कोरबा: मुस्लिम समाज के धर्मगुरु और इस्लाम धर्म के पैगंबर मोहम्मद साहब के वंशज मौलाना सैय्यद हाशमी मियां कोरबा के प्रवास पर रहे. इस दौरान उन्होंने ETV भारत से खास बातचीत की. मोहम्मद साहब के संदेश और अन्य विषय में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं. लेकिन सभी धर्म का मतलब एक है. वह है ईश्वर के करीब पहुंचना, फिर चाहे इसके लिए विद्यासागर, विवेकानंद या फिर गरीब ख्वाजा नवाज से ही ज्ञान क्यों न प्राप्त करना पड़े, रास्ते अलग हो सकते हैं. लेकिन मंजिल सबकी एक ही है.Maulana Syed Hashmi in Korba
सवाल- पैगंबर मोहम्मद साहब का संदेश क्या है, और इसे आप किस तरह से पूरी दुनिया में फैला रहे हैं?
जबाब- दुनिया जानती है कि पैगंबर मोहम्मद इस दुनिया में आए अंतिम प्रोफेट थे. दुनिया यह भी जानती है कि वह किस रूप में आए थे. इस जगत में समाज में कोई मानव के रूप में आता है, कोई महापुरुष के रूप में आता है, लेकिन पैगंबर मोहम्मद एक ऐसी रहमत बनकर आए जो सिर्फ परिवार के लिए ही रहमत नहीं केवल अरब के लिए रहमत नहीं केवल मुसलमानों के लिए रहमत नहीं बल्कि सारी दुनिया के लिए रहमत बनकर आए हैं. कुरान में उनके बारे में कहा गया है कि वह पूरे संसार, ब्रह्मांड के लिए हिंदू, मुसलमान, सिख ईसाई सभी के लिए एक रहमत बनकर आए. आज हमारे समाज को देश को पैगंबर मोहम्मद को जानने और पहचानने की जरूरत है. जब वह हमारे लिए रहमत बनकर आए तो हमें किस तरह से आपस में रहना चाहिए.
सवाल- आपने धर्म और संगठन की बात की, तो क्या धर्म की गलत व्याख्या करके संगठन गलत तरह ले काम कर रहे हैं?
जबाब- धर्म तभी तक फैलता रहा जब तक धर्म, धर्म रहा और इसके प्रचारक धार्मिक रहे. जब से यह संगठन आए हैं. तब से संगठन की अपनी नीतियां होती हैं, अपनी जरूरतें होती हैं, अपनी आवश्यकताएं होती हैं. वह उसके अनुकूल यह काम करते हैं. संगठन के लिए ना कोई कुरान है, ना कोई किताब है, न कोई ग्रंथ है. लेकिन धर्म में कुरान है किताब है और हदीस है. जो भी संगठन ऐसा हो जो धर्म विरोधी हो, मानव विरोधी हो वह संगठन कतई धर्म युक्त नहीं हो सकता. वह धर्म से बाहर का कोई संगठन है. चाहे हिंदुस्तान में हो अफगानिस्तान में हो पाकिस्तान में हो या सिवाय कब्रिस्तान के वह कहीं भी हो. जो मानव विरोधी हो, मानवता विरोधी हो वो धार्मिक हो ही नहीं सकता. क्योंकि मानव के लिए धर्म है, पशुओं के लिए कहां है. मानव ही के लिए धर्म है. जो धर्म जो है वह आत्मा का शुद्धिकरण करता है. मानसिकता में पवित्रता लाता है. यह हो सकता है कि धर्म में पवित्रता लाने का तरीका कुछ अलग हो, लेकिन मकसद एक ही है. ईशज्ञान प्राप्त करना. जो विद्यासागर से मिलेगा या विवेकानंद से मिलेगा या ख्वाजा गरीब नवाज से मिलेगा. रास्ते अलग हो सकते हैं इन सबसे ईशज्ञान मिलेगा.और रही बात संगठनों की तो ना तो यह धर्म से बने हैं और ना ही धर्म इनसे बना है. इसलिए जो संगठन मानव के हित में है. समाज का निर्माण करता है, धर्म के अनुकूल है. ऐसे संगठन में सम्मिलित होना चाहिए. लेकिन जो धर्म हमें घृणा सिखाता है. जो हममें शत्रुता पैदा करें, ऐसे संगठन से बचना ही एक धर्म है.
सवाल- "फतवा" को लेकर कई बार बातें होती हैं, धर्मगुरु फतवा जारी करते हैं?
जबाब- पहले तो यह बताना चाहूंगा कि फतवा है ही नहीं, जो फतवा है इसे समझना होगा, फतवा एक टर्मिनोलॉजी है. शब्द नहीं है. जब कुरान हदीस के अंतर्गत की बात की जाए तब यह फतवा है. मैं अपनी राय दूं, तो यह फतवा नहीं है, इंडिविजुअल ओपिनियन है. अलग-अलग लोगों के अलग-अलग ओपिनियन हो सकते हैं. जब आप वोट देने जाते हैं तो वह आपका मत होता है. इसे कभी ऐसा नहीं कहा जाता कि आपने फतवा दिया, मोहन भागवत भी अपनी राय देते हैं. तो क्या वह फतवा है. इसलिए फतवा एक टर्मिनोलॉजी है. इसे हम पर छोड़ दीजिए.
सवाल- वर्तमान राजनीतिक परिवेश के विषय में आप क्या सोचते हैं, कई बार अलग-अलग लोग इस तरह की बातें करते हैं कि हिंदू खतरे में है या मुस्लिम खतरे में है?
जबाब- यह डिवीजन जरूरी है(मजाकिया लहजे में) नहीं तो वोट बैंक नहीं बनेगा, वोट बैंक नहीं बनेगा तो एमएलए नहीं बनेंगे. एमएलए नहीं बनेंगे तो गवर्नमेंट नहीं बनेगी. रही बात खतरे में होने की हम कहते हैं पूरा हिंदुस्तान खतरे में है, या पूरा संसार खतरे में है. कहने से हो गया क्या? बोलने और होने में अंतर होता है. वास्तविकता इससे अलग है. ना ही हिंदू खतरे में है ना ही मुसलमान खतरे में है, और ना इस्लाम को किसी से खतरा है. इलेक्शन में कौन खतरे में होता है? इलेक्शन में सिर्फ नेता खतरे में है, बाकी कोई नहीं. जो जीतेगा वह सिकंदर और जो हारेगा वह जेल के अंदर.