कोरबा: कहते हैं नारी अगर ठान ले, तो कुछ भी कर सकती है, इसलिए तो उसे अपराजिता कहा जाता है. अपराजिता यानी अजेय. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको कोरबा की एक ऐसी ही महिला शक्ति से मिलवाने जा रहे हैं, जिसके हौसलों के आगे कठिनाईयां भी पस्त हो गईं. हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ की गोल्डन गर्ल के नाम से प्रसिद्ध कोरबा की शूटर श्रुति यादव की. श्रुति एक प्रोफेशनल शूटर हैं, जिन्होंने 2019 में इटली में आयोजित यूरोपियन मास्टर्स में दो स्वर्ण पदक जीते थे. सबसे बड़ी बात तो ये है कि उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी, फिर भी उन्होंने वापसी की और निशानेबाजी में आंखों का सबसे अहम रोल होता है. उनका ब्रिटिश संसद ने भी लोहा माना और उन्हें शी इंस्पायर अवार्ड से नवाजा. आइए हम उन्हीं से जानते हैं उनके संघर्ष और सफलता की कहानी...
सवाल- आपकी जर्नी कैसी रही?
जवाब- घर में पढ़ाई का दबाव था, इसलिए स्पोर्ट्स को पढ़ाई से पीछे रखा जाता था. लेकिन 2004 में जब शूटर राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने एथेंस ओलंपिक में रजत पदक जीता, तो मेरी रुचि इस ओर बढ़ी. इसके बाद 2008 में अभिनव बिंद्रा ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने. उन्होंने बीजिंग ओलंपिक में 10 मीटर एयर राइफल प्रतियोगिता में सोना जीता था. तब मैंने शूटिंग को सीरियसली लेना शुरू किया.
इसके बाद जब मुझे देहरादून में पढ़ने का मौका मिला, तो मैं जसपाल राणा सर की शूटिंग रेंज को विजिट करने गई और मैंने डिसाइड किया कि मैं इस फील्ड में अपना करियर बनाऊंगी. उस वक्त पैसों की दिक्कत थी. लेकिन जब मैं अपना एमबीए कंपलीट करके कोरबा आई, तो फिर मैंने शूटिंग करना शुरू किया, जो आज तक जारी है.
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सवाल- इस बीच आपकी आंखों में भी कुछ दिक्कत आ गई थी, तब भी आपने निशानेबाजी के क्षेत्र को ही चुना?
जवाब- आंखों की खराबी से पहले की बात है, जब मैं नेशनल प्रतियोगिता के लिए तैयारी कर रही थी. उस वक्त मुझे डेंगू हो गया था. डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी थी. प्लेटलेट्स काउंट मेरे 20,000 तक पहुंच गए. मुझे फिर दोबारा फीवर हुआ. तब डॉक्टर द्वारा चलाई गई गलत दवाई के कारण पूरे शरीर में रिएक्शन हो गया. फिर मुझे स्टीवन जॉनसन सिंड्रोम हो गया. इसके कारण मेरी शरीर में सूजन आ गई, बॉडी काली पड़ गई और आंखों की रोशनी चली गई. मेरी मां और दोस्तों ने मुझे बहुत हौसला दिया. 2017 में मेरी लेजर सर्जरी हुई, तब जाकर मुझे दिखाई देना शुरू हुआ.
सवाल- एक शूटर के लिए सबसे ज्यादा जरूरी उसकी आंखें होती हैं और आपकी आंखें ही खराब हो गईं, ऐसे में आपको प्रेरणा कहां से मिली कि निशानेबाजी को ही आपने अपना करियर बनाया और अंतरराष्ट्रीय मेडल आपने जीता?
जवाब- जब मैं ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकली, तो आंखों पर पट्टियां चढ़ी थीं और सिर्फ घना अंधेरा था. मेरी मां और दोस्तों ने मुझे साहस दिया कि अगर भगवान ने दूसरी जिंदगी दी है, तो उसका कुछ मकसद होगा. मैंने अपनी पिस्टल को देखा. मैं अपनी पिस्टल से बहुत प्यार करती हूं और उसके बिना नहीं रह सकती. धीरे-धीरे आंखें रिकवर हुईं, मैंने अपनी प्रैक्टिस जीरो लेवल से शुरू की और ठान लिया कि शूटिंग ही मेरा करियर होगी.
इसके बाद मैंने 2017 और 2018 में नेशनल और 2019 में इंटरनेशनल खेला और गोल्ड मेडल लेकर आई.
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सवाल- इसके बाद आपको ब्रिटिश संसद में शी इंस्पायर अवॉर्ड मिला?
जवाब- हां, पिछले साल मुझे ब्रिटिश संसद से शी इंस्पायर अवॉर्ड मिला. मैंने उन्हें बताया कि कितनी बाधाओं के बाद मैं यहां तक पहुंची हूं.
सवाल- श्रुति, आपका अगला लक्ष्य क्या है लाइफ में?
जवाब- ये हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वो ओलंपिक में खेले. मेरा भी ये सपना है कि मैं देश के लिए ओलंपिक में खेलूं और जीतूं.
सवाल- आप लड़कियों को क्या संदेश देना चाहेंगी, जो कहीं न कहीं जाकर कमजोर पड़ जाती हैं?
जवाब- मैं लड़कियों और उनके माता-पिता दोनों को ये संदेश देना चाहूंगी कि लड़कियां बहुत सक्षम होती हैं, वे सबकुछ कर सकती हैं. इसलिए जिस भी फील्ड में वे जाना चाहती हैं, उन्हें आगे बढ़ाइए. घर की चारदीवारी तक ही उन्हें सीमित नहीं रखिए.