रायपुर: फिल्म जगत के जाने-माने गायक मोहम्मद रफी की 97वीं जयंती (Mohammad Rafi birth anniversary 2021 ) पर ETV भारत आपको उनके कुछ ऐसे प्रशंसकों से मिला रहा है जो लगभग हर मौके पर उन्हें याद करते हुए उनके गाने गुनगुनाते हैं. रफी साहब के ऐसे ही एक फैन हैं जेपी शर्मा. जो गायक भी हैं. खास बात ये है कि इनका जन्मदिन भी 24 दिसंबर ही है. जिससे ये अपने आप को काफी खुशकिस्मत समझते हैं. जेपी ने बताया कि रफी साहब ने कुछ गानों को अमर कर दिया है. जिसकी जगह कोई नहीं ले सकता है.
मोहम्मद रफी के गाए हुए गाने फिर चाहे वह भजन, कव्वाली, देशभक्ति गीत, रोमांटिक या फिर सैड सॉन्ग लोगों की यादों में हमेशा बसे रहेंगे. साल 1965 में रफी साहब छत्तीसगढ़ी पहली फिल्म 'कहि देबे संदेश' में अपनी गायकी से (mohd rafi songs in chhattisgarhi movie) छत्तीसगढ़ के लोगों के और करीब पहुंच गए. इस फिल्म में महेंद्र कपूर, सुमन कल्याणपुर व मीनू पुरुषोत्तम ने भी अपने स्वर दिए थे. छत्तीसगढ़ी फिल्म 'घर द्वार' में रफी साहब का छत्तीसगढ़ी गाना (chhattisgarhi song of mohammed rafi )'सुन सुन मोर मया पीरा के संगवारी' (Chhattisgarhi song Sun Sun Mor Maya Peera Ke Sangwari ) आज भी सुपह हिट है. इतने साल बीत जाने के बाद भी लोग इस गाने को सुनना पसंद करते हैं.
दोस्तों ने रख दिया था मोहम्मद रफी नाम
रफी साहब के जन्मदिन को खास बनाने के लिए उनके फैन जेपी शर्मा ने भी उनके गाने गाकर उन्हें याद किया. उन्होंने बताया कि पिछले 10 सालों से वे गायकी में है. लेकिन इस दौरान भी वे मोहम्मद रफी के गाए गाने गाना ज्यादा पसंद करते हैं. स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई करते समय वे दोस्तों के बीच बैठकर अक्सर मोहम्मद रफी के गाने गाया करते थे. जिससे उनका नाम दोस्तों ने मोहम्मद रफी रख दिया था. उस समय से ही वे रफी के गानों को ज्यादा तवज्जो देते हैं. उन्होंने कहा कि रफी साहब की आवाज हमेशा फिजाओं में गूंजती रहेगी.
मां से मिली प्रेरणा
जेपी बताते हैं कि गाने की प्रेरणा उन्हें उनकी मां से मिली. उनकी मां भी रेडियो में फिल्मी गाने सुनने की बेहद शौकीन थी. यहीं शौक उनमें भी आ गया. तब से सुनने और सुनाने का कारवां चलता आ रहा है.
रफी साहब से जुड़ी कुछ खास बातें
- मोहम्मद रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924, को कोटला सुल्तान सिंह, (अमृतसर में एक गांव) पंजाब में हुआ था.
- पंजाब में पैदा होने के बाद वह परिवार संग लाहौर (पाकिस्तान) में शिफ्ट हो गए थे. मोहम्मद रफी का निक नेक फीको था.
- 13 साल की उम्र में रफी साहब ने लाहौर में पहली बार अपनी गायकी का हुनर दिखाया था.
- 1944 में मोहम्मद रफी ने लाहौर में जीनत बेगम के साथ ड्यूट सॉन्ग 'सोनिये नी, हीरिये नी' से अपने गायन की शुरुआत की थी. इसके बाद रफी साहब को ऑल इंडिया रेडियो (लाहौर) ने गाने के लिए आमंत्रित किया था.
- मोहम्मद रफी ने 1945 में फिल्म 'गांव की गोरी' से हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया था.
- 1948 में महात्मा गांधी की राजनीतिक हत्या पर मोहम्मद रफी ने हुस्नलाल भगतराम और राजेंद्र कृष्णा संग मिलकर रातों-रात गीत 'सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों, बापूजी की अमर कहानी' तैयार किया था.
- रफी साहब का यह गाना सुन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने रफी को यह गाना गाने के लिए अपने घर बुला लिया था.
- 1948 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रफी को रजत पदक से सम्मानित किया था.
- 1967 में भारत सरकार ने मोहम्मद रफी को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था.
- मोहम्मद रफी ने अपने गायकी के करियर में चार हजार से ज्यादा हिंदी, क्षेत्रीय भाषाओं में 100 से ज्यादा और पर्सनल 300 से ज्यादा गाने गाए थे.
- मोहम्मद रफी ने कई भाषाओं में गाने गाए, जिसमें असमिया, कोंकणी, भोजपुरी, अंग्रेजी, फारसी, डच, स्पेनिश, तेलुगु, मैथिली, उर्दू, गुजराती, पंजाबी, मराठी, बंगाली आदि शामिल हैं.
- बीबीसी एशिया नेटवर्क पोल में मोहम्मद रफी के सॉन्ग 'बहारों फूल बरसाओ' को सबसे लोकप्रिय हिंदी गीत के रूप में वोट दिया गया था.
- मोहम्मद रफी साहब को लगभग छह फिल्मफेयर पुरस्कार और एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया था.
- रफी साहब 31 जुलाई 1980 को महज 56 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए थे.
- ऑल इंडिया रेडियो पर जब उनके निधन की खबर दी गई तो, देश को बड़ा धक्का लगा था. रफी साहब के जनाजे में दस हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे