ETV Bharat / city

वन्यजीव संरक्षण के लिए सरकार को जमीनी स्तर पर करना होगा काम : नितिन सिंघवी - Illegal deforestation in Chhattisgarh

कुछ वर्षों में वन कटाई और जंगली जानवरों के शिकार के मामले तेजी से बढ़े हैं. अवैध रूप से हो रहे जंगली जानवरों का शिकार और पेड़ों का कटाई का बुरा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ रहा है. इन सभी विषयों पर ETV भारत ने वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी से चर्चा की.

nitin singhvi
नितिन सिंघवी
author img

By

Published : Jan 12, 2021, 2:12 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ वर्षों में वन कटाई और जंगली जानवरों के शिकार के मामले तेजी से बढ़े हैं. लगातार हो रहे जंगलों की कटाई की वजह से जहां एक ओर पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव देखने को मिल सकता है, वहीं अवैध रूप से हो रहे जंगली जानवरों का शिकार आने वाले समय में परेशानी का सबब बन सकता है. इन सभी विषयों पर ETV भारत ने वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी से चर्चा की. नितिन लगातार इससे संबंधित जनहित याचिका कोर्ट में लगाते रहते हैं.

नितिन सिंघवी से जंगली जानवरों के शिकार का प्रभाव और इसे रोकने के लिए उठाए जाने वाले सरकार के प्रयासों के विषय में विस्तृत रूप से जानकारी दी.

नितिन सिंघवी से खात बातचीत

पढ़ें- ताबड़तोड़ एक्शल ले रहे IG रतनलाल बोले- 'हम जनता के सेवक, राजा नहीं'

सवाल- वन कटाई और जंगली जानवरों के शिकार का फॉरेस्ट ईको सिस्टम पर क्या प्रभाव पड़ता है?

जवाब- प्रकृति में एक सिस्टम बनाया गया है, उस सिस्टम के सुचारू रूप से संचालित होने से वन एवं पर्यावरण सुरक्षित रहता है. उदाहरण के तौर पर वनस्पति को शाकाहारी जानवर खाते हैं. उन जानवरों को मांसाहारी जानवर खाते हैं, इस तरह से एक चेन बनी हुई है. यदि इस चेन की एक भी कड़ी भी टूटी, तो पूरा सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा. वर्तमान में जिस तरह से जंगलों की कटाई हो रही है, जंगली जानवरों का शिकार हो रहा है, इसका बुरा प्रभाव आने वाले समय में पड़ने वाला है, जिसका खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ियों को उठाना पड़ेगा. जिसे लोग अभी समझ नहीं पा रहे हैं.

नितिन सिंघवी से खात बातचीत
सवाल- ब्रेक हो रहे चेन को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?जवाब- प्रकृति के ब्रेक हो रहे चेन को रोकने के लिए वन विभाग और सरकार को जमीनी स्तर पर काम करना होगा. सिर्फ कागजों पर वृक्षारोपण और अन्य तरह के अभियान चलाकर श्रीगणेश नहीं किया जा सकता है. इसके लिए जमीनी स्तर पर ना सिर्फ योजना बनानी होगी, बल्कि उसका सही तरीके से क्रियान्वयन भी करना होगा.

सवाल- क्या वन कटाई के पीछे किसी गिरोह का हाथ हो सकता है?

जवाब- छत्तीसगढ़ में वन कटाई में कोई गिरोह शामिल हो, ऐसा देखने को नहीं मिला है. जंगल में आदिवासियों को पट्टा देने के लिए अभियान चलाया गया, लेकिन उसके तहत दूसरे लोगों ने भी पट्टा हासिल कर लिया. इस तरह से कई फर्जी पट्टों को सरकार ने खारिज किया है. एक बार फिर वन में पट्टे जारी करने की प्रक्रिया शुरू की गई है. इस वजह से बाहरी लोग जंगल की कटाई कर वहां का पट्टा हासिल करने में जुटे हुए हैं. इसके लिए पूरी तरह से वन विभाग जिम्मेदार है. गरियाबंद-ओडिशा बॉर्डर पर काफी संख्या में जंगलों को काटा जा रहा है. वहीं सरगुजा के जंगल भी इस कटाई से अछूते नहीं रह गए हैं. यहां भी काफी संख्या में पेड़ों की कटाई हो रही है. यहां लोग पेड़ काटकर जमीन को समतल बना रहे हैं, जिससे उन्हें पट्टा मिल सके.

पढ़ें- 'कोरोना वैक्सीन सुरक्षित, हमें गर्व होना चाहिए कि रिकॉर्ड टाइम में हमारे देश में बनी'

सवाल- बस्तर में उद्योग के लिए वनों की कटाई कहां तक जायज है?

जवाब- जंगल काटकर उद्योग स्थापित करना ओर लोगों को रोजगार देना आने वाले समय में खतरनाक साबित हो सकता है. आज पहाड़ों की बर्फ तेजी से पिघल रही है, बर्फ पिघलने से नदियों में बाढ़ आ रही है और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अभी कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है. आने वाले समय में स्थिति काफी खतरनाक हो सकती है.

सवाल- जंगली जानवरों का हो रहा शिकार, आप क्या कहेंगे?

जवाब- यहां लगातार जंगली जानवरों की संख्या कम होती जा रही है. आए दिन जंगली जानवरों की खाल बरामद हो रही है, जो यह प्रमाणित करता है कि जानवरों का शिकार लगातार जारी है. ज्यादातर शिकार गरियाबंद में हो रहा है. इसके अलावा प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी जंगली जानवरों का शिकार किया जा रहा है. 2008 से 2016 के बीच तेंदुए की 50, बाघ की 20 और भालू की लगभग 50 खालें बरामद की गईं. इससे साफ है कि प्रदेश में तेजी से जंगली जानवरों का शिकार किया जा रहा है. प्रदेश में लेपर्ड का भी शिकार तेजी से हो रहा है. जहां एक ओर छत्तीसगढ़ में जंगली जानवरों की संख्या लगातार कम हो रही है, वहीं पड़ोसी राज्य में जंगली जानवरों की संख्या में इजाफा हो रहा है.

सवाल- सिर्फ दो डॉग के भरोसे जंगल कटाई और जानवरों के शिकार को रोकने का प्रयास किया जा रहा है?

जवाब- वन कटाई और जंगली जानवरों के शिकार को रोकने के लिए बहुत सारे कारगर उपाय है, लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. उन्होंने बताया कि आज प्रदेश में डॉग स्क्वाड की कमी है. सिर्फ दो डॉग हैं, जो ऐसे मामलों में मददगार साबित होते हैं.

सवाल- वाइल्डलाइफ कानून के जानकारों की कमी है?

जवाब- ग्रामीण क्षेत्रों में वाइल्डलाइफ कानून के जानकार वकीलों की कमी है. कानून की जानकारी ना होने की वजह से आरोपी दो-तीन दिन में ही जमानत पर छूट जाते हैं. जबकि जंगली जानवर के शिकार पर 3 साल की जेल का प्रावधान है और जमानत भी इतनी जल्दी नहीं होती है. यही वजह है कि जंगल पर कटाई करने वाले और जानवरों के शिकार करने वालों में कानून का डर नहीं है और वे लगातार ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं.

सवाल- कागजों पर काम किया जा रहा इस पर क्या कहना चाहेंगे?

जवाब- जंगल बचाने के लिए सरकार को सख्त निर्णय लेना होगा, जिससे पेड़ कटाई रोकी जा सके. साथ ही सारी योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर करना होगा. सिर्फ योजनाएं कागजों तक सिमट कर ना रह जाए जिस तरह से वृक्षारोपण अभियान चलाया जाता है, लेकिन सिर्फ कागजों पर ही रह जाते हैं जमीन पर दिखाई नहीं देते.

रायपुर : छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ वर्षों में वन कटाई और जंगली जानवरों के शिकार के मामले तेजी से बढ़े हैं. लगातार हो रहे जंगलों की कटाई की वजह से जहां एक ओर पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव देखने को मिल सकता है, वहीं अवैध रूप से हो रहे जंगली जानवरों का शिकार आने वाले समय में परेशानी का सबब बन सकता है. इन सभी विषयों पर ETV भारत ने वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी से चर्चा की. नितिन लगातार इससे संबंधित जनहित याचिका कोर्ट में लगाते रहते हैं.

नितिन सिंघवी से जंगली जानवरों के शिकार का प्रभाव और इसे रोकने के लिए उठाए जाने वाले सरकार के प्रयासों के विषय में विस्तृत रूप से जानकारी दी.

नितिन सिंघवी से खात बातचीत

पढ़ें- ताबड़तोड़ एक्शल ले रहे IG रतनलाल बोले- 'हम जनता के सेवक, राजा नहीं'

सवाल- वन कटाई और जंगली जानवरों के शिकार का फॉरेस्ट ईको सिस्टम पर क्या प्रभाव पड़ता है?

जवाब- प्रकृति में एक सिस्टम बनाया गया है, उस सिस्टम के सुचारू रूप से संचालित होने से वन एवं पर्यावरण सुरक्षित रहता है. उदाहरण के तौर पर वनस्पति को शाकाहारी जानवर खाते हैं. उन जानवरों को मांसाहारी जानवर खाते हैं, इस तरह से एक चेन बनी हुई है. यदि इस चेन की एक भी कड़ी भी टूटी, तो पूरा सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा. वर्तमान में जिस तरह से जंगलों की कटाई हो रही है, जंगली जानवरों का शिकार हो रहा है, इसका बुरा प्रभाव आने वाले समय में पड़ने वाला है, जिसका खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ियों को उठाना पड़ेगा. जिसे लोग अभी समझ नहीं पा रहे हैं.

नितिन सिंघवी से खात बातचीत
सवाल- ब्रेक हो रहे चेन को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?जवाब- प्रकृति के ब्रेक हो रहे चेन को रोकने के लिए वन विभाग और सरकार को जमीनी स्तर पर काम करना होगा. सिर्फ कागजों पर वृक्षारोपण और अन्य तरह के अभियान चलाकर श्रीगणेश नहीं किया जा सकता है. इसके लिए जमीनी स्तर पर ना सिर्फ योजना बनानी होगी, बल्कि उसका सही तरीके से क्रियान्वयन भी करना होगा.

सवाल- क्या वन कटाई के पीछे किसी गिरोह का हाथ हो सकता है?

जवाब- छत्तीसगढ़ में वन कटाई में कोई गिरोह शामिल हो, ऐसा देखने को नहीं मिला है. जंगल में आदिवासियों को पट्टा देने के लिए अभियान चलाया गया, लेकिन उसके तहत दूसरे लोगों ने भी पट्टा हासिल कर लिया. इस तरह से कई फर्जी पट्टों को सरकार ने खारिज किया है. एक बार फिर वन में पट्टे जारी करने की प्रक्रिया शुरू की गई है. इस वजह से बाहरी लोग जंगल की कटाई कर वहां का पट्टा हासिल करने में जुटे हुए हैं. इसके लिए पूरी तरह से वन विभाग जिम्मेदार है. गरियाबंद-ओडिशा बॉर्डर पर काफी संख्या में जंगलों को काटा जा रहा है. वहीं सरगुजा के जंगल भी इस कटाई से अछूते नहीं रह गए हैं. यहां भी काफी संख्या में पेड़ों की कटाई हो रही है. यहां लोग पेड़ काटकर जमीन को समतल बना रहे हैं, जिससे उन्हें पट्टा मिल सके.

पढ़ें- 'कोरोना वैक्सीन सुरक्षित, हमें गर्व होना चाहिए कि रिकॉर्ड टाइम में हमारे देश में बनी'

सवाल- बस्तर में उद्योग के लिए वनों की कटाई कहां तक जायज है?

जवाब- जंगल काटकर उद्योग स्थापित करना ओर लोगों को रोजगार देना आने वाले समय में खतरनाक साबित हो सकता है. आज पहाड़ों की बर्फ तेजी से पिघल रही है, बर्फ पिघलने से नदियों में बाढ़ आ रही है और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अभी कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है. आने वाले समय में स्थिति काफी खतरनाक हो सकती है.

सवाल- जंगली जानवरों का हो रहा शिकार, आप क्या कहेंगे?

जवाब- यहां लगातार जंगली जानवरों की संख्या कम होती जा रही है. आए दिन जंगली जानवरों की खाल बरामद हो रही है, जो यह प्रमाणित करता है कि जानवरों का शिकार लगातार जारी है. ज्यादातर शिकार गरियाबंद में हो रहा है. इसके अलावा प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी जंगली जानवरों का शिकार किया जा रहा है. 2008 से 2016 के बीच तेंदुए की 50, बाघ की 20 और भालू की लगभग 50 खालें बरामद की गईं. इससे साफ है कि प्रदेश में तेजी से जंगली जानवरों का शिकार किया जा रहा है. प्रदेश में लेपर्ड का भी शिकार तेजी से हो रहा है. जहां एक ओर छत्तीसगढ़ में जंगली जानवरों की संख्या लगातार कम हो रही है, वहीं पड़ोसी राज्य में जंगली जानवरों की संख्या में इजाफा हो रहा है.

सवाल- सिर्फ दो डॉग के भरोसे जंगल कटाई और जानवरों के शिकार को रोकने का प्रयास किया जा रहा है?

जवाब- वन कटाई और जंगली जानवरों के शिकार को रोकने के लिए बहुत सारे कारगर उपाय है, लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. उन्होंने बताया कि आज प्रदेश में डॉग स्क्वाड की कमी है. सिर्फ दो डॉग हैं, जो ऐसे मामलों में मददगार साबित होते हैं.

सवाल- वाइल्डलाइफ कानून के जानकारों की कमी है?

जवाब- ग्रामीण क्षेत्रों में वाइल्डलाइफ कानून के जानकार वकीलों की कमी है. कानून की जानकारी ना होने की वजह से आरोपी दो-तीन दिन में ही जमानत पर छूट जाते हैं. जबकि जंगली जानवर के शिकार पर 3 साल की जेल का प्रावधान है और जमानत भी इतनी जल्दी नहीं होती है. यही वजह है कि जंगल पर कटाई करने वाले और जानवरों के शिकार करने वालों में कानून का डर नहीं है और वे लगातार ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं.

सवाल- कागजों पर काम किया जा रहा इस पर क्या कहना चाहेंगे?

जवाब- जंगल बचाने के लिए सरकार को सख्त निर्णय लेना होगा, जिससे पेड़ कटाई रोकी जा सके. साथ ही सारी योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर करना होगा. सिर्फ योजनाएं कागजों तक सिमट कर ना रह जाए जिस तरह से वृक्षारोपण अभियान चलाया जाता है, लेकिन सिर्फ कागजों पर ही रह जाते हैं जमीन पर दिखाई नहीं देते.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.