रायपुर : आजादी एक ऐसा अहसास है, जिसके लिए भारत के हजारों, लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानी (Saluting Bravehearts) दी. कोई महात्मा गांधी के साथ आंदोलनों में शामिल होकर जेल गया तो कोई घर रहकर अप्रत्यक्ष सहयोग करता रहा. भारत के इतिहास में अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए इन क्रांतिकारियों, आंदोलनकारियों का नाम अमिट (Indian Independence Day) हैं. ऐसे ही स्वतंत्रता के वीर सिपाहियों और उनके परिजनों का राष्ट्रीय सम्मेलन राजधानी रायपुर में हो रहा है. इसमें उत्तर प्रदेश के झांसी के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित प्यारेलाल पाठक ( Story of Freedom Fighter Pandit Pyarelal Pathak) के सुपुत्र राम प्रकाश पाठक भी शामिल हुए है. ऐसे में ईटीवी भारत ने देश की आजादी के लिए उनके पिता द्वारा दिए गए योगदान और संघर्षों पर उनसे खास बातचीत की.
चंद्रशेखर आजाद के साथ पुलिस को चकमा देने वाले सेनानी की कहानी सवाल: आपके पिता के साथ आपकी मां ने भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुई. किस तरह का दौर था. उस दौरान कैसी बातें हुआ करती थी? जवाब: 1940 में मैं पैदा हुआ हूं. 3 वर्ष बाद मुझे याद है. हमारा मकान अकेला था. उस दौरान बहुत ज्यादा जंगल हुआ करती थी. वहां एक शेर और 12 तेंदुए के साथ बहुत से जंगली जानवर थे. 1925 में पंडित जवाहरलाल नेहरू जब बाजार में भाषण दिए थे. उस समय हमारे पिताजी की उम्र 11 साल थी. 1925 में वे उनसे प्रभावित हुए और धीरे-धीरे कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने लगे. उस दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित रामेश्वर प्रसाद, स्वामी स्वराज आनंद, सुदामा प्रसाद गोस्वामी, रघुनाथ विनायक द्विवेदी आदि. हमारे घर आया करते थे. हमारे घर में ही मीटिंग होती थी. उस समय भय का बहुत ही वातावरण हुआ करता था. हालात ऐसे थे कि हमारे रिश्तेदार रात में ही आते और रात में ही चुपके से निकल जाते थे. क्योंकि हमारा घर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा के पास था. इस वजह से दोनों राज्यों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बैठक हमारे घर में ही हुआ करती थी. पुलिस आए दिन हमारे घर में दबिश देती थी. उत्तर प्रदेश पुलिस जब आती तो हमारे घर से महज डेढ़ किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश की सीमा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भाग जाते थे. जब मध्य प्रदेश की पुलिस आती तो वे उत्तर प्रदेश की सीमा में आ जाते थे. इस प्रकार पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाती थी. 1935 में हमारे पिताजी ने कांग्रेस की सक्रिय सदस्यता ले ली थी. जिसका सर्टिफिकेट भी हमारे पास है. सवाल: आपके पिता जी की मुलाकात चंद्रशेखर आजाद से हुई है? जवाब : हमारे पिताजी ने गरम दल में कुछ नहीं किया. सिर्फ चंद्रशेखर आजाद की तीन चार सालों तक मदद की. क्योंकि हमारे घर के नजदीक कपिल नाथ गुफा में चंद्रशेखर आजाद रुके हुए थे. जिस जगह में रुके थे. वह भयावह जंगल था. वहां बहुत से जंगली जानवर रहते थे. इसकी वजह से पुलिस को उनके बारे में जानकारी नहीं हो पाती थी. सवाल: पिता के साथ आपकी मां भी महासंग्राम में शामिल हुईं? जवाब: माताजी घर पर रहती थी. वह कहीं नहीं जाती थी. जितने भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आते थे. उन सभी के लिए वह खाना बनाती थी. चंद्रशेखर आजाद के लिए भी हमारे घर से ही खाना गया है. यदि कोई भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आधी रात में भी आते थे, तो रात में ही उनके लिए भोजन बनाया करती थी. यह सब हमने अपनी आंखों से देखा है. बुखार होने के बावजूद हमारी मां सेनानियों के लिए भोजन बनाने से परहेज नहीं की. सभी काम छोड़कर भोजन बनाने में लग जाती थी. सवाल: आपका जन्म हो गया था. क्या कुछ बातें किया करते थे सेनानी? जवाब: मैंने बहुत से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को देखा है. क्योंकि घर पर ही उनके लिए भोजन बनता था. मैंने बहुतों को भोजन भी परोसा है. क्योंकि घर पर सबसे बड़ा होने की वजह से मुझे ही सभी सेनानियों को भोजन देना होता था. सवाल: अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की तरह क्या आपके पिताजी को भी जेल हुआ? जवाब:हमारे पिताजी को उत्तर प्रदेश पुलिस नहीं पकड़ पाई. क्योंकि वह जंगल की ओर भाग जाते थे. हमारे पिताजी को मध्यप्रदेश पुलिस ने पकड़ लिया था. उसके बाद हमारे पिताजी 10 माह तक जेल में रहे थे.
सवाल: आपके पिताजी ने आजाद भारत को लेकर क्या सपना देखा था. आज क्या वह सपने पूरे होते आपको दिखाई दे रहा है?
जवाब: बिल्कुल नहीं. आज भी गरीबी और अमीरी दिखाई दे रहा है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों की स्थिति भी बेहतर नहीं है.