रायपुर: कोरोना संक्रमण ने लोगों की जिंदगी और इसे जीने के तरीके को बदल दिया है. कोरोना संक्रमण का असर तीज-त्योहारों से लेकर बिजनेस, नौकरी, शिक्षा पर तो पड़ा ही, साथ ही मौत के बाद अंतिम संस्कार पर भी इसका प्रभाव साफ नजर आ रहा है. कोरोना काल में मरने वालों का दाह संस्कार और अस्थि विसर्जन भी मुश्किल से हो पा रहा है. कई श्मशान घाटों पर अस्थियां रखी हुई हैं. जिसे लेने अब तक कोई नहीं आया है.
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राजधानी रायपुर में 30 से ज्यादा श्मशान घाट हैं, जहां अस्थियां रखी हुई है. तेलीबांधा श्मशान घाट पर 6 से ज्यादा मृतकों की अस्थियां रखी हुई हैं. इनमें से कुछ अस्थियां लॉकडाउन से पहले की भी हैं. मारवाड़ी श्मशान घाट पर 22 अस्थियों को अपनों का इंतजार है. देवेंद्र नगर श्मशान घाट की अगर बात करें तो यहां भी 21 से ज्यादा मृतकों की अस्थियों को लेने रिश्तेदार नहीं पहुंच रहे हैं.
अस्थियों को रखा गया है सुरक्षित
देवेंद्र नगर श्मशान घाट की व्यवस्था देखने वाले नगर निगमकर्मी बलराम सोनवानी का कहना है कि लॉकडाउन के बीच लगभग 56 से ज्यादा दाह संस्कार किए गए हैं. इनमें से लगभग 21 मृतकों की अस्थियां आज भी रखी हुई हैं. श्मशान घाट पर छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों के लोगों का दाह संस्कार किया गया था, जिसकी अस्थियां लेने अब तक कोई नहीं पहुंचा है. दाह संस्कार के बाद अस्थियों को बोरियों और लोहे के बक्सों में सुरक्षित रखा गया है.
लॉकडाउन की वजह से छत्तीसगढ़ से बाहर के लोग अस्थियां ले जाने रायपुर नहीं पहुंच पा रहे हैं. जो रायपुर के लोग हैं, वह भी अस्थियों को विसर्जित करने बाहर नहीं जा पा रहे हैं. इस वजह से भी कई लोग अस्थियां लेने अब तक नहीं आए हैं. इसके अलावा कई लोग आर्थिक तंगी की वजह से भी अस्थियों के विसर्जन के लिए नहीं जा पा रहे हैं. ऐसे में महीनों से ये अस्थियां श्मशान घाट में रखी हुई हैं.
अस्थि विसर्जन का खास महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार दाह संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन करने से मृत आत्मा को शांति मिलती है. कुछ ही दिनों के बाद पितृ पक्ष की शुरुआत होने वाली है. इससे पहले अस्थियों का विसर्जन किया जाना जरूरी होता है. ऐसा माना जाता है कि गंगा में अस्थि विसर्जन करने का खास महत्व है. गंगा को नदियों में सर्वोच्च और पवित्र माना जाता है. कहा जाता है कि गंगा श्रीहरि के चरणों से निकली थी और भगवान शिव की जटाओं में रहते हुए पृथ्वी पर आई थी. गरुड़ पुराण समेत कई ग्रंथों और वेदों में जिक्र मिलता है कि गंगा देवनदी या स्वर्ग की नदी है. जिस व्यक्ति का निधन गंगा नदी के पास हो जाए, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह सीधे भगवान विष्णु के पास बैकुंठ लोक में पहुंच जाता है.
माना जाता है कि अगर मृतक गंगा किनारे रहने वाला है, तो मौत के दिन ही अस्थि विसर्जित कर देनी चाहिए, नहीं तो बाहर किसी पेड़ पर अस्थि कलश लटका देना चाहिए और 10 दिन के अंदर उसे गंगा में प्रवाहित कर देना चाहिए. जो गंगा नदी तक नहीं पहुंच पाते हैं वे लोग किसी भी नदी में अस्थियों का विसर्जन करते हैं. ऐसा माना जाता है कि जब तक अस्थियों का विसर्जन नहीं किया जाता, तब तक मृत आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता है. पंडितों का कहना है कि इस तरह श्मशान घाट पर अस्थियों के रखे रहने से मृत आत्मा को शांति नहीं मिलेगी. इस स्थिति में शासन-प्रशासन और समाज को सामने आकर इन अस्थियों को उनके परिजनों तक पहुंचाने का या इसे प्रवाहित करने की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि दिवंगत आत्मा को मोक्ष मिल सके.