बिलासपुर : कोरोना महामारी के बाद अब बिलासपुर संभाग में ब्लैक फंगस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. शहर में अब तक आधा दर्जन से अधिक मरीज ब्लैक फंगस के सामने आ चुके हैं. संभाग के अन्य जिलों से भी रोजाना ब्लैक फंगस के मरीज सामने आ रहे हैं. सिम्स में 13 से ज्यादा मरीजों का उपचार किया जा रहा है. चिंता की बात ये है कि इसमें कुछ मरीज ऐसे भी हैं, जो नॉन कोविड और नॉन डायबिटिक हैं.
इन जिलों में मरीज आए सामने
- कोरबा
- जांजगीर
- गौरेला-पेंड्रा-मरवाही
- मुंगेली
- बेमेतरा
शुरुआत में ये माना जा रहा था कि कोविड, पोस्ट कोविड या फिर डायबिटिक पेशेंट में ही ज्यादातर ब्लैक फंगस की संभावना है. लेकिन ब्लैक फंगस के ऐसे भी मरीज अब सामने आ रहे हैं, जिनकी नाक, आंख और शरीर के दूसरे हिस्से में संक्रमण मिला है. कोरबा के एक मरीज के पैर और छाती में घाव है, जिसकी जांच में ब्लैक फंगस की पुष्टि हुई है. बिलासपुर के सिम्स में फिलहाल 13 से अधिक मरीजों का उपचार किया जा रहा है. पांच गंभीर मरीजों को अब तक सिम्स से रायपुर रेफर किया जा चुका है. स्वास्थ्य विभाग की मानें तो आने वाले दिनों में इनकी संख्या और बढ़ सकती है.
बलौदाबाजार में ब्लैक फंगस के 4 मरीज मिले
मंगलवार को ब्लैक फंगस के 2 नए मरीज मिले हैं. इनमें सिरगिट्टी निवासी 40 वर्षीय युवक और बेमेतरा निवासी 50 वर्षीय महिला शामिल है. इलाज के लिए इन्हें सिम्स में भर्ती किया गया है. युवक की नाक में फंगस की शिकायत है, जबकि महिला का जबड़ा प्रभावित हो रहा है. दोनों मरीजों की एमआरआई और माइक्रोबायोलॉजी समेत अन्य जांच कराई जा रही है. जिले में अब तक ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या 20 हो गई है. जिनमें 5 मरीजों को इलाज के लिए रायपुर रेफर किया गया है.
कैसे रंग बदलता है फंगस ?
इनके रंगों के आधार पर ही इन्हें ब्लैक, येलो और व्हाइट फंगस का नाम दिया जाता है. म्यूकर के प्रभाव से टिश्यू का रंग काला हो जाता है, इसलिए इसे ब्लैक फंगस कहा जाता है. मुंह और दूसरी जगहों पर होने वाले फंगस के प्रभाव से सफेद या ग्रे रंग का बदलाव दिखाई देता है, जिसके चलते इसे व्हाइट फंगस कहा जाता है.
शरीर के अंदर रहते हैं फंगस
शरीर के अंदर पहले से ही फंगस मौजूद होते हैं, लेकिन बेहतर प्रतिरोधक क्षमता की वजह से यह शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते. जैसे ही हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है, तो शरीर के कुछ खास हिस्सों पर फंगस हमला करना शुरू कर देते हैं और मरीज को नुकसान पहुंचाते हैं.