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संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए कमरछठ का व्रत - बिना हल चली चीजों का महत्व

छत्तीसगढ़ में माताओं ने कमरछठ का व्रत रखकर संतान की लंबी उम्र की कामना की.

Kamarchhath fast for long life of children
संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए कमरछठ का व्रत
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Published : Aug 17, 2022, 6:28 PM IST

दुर्ग : भिलाई में संतान की लंबी उम्र के लिए माताओं ने कमरछठ का व्रत रखा. कमरछठ की तैयारी को लेकर सुबह से ही बाजारों में अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली. दोपहर बाद सगरी बनाकर माताओं ने सामूहिक रूप से पूजा अर्चना की. छह तरह की तरह की भाजी, पसहर चावल, महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध, दही और घी सहित पूजा का समान भगवान शिव को अर्पण किया गया.इसके साथ ही संतान के दीर्घायु की कामना माताओं ने (Kamarchhath fast for long life of children) की.

संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए कमरछठ का व्रत

कैसे होती है पूजा : बिहार के छठ की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में कमरछठ मनाया जाता है. माताएं निर्जला रहकर शिव-पार्वती की पूजा करती है.सगरी बनाकर रस्म निभाई जाती है. इस मौके पर कमरछठ की कहानी सुनकर शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अपना व्रत खोलेंगी. कमरछठ की पूजा के लिए महिलाओं ने गली-मोहल्ले में मिलकर प्रतीक स्वरूप दो सगरी (तालाब) के साथ मिट्टी की नाव बनाई. फूल-पत्तों से सगरी को सजाकर शिव को भोग लगाया जाता है. इसके बाद महिलाएं शाम को अपना व्रत खोलती हैं.

बिना हल चली चीजों का महत्व : छत्तीसगढ़ छत्तीस तरह की भाजियों के लिए प्रसिद्ध है. कमरछठ में भी भाजियों का अपना महत्व है. इस व्रत में छह तरह की ऐसी भाजियों का उपयोग किया जाता है. जिसमें हल का उपयोग ना किया हो. बाजार में भी लोग अलग-अलग तरह की छह भाजियां लेकर पहुंचे. जिसमें चरोटा भाजी, खट्टा भाजी, चेंच भाजी, मुनगा भाजी, कुम्हड़ा भाजी, लाल भाजी, चौलाई भाजी शामिल है.

पसहर चांवल का विशेष महत्व : पसहर चावल बिना हल के ही खेतों में पैदा होता है. हलषष्ठी के पर्व पर इस चावल की मांग अधिक होती है. माना जाता है कि इस चावल से ही व्रत तोड़ने की सदियों पुरानी परंपरा है. जानकारी के मुताबिक हलषष्ठी देवी को धरती का स्वरूप माना जाता है. इसलिए इस दिन हल चले जमीन पर माताएं नहीं चलतीं और हल से जोती हुई जमीन से उपार्जित अन्न का उपयोग नहीं करती.इसलिए ऐसी सामग्री जो स्वमेव ही पैदा हुई होती हैं उनकी मांग इस दिन बढ़ जाती है.

दुर्ग : भिलाई में संतान की लंबी उम्र के लिए माताओं ने कमरछठ का व्रत रखा. कमरछठ की तैयारी को लेकर सुबह से ही बाजारों में अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली. दोपहर बाद सगरी बनाकर माताओं ने सामूहिक रूप से पूजा अर्चना की. छह तरह की तरह की भाजी, पसहर चावल, महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध, दही और घी सहित पूजा का समान भगवान शिव को अर्पण किया गया.इसके साथ ही संतान के दीर्घायु की कामना माताओं ने (Kamarchhath fast for long life of children) की.

संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए कमरछठ का व्रत

कैसे होती है पूजा : बिहार के छठ की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में कमरछठ मनाया जाता है. माताएं निर्जला रहकर शिव-पार्वती की पूजा करती है.सगरी बनाकर रस्म निभाई जाती है. इस मौके पर कमरछठ की कहानी सुनकर शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अपना व्रत खोलेंगी. कमरछठ की पूजा के लिए महिलाओं ने गली-मोहल्ले में मिलकर प्रतीक स्वरूप दो सगरी (तालाब) के साथ मिट्टी की नाव बनाई. फूल-पत्तों से सगरी को सजाकर शिव को भोग लगाया जाता है. इसके बाद महिलाएं शाम को अपना व्रत खोलती हैं.

बिना हल चली चीजों का महत्व : छत्तीसगढ़ छत्तीस तरह की भाजियों के लिए प्रसिद्ध है. कमरछठ में भी भाजियों का अपना महत्व है. इस व्रत में छह तरह की ऐसी भाजियों का उपयोग किया जाता है. जिसमें हल का उपयोग ना किया हो. बाजार में भी लोग अलग-अलग तरह की छह भाजियां लेकर पहुंचे. जिसमें चरोटा भाजी, खट्टा भाजी, चेंच भाजी, मुनगा भाजी, कुम्हड़ा भाजी, लाल भाजी, चौलाई भाजी शामिल है.

पसहर चांवल का विशेष महत्व : पसहर चावल बिना हल के ही खेतों में पैदा होता है. हलषष्ठी के पर्व पर इस चावल की मांग अधिक होती है. माना जाता है कि इस चावल से ही व्रत तोड़ने की सदियों पुरानी परंपरा है. जानकारी के मुताबिक हलषष्ठी देवी को धरती का स्वरूप माना जाता है. इसलिए इस दिन हल चले जमीन पर माताएं नहीं चलतीं और हल से जोती हुई जमीन से उपार्जित अन्न का उपयोग नहीं करती.इसलिए ऐसी सामग्री जो स्वमेव ही पैदा हुई होती हैं उनकी मांग इस दिन बढ़ जाती है.

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