भारी संख्या में भर्ती किया गया. उस दौरान फिर एक बार आश्वासन दिया गया कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अहीर रेजिमेंट बनाया जाएगा. द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश आर्मी के जितने बड़े अवॉर्ड थे, वे सभी अवार्ड अहीर सैनिकों को मिले.

इसके बाद जब सुभाष चंद्र बोस के द्वारा आजाद हिंद फौज तैयार की गई तो उस दौरान काफी संख्या में अहीरों ने ब्रिटिश आर्मी को छोड़ते हुए आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए. तब एक बार फिर अंग्रेजों को यह लगा कि यह बागी कौम है. जो अंग्रेजों के लिए नहीं, अपने देश के लिए लड़ रहे हैं. तब उन्होंने अहीर रेजिमेंट के मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. जब द्वितीय विश्व युद्ध हुआ तो अहीरों की भर्ती हैदराबाद रेजीमेंट में की जा रही थी और हैदराबाद रेजीमेंट में 33 परसेंट कुमाऊं 33 परसेंट अहीर और 33 परसेंट जाट थे.

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उन्होंने कहा कि जैसा कि मैंने पहले बताया कि अंग्रेजों के द्वारा जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर रेजिमेंट बनाए गए थे और जिन-जिन समुदाय के लोगों ने उनका साथ दिया, उसी अनुपात में उनके नाम के साथ भर्ती हुई. अहीरों की भर्ती उन्होंने बंद कर दी थी. हैदराबाद रेजीमेंट छोड़कर जो कुमाऊं हैं, उन्हें कुमाऊं रेजीमेंट में भेज दिया गया. जो जाट थे, उन्हें जाट रेजीमेंट में भेज दिया गया और जितने अहीर हैदराबाद रेजिमेंट में थे, उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में भेज दिया गया. इसलिए अहीर कुमाऊं रेजिमेंट में हैं.आज भी भारतीय सेना में 13 से 14 परसेंट अहीर विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद है.

आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री भी अहीरों की वीरता के कायल थे और यही वजह है कि जब अहिर रेजिमेंट की बात चली तो उन्होंने उसे कुमाऊं रेजीमेंट से अलग होने से मना कर दिया ताकि ये वीरता आगे कुमाऊं रेजीमेंट के नाम बनी रहे. अब इसे आप चाहे राजनीतिकरण कहिए कुछ और कहिये, लेकिन यह सच है. उसके बाद 1967 में सिक्किम में चाइना के साथ लड़ाई हुई. उस समय भी लगभग 900 चाइनीज मारे गए थे. उस युद्ध में भी अहीरों ने हिस्सा लिया था.

ब्रिटिश शासन काल में 25 यादव की एक समिति बनाई गई जिससे मेरे दादाजी कन्हैया लाल यादव भी शामिल थे. इन लोगों ने आजादी के पहले ब्रिटिश सरकार से कई बार अहीर रेजिमेंट बनाने को लेकर चर्चा की लेकिन रेजिमेंट नहीं बना. आजादी के बाद फिर एक समिति बनाई गई. इस समिति को तत्कालीन कालीन डिफेंस मिनिस्टर ने मिलने के लिए कहा था. 1 दिन बाद इस समिति की मुलाकात डिफेंस मिनिस्टर से होनी थी और उस दौरान वे अहिर रेजीमेंट की घोषणा करने वाले थे लेकिन इस बीच इस समिति को डिफेंस मिनिस्टर से मिलने से रोक दिया गया.

उसके बाद से लगातार अहीर रेजिमेंट बनाने को लेकर संसद सहित अन्य मंचों पर मांग उठती रही लेकिन अब तक अहीर रेजिमेंट नहीं बनाया गया. जो लोग यह कहते हैं कि हर रेजिमेंट एक जातिगत है, इसमें जातिगत की बात नहीं है. जब हर धर्म, संप्रदाय, समुदाय और क्षेत्र के नाम पर रेजिमेंट है तो फिर अहीर रेजिमेंट क्यों नहीं बन सकता. जबकि अहीर सैनिकों को सारे सेना से संबंधित बड़े अवार्ड मिल चुके हैं. यादव एक लड़ाकू कौम रही है. बावजूद, इसके अहीर रेजिमेंट नहीं बना है. क्या इसलिए क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था. या फिर राजनीतिक लड़ाई के चलते हैं.


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सवाल: क्या यह कहा जा सकता है कि अंग्रेजों के द्वारा आपकी कौम को लेकर जो गद्दार नमक बीज बोया गया था, वह आज पेड़ बन चुका है और उसे काटने की जरूरत है?
जवाब :जी बिल्कुल सही कहा आपने, कि जिस तरीके से अंग्रेजों की पॉलिसी थी. डिवाइड एंड रूल. उन्होंने कभी यादव को एक नहीं होने दिया. उन्हें पता था कि यह एक हो गए तो एक बहुत बड़ी शक्ति बन जाएंगे. इसलिए वे हमें आपस में लड़ाते रहे और आज भी वही चल रहा है.

सवाल: रेजीमेंट बनाने की मांग को लेकर क्या आपके समाज या आपके द्वारा पूर्व और वर्तमान केंद्र सरकार से मुलाकात, बातचीत और चर्चा की गई?
जवाब : इस मुद्दे को लेकर चाहे कांग्रेस सरकार रही हो या भाजपा की, सभी से बाद की गई. हमारा किसी राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं है. हमारी तरफ से बस अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग है. आखिर क्या कारण है कि अहीर रेजिमेंट बनाने की बात को अस्वीकार कर दिया जा रहा है.


सवाल: कई दशकों से यह मांग उठ रही है बावजूद इसके अब तक अहीर रेजिमेंट नहीं बनाया तो आगे आप की क्या रणनीति रहेगी?
जवाब : जैसा मैं पहले कह चुका हूं कि अपने हक के लिए बच्चे की तरह रोना पड़ेगा, संसद या या सड़क हो, उसके लिए लड़ाई लड़ी जाएगी।

सवाल: यदि रेजिमेंट बनता है, उसका क्या फायदा मिलेगा?
जवाब: समय के साथ-साथ सेना में अहीरों की भर्ती कम हो गई है. जो अहीरवारा का क्षेत्र हैं, वहां हर गांव के हर घर से कम से कम 2 जवान होते थे. आज पूरे गांव से महज 4 या 5 जवान हैं, ऐसे में उनकी भर्ती कम हो गई है. इस क्षेत्र में बड़ा फायदा मिलेगा.

सवाल: क्या आने वाले समय में आप इस विषय को लेकर और भी लोगों से चर्चा या फिर मुलाकात करेंगे?
जवाब : जी बिल्कुल करेंगे कि आखिर क्या वजह है कि अहीर रेजिमेंट नहीं बनाई जा रही है? यह अहीर रेजिमेंट नहीं बनाई जाती है तो हम फिर सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे. जब मैं देखता हूं कि हमारे युवाओं को मौका नहीं मिल रहा है तो उन्हें मौका देने की मुहिम मैन उठाई है. जाति, धर्म के नाम पर लोग लड़ रहे हैं, मर रहे हैं आखिर क्यों?

सवाल: ईटीवी भारत के माध्यम से दर्शकों, अपने समाज के लोगों और सरकार से आप क्या अपील करना चाहेंगे?
जवाब: ईटीवी भारत के माध्यम से देश के युवाओं से मेरा अनुरोध है कि आप अपने हक को जानो. मैं यहां पर अहीर रेजिमेंट की बात कर रहा हूं तो इसका यह मतलब नहीं है कि मैं सिर्फ युवाओं की बात कर रहा हूं. जब अहीर रेजिमेंट बनेगी तो इसमें अहीरों के अलावा दूसरे कौम के जो हमारे युवा हैं, उनको भी मौका मिलेगा. उनको रोजगार के मौके मिलेंगे और क्या आप नहीं चाहते कि हम भारतीय सेना में अपनी सेवा दें और यदि देश में पहले से जाति धर्म और क्षेत्र के नाम पर रेजिमेंट बनी है तो वह रेजिमेंट क्यों नहीं है? जब 12 से 13 परसेंट अहीर रहे हैं. दूसरी कौम के हमारे बच्चे हैं. मैं आप से यह अनुरोध करूंगा कि आप इस सच्चाई को समझते हैं. इन तथ्यों को समझिए और आप भी आवाज उठाइए की रेजीमेंट बननी चाहिए.

रायपुरः 18 नवंबर 1962 को हुए भारत और चीन के बीच के युद्ध के दौरान उन 120 सैनिकों के शौर्य पराक्रम (valor of 120 soldiers) को जन-जन तक पहुंचाने व उन वीर सैनिकों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के उद्देश्य प्रतिवर्ष 18 नवंबर को याद और शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है.

यहां पर महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारतीय सेना में करीब 13% सैनिक यादव हैं, जो अलग-अलग सैन्य यूनिट्स (military units) में सेवारत हैं. पर सेना में अहीर रेजिमेंट नहीं हैं. इसका मूल कारण यह है कि अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई (First War of Independence against the British) में अंग्रेजों ने यादव (Yadav) और गुर्जरों को गद्दार कौम बताया था. क्योंकि इन दोनों कौमों ने बड़ी संख्या में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह (rebellion against the British) किया था और देश की आजादी में हिस्सा लिया था.

अहीर रेजिमेंट की मांग

अब एक बार फिर देश में अहीर रेजिमेंट (Ahir Regiment) बनाए जाने की मांग उठने लगी है और इस मुहिम को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया है रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने. जो इस मुहिम को आगे बढ़ाने जा रहे हैं. आइए जानते हैं कि आखिर अब अचानक से अहीर रेजीमेंट बनाए जाने की मांग क्यों उठ रही है. इसके पीछे मुख्य वजह क्या है. इस रेजिमेंट के बनने से देश और अहीर समाज को क्या फायदा होगा? इन सारे सवालों का जवाब ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने दिया. आइए सुनते हैं कि उन्होंने इन सारे मुद्दों पर क्या कहा?

सवाल: 19 नवंबर 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान क्या हुआ था?
जवाब : 1962 भारत चीन के द्वारा लेह लद्दाख के रेजांगला चौकी पर चीन के 3 हजार से अधिक सैनिकों और भारत के 13 कुमायूं रेजीमेंट रेजीमेंट के चार्ली कंपनी के 120 सैनिकों के बीच आमने-सामने कि विश्व विख्यात युद्ध हुआ था. भारत की तरफ से लड़ रहे सभी 120 सिपाही यादव जाति के थे. दो रात चले युद्ध में भारत के वीर अहीरों ने चीन के 14 से अधिक सैनिकों को मार गिराया था. चीन के बाकी बचे सैनिक जान बचाकर भाग खड़े हुए. लेकिन इस युद्ध में 114 वीर भी शहीद हो गए. वहीं, 5 जवानों को चीन ने अगवा कर लिया था. इसके अलावा एक जवान को वापस दूसरी पोस्ट पर सूचना भेजने के लिए भेजा गया था. जिसमें वह बच गया और उसने इस पूरी घटना की जानकारी दी. युद्ध के बाद जब इन जवानों का शव को बर्फ से निकाला गया, तो उस दौरान भी इन जवानों के हाथ में बंदूक, ग्रेनाइट सहित अन्य हथियार मौजूद थे. जो बताता था कि किस तरह यह जवान बड़ी बहादुरी के साथ चीन के सैनिकों से लड़े और शहीद हो गए.

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सवाल: आज इतने सालों बाद अचानक से अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग क्यों उठ रही है?
जवाब : यह मांग आज नहीं, अंग्रेजों के समय से ही उठ रही है. जब 1857 में गदर हुआ था. उस दौरान अंग्रेजी सेना में शामिल यादव और गुर्जर सैनिकों ने विद्रोह कर देश की आजादी में हिस्सा लिया. उस दौरान भारत में जो ब्रिटिश इंडियन आर्मी (British Indian Army) थी. उनका अंग्रेजों ने नामकरण, धर्म (Religion), संप्रदाय (sect) और क्षेत्र के नाम पर (In the name of religion, sect and region) किया गया. जैसे जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स, कुमाऊं, जाट, सिख, पंजाब, नागा, आसाम, गोरखा रेजीमेंट है, लेकिन अहिर रेजीमेंट नहीं. जब अंग्रेजों ने अहीर को बागी करार दिया.

उसके बाद सेना में अहीरों की भर्ती को बंद कर दिया गया. उसके 40-50 साल बाद अंग्रेजों को एक बार फिर ऐसा लगा कि सेना में अहीरों की जरूरत है. क्योंकि वह जानते थे कि अहीर एक लड़ाकू कौम है. जब पहला विश्व युद्ध 1914 में शुरू हुआ है तो एक बार फिर अग्रेजों को अहीरों की याद आई और उन्होंने सेना में अहीरों की भर्ती शुरू की. उस दौरान आश्वासन दिया गया था कि युद्ध के बाद अहीर रेजिमेंट बनाया जाएगा. पहला विश्व युद्ध हुआ.

उस दौरान बहुत सारे अवार्ड अहीरों को मिले लेकिन अंग्रेजों के मन में था कि अहिर कौम विद्रोही कौम है. क्योंकि उन्होंने पूर्व में विद्रोह किया है. इसलिए अहिर रेजीमेंट नहीं बनाया गया. दूसरा विश्व युद्ध हुआ उस दौरान फिर इन्हें अहीरों की याद आई. फिर से सेना में अहिरो को भारी संख्या में भर्ती किया गया. उस दौरान फिर एक बार आश्वासन दिया गया कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अहीर रेजिमेंट बनाया जाएगा. द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश आर्मी के जितने बड़े अवॉर्ड थे, वे सभी अवार्ड अहीर सैनिकों को मिले.

इसके बाद जब सुभाष चंद्र बोस के द्वारा आजाद हिंद फौज तैयार की गई तो उस दौरान काफी संख्या में अहीरों ने ब्रिटिश आर्मी को छोड़ते हुए आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए. तब एक बार फिर अंग्रेजों को यह लगा कि यह बागी कौम है. जो अंग्रेजों के लिए नहीं, अपने देश के लिए लड़ रहे हैं. तब उन्होंने अहीर रेजिमेंट के मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. जब द्वितीय विश्व युद्ध हुआ तो अहीरों की भर्ती हैदराबाद रेजीमेंट में की जा रही थी और हैदराबाद रेजीमेंट में 33 परसेंट कुमाऊं 33 परसेंट अहीर और 33 परसेंट जाट थे.

ढोल पर सियासत: डॉ. रमन सिंह को शौक है तो आकर आदिवासी नृत्य महोत्सव में नाचें: कवासी लखमा

उन्होंने कहा कि जैसा कि मैंने पहले बताया कि अंग्रेजों के द्वारा जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर रेजिमेंट बनाए गए थे और जिन-जिन समुदाय के लोगों ने उनका साथ दिया, उसी अनुपात में उनके नाम के साथ भर्ती हुई. अहीरों की भर्ती उन्होंने बंद कर दी थी. हैदराबाद रेजीमेंट छोड़कर जो कुमाऊं हैं, उन्हें कुमाऊं रेजीमेंट में भेज दिया गया. जो जाट थे, उन्हें जाट रेजीमेंट में भेज दिया गया और जितने अहीर हैदराबाद रेजिमेंट में थे, उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में भेज दिया गया. इसलिए अहीर कुमाऊं रेजिमेंट में हैं.आज भी भारतीय सेना में 13 से 14 परसेंट अहीर विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद है.

आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री भी अहीरों की वीरता के कायल थे और यही वजह है कि जब अहिर रेजिमेंट की बात चली तो उन्होंने उसे कुमाऊं रेजीमेंट से अलग होने से मना कर दिया ताकि ये वीरता आगे कुमाऊं रेजीमेंट के नाम बनी रहे. अब इसे आप चाहे राजनीतिकरण कहिए कुछ और कहिये, लेकिन यह सच है. उसके बाद 1967 में सिक्किम में चाइना के साथ लड़ाई हुई. उस समय भी लगभग 900 चाइनीज मारे गए थे. उस युद्ध में भी अहीरों ने हिस्सा लिया था.

ब्रिटिश शासन काल में 25 यादव की एक समिति बनाई गई जिससे मेरे दादाजी कन्हैया लाल यादव भी शामिल थे. इन लोगों ने आजादी के पहले ब्रिटिश सरकार से कई बार अहीर रेजिमेंट बनाने को लेकर चर्चा की लेकिन रेजिमेंट नहीं बना. आजादी के बाद फिर एक समिति बनाई गई. इस समिति को तत्कालीन कालीन डिफेंस मिनिस्टर ने मिलने के लिए कहा था. 1 दिन बाद इस समिति की मुलाकात डिफेंस मिनिस्टर से होनी थी और उस दौरान वे अहिर रेजीमेंट की घोषणा करने वाले थे लेकिन इस बीच इस समिति को डिफेंस मिनिस्टर से मिलने से रोक दिया गया.

उसके बाद से लगातार अहीर रेजिमेंट बनाने को लेकर संसद सहित अन्य मंचों पर मांग उठती रही लेकिन अब तक अहीर रेजिमेंट नहीं बनाया गया. जो लोग यह कहते हैं कि हर रेजिमेंट एक जातिगत है, इसमें जातिगत की बात नहीं है. जब हर धर्म, संप्रदाय, समुदाय और क्षेत्र के नाम पर रेजिमेंट है तो फिर अहीर रेजिमेंट क्यों नहीं बन सकता. जबकि अहीर सैनिकों को सारे सेना से संबंधित बड़े अवार्ड मिल चुके हैं. यादव एक लड़ाकू कौम रही है. बावजूद, इसके अहीर रेजिमेंट नहीं बना है. क्या इसलिए क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था. या फिर राजनीतिक लड़ाई के चलते हैं.


पेसा एक्ट लागू है लेकिन नियम चिन्हांकित नहीं: टीएस सिंहदेव
सवाल: क्या यह कहा जा सकता है कि अंग्रेजों के द्वारा आपकी कौम को लेकर जो गद्दार नमक बीज बोया गया था, वह आज पेड़ बन चुका है और उसे काटने की जरूरत है?
जवाब :जी बिल्कुल सही कहा आपने, कि जिस तरीके से अंग्रेजों की पॉलिसी थी. डिवाइड एंड रूल. उन्होंने कभी यादव को एक नहीं होने दिया. उन्हें पता था कि यह एक हो गए तो एक बहुत बड़ी शक्ति बन जाएंगे. इसलिए वे हमें आपस में लड़ाते रहे और आज भी वही चल रहा है.

सवाल: रेजीमेंट बनाने की मांग को लेकर क्या आपके समाज या आपके द्वारा पूर्व और वर्तमान केंद्र सरकार से मुलाकात, बातचीत और चर्चा की गई?
जवाब : इस मुद्दे को लेकर चाहे कांग्रेस सरकार रही हो या भाजपा की, सभी से बाद की गई. हमारा किसी राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं है. हमारी तरफ से बस अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग है. आखिर क्या कारण है कि अहीर रेजिमेंट बनाने की बात को अस्वीकार कर दिया जा रहा है.


सवाल: कई दशकों से यह मांग उठ रही है बावजूद इसके अब तक अहीर रेजिमेंट नहीं बनाया तो आगे आप की क्या रणनीति रहेगी?
जवाब : जैसा मैं पहले कह चुका हूं कि अपने हक के लिए बच्चे की तरह रोना पड़ेगा, संसद या या सड़क हो, उसके लिए लड़ाई लड़ी जाएगी।

सवाल: यदि रेजिमेंट बनता है, उसका क्या फायदा मिलेगा?
जवाब: समय के साथ-साथ सेना में अहीरों की भर्ती कम हो गई है. जो अहीरवारा का क्षेत्र हैं, वहां हर गांव के हर घर से कम से कम 2 जवान होते थे. आज पूरे गांव से महज 4 या 5 जवान हैं, ऐसे में उनकी भर्ती कम हो गई है. इस क्षेत्र में बड़ा फायदा मिलेगा.

सवाल: क्या आने वाले समय में आप इस विषय को लेकर और भी लोगों से चर्चा या फिर मुलाकात करेंगे?
जवाब : जी बिल्कुल करेंगे कि आखिर क्या वजह है कि अहीर रेजिमेंट नहीं बनाई जा रही है? यह अहीर रेजिमेंट नहीं बनाई जाती है तो हम फिर सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे. जब मैं देखता हूं कि हमारे युवाओं को मौका नहीं मिल रहा है तो उन्हें मौका देने की मुहिम मैन उठाई है. जाति, धर्म के नाम पर लोग लड़ रहे हैं, मर रहे हैं आखिर क्यों?

सवाल: ईटीवी भारत के माध्यम से दर्शकों, अपने समाज के लोगों और सरकार से आप क्या अपील करना चाहेंगे?
जवाब: ईटीवी भारत के माध्यम से देश के युवाओं से मेरा अनुरोध है कि आप अपने हक को जानो. मैं यहां पर अहीर रेजिमेंट की बात कर रहा हूं तो इसका यह मतलब नहीं है कि मैं सिर्फ युवाओं की बात कर रहा हूं. जब अहीर रेजिमेंट बनेगी तो इसमें अहीरों के अलावा दूसरे कौम के जो हमारे युवा हैं, उनको भी मौका मिलेगा. उनको रोजगार के मौके मिलेंगे और क्या आप नहीं चाहते कि हम भारतीय सेना में अपनी सेवा दें और यदि देश में पहले से जाति धर्म और क्षेत्र के नाम पर रेजिमेंट बनी है तो वह रेजिमेंट क्यों नहीं है? जब 12 से 13 परसेंट अहीर रहे हैं. दूसरी कौम के हमारे बच्चे हैं. मैं आप से यह अनुरोध करूंगा कि आप इस सच्चाई को समझते हैं. इन तथ्यों को समझिए और आप भी आवाज उठाइए की रेजीमेंट बननी चाहिए.

Last Updated : Nov 17, 2021, 3:16 PM IST
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