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दूसरे राज्यों से मजदूरों को वापस लाना बड़ी चुनौती: सोनमणि बोरा

कोरोना संकट और श्रमिकों की समस्या को लेकर ETV भारत ने श्रम विभाग के सचिव सोनमणि बोरा से खास बातचीत की है. उन्होंने दूसरे प्रदेशों में फंसे मजदूरों को छत्तीसगढ़ वापस लाने के दौरान आई चुनौतियों और अनुभवों को साझा किया है. उन्होंने प्रदेश में लौटे श्रमिकों के लिए रोजगार की व्यवस्था पर विस्तार से जानकारी दी है.

sonamani bora
सोनमणि बोरा
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Published : Jul 9, 2020, 10:55 AM IST

रायपुर: लॉकडाउन की वजह से छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में मजदूरों का पलायन शुरू हो गया था. दूसरे राज्यों से लौटकर प्रदेश लौट रहे मजदूरों के रहने और खाने की पूरी व्यवस्था करने के साथ ही प्रदेश सरकार के सामने उन्हें रोजगार देना एक बड़ी चुनौती थी. इस दौरान मजदूरों को सकुशल दूसरे राज्यों से वापस लाना और उन्हें क्वॉरेंटाइन करने के बाद सुरक्षित घर पहुंचाने से लेकर रोजगार उपलब्ध कराने का पूरा जिम्मा श्रम विभाग ने संभाला था. इन सब विषयों और समस्या को लेकर ETV भारत ने श्रम विभाग के सचिव सोनमणि बोरा से खास बातचीत की. सोनमणि बोरा ने दूसरे प्रदेशों में फंसे मजदूरों को छत्तीसगढ़ वापस लाने के दौरान आई चुनौतियों और अनुभवों को साझा किया है. उन्होंने प्रदेश में लौटे श्रमिकों के लिए रोजगार की व्यवस्था पर विस्तार से जानकारी दी है.

SPECIAL: हे विघ्नहर्ता! कोरोना काल में 'भगवान' को बनाने वाला भी सो रहा है भूखा

सोनमणि बोरा बताते हैं कि कोरोना संक्रमण और अचानक हुए लॉकडाउन ने लोगों को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. इस दौर में छत्तीसगढ़ जैसे राज्य जहां की बड़ी आबादी अलग-अलग कारणों से देश के तमाम राज्यों में जाकर मजदूरी और अन्य काम करती है, उनकी घर वापसी करना एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम था. 24 मार्च से लेकर अभी जुलाई के पहले सप्ताह तक छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों से विभिन्न माध्यमों से करीब 5 लाख 85 हजार श्रमिक परिवार सहित अपने गृह ग्राम आ चुके हैं. अन्य प्रदेशों से मजदूरों को लाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन भी चलाई गई. करीब 1 लाख 53 हजार 859 मजदूर श्रमिक स्पेशल ट्रेन से वापस छत्तीसगढ़ लौटे, जिनमें से 48 ट्रेन बीओसी मंडल श्रम विभाग के सहयोग से चलाई गई है.

सोनमणि बोरा से ETV भारत की खास बातचीत

Special: मुनगा से मिटेगा कुपोषण, जानकारों ने बताया 'रामबाण'

हर राज्य के मजदूरों को सुविधा मुहैया कराई गई

सोनमणि बोरा ने लॉकडाउन के दौरान अपने तजुर्बे को साझा करते हुए कहा कि 'शुरुआती दौर में तो सभी लोग अपने घर के भीतर थे, लेकिन जब लॉकडाउन लगातार बढ़ता दिखा, तो उनके सब्र का बांध टूट गया और वे पैदल ही हजारों किलोमीटर चलकर घर वापसी के लिए निकल पड़े. यह मंजर बेहद दर्दनाक था, टॉर्चर कर देने वाली गर्मी, कोरोना का डर और रोजगार जाने समेत तमाम वजहों से लोग घर वापसी के लिए निकल पड़े. ऐसे में न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि दूसरे राज्यों के लोग भी इधर-उधर पैदल निकलते दिखे. छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी राज्यों के मजदूरों को सुविधा मुहैया कराए जाने की बात कही थी, इसे देखते हुए राज्य स्तर पर 24X7 हेल्पलाइन शुरू की गई. जिले में भी 11 हेल्पलाइन की स्थापना करके सभी जिलों को इससे जोड़ा गया.

ऑनलाइन पंजीयन की व्यवस्था

छत्तीसगढ़ राज्य में वापसी के लिए इच्छुक श्रमिकों और अन्य लोगों के लिए ऑनलाइन और हेल्पलाइन नंबर के जरिए पंजीयन किया गया, जिसमें 2 लाख से ज्यादा श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन भी हुआ. महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में काम करने के लिए बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य ओडिशा, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग जाते हैं. ऐसे तमाम लोग सड़क के रास्ते ही वापसी के लिए निकल पड़े थे. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से इन तमाम राज्यों के श्रमिकों के लिए भी छत्तीसगढ़ सरकार ने ठहरने और भोजन की व्यवस्था की.

श्रमिकों को वापस लाना थी बड़ी चुनौती

श्रम विभाग के सचिव सोनमणि बोरा न केवल श्रम विभाग के सचिव बल्कि राज्यपाल के भी सचिव हैं. साथ ही वे भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी छत्तीसगढ़ शाखा के अध्यक्ष भी हैं. ऐसे में तमाम विभागों में सामंजस्य बिठाकर लोगों को सकुशल वापसी लाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है. हेल्पलाइन सेंटरों में न केवल विभागीय लोगों की बल्कि रेडक्रॉस टीम की भी बड़ी भूमिका रही. बोरा ने बताया कि छत्तीसगढ़ के मजदूर जम्मू-कश्मीर, असम, सिक्किम, त्रिपुरा जैसे राज्यों से भी लगातार संपर्क कर रहे थे. उन राज्यों से मजदूरों को लाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था. श्रमिक स्पेशल ट्रेन भी सीमित संसाधनों के साथ ही चल रही थी. त्रिपुरा, सिक्किम, असम जैसे इलाकों में ट्रेन की सुविधा नहीं थी, वहां बसें भेजकर मजदूरों की सकुशल वापसी की गई है.

इसके अलावा मजदूरों को लाने के लिए कुछ संस्थाओं से बात करके फ्लाइट से भी मजदूरों को लाया गया है. मजदूरों को वापसी के बाद सीधे घर न भेजकर और क्वॉरेंटाइन सेंटरों में तमाम जांच पड़ताल के साथ ही सुरक्षित रखना भी बड़ा काम था. लॉकडाउन के दौरान ESI के माध्यम से प्रदेश में संचालित 42 क्लीनिक में भी श्रमिकों के इलाज और दवा वितरण का काम किया गया है.

छत्तीसगढ़ में प्रवासियों को सबसे ज्यादा रोजगार

प्रवासियों को वापस लाने के साथ ही उन्हें राज्य में ही रोजगार प्रदान करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी, ऐसे में राज्य में स्थापित विभिन्न कारखानों में प्रबंधन को श्रम विभाग की ओर से निर्देश दिए गए कि वह सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए काम करें. 24 अप्रैल के बाद छोटे-बड़े 1500 कारखानों को फिर से शुरू करने का निर्देश दिया गया. साथ ही प्रवासी श्रमिकों और अन्य मजदूरों को रोजगार देने के लिए सरकार की ओर से ग्रामीण क्षेत्र में लगातार काम शुरू किए गए.

मनरेगा के तहत 29.35 लाख मजदूर प्रदेश में कार्यरत हैं. अब आने वाले समय में मजदूरों और अन्य लोगों के लिए सर्टिफिकेट कोर्स या उन्हें रजिस्टर्ड करवाने के लिए श्रम विभाग लगातार काम कर रहा है. इसके साथ ही इस दौरान ऐसे लाखों मजदूरों का श्रम विभाग के पास डाटा उपलब्ध हो गया है, जिनसे तमाम तरह की योजनाओं और राष्ट्रीय एजेंसियों के माध्यम से उनको सीधा रोजगार मुहैया कराया जा सकता है.

रायपुर: लॉकडाउन की वजह से छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में मजदूरों का पलायन शुरू हो गया था. दूसरे राज्यों से लौटकर प्रदेश लौट रहे मजदूरों के रहने और खाने की पूरी व्यवस्था करने के साथ ही प्रदेश सरकार के सामने उन्हें रोजगार देना एक बड़ी चुनौती थी. इस दौरान मजदूरों को सकुशल दूसरे राज्यों से वापस लाना और उन्हें क्वॉरेंटाइन करने के बाद सुरक्षित घर पहुंचाने से लेकर रोजगार उपलब्ध कराने का पूरा जिम्मा श्रम विभाग ने संभाला था. इन सब विषयों और समस्या को लेकर ETV भारत ने श्रम विभाग के सचिव सोनमणि बोरा से खास बातचीत की. सोनमणि बोरा ने दूसरे प्रदेशों में फंसे मजदूरों को छत्तीसगढ़ वापस लाने के दौरान आई चुनौतियों और अनुभवों को साझा किया है. उन्होंने प्रदेश में लौटे श्रमिकों के लिए रोजगार की व्यवस्था पर विस्तार से जानकारी दी है.

SPECIAL: हे विघ्नहर्ता! कोरोना काल में 'भगवान' को बनाने वाला भी सो रहा है भूखा

सोनमणि बोरा बताते हैं कि कोरोना संक्रमण और अचानक हुए लॉकडाउन ने लोगों को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. इस दौर में छत्तीसगढ़ जैसे राज्य जहां की बड़ी आबादी अलग-अलग कारणों से देश के तमाम राज्यों में जाकर मजदूरी और अन्य काम करती है, उनकी घर वापसी करना एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम था. 24 मार्च से लेकर अभी जुलाई के पहले सप्ताह तक छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों से विभिन्न माध्यमों से करीब 5 लाख 85 हजार श्रमिक परिवार सहित अपने गृह ग्राम आ चुके हैं. अन्य प्रदेशों से मजदूरों को लाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन भी चलाई गई. करीब 1 लाख 53 हजार 859 मजदूर श्रमिक स्पेशल ट्रेन से वापस छत्तीसगढ़ लौटे, जिनमें से 48 ट्रेन बीओसी मंडल श्रम विभाग के सहयोग से चलाई गई है.

सोनमणि बोरा से ETV भारत की खास बातचीत

Special: मुनगा से मिटेगा कुपोषण, जानकारों ने बताया 'रामबाण'

हर राज्य के मजदूरों को सुविधा मुहैया कराई गई

सोनमणि बोरा ने लॉकडाउन के दौरान अपने तजुर्बे को साझा करते हुए कहा कि 'शुरुआती दौर में तो सभी लोग अपने घर के भीतर थे, लेकिन जब लॉकडाउन लगातार बढ़ता दिखा, तो उनके सब्र का बांध टूट गया और वे पैदल ही हजारों किलोमीटर चलकर घर वापसी के लिए निकल पड़े. यह मंजर बेहद दर्दनाक था, टॉर्चर कर देने वाली गर्मी, कोरोना का डर और रोजगार जाने समेत तमाम वजहों से लोग घर वापसी के लिए निकल पड़े. ऐसे में न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि दूसरे राज्यों के लोग भी इधर-उधर पैदल निकलते दिखे. छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी राज्यों के मजदूरों को सुविधा मुहैया कराए जाने की बात कही थी, इसे देखते हुए राज्य स्तर पर 24X7 हेल्पलाइन शुरू की गई. जिले में भी 11 हेल्पलाइन की स्थापना करके सभी जिलों को इससे जोड़ा गया.

ऑनलाइन पंजीयन की व्यवस्था

छत्तीसगढ़ राज्य में वापसी के लिए इच्छुक श्रमिकों और अन्य लोगों के लिए ऑनलाइन और हेल्पलाइन नंबर के जरिए पंजीयन किया गया, जिसमें 2 लाख से ज्यादा श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन भी हुआ. महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में काम करने के लिए बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य ओडिशा, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग जाते हैं. ऐसे तमाम लोग सड़क के रास्ते ही वापसी के लिए निकल पड़े थे. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से इन तमाम राज्यों के श्रमिकों के लिए भी छत्तीसगढ़ सरकार ने ठहरने और भोजन की व्यवस्था की.

श्रमिकों को वापस लाना थी बड़ी चुनौती

श्रम विभाग के सचिव सोनमणि बोरा न केवल श्रम विभाग के सचिव बल्कि राज्यपाल के भी सचिव हैं. साथ ही वे भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी छत्तीसगढ़ शाखा के अध्यक्ष भी हैं. ऐसे में तमाम विभागों में सामंजस्य बिठाकर लोगों को सकुशल वापसी लाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है. हेल्पलाइन सेंटरों में न केवल विभागीय लोगों की बल्कि रेडक्रॉस टीम की भी बड़ी भूमिका रही. बोरा ने बताया कि छत्तीसगढ़ के मजदूर जम्मू-कश्मीर, असम, सिक्किम, त्रिपुरा जैसे राज्यों से भी लगातार संपर्क कर रहे थे. उन राज्यों से मजदूरों को लाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था. श्रमिक स्पेशल ट्रेन भी सीमित संसाधनों के साथ ही चल रही थी. त्रिपुरा, सिक्किम, असम जैसे इलाकों में ट्रेन की सुविधा नहीं थी, वहां बसें भेजकर मजदूरों की सकुशल वापसी की गई है.

इसके अलावा मजदूरों को लाने के लिए कुछ संस्थाओं से बात करके फ्लाइट से भी मजदूरों को लाया गया है. मजदूरों को वापसी के बाद सीधे घर न भेजकर और क्वॉरेंटाइन सेंटरों में तमाम जांच पड़ताल के साथ ही सुरक्षित रखना भी बड़ा काम था. लॉकडाउन के दौरान ESI के माध्यम से प्रदेश में संचालित 42 क्लीनिक में भी श्रमिकों के इलाज और दवा वितरण का काम किया गया है.

छत्तीसगढ़ में प्रवासियों को सबसे ज्यादा रोजगार

प्रवासियों को वापस लाने के साथ ही उन्हें राज्य में ही रोजगार प्रदान करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी, ऐसे में राज्य में स्थापित विभिन्न कारखानों में प्रबंधन को श्रम विभाग की ओर से निर्देश दिए गए कि वह सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए काम करें. 24 अप्रैल के बाद छोटे-बड़े 1500 कारखानों को फिर से शुरू करने का निर्देश दिया गया. साथ ही प्रवासी श्रमिकों और अन्य मजदूरों को रोजगार देने के लिए सरकार की ओर से ग्रामीण क्षेत्र में लगातार काम शुरू किए गए.

मनरेगा के तहत 29.35 लाख मजदूर प्रदेश में कार्यरत हैं. अब आने वाले समय में मजदूरों और अन्य लोगों के लिए सर्टिफिकेट कोर्स या उन्हें रजिस्टर्ड करवाने के लिए श्रम विभाग लगातार काम कर रहा है. इसके साथ ही इस दौरान ऐसे लाखों मजदूरों का श्रम विभाग के पास डाटा उपलब्ध हो गया है, जिनसे तमाम तरह की योजनाओं और राष्ट्रीय एजेंसियों के माध्यम से उनको सीधा रोजगार मुहैया कराया जा सकता है.

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