रायपुरः हरितालिका तीज का व्रत (Fast) निर्जला रह कर किया जाता है. तीज के इस उपवास (Fasting) में निराहार (dietless), निर्जला (watery) होने का विशेष प्रावधान है. सनातन संस्कृति (Sanatan Culture) में आदि काल से सौभाग्यवती (Fortunately) नारियां इस व्रत को आनंद और उल्लास (joy and glee) से करती आई हैं. इस व्रत में अविचल संकल्प और अटूट निष्ठा की आवश्यकता होती है. भूखे-प्यासे इस व्रत में कुछ एहतियात बरत कर महिलाएं न सिर्फ अपने अखंड सौभाग्यती के व्रत संकल्प को आसानी के साथ पूरा कर सकती हैं बल्कि वह अपनी शारीरिक ऊर्जा को भी बनाए रख सकती हैं.
हरितालिका तीज पर व्रत से पहले पेट का साफ होना बहुत आवश्यक है. इससे शरीर को बल मिलता है और ऊर्जा का स्तर भी बहुत ऊंचा रहता है. इस दिन सभी महिलाएं कुशलता पूर्वक अनुलोम-विलोम (Anulom-Antonym), भ्रामरी प्राणायाम (Bhramari Pranayama), ओम प्राणायाम (Om Pranayama), प्रणव प्राणायाम (Pranava Pranayama) का अभ्यास (Practice) कर अपने शरीर (Body) को बहुत अच्छे स्तर का संतुलन (balance) प्रदान कर सकती हैं.
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शीतली प्राणायाम के माध्यम से उपवास खंडित होने से बचा जा सकता है
ज्योतिष विनीत शर्मा बताते हैं कि हमारे शरीर (Body) को जल और वायु से ऊर्जा मिलती है. शीतली प्राणायाम का अभ्यास हमारे भीतर उठ रही प्यास को पूरी तरह शांत कर सकती है. शीतली प्राणायाम करने के लिए जीभ को गोल पाइपनुमा बनाकर मुख से स्वास (mouth breathing) लिया जाता है. इस जीभ के माध्यम से ही शुद्ध वायु (Pure air) अंदर जाती है. इससे हमें प्यास का अहसास नहीं हो पाता. हमारी प्यास तुरंत बुझ जाती है. इसमें जीभ से सांस ली जाती है और नासिका से सांस छोड़ी जाती है.
शीतकारी प्राणायाम भी उपवास के दौरान भूख प्यास को समाप्त कर देता है
इसी क्रम में शीतकारी प्राणायाम भी माताओं और बहनों को बहुत बल देने वाला है. इससे निश्चित तौर पर माताओं-बहनों को प्यास-भूख (Thirst hunger) आदि की तृष्णा समाप्त होती है. इसे भी मुख के द्वारा स्वास लेकर किया जाता है. इसमें मुख को पूरा खोलकर दांतो को दबाकर सांस अंदर ली जाती है. इससे शरीर को ऑक्सीजन (oxygen), ऊर्जा (energy) और बल मिलता है. फलस्वरुप भूख और प्यास महसूस नहीं होता. इस प्राणायाम के अभ्यास से माताओं, बहनों को सुकून के साथ आरोग्य बल मिल जाता है और वे इस उपवास को आनंद के साथ पूर्ण कर सकती हैं.