रायपुरः आज रामनवमी है. देशभर में लोग भगवान राम की भक्ति में डूबे हुए हैं. भगवान राम का व्यक्तित्व ही ऐसा है कि लोग आज भी उनके गुणों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं. कहा जाता है कि भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं. फिर चाहे वो एक बेटे के रूप में हो. पति के रूप में हो, भाई के रूप में हो, सखा के रूप में हो. या फिर एक आम जनमानस के रूप में. इसी वजह से भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. उन्होंने पूरा जीवन मर्यादा में रहकर ही न सिर्फ जिया बल्कि उनके जीवन से लोग मर्यादा का सही अर्थ समझते हैं. (Lord Rama called Maryada Purushottam )
पिता के वचन का रखा मान: जब भगवान श्री राम को माता कैकेयी के कारण वनवास जाना पड़ा था, तब उन्होंने महज पिता के वचन का मान रखते हुए अपना कर्तव्य निभाया और राजपाट छोड़कर वन की ओर चल पड़े.राम के मर्यादा पुरुष बन कर उभरने का सबसे शुरुआती प्रसंग उनका वनवास स्वीकारना ही है. राजा दशरथ कैकेयी को वचन दे चुके थे. राम चाहते तो विद्रोह कर सकते थे. वह अयोध्या के राजकुमार थे और गद्दी पर बैठना उनके लिए बेहद आसान था. लेकिन राम ने पारिवारिक संबंधों की मर्यादा को सबसे ऊपर रखा.
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सीता की अग्निपरीक्षा: प्रजा का मान रखने के लिए भगवान राम ने सीता की अग्निपरीक्षा ली थी. सीता की अग्निपरीक्षा राम के जीवन में एक दागदार प्रसंग के तौर पर याद किया जाता है. इसे स्त्री विरोधी कदम माना जाता है.
भगवान राम का राजनीतिक जीवन : भगवान श्रीराम का राजनीतिक जीवन भी काफी अहम माना जाता है. एक क्षत्रिय राजा होने के बावजूद उन्होंने निषादों का साथ लिया. भीलों, वानरों और भालुओं का सहयोग लिया. उनकी सेना में अलग-अलग जाति के लोग थे. जिनका सम्मान किया जाता था.