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राहुल गांधी के वादे से लेकर वर्तमान के विवाद तक, पढ़िए लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट के बारे में सब - Question on Lemru Elephant Project

छत्तीसगढ़ में लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट पर बहस छिड़ गई है. इस मामले में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने प्रदेश सरकार व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर गंभीर आरोप लगाए हैं. क्या है लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट, विस्तार से पढ़िए.

questions raised on the Lemru Elephant project
लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट
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Published : Jul 19, 2021, 8:21 PM IST

सरगुजा: जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े कर एक बार फिर बहस छेड़ दी है. अमित ने लेमरू प्रोजेक्ट को प्रदेश के इतिहास का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार बताया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2019 को हाथियों के लिए एक बड़ी परियोजना लेमरू एलीफेंट रिजर्व शुरू किए जाने का ऐलान किया था. इस प्रस्तावित एलीफेंट कॉरिडोर में 4 वनमंडल के 12 रेंज शामिल किए गए थे, जिनमें धरमजयगढ़, कोरबा, कटघोरा और सरगुजा क्षेत्र शामिल हैं. इसके तहत परिक्षेत्रों को मिलाकर करीब 450 वर्ग किलोमीटर घनघोर जंगल वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलीफेंट रिजर्व बनेगा.

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राहुल गांधी

2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी लेमरू क्षेत्र में पहुंचे थे. मोहनपुर और कुदमुरा में ग्रामीणों संग जन सभा की थी और कई वादे किए थे. तब तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल उनके पीछे खड़े थे राहुल गांधी ने लोगों से कहा था कि 'ये जंगल आपका जंगल है, आपकी जिंदगी इस जंगल में मिली हुई है.

राहुल गांधी ने कहा था कि अगर ये जंगल खत्म हो जाएगा, आप खत्म हो जाओगे. मैं आपको यहां ये कहना चाहता हूं कि इस लड़ाई में कांग्रेस पार्टी और मैं आपके साथ खड़े हुए हैं. हमारा सिर्फ एक कहना है हम भी विकास चाहते हैं. मगर उस विकास में आपके बारे में भी सोचना हैय आदिवासियों के बारे में भी सोचना है. जंगल, जल के बारे में भी सोचना है और आपके जीवन के बारे में भी सोचना है.' अब सवाल यह उठ रहे हैं कि कांग्रेस सरकार में उस क्षेत्र में कॉल ब्लाक आबंटन कैसे किया जा रहा है. ?

कैबिनेट में हुआ निर्णय

लेमरू एलीफेंट रिजर्व के लिए वर्ष वर्ष 2011 में सरगुजा, जशपुर हाथी रिजर्व 1143.34 वर्ग किलोमीटर में बनाने अधिसूचना जारी हुई. लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया. वर्तमान सरकार कैबिनेट में इस प्रस्ताव को लाई और वर्ष 2019 में 1995.48 वर्ग किलोमीटर लेमरू हाथी रिजर्व गठित करने का निर्णय लिया गया. इस दौरान सुझाव यह भी आया की हसदेव नदी और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए इसका क्षेत्र बढ़ाकर 3827.64 वर्ग किलोमीटर किया जाए.

questions raised on the Lemru Elephant project
आदेश की कॉपी

अपने ही फैसले पर बदली सरकार

इधर 26 जून को वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अवर सचिव ने पीसीसीएफ को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि विधायकगण चक्रधर सिंह सिदार, (लैलुंगा), गुलाब कमरो (भरतपुर-सोनहत), डॉ. विनय जायसवाल (मनेन्द्रगढ़), प्रीतम राम (लुण्ड्रा), पुरुषोत्तम कंवर (कटघोरा), यू.डी. मिंज (कुनकुरी), मोहित राम (कोरबा) एवं मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने जनभावनाओं के अनुरूप लेमरू हाथी रिजर्व का क्षेत्र 450 वर्ग कि.मी. तक सीमित रखने का अनुरोध किया है.

विधायकों के अलावा प्रस्तावित लैमरू हाथी रिजर्व क्षेत्र अनेक ग्राम पंचायतों द्वारा भी लैमरू हाथी रिजर्व का क्षेत्र सीमित रखने का अनुरोध किया गया है. ग्रामीणों को यह आशंका है कि हाथी के क्षेत्र विस्तार से उनकी आजीविका बाधित होगी. विभागीय प्रस्ताव के अनुरूप लेमरू हाथी रिजर्व की सीमा 1995.48 वर्ग कि.मी. से कम कर 450 वर्ग कि.मी. किए जाने और रिजर्व की सीमाओं के निर्धारण के विषय पर निर्णय हेतु प्रकरण मंत्रि-परिषद के समक्ष रखा जाए.

रिजर्व का एरिया घटाकर खदान खोलने की कवायद

मतलब अब लेमरू एलीफेंट रिजर्व से हाथियों को भी खदेड़ने की तैयारी है. रिजर्व का हिस्सा छोटा करने से हाथियों के रहवास नहीं बचेंगे और ऐसे में हाथी शहरों का रुख करेंगे. फिर मनुष्य और हाथियों के बीच संघर्ष होगा. इस क्षेत्र में पहले से ही परसा ईस्ट, बासेन जैसी परियोजनाएं चल रही हैं. अब फारेस्ट लैंड में ही परसा कोल ब्लॉक, केते एक्सटेंसन, पतुरीया गिधमोड़ी और मदनपुर में कॉल ब्लाक प्रस्तावित है. इसमे कई काम प्रगति पर हैं. अब आरोप सरकार पर लग रहे हैं कि सरकार लेमरू एलीफेंट रिजर्व का एरिया घटाकर यहां खदान खोलना चाहती है क्योंकि रिजर्व फॉरेस्ट में खदान खोलना संभव नहीं इसलिए रिजर्व का एरिया ही कम करने की कवायद की जा रही है.

रिजर्व एरिया बनने से ग्रामीणों का विरोध

वहीं इस मामले मे जहां कॉरपोरेट से जंगल और हाथियों को बचाने एलीफेंट रिजर्व फारेस्ट बनाने बनाने की मशक्कत चल रही है, तो वहीं रिजर्व क्षेत्र में बसे ग्रामीण अनजाने में ऐसा विरोध कर रहे हैं जो उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. ग्रामीण जिन क्षेत्रों में बसे हैं, वो वहां से विस्थापित नहीं होना चाहते हैं. रिजर्व का एरिया घटाने की मांग कर रहे हैं, इससे कॉल ब्लाक की मंजूरी इस क्षेत्र में मिल सकती है.

सिंहदेव ने कहा था ना खदान खुले ना बसाहट प्रभावित हो

उदयपुर क्षेत्र में प्रस्तावित लेमरू प्रोजेक्ट को लेकर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर को पत्र लिखा था. मंत्री सिंहदेव ने कहा था कि ग्रामीण लेमरू प्रोजेक्ट व कोयला खदान के पक्ष में नहीं है. जब तक ग्रामीणों एवं ग्राम सभा की सहमति ना हो तब तक इस प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जाए. उदयपुर क्षेत्र में चल रहे लेमरू प्रोजेक्ट को लेकर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री पूर्व से ही पक्ष में नहीं है. इसके पूर्व भी उन्होंने लेमरू प्रोजेक्ट को लेकर चल रहे सर्वे कार्य को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी.

इस लेमरू प्रोजेक्ट में उयदपुर क्षेत्र के 38 और लखनपुर क्षेत्र में 14 गांव के प्रभावित होने की संभावना है. पूर्व में लेमरू प्रोजेक्ट 450 वर्ग किलोमीटर में बनना था लेकिन अब इसे 4 हजार वर्ग किमी में फैलाने की प्रक्रिया चल रही है. इसे लेकर स्वास्थ्य मंत्री ने वन मंत्री मोहम्मद अकबर से भी बात की थी. स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर संजीव झा को पत्र लिखा. अपने पत्र में मंत्री सिंहदेव ने बताया है कि शासन द्वारा प्रस्तावित लेमरू हाथी प्रोजेक्ट में विकासखंड उदयपुर के कई ग्राम पंचायतें आ रही हैं. इस पर कई ग्रामीणों से मंत्री सिंहदेव ने भी बात की है और अधिकतर लोग इस प्रोजेक्ट के पक्ष में नहीं है. वहीं अधिकांश ग्राम पंचायतों ने इस संबंध में ग्राम सभा आयोजित कर लेमरू हाथी प्रोजेक्ट नहीं खोलने के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया है. ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायतों की मांग पर विचार किया जाना चाहिए.

उन्होंने बताया कि ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र में भविष्य में कोयला खदान भी ना खोली जाए. इस पर ग्राम पंचायत की सहमति ली जाए और तब तक लेमरू हाथी प्रोजेक्ट व कोयला खदान खोलने की कोई कार्रवाई नहीं की जाए जब तक ग्रामीणों एवं ग्राम पंचायत की सहमति ना हो. उन्होंने बताया कि यह अनुसूचित क्षेत्र है और सरकार द्वारा भी पेशा कानून लागू किए जाने की प्रक्रिया चल रही है. ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायत एवं आमजनों की सहमति लिए बिना लेमरू हाथी प्रोजेक्ट के पंचायतों को शामिल करना जनहित में नहीं होगा. आम जनों की सहमति एवं उन्हें विश्वास में लेना जरूरी है.

खदान खोलने ग्रामीणों का विरोध

सरगुजा में पहले से चल रही खदानों को सार्वजनिक उपक्रम राजस्थान राज्य विद्धुत निगम को दिया गया है. लेकिन अदानी ने यह काम एमडीयू के माध्यम से ले लिया है और प्रस्तावित कोयला खदानों का ग्रामीण विरोध कर रहे हैं. लंबे समय से ग्रामीण खदानों के विरोध में अलग-अलग तरह से प्रदर्शन करते रहे हैं. हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने भी ग्रामीणों के साथ एक लंबा धारना प्रदर्शन इस क्षेत्र में किया है. ग्रामीण नहीं चाहते कि किसी भी तरह के दबाव और कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर यहां कोयले की खदाने खोल दी जाएं.

राहुल गांधी ने आदिवासियों से किया था वादा: आलोक शुक्ला

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के आलोक आलोक शुक्ला ने कहा है कि राहुल गांधी ने आदिवासियों से वादा किया था की वो उनके साथ हैं. उनके अधिकारों का हनन नहीं होने देंगे. लेकिन ये अब हसदेव जैसे समृद्ध जंगल मे खदान खोल कर उसे उजाड़ने की कवायद कर रहे हैं. ये आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है. अब तो सरकार इस जंगल से हाथियों को भी बेदखल करने का काम कर रही है.

अमित जोगी ने लगाए आरोप

इस मामले में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने प्रदेश सरकार व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने इसे मुख्यमंत्री का पेंशन प्लान बताया है. जोगी ने कहा कि यह प्रदेश के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है. इसको मैं ABC डील बोलता हू. 14 जून 2019 को छत्तीसगढ़ भवन में मुख्यमंत्री कक्ष के अंदर 2 घंटे बैठकें चली, जिसका ऑफीशियल रिकॉर्ड नहीं मिलता. शासकीय अवकाश के दिन वन विभाग का दफ्तर खुला. यहां प्रदेश के सीसीएफ ने एक आदेश जारी किया. जिसमें प्रोजक्ट की भूमि सीमा को 4 हजार स्क्वॉयर फीट किलोमीटर की जगह 4 सौ स्क्वायर फीट किलोमीटर कर दिया गया. पिछले वर्ष 27 अगस्त को कैबिनेट में फैसला हुआ था कि लेमरू के फेस वन के विकास के लिए 1 हजार 995 स्क्वॉयर फीट जमीन रहेगी और उसके लिए राशि भी स्वीकृत की गई थी. लेकिन अब बैक डोर से कोल ब्लॉक का आबंटन अडानी को दिया जा रहा है. इस क्षेत्र में पेसा कानून की जगह कोल बैरिंग एक्ट लागू किया जा रहा है और ये सब 3 दिन के अंदर किया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि 31 जुलाई 2021 तक 6 खदानें अडानी को दे दी जाए वो भी बिल्कुल मुफ्त बिना किसी राशि के. लगभग 4 लाख करोड़ रुपये का हमारे प्रदेश का कोयला ये बिना एक रुपये लगाए ले जाएंगे.

जोगी ने कहा कि कोल ब्लॉक का आबंटन शासकीय कंपनियों को दिया जा रहा है, लेकिन बैक डोर से काम अडानी का होगा. भूपेश बघेल ने भी 2018 में में यह स्वीकारा था, इन्होंने कहा कि 7 विधायकों ने लिखित समर्थन दिया है, जबकि इन विधायकों का लेमरू क्षेत्र से कोई वास्ता नहीं है. सिर्फ टी एस सिंहदेव हैं जिन्होंने 3 बार इनकार किया है की वो इसके पक्ष में नही हैं.

क्या है पेसा कानून ?

भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन में देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी. लेकिन यह महसूस किया गया कि इसके प्रावधानों में अनुसूचित क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया है. इस कमी को पूरा करने के लिए संविधान के भाग 9 के अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के लिए पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम 1996 बनाया गया जिसे 24 दिसम्बर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया. यह कानून पेसा के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि अंग्रेजी में इस कानून का नाम प्रोविजन आफ पंचायत एक्टेशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट 1996 है.

क्या है कोल बेरिंग एक्ट ?

कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 8 जून, 1957 भारत के आर्थिक हित में कोयला खान उद्योग और उसके विकास पर व्यापक लोक नियंत्रण स्थापित करने के लिए ऐसी भूमि का जिसकी खुदाई न हुई हो या जिसमें जिस पर कोयला भण्डार पाए जाने की संभावना हो या उसमें या उस पर अधिकारों का राज्य द्वारा अर्जन करने के लिए, किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के आधार पर या अन्यथा प्रोद्भूत ऐसे अधिकारों के निर्वापनया उपान्तरण के लिए और उससे संबंधित विषयों का उपबंध करने के लिए बनाया गया अधिनियम, कोल बेरिंग एक्ट के पूरे प्रोविजन काफी बड़े है जिसमे कोयला धारकों को ताकत प्रदान की गई है.

सरगुजा: जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े कर एक बार फिर बहस छेड़ दी है. अमित ने लेमरू प्रोजेक्ट को प्रदेश के इतिहास का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार बताया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2019 को हाथियों के लिए एक बड़ी परियोजना लेमरू एलीफेंट रिजर्व शुरू किए जाने का ऐलान किया था. इस प्रस्तावित एलीफेंट कॉरिडोर में 4 वनमंडल के 12 रेंज शामिल किए गए थे, जिनमें धरमजयगढ़, कोरबा, कटघोरा और सरगुजा क्षेत्र शामिल हैं. इसके तहत परिक्षेत्रों को मिलाकर करीब 450 वर्ग किलोमीटर घनघोर जंगल वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलीफेंट रिजर्व बनेगा.

questions raised on the Lemru Elephant project
राहुल गांधी

2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी लेमरू क्षेत्र में पहुंचे थे. मोहनपुर और कुदमुरा में ग्रामीणों संग जन सभा की थी और कई वादे किए थे. तब तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल उनके पीछे खड़े थे राहुल गांधी ने लोगों से कहा था कि 'ये जंगल आपका जंगल है, आपकी जिंदगी इस जंगल में मिली हुई है.

राहुल गांधी ने कहा था कि अगर ये जंगल खत्म हो जाएगा, आप खत्म हो जाओगे. मैं आपको यहां ये कहना चाहता हूं कि इस लड़ाई में कांग्रेस पार्टी और मैं आपके साथ खड़े हुए हैं. हमारा सिर्फ एक कहना है हम भी विकास चाहते हैं. मगर उस विकास में आपके बारे में भी सोचना हैय आदिवासियों के बारे में भी सोचना है. जंगल, जल के बारे में भी सोचना है और आपके जीवन के बारे में भी सोचना है.' अब सवाल यह उठ रहे हैं कि कांग्रेस सरकार में उस क्षेत्र में कॉल ब्लाक आबंटन कैसे किया जा रहा है. ?

कैबिनेट में हुआ निर्णय

लेमरू एलीफेंट रिजर्व के लिए वर्ष वर्ष 2011 में सरगुजा, जशपुर हाथी रिजर्व 1143.34 वर्ग किलोमीटर में बनाने अधिसूचना जारी हुई. लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया. वर्तमान सरकार कैबिनेट में इस प्रस्ताव को लाई और वर्ष 2019 में 1995.48 वर्ग किलोमीटर लेमरू हाथी रिजर्व गठित करने का निर्णय लिया गया. इस दौरान सुझाव यह भी आया की हसदेव नदी और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए इसका क्षेत्र बढ़ाकर 3827.64 वर्ग किलोमीटर किया जाए.

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आदेश की कॉपी

अपने ही फैसले पर बदली सरकार

इधर 26 जून को वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अवर सचिव ने पीसीसीएफ को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि विधायकगण चक्रधर सिंह सिदार, (लैलुंगा), गुलाब कमरो (भरतपुर-सोनहत), डॉ. विनय जायसवाल (मनेन्द्रगढ़), प्रीतम राम (लुण्ड्रा), पुरुषोत्तम कंवर (कटघोरा), यू.डी. मिंज (कुनकुरी), मोहित राम (कोरबा) एवं मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने जनभावनाओं के अनुरूप लेमरू हाथी रिजर्व का क्षेत्र 450 वर्ग कि.मी. तक सीमित रखने का अनुरोध किया है.

विधायकों के अलावा प्रस्तावित लैमरू हाथी रिजर्व क्षेत्र अनेक ग्राम पंचायतों द्वारा भी लैमरू हाथी रिजर्व का क्षेत्र सीमित रखने का अनुरोध किया गया है. ग्रामीणों को यह आशंका है कि हाथी के क्षेत्र विस्तार से उनकी आजीविका बाधित होगी. विभागीय प्रस्ताव के अनुरूप लेमरू हाथी रिजर्व की सीमा 1995.48 वर्ग कि.मी. से कम कर 450 वर्ग कि.मी. किए जाने और रिजर्व की सीमाओं के निर्धारण के विषय पर निर्णय हेतु प्रकरण मंत्रि-परिषद के समक्ष रखा जाए.

रिजर्व का एरिया घटाकर खदान खोलने की कवायद

मतलब अब लेमरू एलीफेंट रिजर्व से हाथियों को भी खदेड़ने की तैयारी है. रिजर्व का हिस्सा छोटा करने से हाथियों के रहवास नहीं बचेंगे और ऐसे में हाथी शहरों का रुख करेंगे. फिर मनुष्य और हाथियों के बीच संघर्ष होगा. इस क्षेत्र में पहले से ही परसा ईस्ट, बासेन जैसी परियोजनाएं चल रही हैं. अब फारेस्ट लैंड में ही परसा कोल ब्लॉक, केते एक्सटेंसन, पतुरीया गिधमोड़ी और मदनपुर में कॉल ब्लाक प्रस्तावित है. इसमे कई काम प्रगति पर हैं. अब आरोप सरकार पर लग रहे हैं कि सरकार लेमरू एलीफेंट रिजर्व का एरिया घटाकर यहां खदान खोलना चाहती है क्योंकि रिजर्व फॉरेस्ट में खदान खोलना संभव नहीं इसलिए रिजर्व का एरिया ही कम करने की कवायद की जा रही है.

रिजर्व एरिया बनने से ग्रामीणों का विरोध

वहीं इस मामले मे जहां कॉरपोरेट से जंगल और हाथियों को बचाने एलीफेंट रिजर्व फारेस्ट बनाने बनाने की मशक्कत चल रही है, तो वहीं रिजर्व क्षेत्र में बसे ग्रामीण अनजाने में ऐसा विरोध कर रहे हैं जो उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. ग्रामीण जिन क्षेत्रों में बसे हैं, वो वहां से विस्थापित नहीं होना चाहते हैं. रिजर्व का एरिया घटाने की मांग कर रहे हैं, इससे कॉल ब्लाक की मंजूरी इस क्षेत्र में मिल सकती है.

सिंहदेव ने कहा था ना खदान खुले ना बसाहट प्रभावित हो

उदयपुर क्षेत्र में प्रस्तावित लेमरू प्रोजेक्ट को लेकर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर को पत्र लिखा था. मंत्री सिंहदेव ने कहा था कि ग्रामीण लेमरू प्रोजेक्ट व कोयला खदान के पक्ष में नहीं है. जब तक ग्रामीणों एवं ग्राम सभा की सहमति ना हो तब तक इस प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जाए. उदयपुर क्षेत्र में चल रहे लेमरू प्रोजेक्ट को लेकर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री पूर्व से ही पक्ष में नहीं है. इसके पूर्व भी उन्होंने लेमरू प्रोजेक्ट को लेकर चल रहे सर्वे कार्य को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी.

इस लेमरू प्रोजेक्ट में उयदपुर क्षेत्र के 38 और लखनपुर क्षेत्र में 14 गांव के प्रभावित होने की संभावना है. पूर्व में लेमरू प्रोजेक्ट 450 वर्ग किलोमीटर में बनना था लेकिन अब इसे 4 हजार वर्ग किमी में फैलाने की प्रक्रिया चल रही है. इसे लेकर स्वास्थ्य मंत्री ने वन मंत्री मोहम्मद अकबर से भी बात की थी. स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर संजीव झा को पत्र लिखा. अपने पत्र में मंत्री सिंहदेव ने बताया है कि शासन द्वारा प्रस्तावित लेमरू हाथी प्रोजेक्ट में विकासखंड उदयपुर के कई ग्राम पंचायतें आ रही हैं. इस पर कई ग्रामीणों से मंत्री सिंहदेव ने भी बात की है और अधिकतर लोग इस प्रोजेक्ट के पक्ष में नहीं है. वहीं अधिकांश ग्राम पंचायतों ने इस संबंध में ग्राम सभा आयोजित कर लेमरू हाथी प्रोजेक्ट नहीं खोलने के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया है. ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायतों की मांग पर विचार किया जाना चाहिए.

उन्होंने बताया कि ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र में भविष्य में कोयला खदान भी ना खोली जाए. इस पर ग्राम पंचायत की सहमति ली जाए और तब तक लेमरू हाथी प्रोजेक्ट व कोयला खदान खोलने की कोई कार्रवाई नहीं की जाए जब तक ग्रामीणों एवं ग्राम पंचायत की सहमति ना हो. उन्होंने बताया कि यह अनुसूचित क्षेत्र है और सरकार द्वारा भी पेशा कानून लागू किए जाने की प्रक्रिया चल रही है. ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायत एवं आमजनों की सहमति लिए बिना लेमरू हाथी प्रोजेक्ट के पंचायतों को शामिल करना जनहित में नहीं होगा. आम जनों की सहमति एवं उन्हें विश्वास में लेना जरूरी है.

खदान खोलने ग्रामीणों का विरोध

सरगुजा में पहले से चल रही खदानों को सार्वजनिक उपक्रम राजस्थान राज्य विद्धुत निगम को दिया गया है. लेकिन अदानी ने यह काम एमडीयू के माध्यम से ले लिया है और प्रस्तावित कोयला खदानों का ग्रामीण विरोध कर रहे हैं. लंबे समय से ग्रामीण खदानों के विरोध में अलग-अलग तरह से प्रदर्शन करते रहे हैं. हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने भी ग्रामीणों के साथ एक लंबा धारना प्रदर्शन इस क्षेत्र में किया है. ग्रामीण नहीं चाहते कि किसी भी तरह के दबाव और कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर यहां कोयले की खदाने खोल दी जाएं.

राहुल गांधी ने आदिवासियों से किया था वादा: आलोक शुक्ला

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के आलोक आलोक शुक्ला ने कहा है कि राहुल गांधी ने आदिवासियों से वादा किया था की वो उनके साथ हैं. उनके अधिकारों का हनन नहीं होने देंगे. लेकिन ये अब हसदेव जैसे समृद्ध जंगल मे खदान खोल कर उसे उजाड़ने की कवायद कर रहे हैं. ये आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है. अब तो सरकार इस जंगल से हाथियों को भी बेदखल करने का काम कर रही है.

अमित जोगी ने लगाए आरोप

इस मामले में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने प्रदेश सरकार व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने इसे मुख्यमंत्री का पेंशन प्लान बताया है. जोगी ने कहा कि यह प्रदेश के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है. इसको मैं ABC डील बोलता हू. 14 जून 2019 को छत्तीसगढ़ भवन में मुख्यमंत्री कक्ष के अंदर 2 घंटे बैठकें चली, जिसका ऑफीशियल रिकॉर्ड नहीं मिलता. शासकीय अवकाश के दिन वन विभाग का दफ्तर खुला. यहां प्रदेश के सीसीएफ ने एक आदेश जारी किया. जिसमें प्रोजक्ट की भूमि सीमा को 4 हजार स्क्वॉयर फीट किलोमीटर की जगह 4 सौ स्क्वायर फीट किलोमीटर कर दिया गया. पिछले वर्ष 27 अगस्त को कैबिनेट में फैसला हुआ था कि लेमरू के फेस वन के विकास के लिए 1 हजार 995 स्क्वॉयर फीट जमीन रहेगी और उसके लिए राशि भी स्वीकृत की गई थी. लेकिन अब बैक डोर से कोल ब्लॉक का आबंटन अडानी को दिया जा रहा है. इस क्षेत्र में पेसा कानून की जगह कोल बैरिंग एक्ट लागू किया जा रहा है और ये सब 3 दिन के अंदर किया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि 31 जुलाई 2021 तक 6 खदानें अडानी को दे दी जाए वो भी बिल्कुल मुफ्त बिना किसी राशि के. लगभग 4 लाख करोड़ रुपये का हमारे प्रदेश का कोयला ये बिना एक रुपये लगाए ले जाएंगे.

जोगी ने कहा कि कोल ब्लॉक का आबंटन शासकीय कंपनियों को दिया जा रहा है, लेकिन बैक डोर से काम अडानी का होगा. भूपेश बघेल ने भी 2018 में में यह स्वीकारा था, इन्होंने कहा कि 7 विधायकों ने लिखित समर्थन दिया है, जबकि इन विधायकों का लेमरू क्षेत्र से कोई वास्ता नहीं है. सिर्फ टी एस सिंहदेव हैं जिन्होंने 3 बार इनकार किया है की वो इसके पक्ष में नही हैं.

क्या है पेसा कानून ?

भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन में देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी. लेकिन यह महसूस किया गया कि इसके प्रावधानों में अनुसूचित क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया है. इस कमी को पूरा करने के लिए संविधान के भाग 9 के अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के लिए पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम 1996 बनाया गया जिसे 24 दिसम्बर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया. यह कानून पेसा के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि अंग्रेजी में इस कानून का नाम प्रोविजन आफ पंचायत एक्टेशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट 1996 है.

क्या है कोल बेरिंग एक्ट ?

कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 8 जून, 1957 भारत के आर्थिक हित में कोयला खान उद्योग और उसके विकास पर व्यापक लोक नियंत्रण स्थापित करने के लिए ऐसी भूमि का जिसकी खुदाई न हुई हो या जिसमें जिस पर कोयला भण्डार पाए जाने की संभावना हो या उसमें या उस पर अधिकारों का राज्य द्वारा अर्जन करने के लिए, किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के आधार पर या अन्यथा प्रोद्भूत ऐसे अधिकारों के निर्वापनया उपान्तरण के लिए और उससे संबंधित विषयों का उपबंध करने के लिए बनाया गया अधिनियम, कोल बेरिंग एक्ट के पूरे प्रोविजन काफी बड़े है जिसमे कोयला धारकों को ताकत प्रदान की गई है.

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