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पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति है बदहाल, सरकारी योजनाओं का असर नहीं

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Published : Aug 29, 2022, 4:22 PM IST

Updated : Aug 29, 2022, 11:19 PM IST

कोरबा में पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति के आदिवासियों की हालत अब भी बदहाल है. सरकार ने भले ही अपनी योजनाओं से इनका उद्धार करने की कोशिश की हो,लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है.

Pahari Korwa Birhor tribe are worried
पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति है बदहाल

कोरबा : छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजातियों (Chhattisgarh special backward tribe ) में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति का जीवन आज भी बदहाल (pahadi Korwa and Birhor tribes in Korba) है.सरकार ने शिक्षित आदिवासियों को बिना किसी परीक्षा या औपचारिकता के नौकरी देने की पेशकश की है.कोरबा जिले में 21 आदिवासियों को नियुक्ति पत्र भी मिला है. लेकिन इसके बाद भी आदिवासियों का जीवन मुश्किलों से घिरा है. आदिवासी अब भी जंगलों में ही निवास करते (Pahari Korwa Birhor tribe are worried) हैं. राशन के लिए 12 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है. पीने के साफ पानी के लिए भी नाले और पहाड़ी रास्तों को पार करना पड़ता है. अधिकारी भले ही आदिवासियों का जीवन सुधारने की बात कह रही हो लेकिन जमीनी हकीकत इससे जुदा (Chhattisgarh government plans ineffective) है.


कितनी है जनसंख्या: कोरबा जिले में 412 ग्राम पंचायतें हैं. जिनमें से 60 बसाहटें हैं. जहां विशेष पिछड़ी जनजाति में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोर निवास करते हैं.आदिवासी विभाग के सर्वे के अनुसार कोरबा जिले में इनकी कुल संख्या 4 हजार 934 है. हाल ही में जब इन्हें बिना किसी परीक्षा के नौकरी दिए जाने की घोषणा सरकार ने की तब नौकरी के लिए 322 लोगों को पात्र पाया गया. खासतौर पर पहाड़ी कोरवा की संख्या कोरबा जिले में अधिक है. ऐसा माना जाता है कि कोरवाओं के नाम पर ही कोरबा जिले को इसका नाम मिला है.

पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति है बदहाल
योजनाओं का नहीं मिलता लाभ : विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट एकता परिषद के मुरली संत कहते हैं कि ''पंडो जनजाति के एक भी आदिवासी को नौकरी नहीं मिली है.पहाड़ी कोरवा को मिली है. जबकि जिले के 3 विकासखंड में पंडो की बहुलता है. कोरबा जिले में तो पंडो विकास प्राधिकरण (pando development authority) और इसकी बॉडी का गठन ही नहीं हुआ है. राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र जल जंगल जमीन के मोहताज हैं. सरकार यदि सच में ईमानदारी से इनका विकास करना चाहती है तो आदिवासियों के बीच जाकर योजनाओं को बनाना होगा. अधिकारी एसी दफ्तर में बैठकर भारी योजनाएं बनाते हैं.लेकिन इसका लाभ विशेष पिछड़ी जनजातियों को नहीं मिल पाता है. आदिवासियों के नाम पर करोड़ों रुपए का बंदरबांट कर लिया जाता है. आज भी विशेष पिछड़ी जनजाति के आदिवासी केवल जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं."पट्टा मिला लेकिन खेती के लिए नहीं मिलती कोई सुविधा : जंगल में रहने वाले धरती पुत्रों को सरकार वनाधिकार पट्टों का वितरण करती है. इस योजना के तहत जिस स्थान पर विशेष पिछड़ी जनजाति तबके के लोग निवास करते हैं. उन्हें उसी स्थान पर जमीन का वन अधिकार पट्टा दिया जाता है. ताकि वह यहां खेती किसानी कर आजीविका का प्रबंध कर सकें.गांव जामपानी के पहाड़ी कोरवा मोहन कहते हैं कि " वन अधिकार पट्टा तो मिला है. लगभग 5 एकड़ खेत भी है. लेकिन यहां खेती किसानी करने के लिए खाद और बीज जैसी कोई सुविधा नहीं मिली है. जिसके कारण ही इस साल खेती किसानी नहीं कर पाया. मोहन बताते हैं कि इस विषय में अधिकारियों ने एक बार कहा जरूर था. लेकिन खाद, बीज जैसी कोई सुविधा मिली नहीं.जिसके कारण खेती किसानी नहीं कर पाया हूँ"राशन और पानी के लिए जंग: विशेष पिछड़ी जनजाति से आने वाले आदिवासियों का जीवन कितनी मुश्किलों से घिरा है. इस पर गांव छातीबहार के पहाड़ी कोरवा बंधन ने कुछ बातें साझा की. बंधन कहते हैं कि ''गांव में बोर की सुविधा नहीं है. जो नल है, उससे लाल पानी निकलता है. यदि गांव में बोर का इंतजाम हो जाता है तो हमें पीने का स्वच्छ पानी मिलता. अभी हम नाले के पानी को ही पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं. कई बार नाला पार करके भी पानी लाते हैं. क्योंकि नाले का पानी बरसात में गंदा हो जाता है. हमारे पास कोई रोजगार नहीं है. सरकारी राशन की दुकान से जो चावल और चना मिलता है. उसी से अपना पेट भरते हैं. लेकिन इसके लिए भी लगभग 12 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है. उचित मूल्य की दुकान लेमरू में है. किसी भी चीज की जरूरत पड़ने पर पैदल ही चल कर जाते हैं.''

प्रशासन का अपना तर्क: पहाड़ी कोरवाओं का जीवन और उनकी स्थिति के प्रश्न पर कलेक्टर संजीव झा (Collector Sanjeev Jha) कहते हैं कि "हाल ही में मुख्यमंत्री के निर्देश मिले थे. जिसके तहत विशेष पिछड़ी जनजाति में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोरों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर बिना किसी परीक्षा के सरकारी नौकरी प्रदान करना है. हमने इसके तहत पहले चरण में 21 लोगों को नियुक्ति पत्र दिया है. इसके अलावा भी हमारे जिले में पहाड़ी कोरवा और बिरहोर के लगभग 60 बसाहटें हैं. आदिवासी प्रकृति के बीच रहते हैं. तो जो काम वह पहले से कर रहे हैं, पशुपालन या बकरी पालन उनमें हम उनकी मदद कर रहे हैं. शासन की योजनाओं के माध्यम से हम उनकी आय को सुनिश्चित करना चाहते हैं. इसके लिए भी हमने एक अलग से प्लान बनाया है.ताकि उनके जीवन स्तर में व्यापक तौर पर सुधार लाया जा सके.''

कोरबा : छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजातियों (Chhattisgarh special backward tribe ) में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति का जीवन आज भी बदहाल (pahadi Korwa and Birhor tribes in Korba) है.सरकार ने शिक्षित आदिवासियों को बिना किसी परीक्षा या औपचारिकता के नौकरी देने की पेशकश की है.कोरबा जिले में 21 आदिवासियों को नियुक्ति पत्र भी मिला है. लेकिन इसके बाद भी आदिवासियों का जीवन मुश्किलों से घिरा है. आदिवासी अब भी जंगलों में ही निवास करते (Pahari Korwa Birhor tribe are worried) हैं. राशन के लिए 12 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है. पीने के साफ पानी के लिए भी नाले और पहाड़ी रास्तों को पार करना पड़ता है. अधिकारी भले ही आदिवासियों का जीवन सुधारने की बात कह रही हो लेकिन जमीनी हकीकत इससे जुदा (Chhattisgarh government plans ineffective) है.


कितनी है जनसंख्या: कोरबा जिले में 412 ग्राम पंचायतें हैं. जिनमें से 60 बसाहटें हैं. जहां विशेष पिछड़ी जनजाति में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोर निवास करते हैं.आदिवासी विभाग के सर्वे के अनुसार कोरबा जिले में इनकी कुल संख्या 4 हजार 934 है. हाल ही में जब इन्हें बिना किसी परीक्षा के नौकरी दिए जाने की घोषणा सरकार ने की तब नौकरी के लिए 322 लोगों को पात्र पाया गया. खासतौर पर पहाड़ी कोरवा की संख्या कोरबा जिले में अधिक है. ऐसा माना जाता है कि कोरवाओं के नाम पर ही कोरबा जिले को इसका नाम मिला है.

पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति है बदहाल
योजनाओं का नहीं मिलता लाभ : विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट एकता परिषद के मुरली संत कहते हैं कि ''पंडो जनजाति के एक भी आदिवासी को नौकरी नहीं मिली है.पहाड़ी कोरवा को मिली है. जबकि जिले के 3 विकासखंड में पंडो की बहुलता है. कोरबा जिले में तो पंडो विकास प्राधिकरण (pando development authority) और इसकी बॉडी का गठन ही नहीं हुआ है. राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र जल जंगल जमीन के मोहताज हैं. सरकार यदि सच में ईमानदारी से इनका विकास करना चाहती है तो आदिवासियों के बीच जाकर योजनाओं को बनाना होगा. अधिकारी एसी दफ्तर में बैठकर भारी योजनाएं बनाते हैं.लेकिन इसका लाभ विशेष पिछड़ी जनजातियों को नहीं मिल पाता है. आदिवासियों के नाम पर करोड़ों रुपए का बंदरबांट कर लिया जाता है. आज भी विशेष पिछड़ी जनजाति के आदिवासी केवल जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं."पट्टा मिला लेकिन खेती के लिए नहीं मिलती कोई सुविधा : जंगल में रहने वाले धरती पुत्रों को सरकार वनाधिकार पट्टों का वितरण करती है. इस योजना के तहत जिस स्थान पर विशेष पिछड़ी जनजाति तबके के लोग निवास करते हैं. उन्हें उसी स्थान पर जमीन का वन अधिकार पट्टा दिया जाता है. ताकि वह यहां खेती किसानी कर आजीविका का प्रबंध कर सकें.गांव जामपानी के पहाड़ी कोरवा मोहन कहते हैं कि " वन अधिकार पट्टा तो मिला है. लगभग 5 एकड़ खेत भी है. लेकिन यहां खेती किसानी करने के लिए खाद और बीज जैसी कोई सुविधा नहीं मिली है. जिसके कारण ही इस साल खेती किसानी नहीं कर पाया. मोहन बताते हैं कि इस विषय में अधिकारियों ने एक बार कहा जरूर था. लेकिन खाद, बीज जैसी कोई सुविधा मिली नहीं.जिसके कारण खेती किसानी नहीं कर पाया हूँ"राशन और पानी के लिए जंग: विशेष पिछड़ी जनजाति से आने वाले आदिवासियों का जीवन कितनी मुश्किलों से घिरा है. इस पर गांव छातीबहार के पहाड़ी कोरवा बंधन ने कुछ बातें साझा की. बंधन कहते हैं कि ''गांव में बोर की सुविधा नहीं है. जो नल है, उससे लाल पानी निकलता है. यदि गांव में बोर का इंतजाम हो जाता है तो हमें पीने का स्वच्छ पानी मिलता. अभी हम नाले के पानी को ही पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं. कई बार नाला पार करके भी पानी लाते हैं. क्योंकि नाले का पानी बरसात में गंदा हो जाता है. हमारे पास कोई रोजगार नहीं है. सरकारी राशन की दुकान से जो चावल और चना मिलता है. उसी से अपना पेट भरते हैं. लेकिन इसके लिए भी लगभग 12 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है. उचित मूल्य की दुकान लेमरू में है. किसी भी चीज की जरूरत पड़ने पर पैदल ही चल कर जाते हैं.''

प्रशासन का अपना तर्क: पहाड़ी कोरवाओं का जीवन और उनकी स्थिति के प्रश्न पर कलेक्टर संजीव झा (Collector Sanjeev Jha) कहते हैं कि "हाल ही में मुख्यमंत्री के निर्देश मिले थे. जिसके तहत विशेष पिछड़ी जनजाति में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोरों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर बिना किसी परीक्षा के सरकारी नौकरी प्रदान करना है. हमने इसके तहत पहले चरण में 21 लोगों को नियुक्ति पत्र दिया है. इसके अलावा भी हमारे जिले में पहाड़ी कोरवा और बिरहोर के लगभग 60 बसाहटें हैं. आदिवासी प्रकृति के बीच रहते हैं. तो जो काम वह पहले से कर रहे हैं, पशुपालन या बकरी पालन उनमें हम उनकी मदद कर रहे हैं. शासन की योजनाओं के माध्यम से हम उनकी आय को सुनिश्चित करना चाहते हैं. इसके लिए भी हमने एक अलग से प्लान बनाया है.ताकि उनके जीवन स्तर में व्यापक तौर पर सुधार लाया जा सके.''

Last Updated : Aug 29, 2022, 11:19 PM IST
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