कोरबा : राज्य शासन ने कोरबा और सरगुजा के सरहदी क्षेत्र से लगे परसा कोल ब्लॉक (Parsa Coal Block in Korba) को वन स्वीकृति दे दी है. इसके साथ ही ग्रामीणों का विरोध भी तेज हो गया है. छत्तीसगढ़ सरकार से वन स्वीकृति मिलने के बाद राजस्थान सरकार द्वारा किये गए MDO के तहत अडानी समूह यहां उत्खनन कार्य करेगा. अब हसदेव अरण्य क्षेत्र के समृद्ध वनों की कटाई भी शुरू हो चुकी है. ग्रामीण इसका जमकर विरोध कर रहे हैं. गांव फतेहपुर, हरिहरपुर और साल्ही के ग्रामीण आदिवासियों ने कठोरी त्यौहार मनाया. इस दौरान महादेव की पूजा-अर्चना कर बीज बोए जाते हैं. ग्रामीणों ने किसी समारोह की तरह मांदर बजाकर विधि-विधान से पूजा अर्चना की. ग्रामीण कोयला उत्खनन और पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे हैं.
841 हेक्टेयर में प्रस्तावित है परसा कोल ब्लॉक : हसदेव अरण्य क्षेत्र के जंगल जैव विविधता से परिपूर्ण हैं. इसे मध्य भारत का फेफड़ा कहा जाता है. इन जंगलों से मध्य भारत को अथाह ऑक्सीजन मिलता है. ये वन पर्यावरण के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं. इसी क्षेत्र में लगभग 23 कोल ब्लॉक प्रस्तावित हैं. कोयले का अकूत भंडार यहां समाया हुआ है. इन्हीं में से एक परसा कोल ब्लॉक को इसी माह की 12 अप्रैल को राज्य की भूपेश सरकार ने अंतिम वन स्वीकृति दे दी है. जिसके बाद लगातार ग्रामीण इस कोल परियोजना का विरोध कर रहे हैं. परसा कोल ब्लॉक के लिए 841 हेक्टेयर क्षेत्र प्रस्तावित है. यहां घने वन मौजूद हैं. पर्यावरण एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला की मानें तो यहां से लगभग 700 लोगों को विस्थापित किया जाएगा, जबकि लगभग 4 लाख पेड़ों की कटाई होगी. एक तरह से समृद्ध वन पूरी तरह से साफ हो जाएंगे.
केंद्र और राज्य ने दी स्वीकृति : हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति(Hasdeo Aranya Bachao Sangharsh Samiti) के संयोजक और गांव पतुरियाडांड सरपंच उमेश्वर सिंह आर्मो ने बताया कि नियमों को ताक पर रखकर फर्जी ग्राम सभाओं के आधार पर परसा कोल ब्लॉक को स्वीकृति दी गई है. इसके लिए समृद्ध वनों की कटाई शरू हो चुकी है. अडानी कंपनी रात में आकर पेड़ों को काट रही है. वर्तमान में 200 पेड़ काट दिए गए हैं. हालांकि जुलाई 2019 में ही पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने परसा ब्लॉक को पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान की थी. जिसके तहत 5 मिलियन टर्न प्रतिवर्ष उत्खनन की अनुमति मिली थी. इसके बाद फरवरी 2020 में स्टेज 1 और अक्टूबर 2021 में स्टेज 2 की स्वीकृति केंद्र सरकार ने दी. जिसके बाद 6 अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सरकार ने भी राज्य स्तर की अंतिम वन स्वीकृति दे दी है.
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प्रति हेक्टेयर 2500 वृक्ष लगाने का है नियम : कोयला उत्खनन के लिए वनों की कटाई अनिवार्य है. कोयले की खुली खदान के लिए पेड़ों को काटने के बाद ही कोयला उत्खनन संभव हो सकता है. परसा से राजस्थान सरकार के पावर प्लांट को ही कोयला दिया जाएगा. कोयले के लिए जितने भी पेड़ काटे जाते हैं, जितने क्षेत्र में कोयला ब्लॉक खुलता है, उसके अनुपात में पेड़ लगाने के भी मापदंड निर्धारित हैं. जिसके अनुसार प्रति हेक्टेयर 2500 नए पेड़ लगाने के नियम हैं. इस शर्त के पालन पर ही कोल ब्लॉक को पर्यावरणीय स्वीकृति दी जाती है. पेड़ काटने के साथ नए पेड़ लगाने का काम भी कंपनी ने शुरू किया है.