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Ganesh Chaturthi 2022 गणपति पूजन का महत्व और पौराणिक विधान

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Published : Aug 25, 2022, 6:43 PM IST

गणेश की महिमा अपरंपार है.हमारे देश में गणेश चतुर्थी के दिन गणपति विराजते हैं. इस दिन देश के हर हिस्से में गणपति पूजन किया जाता है. गणपति पूजन का विशेष महत्व और पौराणिक विधान है.

Ganesh Chaturthi 2022
गणपति पूजन का महत्व और पौराणिक विधान

रायपुर : गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) का पावन पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी वरद, चतुर्थी संवत्सरी चतुर्थी या श्री गणेश चतुर्थी के रूप में मनाने का पौराणिक विधान है. भगवान श्री गणेश माता गौरी के उबटन (मैल) से उत्पन्न हुए थे. माता पार्वती ने बहुत स्नेह पूर्वक गणेश जी में प्राणों का संचार और आत्मा का संचार किया था. अनजाने में ही भगवान रूद्र अर्थात भगवान भोलेनाथ द्वारा श्री लंबोदर महाराज का सिर काटने के उपरांत उत्तर दिशा में जाकर देवताओं ने गज मुख को लाया. तो भगवान शिव ने विशिष्ट मंत्रों के माध्यम से उन्नत चिकित्सा की मदद से भगवान लंबोदर महाराज को पुनर्जीवित किया. Vinayaka Chavithi 2022

गणपति पूजन का महत्व और पौराणिक विधान
प्रथम पूज्य हैं गणपति : ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "भगवान शिव के पुनर्जीवित करने के बाद से गणेश जी गजानंद गजमुख और प्रथम पूज्य श्री लंबोदर महाराज कहलाएं. ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों ने एक साथ उपस्थित होकर भगवान श्री गणेश को सर्व अध्यक्ष होने का आशीर्वाद दिया. भगवान शिव ने भी अनेक आशीर्वाद से गणेश जी को भी घोषित किया और उन्हें विघ्नों का नाश करने वाला घोषित किया. तब से विघ्नहर्ता के रूप में भगवान श्री गणेश जी जाने जाते हैं. भगवान श्री गणेश माता-पिता की परिक्रमा कोई धरती या ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सिद्ध करने वाले भगवान श्री गणेश को भोलेनाथ जी ने प्रसन्न होकर सर्वप्रथम पूजा और प्रथमेश होने का आशीर्वाद प्रदान ( Importance of Ganpati Puja) किया. भगवान श्री गणेश जन्म से लेकर मृत्यु तक समस्त संस्कारों में धार्मिक अनुष्ठान में पूजा पाठ में सबसे पहले पूजन किए जाने वाले भगवान माने जाते हैं. कोई भी अनुष्ठान भगवान श्री गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठा के बिना पूर्ण नहीं होती. श्री लंबोदर महाराज का लंबा उदर होने की वजह से इन्हें भोग पदार्थ भी बहुत प्रिय है."आजादी के आंदोलन में भी गणेश उत्सव की थी भूमिका : आजादी के आंदोलन में श्री गणेश महोत्सव का बहुत महत्व रहा है. मुंबई में बाल कृष्ण गोखले द्वारा गणेश महोत्सव की शुरुआत की गई. इस महोत्सव के द्वारा सभी क्रांतिकारी देश प्रेमी देश भक्त गणेश पंडाल के नीचे इकट्ठा होकर देश की आजादी की लड़ाई को गति प्रदान करने के साथ ही आगे की रणनीति को लेकर विचार विमर्श करते थे.

सनातन काल से गणपति पूजन की परंपरा : गणेश चतुर्थी के पर्व का सनातन काल से महत्व रहा है. पूजा अर्चना और अनुष्ठान के द्वारा समस्त सिद्धियों की प्राप्ति सनातन काल से होती रही है. जीवन में आने वाले समस्त बाधाओं और विघ्न को हरने वाले गणेश जी माने गए हैं. कोई भी शुभ कार्य गणेश जी का नाम लेकर प्रारंभ करने से वह सफल और सिद्ध होता है. गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर नया वाहन, नया मकान, नई भूमि मकान की रजिस्ट्री करना बहुत ही शुभ माना गया है. सनातन काल से ही यह अपना विशिष्ट महत्व रखती है. गणेश चतुर्थी के माध्यम से ही महिलाएं हल्दी कुमकुम के द्वारा आपस में एक दूसरे से मिलती है. अपने सुख-दुख को साझा करती है.


गणपति पूजन का महत्व : चतुर्थी के पर्व में उपवास, पूजा पाठ और दान का विशेष महत्व है. इस दिन श्री गणेश जी को केला, मौसमी, फल, लड्डू, मगज के लड्डू, बूंदी के लड्डू का भोग लगाने का विधान है. इसके साथ ही परिमल रोली चंदन बंधन अबीर गुलाल से भी लंबोदर महाराज को शोभायमान किया जाता है. माता पार्वती ने श्री गणेश जी के मुख पर तिलक को देखकर यह आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति भगवान गणेश को तिलक लगाएगा उनकी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होंगी. भगवान श्री गणेश अनेक सिद्धियों के साथ बल और बुद्धि के दाता भी माने गए हैं. विद्या ज्ञान विज्ञान आदि के लिए प्रयासरत विद्यार्थियों को नियमित रूप से श्री गणेश चालीसा के पाठ करने की सलाह दी जाती है. जीवन में अनेक परेशानियां हो तो विघ्नहर्ता की पूजा करने मात्र से ही अनेक तरह की समस्याओं का निवारण हो जाता है.

बुधवार का दिन गणपति को प्रिय : इस बार गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022 Date) बुधवार के शुभ संयोग में पड़ रहा है. बुध ग्रह गणेश जी को विशेष प्रिय हैं. बुधवार को ही श्री लंबोदर महाराज का प्रमुख दिन माना जाता है. आज के दिन गणेश जी की पूजा पाठ अर्चना, अनुष्ठान और दान करने पर जीवन में आने वाली समस्त विघ्न बाधाओं का अंत हो जाता है. भारत के कई हिस्सों में सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए गणेश चतुर्थी के 1 दिन पूर्व हरितालिका तीज में जागरण रखकर गणेश दर्शन के उपरांत ही गणेश चतुर्थी के दिन व्रत को तोड़ती है.

रायपुर : गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) का पावन पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी वरद, चतुर्थी संवत्सरी चतुर्थी या श्री गणेश चतुर्थी के रूप में मनाने का पौराणिक विधान है. भगवान श्री गणेश माता गौरी के उबटन (मैल) से उत्पन्न हुए थे. माता पार्वती ने बहुत स्नेह पूर्वक गणेश जी में प्राणों का संचार और आत्मा का संचार किया था. अनजाने में ही भगवान रूद्र अर्थात भगवान भोलेनाथ द्वारा श्री लंबोदर महाराज का सिर काटने के उपरांत उत्तर दिशा में जाकर देवताओं ने गज मुख को लाया. तो भगवान शिव ने विशिष्ट मंत्रों के माध्यम से उन्नत चिकित्सा की मदद से भगवान लंबोदर महाराज को पुनर्जीवित किया. Vinayaka Chavithi 2022

गणपति पूजन का महत्व और पौराणिक विधान
प्रथम पूज्य हैं गणपति : ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "भगवान शिव के पुनर्जीवित करने के बाद से गणेश जी गजानंद गजमुख और प्रथम पूज्य श्री लंबोदर महाराज कहलाएं. ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों ने एक साथ उपस्थित होकर भगवान श्री गणेश को सर्व अध्यक्ष होने का आशीर्वाद दिया. भगवान शिव ने भी अनेक आशीर्वाद से गणेश जी को भी घोषित किया और उन्हें विघ्नों का नाश करने वाला घोषित किया. तब से विघ्नहर्ता के रूप में भगवान श्री गणेश जी जाने जाते हैं. भगवान श्री गणेश माता-पिता की परिक्रमा कोई धरती या ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सिद्ध करने वाले भगवान श्री गणेश को भोलेनाथ जी ने प्रसन्न होकर सर्वप्रथम पूजा और प्रथमेश होने का आशीर्वाद प्रदान ( Importance of Ganpati Puja) किया. भगवान श्री गणेश जन्म से लेकर मृत्यु तक समस्त संस्कारों में धार्मिक अनुष्ठान में पूजा पाठ में सबसे पहले पूजन किए जाने वाले भगवान माने जाते हैं. कोई भी अनुष्ठान भगवान श्री गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठा के बिना पूर्ण नहीं होती. श्री लंबोदर महाराज का लंबा उदर होने की वजह से इन्हें भोग पदार्थ भी बहुत प्रिय है."आजादी के आंदोलन में भी गणेश उत्सव की थी भूमिका : आजादी के आंदोलन में श्री गणेश महोत्सव का बहुत महत्व रहा है. मुंबई में बाल कृष्ण गोखले द्वारा गणेश महोत्सव की शुरुआत की गई. इस महोत्सव के द्वारा सभी क्रांतिकारी देश प्रेमी देश भक्त गणेश पंडाल के नीचे इकट्ठा होकर देश की आजादी की लड़ाई को गति प्रदान करने के साथ ही आगे की रणनीति को लेकर विचार विमर्श करते थे.

सनातन काल से गणपति पूजन की परंपरा : गणेश चतुर्थी के पर्व का सनातन काल से महत्व रहा है. पूजा अर्चना और अनुष्ठान के द्वारा समस्त सिद्धियों की प्राप्ति सनातन काल से होती रही है. जीवन में आने वाले समस्त बाधाओं और विघ्न को हरने वाले गणेश जी माने गए हैं. कोई भी शुभ कार्य गणेश जी का नाम लेकर प्रारंभ करने से वह सफल और सिद्ध होता है. गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर नया वाहन, नया मकान, नई भूमि मकान की रजिस्ट्री करना बहुत ही शुभ माना गया है. सनातन काल से ही यह अपना विशिष्ट महत्व रखती है. गणेश चतुर्थी के माध्यम से ही महिलाएं हल्दी कुमकुम के द्वारा आपस में एक दूसरे से मिलती है. अपने सुख-दुख को साझा करती है.


गणपति पूजन का महत्व : चतुर्थी के पर्व में उपवास, पूजा पाठ और दान का विशेष महत्व है. इस दिन श्री गणेश जी को केला, मौसमी, फल, लड्डू, मगज के लड्डू, बूंदी के लड्डू का भोग लगाने का विधान है. इसके साथ ही परिमल रोली चंदन बंधन अबीर गुलाल से भी लंबोदर महाराज को शोभायमान किया जाता है. माता पार्वती ने श्री गणेश जी के मुख पर तिलक को देखकर यह आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति भगवान गणेश को तिलक लगाएगा उनकी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होंगी. भगवान श्री गणेश अनेक सिद्धियों के साथ बल और बुद्धि के दाता भी माने गए हैं. विद्या ज्ञान विज्ञान आदि के लिए प्रयासरत विद्यार्थियों को नियमित रूप से श्री गणेश चालीसा के पाठ करने की सलाह दी जाती है. जीवन में अनेक परेशानियां हो तो विघ्नहर्ता की पूजा करने मात्र से ही अनेक तरह की समस्याओं का निवारण हो जाता है.

बुधवार का दिन गणपति को प्रिय : इस बार गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022 Date) बुधवार के शुभ संयोग में पड़ रहा है. बुध ग्रह गणेश जी को विशेष प्रिय हैं. बुधवार को ही श्री लंबोदर महाराज का प्रमुख दिन माना जाता है. आज के दिन गणेश जी की पूजा पाठ अर्चना, अनुष्ठान और दान करने पर जीवन में आने वाली समस्त विघ्न बाधाओं का अंत हो जाता है. भारत के कई हिस्सों में सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए गणेश चतुर्थी के 1 दिन पूर्व हरितालिका तीज में जागरण रखकर गणेश दर्शन के उपरांत ही गणेश चतुर्थी के दिन व्रत को तोड़ती है.

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