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Fourth day of shardiya navratri: मां कुष्मांडा की आराधना से मिलेगा मोक्ष का आशीर्वाद - मां कूष्मांडा की पूजा विधि

worship maa kushmanda: मां कुष्मांडा अत्यंत ही तेजस्वी देवी हैं. उनकी अष्ट भुजाएं हैं. कमंडल, धनुष बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र और गदा अपनी भुजाओं में धारण किए हुए हैं और सिंह पर सवार हैं. नवरात्र के चौथे दिन ब्रह्मांड की देवी मां कूष्मांडा की पूजा से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है. Fourth day of shardiya navratri

Fourth day of shardiya navratri
मां कूष्मांडा की पूजा
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Published : Sep 29, 2022, 4:47 AM IST

रायपुरः शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा का दिन है. मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की देवी माना जाता है, सौरमण्डल की अधिष्ठात्री देवी मां कूष्मांडा ही हैं. कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी तब हर ओर अंधेरा व्याप्त था, तब देवी ने ही अपनी मंद मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी. जिसके बाद से ही इन्हें देवी कूष्मांडा कहा गया. मां कूष्मांडा की अष्ट भुजाएं हैं. कमंडल, धनुष बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र एवं गदा अपनी भुजाओं में धारण किए हुए हैं और सिंह पर सवार हैं. मां कूष्मांडा सात्विक बलि से अत्यंत प्रसन्न होती हैं. कूष्मांडा देवी को लाल रंग से सुसज्जित श्रृंगार किया जाता है.

ऐसा है मां का स्वरूप

  • मां कूष्मांडा का दिव्य रूप 8 भुजाओं वाला है, जो सभी दिशाओं को आलोकित करती हैं.
  • कहा जाता है कि देवी की मुस्कान से सृष्टि की रचना हुई, मां का ये रूप पूरे ब्रह्मांड में शक्तियों को जागृत करने वाला स्वरूप है.

मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं: माता कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. माता कूष्मांडा अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं. माता के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा विराजमान है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप की माला होती है. माता का वाहन सिंह है. देवी को कुम्हड़े की बलि चढ़ाई जाती है. संस्कृत में कुम्हड़े को कूष्मांडा कहते हैं, इसलिए भी माता को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है.

Third day of shardiya navratri: निर्भयता और वीरता के लिए इस विधि से करें मां चंद्रघंटा की पूजा

मान्यता है कि जब असुरों के घोर अत्याचार से देव, नर, मुनि त्रस्त हो रहे थे, तब देवी जन संताप के नाश के लिए कूष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुईं. मां भगवती का यह स्वरूप भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है. देवी स्वरूप के पूजन में 'अर्ध मात्रा चेतन नित्या यानी चार्य विशेषक त्वमेव संध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा' मंत्र का विशेष महत्व है.

सूर्य होगा बेहतर: जिनकी कुंडली में सूर्य का प्रभाव कम या ज्यादा है उन्हें मां की साधना आराधना करने से कुंडली में सूर्य का प्रभाव बेहतर होता है.

मां कूष्मांडा की पूजा विधि:

  • नवरात्रि के चौथे दिन सुबह उठकर स्‍नान कर हरे रंग के वस्‍त्र धारण करें.
  • मां की फोटो या मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और उन्‍हें तिलक लगाएं.
  • मां को हरी इलायची, सौंफ और सफेद कुम्‍हड़े (कद्दू ) का भोग लगाएं.
  • धूप, गंध, अक्षत, लाल पुष्प, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें.
  • मां के इस मंत्र 'ऊं कूष्‍मांडा देव्‍यै नम:' का 108 बार जाप कर लाभ अर्जित करें.
  • मां की आरती कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दें. इसका विशेष लाभ मिलेगा.

रायपुरः शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा का दिन है. मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की देवी माना जाता है, सौरमण्डल की अधिष्ठात्री देवी मां कूष्मांडा ही हैं. कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी तब हर ओर अंधेरा व्याप्त था, तब देवी ने ही अपनी मंद मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी. जिसके बाद से ही इन्हें देवी कूष्मांडा कहा गया. मां कूष्मांडा की अष्ट भुजाएं हैं. कमंडल, धनुष बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र एवं गदा अपनी भुजाओं में धारण किए हुए हैं और सिंह पर सवार हैं. मां कूष्मांडा सात्विक बलि से अत्यंत प्रसन्न होती हैं. कूष्मांडा देवी को लाल रंग से सुसज्जित श्रृंगार किया जाता है.

ऐसा है मां का स्वरूप

  • मां कूष्मांडा का दिव्य रूप 8 भुजाओं वाला है, जो सभी दिशाओं को आलोकित करती हैं.
  • कहा जाता है कि देवी की मुस्कान से सृष्टि की रचना हुई, मां का ये रूप पूरे ब्रह्मांड में शक्तियों को जागृत करने वाला स्वरूप है.

मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं: माता कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. माता कूष्मांडा अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं. माता के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा विराजमान है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप की माला होती है. माता का वाहन सिंह है. देवी को कुम्हड़े की बलि चढ़ाई जाती है. संस्कृत में कुम्हड़े को कूष्मांडा कहते हैं, इसलिए भी माता को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है.

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मान्यता है कि जब असुरों के घोर अत्याचार से देव, नर, मुनि त्रस्त हो रहे थे, तब देवी जन संताप के नाश के लिए कूष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुईं. मां भगवती का यह स्वरूप भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है. देवी स्वरूप के पूजन में 'अर्ध मात्रा चेतन नित्या यानी चार्य विशेषक त्वमेव संध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा' मंत्र का विशेष महत्व है.

सूर्य होगा बेहतर: जिनकी कुंडली में सूर्य का प्रभाव कम या ज्यादा है उन्हें मां की साधना आराधना करने से कुंडली में सूर्य का प्रभाव बेहतर होता है.

मां कूष्मांडा की पूजा विधि:

  • नवरात्रि के चौथे दिन सुबह उठकर स्‍नान कर हरे रंग के वस्‍त्र धारण करें.
  • मां की फोटो या मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और उन्‍हें तिलक लगाएं.
  • मां को हरी इलायची, सौंफ और सफेद कुम्‍हड़े (कद्दू ) का भोग लगाएं.
  • धूप, गंध, अक्षत, लाल पुष्प, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें.
  • मां के इस मंत्र 'ऊं कूष्‍मांडा देव्‍यै नम:' का 108 बार जाप कर लाभ अर्जित करें.
  • मां की आरती कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दें. इसका विशेष लाभ मिलेगा.
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