रायपुरः अल्जाइमर भूलने का रोग है. इसका नाम अलोइस अल्जाइमर (Alois Alzheimer) पर रखा गया है. सबसे पहले इसका विवरण दिया था. इस बीमारी के लक्षण में याददाश्त की कमी (memory loss) होना, निर्णय ना ले पाना indecisiveness, बोलने में दिक्कत (difficulty speaking) आना तथा फिर इसकी वजह से सामाजिक व पारिवारिक समस्या (social and family problems) भी उत्पन्न हो सकती है.
हर साल 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर (World Alzheimer Day 2021) दिवस मना मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य अल्जाइमर रोग के विषय में जागरुकता फैलाना है. भारत में 40 लाख से अधिक लोग अल्जाइमर के शिकार हैं. विश्व भर में भारत तीसरे स्थान पर है. ऐसे में जरूरी है कि सबको इस बीमारी की जानकारी होना चाहिए. ईटीवी भारत ने अल्जाइमर को लेकर साइकैटरिस्ट डॉ सुरभि दुबे से खास बातचीत की.
जवाबः अल्जाइमर यह डिमेंशिया का प्रकार है. डिमेंशिया को अगर हम नॉर्मल बोलचाल की भाषा में बोलेंगे तो भूलने की बीमारी इसे कहते हैं. अल्जाइमर मोस्ट कॉमनली डायग्नोज और मोस्ट कॉमनली एंकरिंग फॉर्म ऑफ डिमेंशिया है. अगर किसी को भूलने की बीमारी है तो 80 फीसदी लोगों को अल्जाइमर ही होता है. दूसरी तरह की भूलने की बीमारी भी होती है. जैसे वैस्कुलर डिमेंशिया (vascular dementia), मिक्स्ड डिमेंशिया (mixed dementia), लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy body dementia). न्यूट्रिशन की कमी (lack of nutrition) के कारण भी डिमेंशिया हो सकता है. भूलने की बीमारी के अलावा ब्रेन के जिस भाग में सबसे ज्यादा नर्व लॉस (nerve loss) हुआ होगा, उस वजह से भी कई बार हमें लोगों की पर्सनालिटी में चेंजेज (changes in personality) देखने को मिलता है. डिप्रेशन, गुस्सा, चिड़चिड़ापन आने लगता है. जिसके कारण लोगों को बाद में भूलने के लक्षण आते हैं. कई लोगों को बाथरूम कंट्रोल नहीं करने की प्राब्लम होती है. बाद में भूलने का लक्षण भी आ सकता है. थायराइड की बीमारियों में भी भूलने के लक्षण आ सकते हैं. बीपी और शुगर के मरीजों में भी यह लक्षण देखने को मिल सकते हैं. तो हमें ध्यान रखना पड़ता है कि जब भी हम मरीज को देख रहे हैं तो इन सारी चीजों को हम नजरअंदाज ना करें.
सवालःअल्जाइमर बुजुर्गों में देखने को तो मिलता है लेकिन क्या आजकल युवाओं में भी अल्जाइमर देखने को मिल रहा है?
जवाबः बुजुर्गों में ज्यादा अल्जाइमर के मरीज देखने को मिलते हैं. लेकिन जो नशा करते हैं, मादक पदार्थ का सेवन करते हैं, उनमें यह जल्दी देखने को मिलता है. जिन लोगों में जेनेटिकली है, परिवार में किसी को पहले ये बीमारी रही है तो जेनेटिक भी बहुत मैटर करते हैं कि पहले किसी को यह बीमारी हुई है. कोई वायरल इंफेक्शन हुआ है जो ब्रेन को अटैक किया है, उनमें भी यह बीमारी जल्दी देखने को मिलती है. ऐसे लोग जो फिजिकल वर्क कम करते हैं या बैठे-बैठे ज्यादा काम करते हैं, उनमें भी अल्जाइमर एज से पहले देखने को मिलता है.
सवालः पिछले डेढ़ साल से बच्चे ज्यादा टेक्नोफ्रेंडली हो गए हैं और दिन भर मोबाइल और लैपटॉप देखते रहते हैं. तो ऐसे में क्या आंखों की तरह ब्रेन पर भी इसका इफेक्ट पड़ता है और उन्हें आगे जाकर अल्जाइमर हो सकता है?
जवाबः स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से हम देख रहे हैं कि ओवर ऑल बच्चों का डेवलपमेंट बिगड़ रहा है. जो बौद्धिक क्षमता है. ऐसा नहीं कि वह बुद्धिमता में कमजोर हो रहे हैं बल्कि उन्हें एक ऐसा सोर्स ऑफ नॉलेज मिला है जिसका वह फायदा उठा सकते हैं. लेकिन इसमें अच्छी बात भी और बुरी बात भी है. तो पेरेंट्स किस एज में बच्चों को क्या एक्स्पोज़र दे रहे हैं? यह ध्यान रखना जरूरी है. ज्यादा देर तक स्क्रीन देखने से बच्चों में स्लीप लोस्स की बीमारी देखने को मिल रही है. बच्चे खाना नहीं खा रहे हैं. देर रात तक जग रहे हैं तो मोबाइल या लैपटॉप का इस्तेमाल खराब है ऐसा नहीं है लेकिन ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल हमारे शरीर और दिमाग को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है. इससे गुस्सा, चिड़चिड़ापन, भूलने की बीमारी, इंपल्सिव बिहेवियर बच्चों में देखने को मिल रहा है.
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हाल के दिनों में ज्यादा बढ़ी है समस्या
हाल के दिनों में हमें ज्यादातर लोगों में लाइफस्टाइल चेंजेज देखने को मिल रहे हैं. शहरीकरण के कारण उनमें यह बढ़ता हुआ दिख रहा है. जैसा मैंने पहले कहा है कि फिजिकल एक्सरसाइज कम होने से, लैपटॉप, मोबाइल, कंप्यूटर पर एक जगह बैठ कर बहुत देर तक काम करना, बहुत ज्यादा लाइफस्टाइल अव्यवस्थित हो जाना, उस वजह से स्ट्रेस बढ़ जाना और स्ट्रेस बढ़ने से नींद की कमी होना, डिप्रेशन, खाना कम हो जाना यह बीमारी ज्यादा अब देखने को मिल रही है.