दंतेवाड़ा : छत्तीसगढ़ के ढोलकल में गणपति की एक दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है. बताया जाता है कि ये मूर्ति ग्यारहवीं सदी (Unique Ganpati is sitting in Dantewada) की है. तब यहां नागवंशी राजाओं का शासन था.0 गणेश प्रतिमा के पेट पर नाग का चित्र अंकित है. इस आधार पर माना जाता है, इसकी स्थापना नागवंशी राजाओं ने ही की होगी. यहां प्रचलित किवदंतियां भी इस बात की पुष्टि करती है. दक्षिण बस्तर के भोगामी आदिवासी परिवार अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा (ढोलकल) की महिला पुजारी से मानते हैं. क्षेत्र में यह कथा प्रचलित है कि भगवान गणेश और परशुराम का युद्ध इसी शिखर पर हुआ था. युद्ध के दौरान भगवान गणेश का एक दांत ढोलकल में ही टूटा था.
घटना के कारण ही मूर्ति की स्थापना : इस घटना को चिरस्थाई बनाने के लिए छिंदक नागवंशी राजाओं ने शिखर पर गणेश की प्रतिमा स्थापति की. परशुराम के फरसे के प्रहार से गणपति का एक दांत टूटा था. लिहाजा ढोलकल पहाड़ी (Dholkal Mountains ) के नीचे के गांव का नाम फरसपाल पड़ा. वहीं इस गांव के बाजू में जो इलाका है उसे कोतवाल पारा कहा जाने लगा. जिसका अर्थ रक्षक होता है. कोतवाल पारा में रहने वाले लोग खुद को ढोलकल गणपति का रक्षक मानते हैं.
क्यों हुआ था परशुराम से युद्ध : ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक कैलाश में जब परशुराम ने गुफा में जाने का प्रयास किया तो गणपति ने उन्हें रोका. जब परशुराम ने बलपूर्वक अंदर जाने की कोशिश की तो गणेश ने उन्हें अपनी सूंड में लपेट कर सभी लोकों का दर्शन कराते हुए भूलोक में पटका. मूर्छा खुलने पर परशुराम ने गणपति के साथ युद्ध (Ganesh and Parshuram Fight )किया. जिसमे फरसे के वार से गणपति का एक दांत टूट गया. उस दिन से ही गणपति एक दंत कहलाए.
कठिन है ढोलकल तक पहुंचना : दंतेवाड़ा से 22 किमी दूर ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है. दंतेवाड़ा से करीब 18 किलोमीटर दूर फरसपाल जाना पड़ता है. यहां से कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है. जामपारा में वाहन खड़ी कर ग्रामीणों के सहयोग से शिखर तक पहुंचा जा सकता है. जामपारा पहाड़ के नीचे है. यहां से करीब तीन घंटे पैदल चलकर तक पगडंडियों से होकर ऊपर पहाड़ी पर पहुंचना पड़ता है.