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बिलासा एयरपोर्ट की जमीन को लेकर खड़ा हुआ नया विवाद

बिलासपुर एयरपोर्ट की जमीन को लेकर अब नया बखेड़ा खड़ा होता दिखाई दे रहा (New dispute arose over the land of Bilasa airport) है. जिस जमीन पर एयरपोर्ट का विस्तार होना है अब उसमे एएआई ने अपना दावा पेश किया है.

New dispute arose over the land of Bilasa airport
बिलासा एयरपोर्ट की जमीन को लेकर खड़ा हुआ नया विवाद
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Published : Jun 1, 2022, 12:40 PM IST

Updated : Jun 1, 2022, 1:51 PM IST

बिलासपुर : बिलासा एयरपोर्ट के लिए 4 सी लाइसेंस की मांग और नाइट लैंडिंग सुविधा की मांग सालों से की जा रही है. केंद्र सरकार ने कुछ एयरवेज कंपनियों से अनुबंध करके फ्लाइट शुरू की है. लेकिन अभी भी नाईट लैंडिंग की सुविधा यहां नही है. इस मामले ने अब नया मोड़ ले लिया है. अब एयरपोर्ट की जमीन को एएआई अपनी बताकर इसे हस्तांतरित करने की मांग राज्य से कर रहा है. वहीं हवाई सुविधा के लिए संघर्ष कर रही समिति ने इस जमीन को एयरपोर्ट और राज्य सरकार की जमीन बता रही (Center told the land as its own) है.

बिलासा एयरपोर्ट की जमीन को लेकर खड़ा हुआ नया विवाद

क्या है नई परेशानी : बिलासपुर में अभी नियमित विमान सेवा ठीक से शुरू भी नही हो पाई है और इसमें एक नया बखेड़ा शुरू हो गया है. जिस जमीन में एयरपोर्ट है उस जमीन को नागरिक उड्डयन मंत्री ने एएआई की बताते हुए राज्य सरकार से इसे एएआई को सौंपने को कहा है. अब ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार एयरपोर्ट विस्तार करना तो दूर जमीन के लिए एक दूसरे के सामने खड़े हो गए हैं.

क्या होगा अब नुकसान : इस मामले में तीन साल से नियमित विमान सेवा और नाईट लैंडिंग सुविधा की मांग के लिए धरना प्रदर्शन कर रही हवाई सुविधा जनसंघर्ष समिति ने दोनों सरकारों को कई दस्तावेजों की जानकारी (Air Suvidha Jan Sangharsh Committee presented the argument) दी. जिसमे साबित हो रहा है कि यह जमीन राज्य की है. सुविधा बढ़ने की बजाए एयरपोर्ट अब दो सरकारों की लड़ाई में न फंस जाए. ऐसे अंदेशा अब संघर्ष समिति को लगने लगा है.

किसकी है जमीन : हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति के समन्वयक एडवोकेट सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि ''हाल ही में नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा दिए गए उस बयान पर वस्तुस्थिति साफ है. जिसमें मंत्री ने बिलासपुर एयरपोर्ट की मूल जमीन लगभग 385 एकड़ को एएआई की संपत्ति बताते हुए राज्य सरकार से उसे हस्तांतरित करने की मांग की है. उस जमीन में पूर्णता राज्य सरकार का अधिकार है. इस संबंध में मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड में (State land in misal settlement record) केंद्र सरकार ने 1966 में जारी आदेश में स्पष्ट उल्लेख है. बिलासपुर एयरपोर्ट रॉयल ब्रिटिश आर्मी ने 1942 में बनाया था. आजादी के बाद यह केंद्र सरकार को व्यवस्थापन के लिए हस्तांतरित हो गया. लेकिन भारत सरकार ने यहां आर्मी या वायु सेना का केंद्र नहीं बनाया. इसलिए 1966 में एयरपोर्ट और जमीन विधिवत राज्य सरकार को हस्तांतरित हो गई.और तब से यह राज्य सरकार की संपत्ति है.

जमीन में किसके नाम की थी एंट्री : 1966 के पूर्व से यह जमीन की पांच साला खसरा में एंट्री एरोड्रम के नाम से है . 385 एकड़ में से लगभग 56 एकड़ में डीजीसीए लिखा हुआ है. लेकिन इस खसरे में एयरपोर्ट की बाहर की भी जमीन है. जिस जमीन के लिए खसरा में एरोड्रम लिखा है. एएआई ने जिस जमीन को अपना बताया है वो राज्य सरकार की है और राज्य सरकार अपनी जमीन में एयरपोर्ट विस्तार के लिए तैयार है.

एएआई ने नहीं की है अपील : हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति के समन्वयक सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि '' साल 2011 में जब सेना के लिए जमीन अधिग्रहण की जा रही थी उस वक्त एएआई को सर्वे के लिए बुलाया गया था. डीजीसीए के उत्तराधिकारी होने के नाते एएआई ने तहसीलदार के समक्ष एयरपोर्ट की 385 एकड़ भूमि अपने नाम करने का आवेदन किया था. तब के तहसीलदार ने बिना पुराना रिकॉर्ड और मिसल बंदोबस्त के जांच किए उक्त आवेदन स्वीकार कर पूरी जमीन एएआइ के नाम दर्ज करने का आदेश दे दिया था.''

ये भी पढ़ें - अधूरी व्यवस्था के साथ शुरू हुई हवाई सेवा से यात्री परेशान

बाद में कहां आई दिक्कत : श्रीवास्तव की माने तो ''आदेश जब कलेक्टर और उच्चाधिकारियों के जानकारी में आया तब पूरा रिकॉर्ड छाना गया और यह बात सामने आई कि 1966 से ही एयरपोर्ट की पूरी 385 एकड़ जमीन राज्य सरकार की है. लगातार राज्य सरकार ही एयरपोर्ट का संचालन और मेंटेनेंस कर रही है. इस स्थिति में एसडीएम के समक्ष तहसीलदार के आदेश के विरुद्ध एक अपील शासकीय रूप से प्रस्तुत की गई थी. जिसमें एसडीएम ने तहसीलदार का आदेश निरस्त कर पुनः पूरी जमीन राज्य सरकार के नाम करने के निर्देश दिए. एएआई ने इस सुनवाई में भाग लिया. लेकिन इस आदेश के विरुद्ध कोई अपील आगे प्रस्तुत नहीं की. इसके बावजूद एएआई 2011 के उप तहसीलदार के आदेश को दिखाकर नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं सभी संबंधित जनों को निरंतर गुमराह कर रही है.''

बिलासपुर : बिलासा एयरपोर्ट के लिए 4 सी लाइसेंस की मांग और नाइट लैंडिंग सुविधा की मांग सालों से की जा रही है. केंद्र सरकार ने कुछ एयरवेज कंपनियों से अनुबंध करके फ्लाइट शुरू की है. लेकिन अभी भी नाईट लैंडिंग की सुविधा यहां नही है. इस मामले ने अब नया मोड़ ले लिया है. अब एयरपोर्ट की जमीन को एएआई अपनी बताकर इसे हस्तांतरित करने की मांग राज्य से कर रहा है. वहीं हवाई सुविधा के लिए संघर्ष कर रही समिति ने इस जमीन को एयरपोर्ट और राज्य सरकार की जमीन बता रही (Center told the land as its own) है.

बिलासा एयरपोर्ट की जमीन को लेकर खड़ा हुआ नया विवाद

क्या है नई परेशानी : बिलासपुर में अभी नियमित विमान सेवा ठीक से शुरू भी नही हो पाई है और इसमें एक नया बखेड़ा शुरू हो गया है. जिस जमीन में एयरपोर्ट है उस जमीन को नागरिक उड्डयन मंत्री ने एएआई की बताते हुए राज्य सरकार से इसे एएआई को सौंपने को कहा है. अब ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार एयरपोर्ट विस्तार करना तो दूर जमीन के लिए एक दूसरे के सामने खड़े हो गए हैं.

क्या होगा अब नुकसान : इस मामले में तीन साल से नियमित विमान सेवा और नाईट लैंडिंग सुविधा की मांग के लिए धरना प्रदर्शन कर रही हवाई सुविधा जनसंघर्ष समिति ने दोनों सरकारों को कई दस्तावेजों की जानकारी (Air Suvidha Jan Sangharsh Committee presented the argument) दी. जिसमे साबित हो रहा है कि यह जमीन राज्य की है. सुविधा बढ़ने की बजाए एयरपोर्ट अब दो सरकारों की लड़ाई में न फंस जाए. ऐसे अंदेशा अब संघर्ष समिति को लगने लगा है.

किसकी है जमीन : हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति के समन्वयक एडवोकेट सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि ''हाल ही में नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा दिए गए उस बयान पर वस्तुस्थिति साफ है. जिसमें मंत्री ने बिलासपुर एयरपोर्ट की मूल जमीन लगभग 385 एकड़ को एएआई की संपत्ति बताते हुए राज्य सरकार से उसे हस्तांतरित करने की मांग की है. उस जमीन में पूर्णता राज्य सरकार का अधिकार है. इस संबंध में मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड में (State land in misal settlement record) केंद्र सरकार ने 1966 में जारी आदेश में स्पष्ट उल्लेख है. बिलासपुर एयरपोर्ट रॉयल ब्रिटिश आर्मी ने 1942 में बनाया था. आजादी के बाद यह केंद्र सरकार को व्यवस्थापन के लिए हस्तांतरित हो गया. लेकिन भारत सरकार ने यहां आर्मी या वायु सेना का केंद्र नहीं बनाया. इसलिए 1966 में एयरपोर्ट और जमीन विधिवत राज्य सरकार को हस्तांतरित हो गई.और तब से यह राज्य सरकार की संपत्ति है.

जमीन में किसके नाम की थी एंट्री : 1966 के पूर्व से यह जमीन की पांच साला खसरा में एंट्री एरोड्रम के नाम से है . 385 एकड़ में से लगभग 56 एकड़ में डीजीसीए लिखा हुआ है. लेकिन इस खसरे में एयरपोर्ट की बाहर की भी जमीन है. जिस जमीन के लिए खसरा में एरोड्रम लिखा है. एएआई ने जिस जमीन को अपना बताया है वो राज्य सरकार की है और राज्य सरकार अपनी जमीन में एयरपोर्ट विस्तार के लिए तैयार है.

एएआई ने नहीं की है अपील : हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति के समन्वयक सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि '' साल 2011 में जब सेना के लिए जमीन अधिग्रहण की जा रही थी उस वक्त एएआई को सर्वे के लिए बुलाया गया था. डीजीसीए के उत्तराधिकारी होने के नाते एएआई ने तहसीलदार के समक्ष एयरपोर्ट की 385 एकड़ भूमि अपने नाम करने का आवेदन किया था. तब के तहसीलदार ने बिना पुराना रिकॉर्ड और मिसल बंदोबस्त के जांच किए उक्त आवेदन स्वीकार कर पूरी जमीन एएआइ के नाम दर्ज करने का आदेश दे दिया था.''

ये भी पढ़ें - अधूरी व्यवस्था के साथ शुरू हुई हवाई सेवा से यात्री परेशान

बाद में कहां आई दिक्कत : श्रीवास्तव की माने तो ''आदेश जब कलेक्टर और उच्चाधिकारियों के जानकारी में आया तब पूरा रिकॉर्ड छाना गया और यह बात सामने आई कि 1966 से ही एयरपोर्ट की पूरी 385 एकड़ जमीन राज्य सरकार की है. लगातार राज्य सरकार ही एयरपोर्ट का संचालन और मेंटेनेंस कर रही है. इस स्थिति में एसडीएम के समक्ष तहसीलदार के आदेश के विरुद्ध एक अपील शासकीय रूप से प्रस्तुत की गई थी. जिसमें एसडीएम ने तहसीलदार का आदेश निरस्त कर पुनः पूरी जमीन राज्य सरकार के नाम करने के निर्देश दिए. एएआई ने इस सुनवाई में भाग लिया. लेकिन इस आदेश के विरुद्ध कोई अपील आगे प्रस्तुत नहीं की. इसके बावजूद एएआई 2011 के उप तहसीलदार के आदेश को दिखाकर नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं सभी संबंधित जनों को निरंतर गुमराह कर रही है.''

Last Updated : Jun 1, 2022, 1:51 PM IST
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