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कवर्धा में पुलिस प्रशासन के साये में निकलेगी खप्पर - Kawardha today news

कवर्धा में नवरात्रि की अष्टमी की मध्यरात्रि खप्पर निकालने की परंपरा निरंतर जारी है. लगभग 200 सालों से ये परंपरा बिना रुके पूरी की जा रही है. हाथ में चमचमाती तलवार व धधकती आग के साथ तीन मंदिरों से खप्पर निकाली जाएगी.

Tradition of Khappar
कवर्धा में खप्पर निकालने की परंपरा
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Published : Oct 3, 2022, 12:27 PM IST

Updated : Oct 3, 2022, 1:07 PM IST

कवर्धा: शारदीय नवरात्र की अष्टमी की मध्यरात्रि खप्पर निकालने की परंपरा 200 सालों से आज भी जारी है. यह परपंरा देशभर में सिर्फ कवर्धा में ही बची है. कवर्धा में दो सिद्धपीठ मंदिर और एक देवी मंदिर से परंपरानुसार खप्पर निकाली जाती है. भारत में देवी मंदिरों से खप्पर निकालने की परंपरा वर्षों पुरानी है. धार्मिक मान्यता है कि शहर व गांव में धार्मिक आपदाओं से मुक्ति दिलाने व नगर में विराजमान देवी देवताओं का रीति रिवाज के अनुरूप मान मनव्वल कर सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना स्थापित करती है.

ठीक 12 बजे खप्पर निकालने की परंपरा: हर साल नवरात्रि की अष्टमी को ठीक 12 बजे माता की सेवा में लगे पंडे परंपरानुसान 7 काल 182 देवी देवता और 151 वीर बैतालों को मंत्रोच्चारण के साथ आमंत्रित करते हैं. अग्नि से प्रज्जवलित मिट्टी के पात्र (खप्पर) में उन्हें विराजमान किया जाता है. हालांकि अब पहले की परंपरा से कुछ हटकर 108 नींबू काटकर रस्म पूरी की जाती है. रात 12 बजे खप्पर मंदिर से निकाला जाता है. खप्पर के साथ एक अगुवान भी निकलता है. जो दाहिने हाथ में तलवार लेकर खप्पर के लिए रास्ता साफ करता है. मान्यता है कि खप्पर का मार्ग अवरुद्ध होने से तलवार से वार कर दिया जाता है. खप्पर के पीछे-पीछे पंडों का एक दल पूजा अर्चना करते हुए साथ रहते है, ताकि गलती होने पर देवी को शांत किया जा सके.

Shardiya Navratri Day 8 Pooja: सुख सौभाग्य और आरोग्य के लिए कीजिए मां महागौरी की पूजा

दो सौ सालों से जारी है खप्पर निकालने की परंपरा: चण्डी मंदिर के पास रहने वाले 75 साल के शिव देवांगन का कहना है कि "खप्पर निकालने की परपंरा लगभग 2 सौ सालों से निरंतर कवर्धा में जारी है. पहले गांव शहर में आपदा या महामारी से बचे रहने के लिए देवी माता की पूजा अर्चना की जाती थी. इन तकलीफों से लोगों को बचाने देवी माता खुद अष्टमी की मध्यरात्रि एक हाथ में खप्पर और दूसरे हाथ में चमचमाती तलवार लेकर नगर भ्रमण करने निकलती थी और नगर के सभी देवी मंदिरों के दर्शन करते नगर को बांध देती थी. ताकि नगर मे किसी तरहा का कोई आपदा ना आ सके. पांच दशक से भी पूर्व जो खप्पर का स्वरूप था वह काफी रौद्ररूप था. दर्शन करना तो बहुत दूर की बात थी. उनकी गूंज से बंद कमरे में लोग दहशत में आ जाते थे. बावजूद इसके धार्मिक भावना से प्रेरित होकर दरवाजों व खिड़कियों की पोल से पल भर के लिए दर्शन लाभ उठाते थे. पहले हमारे पूर्वजो के अनुसार खप्पर जमीन से कुछ फुट ऊपर व छाती तक लंबा जीभ लिए नगर भ्रमण को निकलती थी जिसका दर्शन करना वर्जित था."

अष्टमी की मध्यरात्रि में निकलेगी खप्पर: आज नगर के दो सिद्धपीठ और एक आदिशक्ति देवी मंदिर से परम्परानुसार खप्पर निकलेगी. देवांगन पारा स्थित मां चण्डी मंदिर, मां परमेश्वरी मंदिर और सत्ती वार्ड स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर से खप्पर निकली जाऐगी. मध्यरात्रि 12.10 बजे मां दंतेश्वरी मंदिर से पहला खप्पर अगुवान की सुरक्षा में निकलेगा. इसके 10 मिनट बाद ही मां चण्डी से और फिर 10 मिनट के अंतराल में मां परमेश्वरी से खप्पर नगर भ्रमण को निकलेगी. शहर के विभिन्न मार्गों से गुरजते हुए मोहल्लों में स्थापित 18 मंदिरों के देवी-देवताओं का विधिवत आह्वान किया जाता है.

दूर-दूर से दर्शन करने आते है श्रद्धालु: अष्टमी की रात्रि शहर में मेला का माहौल रहता है. यहां पर खप्पर देखने के लिए स्थानीय के अलावा गावों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है. इसके अलावा रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, मुंगेली और मंडला जैसे अन्य जिलों से भी लोग खप्पर देखने के लिए पहुंचते हैं.

पुलिस और जिला प्रशासन भी रहती है मौजूद: शहर में अधिक भीड़भाड़ होने के चलते सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिए जगह-जगह पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई जाती है. साथ ही जिन रास्तों से खप्पर गुजराती है उस मार्ग पर लोगों का आवागमन बंद रहता है.

कवर्धा: शारदीय नवरात्र की अष्टमी की मध्यरात्रि खप्पर निकालने की परंपरा 200 सालों से आज भी जारी है. यह परपंरा देशभर में सिर्फ कवर्धा में ही बची है. कवर्धा में दो सिद्धपीठ मंदिर और एक देवी मंदिर से परंपरानुसार खप्पर निकाली जाती है. भारत में देवी मंदिरों से खप्पर निकालने की परंपरा वर्षों पुरानी है. धार्मिक मान्यता है कि शहर व गांव में धार्मिक आपदाओं से मुक्ति दिलाने व नगर में विराजमान देवी देवताओं का रीति रिवाज के अनुरूप मान मनव्वल कर सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना स्थापित करती है.

ठीक 12 बजे खप्पर निकालने की परंपरा: हर साल नवरात्रि की अष्टमी को ठीक 12 बजे माता की सेवा में लगे पंडे परंपरानुसान 7 काल 182 देवी देवता और 151 वीर बैतालों को मंत्रोच्चारण के साथ आमंत्रित करते हैं. अग्नि से प्रज्जवलित मिट्टी के पात्र (खप्पर) में उन्हें विराजमान किया जाता है. हालांकि अब पहले की परंपरा से कुछ हटकर 108 नींबू काटकर रस्म पूरी की जाती है. रात 12 बजे खप्पर मंदिर से निकाला जाता है. खप्पर के साथ एक अगुवान भी निकलता है. जो दाहिने हाथ में तलवार लेकर खप्पर के लिए रास्ता साफ करता है. मान्यता है कि खप्पर का मार्ग अवरुद्ध होने से तलवार से वार कर दिया जाता है. खप्पर के पीछे-पीछे पंडों का एक दल पूजा अर्चना करते हुए साथ रहते है, ताकि गलती होने पर देवी को शांत किया जा सके.

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दो सौ सालों से जारी है खप्पर निकालने की परंपरा: चण्डी मंदिर के पास रहने वाले 75 साल के शिव देवांगन का कहना है कि "खप्पर निकालने की परपंरा लगभग 2 सौ सालों से निरंतर कवर्धा में जारी है. पहले गांव शहर में आपदा या महामारी से बचे रहने के लिए देवी माता की पूजा अर्चना की जाती थी. इन तकलीफों से लोगों को बचाने देवी माता खुद अष्टमी की मध्यरात्रि एक हाथ में खप्पर और दूसरे हाथ में चमचमाती तलवार लेकर नगर भ्रमण करने निकलती थी और नगर के सभी देवी मंदिरों के दर्शन करते नगर को बांध देती थी. ताकि नगर मे किसी तरहा का कोई आपदा ना आ सके. पांच दशक से भी पूर्व जो खप्पर का स्वरूप था वह काफी रौद्ररूप था. दर्शन करना तो बहुत दूर की बात थी. उनकी गूंज से बंद कमरे में लोग दहशत में आ जाते थे. बावजूद इसके धार्मिक भावना से प्रेरित होकर दरवाजों व खिड़कियों की पोल से पल भर के लिए दर्शन लाभ उठाते थे. पहले हमारे पूर्वजो के अनुसार खप्पर जमीन से कुछ फुट ऊपर व छाती तक लंबा जीभ लिए नगर भ्रमण को निकलती थी जिसका दर्शन करना वर्जित था."

अष्टमी की मध्यरात्रि में निकलेगी खप्पर: आज नगर के दो सिद्धपीठ और एक आदिशक्ति देवी मंदिर से परम्परानुसार खप्पर निकलेगी. देवांगन पारा स्थित मां चण्डी मंदिर, मां परमेश्वरी मंदिर और सत्ती वार्ड स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर से खप्पर निकली जाऐगी. मध्यरात्रि 12.10 बजे मां दंतेश्वरी मंदिर से पहला खप्पर अगुवान की सुरक्षा में निकलेगा. इसके 10 मिनट बाद ही मां चण्डी से और फिर 10 मिनट के अंतराल में मां परमेश्वरी से खप्पर नगर भ्रमण को निकलेगी. शहर के विभिन्न मार्गों से गुरजते हुए मोहल्लों में स्थापित 18 मंदिरों के देवी-देवताओं का विधिवत आह्वान किया जाता है.

दूर-दूर से दर्शन करने आते है श्रद्धालु: अष्टमी की रात्रि शहर में मेला का माहौल रहता है. यहां पर खप्पर देखने के लिए स्थानीय के अलावा गावों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है. इसके अलावा रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, मुंगेली और मंडला जैसे अन्य जिलों से भी लोग खप्पर देखने के लिए पहुंचते हैं.

पुलिस और जिला प्रशासन भी रहती है मौजूद: शहर में अधिक भीड़भाड़ होने के चलते सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिए जगह-जगह पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई जाती है. साथ ही जिन रास्तों से खप्पर गुजराती है उस मार्ग पर लोगों का आवागमन बंद रहता है.

Last Updated : Oct 3, 2022, 1:07 PM IST
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