रायपुर : छत्तीसगढ़ की नई राजधानी रायपुर के अटल नगर (नवा रायपुर) में पुनर्वास और व्यवस्थापन की मांग को लेकर, प्रभावित किसानों का आंदोलन 3 जनवरी 2022 से लगातार जारी है. वही आज सुबह कुछ मीडिया समूह ने नवा रायपुर प्रभावित किसान संघ का प्रस्तावित आंदोलन खत्म होने की खबर चलाई.लेकिन संघ ने अब वीडियो जारी करके ये बताया है कि आंदोलन खत्म नहीं हुआ (Kisan Andolan Nava Raipur) है.
आंदोलन अभी और होगा बड़ा : संघ ने स्पष्ट कर दिया गया है कि यह आंदोलन लगातार जारी रहेगा. संघ की ओर से एक वीडियो बयान जारी कर भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप लगाया गया (News on Nava Raipur Kisan Andolan) है. आंदोलन करने वाले किसानों ने बताया कि ''हमारा आंदोलन पिछले 155 दिनों से निरंतर जारी है , कुछ मीडिया वर्ग ने गलत खबर चलाई है. हमारा आंदोलन स्थगित नहीं हुआ है आने वाले दिनों में हमारा आंदोलन और बड़ा होगा, बरसात के दिनों में आंदोलन के लिए हम वाटरप्रूफ टेंट लगाएंगे.जब तक हमारी मांग पूरी नही हो जाती यह आंदोलन जारी रहेगा.''
राकेश टिकैत ने दिया है आंदोलन को समर्थन : राकेश टिकैत ने किसानों की मांग को जायज ठहराया (Rakesh Tikait support to the movement) था. नवा रायपुर में किसानों के आंदोलन को किसान नेता राकेश टिकैत ने समर्थन दिया था. टिकैत ने रायपुर में कहा था कि ''हम लोग आंदोलन का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि जमीन अधिग्रहण या कोई योजना तो पूरे देश के लिए होती है. सिर्फ 27 गांव के किसानों की जमीन को अधिग्रहण करने के लिए योजना थोड़े ही होती है. ऐसे तो 27 गांवों के किसानों की जमीन चली जाएगी.'' राकेश टिकैत ने 27 गांवों के किसानों को उनकी जमीन के बदले उचित मुआवजा देने की मांग सरकार से मांग की थी.
क्या है पूरा मामला : छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण 1 नवंबर सन 2000 को हुआ. प्रदेश बनने के बाद से ही सरकारी महकमे में इस बात की चर्चा होने लगी थी कि मध्य प्रदेश की राजधानी नया भोपाल की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी नया रायपुर बनाया जाए. तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने साल 2002 में नया रायपुर बनाने के लिए पौता गांव में सोनिया गांधी से शिलान्यास भी करवाया. पौता के आसपास के 61 गांव को इस प्लान में रखा गया था. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार के प्लान में परिवर्तन किया. 2005 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने नया रायपुर के लिए राखी गांव में फिर से शिलान्यास करवाया. नया रायपुर के लिए बनाए गए इस प्लान में कुल 41 गांव को लिया गया. इस परियोजना के लिए कुल 27 गांव में जमीन की खरीदी बिक्री पर रोक लगाई गई. साल 2006 से सरकार ने किसानों की जमीनों को खरीदना शुरू किया.
जमीन अधिग्रहण की मिली धमकी: साल 2002 के बाद से ही नया रायपुर क्षेत्र में किसानों का आंदोलन रुक-रुक कर चलता रहा. नयी राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष रूपन चंद्राकर ने बताया कि ''प्रभावित क्षेत्र में आने वाले, रीको गांव में तत्कालीन शासन की ओर से नोटिस दिया गया. इस नोटिस में कहा गया है कि गांव के सभी किसान आपसी समझौता करके अपनी जमीन शासन को दे दें वरना सभी की जमीनें अधिग्रहित कर ली जाएंगी. शासन के नोटिस के बाद किसान फिर आंदोलन के लिए लामबंद होने लगे.''
कई बार किया गया आंदोलन: आगे किसान नेता रूपन ने बताया कि, साल 2009 में नया रायपुर के प्रभावित किसानों ने अपनी संस्था का पंजीयन करवाया और 20 जून 2009 को फिर से आंदोलन की शुरुआत की गई. आंदोलन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किसानों को बातचीत का न्यौता दिया. जिसमें उन्होंने जमीन की कीमतें समय के हिसाब से बढ़ाने का प्रस्ताव दिया, जिसे ज्यादातर किसानों ने स्वीकार नहीं (Difference between farmer and government) किया. इस दौरान किसानों के अंदर ही फूट पड़ गई, जिससे आंदोलन बीच में ही रुक गया.
किसान और सरकार के बीच मतभेद : चंद्राकर ने बताया कि '' 1 अप्रैल 2010 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किसानों को फिर से चर्चा के लिए आमंत्रित किया. इस बैठक में उन्होंने सिंचित जमीन की कीमत 25 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर और असिंचित जमीन की कीमत 17 लाख 50 हजार प्रति हेक्टेयर देने की बात की. इस मामले में भी किसानों में मतभेद खुलकर सामने आया. साल 2014 में जमीन अधिग्रहण को लेकर नया कानून आया. जिसमें ग्रामीण इलाके के जमीन में कलेक्टर रेट से 4 गुना अधिक और शहरी इलाके की जमीन में कलेक्टर रेट से 2 गुना अधिक मुआवजा देने का प्रावधान था.''
नया रायपुर को शहरी क्षेत्र किया गया घोषित: चंद्राकर के मुताबिक ''किसानों ने इस कानून का भी विरोध किया था. क्योंकि साल 2014 में शासन ने नया रायपुर को शहरी क्षेत्र घोषित कर दिया था. नया रायपुर के आंदोलनरत किसान भी चाहते हैं कि समझौता हो. किसानों की मांगें मानी जाए. जिस काम को पहले की सरकार ने नहीं किया, वह काम कांग्रेस की भूपेश सरकार करे. ''
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किसानों की क्या है मांगें : किसान कई दिनों से अपनी मांगों पर अड़े हैं.जिसमे प्रभावित 27 ग्रामों की घोषित नगरीय क्षेत्र की अधिसूचना निरस्त की जाए.सम्पूर्ण गांवों को ग्रामीण बसाहट का पट्टा दिया जाए.सन 2005 से स्वतंत्र भू क्रय-विक्रय पर लगे प्रतिबंध को तत्काल प्रभाव से हटाया जाए.मुआवजा प्राप्त नहीं हुए भू-स्वामियों को चार गुना मुआवजा की मांग की गई है. प्रभावित क्षेत्र के प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को 1200 वर्ग फीट विकसित भूखण्ड का वितरण किया जाए.अर्जित भूमि पर वार्षिकी राशि का भुगतान तत्काल दिया जाए.सशक्त समिति की 12वीं बैठक के निर्णयों का पूर्णतय: पालन हो.आपसी सहमति, भू-अर्जन के तहत अर्जित भूमि के अनुपात में शुल्क का आवंटन करना शामिल है.