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छत्तीसगढ़ में कॉलेज की परीक्षाएं ऑनलाइन कराने पर बहस, शिक्षाविदों ने इसे बताया भविष्य के लिए खतरा

छत्तीसगढ़ में इस बार कॉलेज के पेपर ऑनलाइन आयोजित हो रहे हैं. जिसे लेकर अब सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई है. कोई इसे भविष्य के साथ खिलवाड़ मान रहा (People are trolling the government on social media) है. तो किसी ने इस फैसले को राजनीति करार दिया है.

Debate on online college examinations in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में कॉलेज की परीक्षाएं ऑनलाइन पर बहस
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Published : Mar 30, 2022, 1:58 PM IST

रायपुर : मुख्यमंत्री के आदेश के बाद सोमवार को छतीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश के सभी कॉलेजो में ऑनलाइन एग्जाम लेने का आदेश जारी किया गया है. जिसके बाद प्रदेश की दो बड़ी यूनिवर्सिटी पंडित रविशंकर शुक्ल रायपुर और हेमचंद यादव यूनिवर्सिटी दुर्ग ने ऑफलाइन परीक्षा स्थगित कर दी है. बता दें कि एनएसयूआई छात्र संगठन ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर ऑनलाइन एग्जाम कराने की मांग की थी. छात्रों ने सीएम के सामने दलील दी थी कि कोरोना काल से सारी क्लासेस ऑनलाइन ली गई हैं. इस दौरान पढ़ाई करने और कोर्स पूरा होने में दिक्कतें आई हैं. जिसके बाद मुख्यमंत्री ने स्टूडेंट्स को आश्वासन दिया (Debate on online college examinations in Chhattisgarh) था. मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने कालेजों में परीक्षा ऑनलाइन / ब्लैंडेड मोड में कराने का आदेश जारी किया गया.




सोशल मीडिया में सरकार हो रही ट्रोल :वहीं इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई है , कॉलेज छात्रों के ऑफलाइन एग्जाम कैंसल कर ऑनलाइन एग्जाम संचालित करने को लेकर लोग इसे छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कह रहे हैं. क्योकिं मंगलवार से नवमी से ग्यारहवीं की ऑफलाइन परीक्षा शुरू हुई हैं . विद्यार्थी अपने स्कूल में जाकर ऑफलाइन एग्जाम दे रहे हैं. ऐसे में कॉलेज के छात्रों के ऑनलाइन एग्जाम को लेकर लगातार सोशल मीडिया में लोग सरकार को ट्रोल कर रहे (People are trolling the government on social media) हैं.

क्या है सोशल मीडिया में चर्चा का विषय : बच्चों की परीक्षा ऑफलाइन और बड़ों का पेपर ऑनलाइन लेने को अब लोग राजनीति के चश्मे से देख रहे हैं. क्योंकि जिस कोरोना को लेकर हल्ला मचा हुआ है. उसी हल्ले में बच्चों ने ऑफलाइन पेपर दिया है. ऐसे में अब कॉलेज के छात्रों को ऑनलाइन पेपर देने के लिए जो फैसला सरकार ने किया है. उसे लेकर सोशल मीडिया में शिक्षाविद् और समाज में रहने वाले लोगों के बीच लंबी बहस छिड़ गई है.

समाज सेविका मनजीत कौर बल ने सरकार के इस फैसले पर चुटकी लेते हुए सवाल किया है कि General promotion और online exam के बीच क्या अंतर है ? (वैसे मै परीक्षा के ही खिलाफ हूं, पढ़ाई के लिए साथ हूं)

सरकार के इस फैसले पर सूरज प्रकाश डड़सेना का कहना है कि, पिछले दो वर्षो को छोड़ दिया जाए तो online एग्जाम वैकल्पिक व्यवस्था थी , पर इस वर्ष यह व्यवस्था विकल्प से ज्यादा राजनीतिक तुष्टिकरण और प्रचार ज्यादा दिखाई दे रही है. नेताओं ने वाह वाही लूट ली. पर उस भविष्य की चिंता नही जो परीक्षा के मानकों की वजह से मोरल रूप से low फील कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- ऑनलाइन एग्जाम की मांग को लेकर NSUI ने सौंपा ज्ञापन


ऑनलाइन एग्जाम के फैसले पर प्रमेंद्र सहारे का कहना है कि ये आश्चर्यजनक तथ्य है कि जिस राज्य में दसवीं-बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं ऑफलाइन समाप्त हो चुकी हों. जहां घरेलू परीक्षाएं बच्चे ऑफलाइन मोड में परीक्षाएं दे रहे हैं, वहां महाविद्यालय की परीक्षाएं ऑनलाइन करवाने की घोषणा मुख्यमंत्री ने की. ये राजनीति की तरह ही शिक्षा के स्तर को गिराने वाला निर्णय है. सरकार के पास कोई दूसरा विकल्प है भी नहीं क्योंकि पिछले तीन वर्षों में सरकार ने युवाओं का भविष्य सिर्फ गोबर में तलाशा है.

नितेश रंजन का कहना है कि इस साल के ऑनलाइन एग्जाम के निर्णय के साथ एक पूरा बैच एक भी साल बिना ऑफलाइन एग्जाम दिए ग्रेजुएट हो जाएंगे.

डॉ राकेश गुप्ता का कहना है कि मेडिकल और नर्सिंग के बच्चे विपरीत परिस्थितियों में अस्पतालों और कोविड-19 में काम भी किए हैं और ऑफलाइन परीक्षा देने के साथ उन्होंने अपनी कक्षाओं में उपस्थिति भी कोरोना काल में पूरी की है. कोविड-19 से हम जितनी जल्दी उबर कर सामान्य जिंदगी शुरू करें उतना अच्छा है . वैसे भी किताब में कहां पर उत्तर लिखा है जिस को पता ना हो वह ऑनलाइन परीक्षा भी पास नहीं कर पाएगा. बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगा है.

ये भी पढ़ें- ऑनलाइन एग्जाम की मांग को लेकर NSUI ने सौंपा ज्ञापन

कंट्रोल में कोरोना फिर ऑनलाइन क्यों : वहीं इस मामले पर शिक्षविदों का कहना है कि, कोरोना के शुरुआती दौर में ऑनलाइन मोड में पढ़ाई और ऑनलाइन एग्जाम एक अच्छा विकल्प था. लेकिन आज जब सभी चीजें खुल चुकी हैं, जीवनचर्या सामान्य हो गई. ऐसे समय में छात्र संगठन के मांग पर कॉलेज के ऑफलाइन एग्जाम कैंसिल करवाकर ऑनलाइन एग्जाम करवाना गलत निर्णय है. जानकारों का कहना है कि हाल ही में प्री यूनिवर्सिटी के एग्जाम में 80 प्रतिशत स्टूडेंट्स का परफॉमेंस खराब देखने को मिला हैं. 20 प्रतिशत स्टूडेंट्स ही बेहतर या उत्तीर्ण होने लायक हैं.

शैक्षणिक स्तर में आएगी गिरावट : ऐसे में अब ऑनलाइन एग्जाम लेने से स्टूडेंट्स के शैक्षणिक स्तर पर गिरावट (Students academic level declines by taking online exams) आएगी. यह छात्रों के हित का फैसला नहीं है, स्टूडेंट को यह लग रहा है कि वे ऑनलाइन एग्जाम देकर पास हो जाएंगे. उन्हें डिग्री मिल जाएगी. लेकिन वह अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं. आने वाले दिनों में इसका परिणाम विद्यार्थियों को ही भुगतना पड़ेगा.

रायपुर : मुख्यमंत्री के आदेश के बाद सोमवार को छतीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश के सभी कॉलेजो में ऑनलाइन एग्जाम लेने का आदेश जारी किया गया है. जिसके बाद प्रदेश की दो बड़ी यूनिवर्सिटी पंडित रविशंकर शुक्ल रायपुर और हेमचंद यादव यूनिवर्सिटी दुर्ग ने ऑफलाइन परीक्षा स्थगित कर दी है. बता दें कि एनएसयूआई छात्र संगठन ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर ऑनलाइन एग्जाम कराने की मांग की थी. छात्रों ने सीएम के सामने दलील दी थी कि कोरोना काल से सारी क्लासेस ऑनलाइन ली गई हैं. इस दौरान पढ़ाई करने और कोर्स पूरा होने में दिक्कतें आई हैं. जिसके बाद मुख्यमंत्री ने स्टूडेंट्स को आश्वासन दिया (Debate on online college examinations in Chhattisgarh) था. मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने कालेजों में परीक्षा ऑनलाइन / ब्लैंडेड मोड में कराने का आदेश जारी किया गया.




सोशल मीडिया में सरकार हो रही ट्रोल :वहीं इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई है , कॉलेज छात्रों के ऑफलाइन एग्जाम कैंसल कर ऑनलाइन एग्जाम संचालित करने को लेकर लोग इसे छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कह रहे हैं. क्योकिं मंगलवार से नवमी से ग्यारहवीं की ऑफलाइन परीक्षा शुरू हुई हैं . विद्यार्थी अपने स्कूल में जाकर ऑफलाइन एग्जाम दे रहे हैं. ऐसे में कॉलेज के छात्रों के ऑनलाइन एग्जाम को लेकर लगातार सोशल मीडिया में लोग सरकार को ट्रोल कर रहे (People are trolling the government on social media) हैं.

क्या है सोशल मीडिया में चर्चा का विषय : बच्चों की परीक्षा ऑफलाइन और बड़ों का पेपर ऑनलाइन लेने को अब लोग राजनीति के चश्मे से देख रहे हैं. क्योंकि जिस कोरोना को लेकर हल्ला मचा हुआ है. उसी हल्ले में बच्चों ने ऑफलाइन पेपर दिया है. ऐसे में अब कॉलेज के छात्रों को ऑनलाइन पेपर देने के लिए जो फैसला सरकार ने किया है. उसे लेकर सोशल मीडिया में शिक्षाविद् और समाज में रहने वाले लोगों के बीच लंबी बहस छिड़ गई है.

समाज सेविका मनजीत कौर बल ने सरकार के इस फैसले पर चुटकी लेते हुए सवाल किया है कि General promotion और online exam के बीच क्या अंतर है ? (वैसे मै परीक्षा के ही खिलाफ हूं, पढ़ाई के लिए साथ हूं)

सरकार के इस फैसले पर सूरज प्रकाश डड़सेना का कहना है कि, पिछले दो वर्षो को छोड़ दिया जाए तो online एग्जाम वैकल्पिक व्यवस्था थी , पर इस वर्ष यह व्यवस्था विकल्प से ज्यादा राजनीतिक तुष्टिकरण और प्रचार ज्यादा दिखाई दे रही है. नेताओं ने वाह वाही लूट ली. पर उस भविष्य की चिंता नही जो परीक्षा के मानकों की वजह से मोरल रूप से low फील कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- ऑनलाइन एग्जाम की मांग को लेकर NSUI ने सौंपा ज्ञापन


ऑनलाइन एग्जाम के फैसले पर प्रमेंद्र सहारे का कहना है कि ये आश्चर्यजनक तथ्य है कि जिस राज्य में दसवीं-बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं ऑफलाइन समाप्त हो चुकी हों. जहां घरेलू परीक्षाएं बच्चे ऑफलाइन मोड में परीक्षाएं दे रहे हैं, वहां महाविद्यालय की परीक्षाएं ऑनलाइन करवाने की घोषणा मुख्यमंत्री ने की. ये राजनीति की तरह ही शिक्षा के स्तर को गिराने वाला निर्णय है. सरकार के पास कोई दूसरा विकल्प है भी नहीं क्योंकि पिछले तीन वर्षों में सरकार ने युवाओं का भविष्य सिर्फ गोबर में तलाशा है.

नितेश रंजन का कहना है कि इस साल के ऑनलाइन एग्जाम के निर्णय के साथ एक पूरा बैच एक भी साल बिना ऑफलाइन एग्जाम दिए ग्रेजुएट हो जाएंगे.

डॉ राकेश गुप्ता का कहना है कि मेडिकल और नर्सिंग के बच्चे विपरीत परिस्थितियों में अस्पतालों और कोविड-19 में काम भी किए हैं और ऑफलाइन परीक्षा देने के साथ उन्होंने अपनी कक्षाओं में उपस्थिति भी कोरोना काल में पूरी की है. कोविड-19 से हम जितनी जल्दी उबर कर सामान्य जिंदगी शुरू करें उतना अच्छा है . वैसे भी किताब में कहां पर उत्तर लिखा है जिस को पता ना हो वह ऑनलाइन परीक्षा भी पास नहीं कर पाएगा. बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगा है.

ये भी पढ़ें- ऑनलाइन एग्जाम की मांग को लेकर NSUI ने सौंपा ज्ञापन

कंट्रोल में कोरोना फिर ऑनलाइन क्यों : वहीं इस मामले पर शिक्षविदों का कहना है कि, कोरोना के शुरुआती दौर में ऑनलाइन मोड में पढ़ाई और ऑनलाइन एग्जाम एक अच्छा विकल्प था. लेकिन आज जब सभी चीजें खुल चुकी हैं, जीवनचर्या सामान्य हो गई. ऐसे समय में छात्र संगठन के मांग पर कॉलेज के ऑफलाइन एग्जाम कैंसिल करवाकर ऑनलाइन एग्जाम करवाना गलत निर्णय है. जानकारों का कहना है कि हाल ही में प्री यूनिवर्सिटी के एग्जाम में 80 प्रतिशत स्टूडेंट्स का परफॉमेंस खराब देखने को मिला हैं. 20 प्रतिशत स्टूडेंट्स ही बेहतर या उत्तीर्ण होने लायक हैं.

शैक्षणिक स्तर में आएगी गिरावट : ऐसे में अब ऑनलाइन एग्जाम लेने से स्टूडेंट्स के शैक्षणिक स्तर पर गिरावट (Students academic level declines by taking online exams) आएगी. यह छात्रों के हित का फैसला नहीं है, स्टूडेंट को यह लग रहा है कि वे ऑनलाइन एग्जाम देकर पास हो जाएंगे. उन्हें डिग्री मिल जाएगी. लेकिन वह अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं. आने वाले दिनों में इसका परिणाम विद्यार्थियों को ही भुगतना पड़ेगा.

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