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बिलासपुर कानन पेंडारी जू बना जानवरों के लिए काल, 2 महीनों में पांच की मौत, भालू परिवार का कुनबा खत्म

बिलासपुर का कानन पेंडारी जू (bilaspur Kanan Pindari Zoo)जानवरों के लिए काल बनता जा रहा है . जू में एक के बाद एक जानवर दम तोड़ रहे हैं. इस बार एक महीने के अंदर भालू परिवार का पूरा कुनबा ही खत्म हो गया.

कानन पेंडारी जू में तीन भालुओं की मौत
कानन पेंडारी जू में तीन भालुओं की मौत
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Published : Mar 25, 2022, 7:14 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ का कानन पेंडारी जू (Kanan Pindari Zoo) जंगली जानवरों के लिए काल बनता जा रहा है. पिछले एक महीने की बात करें तो यहां तीन भालुओं की मौत हो (Three bears died in Kanan Pindari Zoo) चुकी है. जिनमे से दो नर और एक मादा भालू है. जू प्रबंधन की माने तो भालू केनाइन होपोटीटी संक्रमण (
Canine Hopotiti Infection) से संक्रमित थे. जिसके कारण इनकी मौत हो हुई है. लेकिन अभी तक प्रबंधन को ये नहीं पता कि क्या भालुओं की मौत इसी वायरस से हुई है या नहीं. मौत के सही कारणों का पता लगाने के लिए बिसरा को बरेली वाइल्ड लाइफ लेबोरेटरी में भेजा गया है. जहां पर मौत के असली कारण से पर्दा उठेगा.

अब तक पांच जानवरों की मौत : कानन पेंडारी में यदि जानवरों की मौत की बात की जाए तो आंकड़ें चौंकाने वाले हैं. पिछले दो महीनों में पांच जानवरों ने इस जू में दम तोड़ा है. जिसमे हिप्पोपोटामस ने हार्ट अटैक से मौत हुई. वहीं बाघ भी बीमारी की वजह से चल बसा. अब तीन भालुओं की मौत ने कानन पेंडारी को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है. वहीं जू प्रबंधन की माने तो भालू जिस वायरस से संक्रमित हुए उसमें बचना नामुमकिन होता है. भालुओं की बिगड़ती तबीयत को देखते हुए जू प्रबंधन ने एक्सपर्ट्स की भी मदद ली थी. लेकिन वो भी भालुओं को बचाने में असफल रहे.

कितना खतरनाक है केनाइन हेपोटीटी संक्रमण : कानन पेंडारी जू के तीन भालुओं की मौत केनाइन हेपोटीटी संक्रमण (Canine Hopotiti Infection) से होने की जानकारी दी जा रही है. यह संक्रमण काफी खतरनाक है. इसका इलाज अब तक संभव नहीं हो पाया है. कानन पेंडारी के एसडीओ संजय लूथर ने बताया कि सुबह 7:30 बजे भालू ने अंतिम सांस ली है. मादा भालू की मौत भी इसी संक्रमण से होने की बात कही जा रही है . ये वायरस भालूओं के आपसी संपर्क में रहने से फैलता है. यह संक्रमण इतना खतरनाक है कि आगरा के भालू रिसर्च सेंटर (Bear Research Center of Agra) में 2007 से लेकर 2013 तक 27 भालुओं की मौत इसी संक्रमण से हुई थी. इस संक्रमण में शुरुआत में भालू 2 दिन खाना बंद कर देते हैं और इसके बाद वह काफी कमजोर हो जाते हैं. इस बीमारी में नसों में सूजन आ जाता है और नशे फटने लगती हैं. जिससे भालू की मौत हो जाती है.

ये भी पढ़ें- बिलासपुर के कानन पेंडारी जू में एक और भालू की मौत, महीनेभर में तीन भालुओं की गई जान

सूरजपुर से किया गया था रेस्क्यू : जिस मादा भालू की मौत हुई है उसी भालू के एक भाई की मौत 26 फरवरी और दूसरे भाई की मौत 10 मार्च को हुई. अब 25 मार्च को मादा भालू ने भी दम तोड़ दिया. इनका पूरा कुनबा ही कानन ज़ू से खत्म हो गया. 4 साल पहले सूरजपुर के जंगल से वन विभाग की टीम ने 3 लावारिस हालात में मिले भालू के शावकों को कानन पेंडारी लाया था. हालांकि उस समय ये पता नहीं चल पाया था कि भालू शावकों की मां की मौत हुई थी या उसने खुद ही बच्चों को छोड़ा था.

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ का कानन पेंडारी जू (Kanan Pindari Zoo) जंगली जानवरों के लिए काल बनता जा रहा है. पिछले एक महीने की बात करें तो यहां तीन भालुओं की मौत हो (Three bears died in Kanan Pindari Zoo) चुकी है. जिनमे से दो नर और एक मादा भालू है. जू प्रबंधन की माने तो भालू केनाइन होपोटीटी संक्रमण (
Canine Hopotiti Infection) से संक्रमित थे. जिसके कारण इनकी मौत हो हुई है. लेकिन अभी तक प्रबंधन को ये नहीं पता कि क्या भालुओं की मौत इसी वायरस से हुई है या नहीं. मौत के सही कारणों का पता लगाने के लिए बिसरा को बरेली वाइल्ड लाइफ लेबोरेटरी में भेजा गया है. जहां पर मौत के असली कारण से पर्दा उठेगा.

अब तक पांच जानवरों की मौत : कानन पेंडारी में यदि जानवरों की मौत की बात की जाए तो आंकड़ें चौंकाने वाले हैं. पिछले दो महीनों में पांच जानवरों ने इस जू में दम तोड़ा है. जिसमे हिप्पोपोटामस ने हार्ट अटैक से मौत हुई. वहीं बाघ भी बीमारी की वजह से चल बसा. अब तीन भालुओं की मौत ने कानन पेंडारी को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है. वहीं जू प्रबंधन की माने तो भालू जिस वायरस से संक्रमित हुए उसमें बचना नामुमकिन होता है. भालुओं की बिगड़ती तबीयत को देखते हुए जू प्रबंधन ने एक्सपर्ट्स की भी मदद ली थी. लेकिन वो भी भालुओं को बचाने में असफल रहे.

कितना खतरनाक है केनाइन हेपोटीटी संक्रमण : कानन पेंडारी जू के तीन भालुओं की मौत केनाइन हेपोटीटी संक्रमण (Canine Hopotiti Infection) से होने की जानकारी दी जा रही है. यह संक्रमण काफी खतरनाक है. इसका इलाज अब तक संभव नहीं हो पाया है. कानन पेंडारी के एसडीओ संजय लूथर ने बताया कि सुबह 7:30 बजे भालू ने अंतिम सांस ली है. मादा भालू की मौत भी इसी संक्रमण से होने की बात कही जा रही है . ये वायरस भालूओं के आपसी संपर्क में रहने से फैलता है. यह संक्रमण इतना खतरनाक है कि आगरा के भालू रिसर्च सेंटर (Bear Research Center of Agra) में 2007 से लेकर 2013 तक 27 भालुओं की मौत इसी संक्रमण से हुई थी. इस संक्रमण में शुरुआत में भालू 2 दिन खाना बंद कर देते हैं और इसके बाद वह काफी कमजोर हो जाते हैं. इस बीमारी में नसों में सूजन आ जाता है और नशे फटने लगती हैं. जिससे भालू की मौत हो जाती है.

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सूरजपुर से किया गया था रेस्क्यू : जिस मादा भालू की मौत हुई है उसी भालू के एक भाई की मौत 26 फरवरी और दूसरे भाई की मौत 10 मार्च को हुई. अब 25 मार्च को मादा भालू ने भी दम तोड़ दिया. इनका पूरा कुनबा ही कानन ज़ू से खत्म हो गया. 4 साल पहले सूरजपुर के जंगल से वन विभाग की टीम ने 3 लावारिस हालात में मिले भालू के शावकों को कानन पेंडारी लाया था. हालांकि उस समय ये पता नहीं चल पाया था कि भालू शावकों की मां की मौत हुई थी या उसने खुद ही बच्चों को छोड़ा था.

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