रायपुर : जीवन में पानी एक महत्वपूर्ण घटक है .पृथ्वी के लगभग 70 फीसदी भाग में जल है.उसी तरह से मानव पिंड में भी 70 फीसदी से अधिक जल का स्थान है. वास्तु शास्त्र में भी पानी एक महत्वपूर्ण घटक है. पंचमहाभूत तत्वों में जल एक निर्णायक भूमिका रखता है. यह पंच तत्वों का महत्वपूर्ण अंग है. इसके माध्यम से ना ही शरीर, ना ही पिंड का निर्माण हो पाता है. घर दुकान फैक्ट्री गोदाम सभी क्षेत्रों में सबसे पहले पानी की ही जांच की जाती है. कोई भूमि उपजाऊ तब मानी जाती है, जहां पर जल के स्रोत भरपूर मात्रा में होते हैं. जमीन के नीचे जितना अधिक पानी होगा. वहां रहने, कार्य करने, उद्योग लगाने के लिए बहुत अनुकूल माना गया है.भवन निर्माण का कार्य प्रारंभ करने के पहले भूजल विशेषज्ञ से जल का स्तर जल के स्रोत जल की गहराई का भी जरूर परीक्षण कराना चाहिए.
किस कोण में हो जल स्त्रोत : वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा बताते हैं कि सामान्य रूप से उत्तर पूर्वी कोना या ईशान कोण में जल का बोरवेल होना बहुत अच्छा माना गया है, इसे प्रथम स्थान दिया (direction to store water) गया. दूसरे क्रम पर पूर्व दिशा आती है, यदि पूर्व दिशा में पानी का संचय या बोर स्थापित किया जाए. तो वह भी भवन स्वामी के लिए अनुकूल परिणाम प्रदान करने वाला होता है. तीसरे क्रम पर उत्तर दिशा मानी जाती है, उत्तर दिशा में जल पाए जाने पर भवन स्वामी को लाभ मिलता है. चौथे स्थान पर उत्तर पश्चिम या वायव्य का कोना माना गया है. भूजल निकलने के बाद इसे संग्रह करने का भी वास्तु शास्त्र में विशेष विधान है.
कैसे करें जल का संचय : ईशान कोण में भूमि से नीचे टंकी बनाकर जल संचय करने पर बहुत लाभ मिलता है,अथवा ईशान कोण में झरना छोटा तालाब पोखर या कुआं बनाने से भी वास्तु के देवता गृह स्वामी को लाभकारी परिणाम देते हैं. इसी तरह पूर्व दिशा में भी पानी टंकी बनाकर रखी जा सकती है. उत्तर दिशा की ओर बनाई हुई पानी टंकी या जल संचय के क्षेत्र से आर्थिक लाभ होने की संभावना बनती है. जल एक महत्वपूर्ण घटक है, यह सारे शरीर सारे भवन को संचालित करता है जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है. इसे सहेज कर सुरक्षित रखना चाहिए.
घर में कहां हो जल स्त्रोत : घर में पीने वाले जल को भी ईशान पूर्व उत्तर दिशा में सुराही अथवा मिट्टी के घड़े में जल का उपयोग करना (water source in house) चाहिए. रसोई घर में भी आवश्यक है कि नल और पानी के पात्र उत्तर पूर्वी कोण में विधि विधान से रखे जाने चाहिए. जिससे घर के सदस्यों को जल तत्व की अनुकूलता का लाभ मिलता रहे. पानी की एक-एक बूंद का सम्मान किया जाना चाहिए. वास्तु शास्त्र के अनुसार जिस घर में पानी की बर्बादी सबसे कम होती है. वहां पर लक्ष्मी का वास रहता है, जिन घरों में पानी का अपव्यय अनियंत्रित ढंग से होता है. वहां पर गरीबी और विघ्न बाधा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां देखने को मिलती है.
किस रंग की होनी चाहिए टंकी : काला कलर की टंकी पानी के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है. पानी को सादा और सफेद रंग की टंकी में रखना चाहिए स्टील आदि की टंकी भी वास्तु शास्त्र के अनुसार अनुकूल परिणाम देने वाली होती है. पानी की टंकी को पूरी तरह साफ सुथरा रखा जाना चाहिए. समय-समय पर इसमें कम मात्रा में चूना यज्ञ के भस्म को कपड़े की पोटली में बांधकर डाला जाना चाहिए. पुराने समय में लोग इस तरह की चीजों का भरपूर उपयोग किया करते थे. माता लक्ष्मी को स्वच्छता बहुत पसंद है इसलिए पानी की टंकी को विशेष रूप से नियमित समय में साफ सफाई की जानी चाहिए. जिससे उसी स्थान में माता लक्ष्मी का वास बना रहे. शुद्ध और निर्मल जल पीने से शरीर का आरोग्य बढ़ता है और रोगों से मुक्ति भी मिलती है.
सूर्य की किरणें और जल : सभी तरह के पानी के पात्रों को नियमित रूप से साफ सफाई और देखभाल करनी चाहिए, जिससे गंदगी और कीटाणुओं का प्रवेश ना हो इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए. सूर्य की किरणें यदि जल में पड़ती हो तो यह बहुत अच्छा माना जाता है. पानी की टंकी का कुछ हिस्सा पारदर्शी या कांच से भी बना हुआ हो तो यह वास्तु शास्त्र में बहुत अनुकूल परिणाम देता है. सूर्य की किरणें पानी को विटामिन डी और अनेक पौष्टिक तत्वों से पुष्ट करती रहती है कुल मिलाकर वास्तु शास्त्र में पानी एक महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करता है. पानी के आगमन और पानी के निर्गमन क्षेत्र का ध्यान रखकर हम फैक्ट्री भवन मकान घर ऑफिस आदि से वास्तु का लाभ उठा सकते हैं.