महासमुंद : आज हम आपको लेकर चलते हैं ऐसे माता के मंदिर में, जहां रोजाना आपको चमत्कार देखने को मिलेगा. जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दक्षिण की ओर विकासखण्ड बागबाहरा में घुंचापाली गांव स्थित है. यहां मां चंडी देवी की प्राकृतिक प्रतिमा विराजमान है. यहां प्रतिवर्ष चैत्र और शारदीय नवरात्र में भक्तों का तांता (Mata Chandi mandir is decorated in Bagbahra) लगता है. यहां मान्यता है कि मां चंडी के दरबार से कोई भी भक्त खाली हाथ वापस नहीं जाता. राज्य और देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी बड़ी संख्या में माता के भक्त अपनी मनोकामना लेकर ज्योत प्रज्ज्वलित करने यहां पहुंचते हैं.
डेढ़ सौ साल पुराना है मंदिर: बागबाहरा तहसील मुख्यालय से मात्र 4 किमी दूर ग्राम घुंचापाली के पास जंगलों के बीच चंडी पहाड़ी श्रृंखला पर मां चंडी देवी का भव्य मंदिर है. इस मंदिर में प्राकृतिक रूप से बनी पत्थर की 23 फीट ऊंची प्रतिमा है. इस मंदिर का करीब डेढ़ सौ साल का पुराना इतिहास है. दक्षिणमुखी यह स्वयंभू मूर्ति दुर्लभ तंत्र-मंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध (Swayambhu idol famous for rare tantra-mantra sadhna) है. यहां मां चंडी खुद प्रकट हुई हैं. साथ ही देश विदेश से भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. उनकी मनोकामना मां चंडी के आशीर्वाद से यहां पूरी भी होती है. चाहे घर परिवार के खुशहाली के लिए मांगी गई मन्नत हो, बिजनेस में तरक्की, संतान प्राप्ति या फिर पढ़ाई में अव्वल आने का संकल्प माता हर किसी की सुनती है.
हजारों की संख्या में जल रही ज्योत : चैत्र नवरात्रि में मंदिर में 6 हजार 501 ज्योत प्रज्वलित करने की व्यवस्था की गई है. जो आगे चलकर और बढ़ सकती है. वहीं कोरोना संक्रमण को देखते हुए भंडारे के आयोजन पर रोक लगाई गईं है. साथ ही मंदिर ट्रस्ट के द्वारा मंदिर परिसर मे श्रद्धालुओं के लिए रुकने, पीने का पानी और शेड की अच्छी व्यवस्था की है.
माता के मंदिर में रोज होता है चमत्कार : इस मंदिर में लगातार 10 से 15 वर्षो से जंगली भालू भी आते हैं. सुनने में आपको अजीब लगे लेकिन ये सच है. जंगली भालू का एक परिवार मंदिर परिसर (Bears come to the temple premises) में आता है. कभी इनकी संख्या पांच तो कभी तीन होती है. दोपहर हो या रात अधिकतर शाम 5 बजे से रात 8 बजे के बीच माँ चंडी देवी कि आरती के समय ये भालू मंदिर परिसर में आपको जरूर नज़र आएंगे. पहले तो यह भालू सीढ़ियों से चढ़कर मां चंडी देवी की मूर्ति के पास भी पहुंच जाते थे और माता की परिक्रमा करते थे. इस दौरान भालू प्रसाद में चढ़े नारियल को फोड़कर खाते भी थे. इसके साथ ही माता के भक्तजन भी इस चमत्कार को देखकर भालुओं को माता का भक्त मानकर हाथों से प्रसाद खिलाने लगे. भक्तों ने इन भालुओं का नाम भी रखा है.
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हिंसक भालू बन जाते हैं भक्त : श्रद्धालुजन भालुओं को इलाइची दाना, मिश्री , रेवड़ी, नारियल , बिस्किट, कोल्ड्रिंक खिलाते हैं. भालू काफी हिंसक होते हैं. लेकिन माँ चंडी देवी के दरबार में जैसे ये भालू आते हैं उनके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता (Bears come to the temple premises) है. ये हिंसक भालू माँ चंडी के भक्त बन जाते हैं. आपको बता दें कि भालुओं ने भी आज तक कभी कोई हिंसक प्रयास या सामान को नुकसान नहीं पहुंचाया है. इस चमत्कार को देखने आये श्रद्धालुओं का कहना है कि ये माता के भक्त ही हैं. जो किसी को नुकसान पहुंचाए बिना ही प्रसाद खाकर वापस चले जाते है. साथ ही वन विभाग ने सुरक्षा के मद्देनज़र अब मंदिर परिसर के चारों ओर फेसिंग तार और ग्रिल भी लगा दिया है. जिससे कोई जनहानि ना हो