बिलासपुरः राज्य सरकार के झीरम आयोग पर नए सदस्य और अध्यक्ष बनाने के मामले में पीसीसी के वकील ने कहा कि आयोग कोर्ट नहीं होता. इसके जांच बिंदु बढ़ाने या नए सदस्य जोड़ने पर कोर्ट का अवमानना (contempt of court) नहीं होता. राज्य सरकार को अधिकार (power to the state government) होता है कि वह यह कर सकती है. वह पत्रकारवार्ता को संबोधित कर रहे थे. पिछले दिनों हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने झीरम आयोग की सुनवाई में 4 हजार 1 सौ 84 पन्नों की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी (Report submitted to Governor) थी.
इस मामले में राज्य सरकार को राज्यपाल ने रिपोर्ट दे दी है. राज्य सरकार ने आयोग में नए सदस्य शामिल किए और नए जांच के बिंदू जोड़े हैं. इस मामले में लगातार विपक्षीय पार्टी के नेता कोर्ट की अवमानना (contempt of court) की बात कह रहे थे. इस मामले में पीसीसी के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने पत्रकारवार्ता कर कहा कि आयोग कोर्ट नहीं होता और इसमें नए सदस्य जोड़ने और जांच बिंदु शामिल करने से कोर्ट का अवमानना नहीं होता. यह राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग (commission set up by the state government) होता है. वकील सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि कई मामले इस देश में हुए. जिनमें कई जांच आयोग बने.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने 2014 में सुब्रमण्यम स्वामी मामले में ये साफ कहा था कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जस्टिस न्यायिक आयोग में जज नहीं होते बल्कि अध्यक्ष होते हैं. इस लिए कोर्ट की अवमानना नहीं होता. न्यायायिक जांच आयोग (judicial inquiry commission) में जस्टिस कोर्ट के वेशभूषा में नहीं होते. वह सामान्य वेशभूषा धारण करते हैं. जिसका सबूत है कि आयोग कोर्ट नहीं होता. इस मामले में पीसीसी के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि राज्य सरकार को अधिकार है कि वो आयोग में सदस्य और अध्यक्ष की बदली कर सकते हैं. झीरम जांच आयोग में जो पहले अध्यक्ष रहे, उनका आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस बनने और ट्रांसफर होने की वजह से सरकार को यह निर्णय लेना पड़ा. वकील ने कहा है कि अभी उन्हें ये तो नहीं मालूम है कि जो रिपोर्ट पेश की गई है उसमें आयोग ने निर्णय ले लिया है या अभी आधी-अधूरी है.
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रिपोर्ट पढ़ने के बाद सरकार ने लिया फैसला
लेकिन राज्य सरकार इसमें नए जांच के बिंदु शामिल कर सकती है. झीरम मामले (Jhiram case) में सुनवाई रुकी हुई थी और अंतिम तर्क नहीं हुआ था. पीसीसी के वकील ने बताया कि जब आखरी बार सुनवाई हुई थी तब उन्होंने 10 बिंदु पर तर्क करने की मांग की थी और इसके बाद अंतिम सुनवाई की बात कही थी. वह भी पिछली आयोग में नहीं हुआ. इस लिए वे मानते हैं कि अभी सुनवाई पूरी नहीं हुई है. साल 2013 में दरभा थाना के झीरमघाटी में लौटते समय नक्सलियों (Naxalite) ने घात लगाकर कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा (change journey) काफिले पर हमला किया था. इस हमले में कांग्रेस के फ्रंटलाइन के नेताओं सहित 26 लोगों की मौत हो गई थी.
हमले की जांच के लिए तात्कालिक भाजपा सरकार ने आयोग का गठन किया था. जिसमें हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत मिश्रा को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था. वकील ने कहा कि 4 हजार 1 सौ 84 पन्नों की जो रिपोर्ट है, वह निर्णय नहीं है. क्योंकि उनके तर्क और जांच के हिसाब से 2 सौ पन्नों के कई दस्तावेज जमा किए थे. इस रिपोर्ट में वह भी शामिल किया गया होगा. राज्य सरकार इस मामले की सुनवाई रिपोर्ट पढ़ने के बाद आगे की सुनवाई करवाने की नई व्यवस्था की है.
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झीरमघाटी न्यायायिक जांच आयोग का गठन 28 मई 2013 में किया गया था. जिसे 3 माह में जांच सुनवाई कर रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करना था. इसके बाद फिर 3 महीने का अतिरिक्त समय में बढ़ोतरी की गई. इसके बाद भी सुनवाई पूरी नही हुई. फिर 6 माह का समय बढ़ाया गया. धीरे-धीरे लगभग 15 बार समय बढ़ाया गया. फिर सुनवाई बंद कर दी गई और अध्यक्ष का चीफ जस्टिस के रूप में आंध्रप्रदेश ट्रांसफर हो गया. यही कारण है कि जांच आगे बढ़ाने और सुनवाई के लिए नए सदस्य तथा अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. पीसीसी के वकील सुदीप ने कहा कि जिन गवाहों और अधिकारियों का प्रतिपरीक्षण हो गया है. उन्हें जरूरत पड़ने पर दोबारा बुलाया जा सकता है.