कोरबा : कोरबा को काले हीरे की धरती कहा जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जितनी खदानें कोरबा जिले में संचालित हैं. उतनी देश के किसी भी अन्य जिले में नहीं हैं. कोल इंडिया लिमिटेड को अकेले कोरबा जिले से 20 फीसदी कोयला मिलता है. यह एक बड़ा कीर्तिमान है. यह कीर्तिमान स्थानीय निवासियों के लिए अभिशाप बन रहा है. कोयला उत्खनन के बढ़ते दबाव और लगातार होते विस्तार से हरियाली को नुकसान पहुंच रहा है. पर्यावरणीय असंतुलन के साथ ही लोग कोयले की धूल फांकने को विवश (People are facing the brunt of pollution in Korba ) हैं. पावर प्लांट से निकले राख को भी यहां वहां फेंक दिया जाता है. जिससे लोग कई स्तर पर परेशानी झेलनी पड़ रही है.
कोरबा कई राज्यों को देता है बिजली : कोरबा जिले में पहली बार 1960 के दशक में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ था. तब कंपनी का नाम एनसीडीसी था, मानिकपुर खदान से शुरुआत हुई थी। वर्तमान में से केवल रेलवे के जरिए लगभग 50 रैक कोयला डिस्पैच किया जा रहा है. अकेले कोरबा जिले में 11 पावर प्लांट स्थापित हैं. जिनमें 7 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन करने की क्षमता है. ये प्लांट प्रदेश के लगभग 400 मेगावाट प्रतिदिन खपत की बिजली को आपूर्ति तो करते ही हैं. साथ ही साथ मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात जैसे कई राज्यों को बिजली देते (Korba gives electricity to many states)हैं.
कोरबा जिले में चार कोयला क्षेत्र, दर्जन भर खदानें : कोरबा जिले मे दीपका, गेवरा, कोरबा और कुसमुंडा कोयला क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले 1 दर्जन खदानें हैं. दीपका, गेवरा और कुसमुंडा ना सिर्फ एसईसीएल बल्कि देश की सबसे बड़ी खदानें हैं. यहीं से देश को ऊर्जा जरूरतों के लिए कोयले की आपूर्ति की जाती है. जीएसआई के एक सर्वे के अनुसार कोरबा कोलफील्डस में 11 हजार 828.98 मीट्रिक टन कोयला रिजर्व है. जिसके उत्खनन के लिए लगातार खदानों के विस्तार की प्रक्रिया जारी है.
देश के किसी जिले में नहीं है इतनी खदानें : देश में ऐसा कोई भी जिला नहीं है. जहां एक ही स्थान पर इतनी अधिक कोयला खदानों का संचालन किया जाता है. यह कीर्तिमान होने के साथ ही साथ स्थानीय निवासियों के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है. यहां के लोग लगातार प्रदूषण, धूल की मार झेल रहे हैं . जिससे उनके स्वास्थ्य पर साल दर साल विपरीत असर पड़ रहा है. कोल इंडिया लिमिटेड में एक समय साढ़े 7 लाख नियमित मजदूर काम करते थे. जिनकी संख्या वर्तमान में घटकर महज ढाई लाख की रह गई है. कोयला उत्पादन के टारगेट के साथ ही प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा (Korba also tops in terms of pollution ) है. जानकारों की मानें तो कोयला खदानों के लिए की जा रही पेड़ों की कटाई से मौसम का संतुलन बिगड़ रहा है.
नहीं हुआ कोल क्षेत्र का विकास : कोयला उद्योग में लगे मजदूर संगठन से जुड़े मजदूर नेता दिपेश मिश्रा इस बारे में स्पष्ट मत रखते हैं. उनका कहना है कि ''कोरबा से जितने कोयले का उत्पादन हुआ है. उतना देश भर में किसी भी जिले में नहीं होता है. हम कोल इंडिया को 20% कोयला देते हैं. लेकिन इसके अनुपात में कभी भी विकास नहीं हुआ. कोरबा की खदानों से निकले कोयले के दम पर और राज्यों का विकास जरूर हो रहा है. आज भी कोरबा के आसपास के इलाके प्रदूषण झेल रहे हैं. ये बेहद खतरनाक है, लोगों का जीवन स्तर काफी दयनीय हो गया है.''