कोरबाः पिता का अंतिम संस्कार के लिए कोरबा में कैदी बेटे को पेरोल के मामले में विलंब होने के मामले को कलेक्टर रानू साहू ने गंभीरता से लिया है. एक दिन पहले इस मामले को ईटीवी भारत ने सबसे पहले प्रमुखता से प्रकाशित किया था. मामले में अब कोरबा कलेक्टर संज्ञान लिया है. इस पूरे प्रकरण में जांच के आदेश दिए हैं.
संवेदनशीलता नहीं बरतने वाले कर्मचारियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं. इसके लिए एडीएम सुनील नायक को जांच अधिकारी बनाया गया है. मृतक के परिजनों ने आवेदन कब प्रस्तुत किया और इस मामले में विलंब के क्या कारण रहे? इसकी जांच के बाद संबंधित कर्मचारियों पर करवाई के लिए जांच होगी.
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भविष्य में त्वरित कार्रवाई के निर्देश
पिता की अंत्येष्टि के लिए जेल में निरुद्ध बेटे को परोल में देरी के मामले पर कलेक्टर रानू साहू ने कड़ा रूख अख्तियार किया है. साहू ने आज इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए इसकी जांच कराने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने जांच के लिए एडीएम सुनील नायक के नेतृत्व में तीन सदस्यीय दल का गठन किया है. डिप्टी कलेक्टर कौशल तेंदुलकर और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर बीबी बोडे इस समिति के सदस्य होंगे.
कलेक्टर ने इस प्रकरण की जांच कर पेरोल के लिए आवेदन में देरी करने के दोषी पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. कलेक्टर ने भविष्य में ऐसे संवेदनशील मामलों में बिना देरी किए कार्रवाई और नियमों की पालन के लिए कहा है. जांच समिति तीन दिनों में इस प्रकरण की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी.
15 दिन का मिला पेरोल
खबर फैलने के बाद इस मामले में मृतक के बेटे को 15 दिन की पेरोल दी गई है. इसका ईमेल जेल अधीक्षक बिलासपुर (Email Jail Superintendent Bilaspur) को भेजा है. जेल प्रबंधन की ओर से आये क्रॉस क्वेश्चन का भी जवाब जिला प्रशासन ने दे दिया है. इससे अब उम्मीद है कि कोरबा में मृतक के बेटे को पैरोल (Parole to the son of the deceased in Korba) मिल जाएगी.
कोरबा शहर के आरा मशीन निवासी रहस दास दीवान की 21 दिसंबर को मौत हो गई थी. इसके बाद उनके शव को पोस्टमार्टम हाउस में रखा गया था. शुक्रवार की सुबह मृतक की बेटी हत्या की सजा काट रहे इकलौता भाई रतन दीवान की पेरोल के लिए कलेक्ट्रेट की चौखट पहुंच गई. मृतक का बेटा रतन दीवान हत्या के मामले में बिलासपुर के जेल में बंद है. परिजनों ने बताया कि पिता की अंतिम इच्छा थी कि उनका बेटा ही उनकी अंतिम संस्कार करे. पेरोल का आवेदन लेकर कलेक्टर के यहां फरियाद करते रहे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. इसी बीच ईटीवी भारत ने मामले को प्रकाशित किया. जिसके कुछ देर के बाद ही 15 दिनों के पेरोल की मंजूरी हो गई.