सरगुजा: केंद्र सरकार गंगा को बचाने के लिये 'नमामि गंगे प्रोजेक्ट' के तहत काम कर रही है. इसके तहत ना सिर्फ गंगा नदी को ही साफ रखना है बल्कि उन शहरों की छोटी नदियों को भी साफ रखना है. जो गंगा बेसिन में शामिल हैं. उनमें से एक शहर अंबिकापुर भी है. जहां नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत एनजीटी की गाइडलाइन (Guidelines of NGT under Namami Gange Project) का पालन सख्ती से किया जाना है. ETV भारत ने अंबिकापुर में स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission in Ambikapur) के जानकार रितेश सैनी से बातचीत की और इस दिशा में किये गये प्रयासों की जानकारी ली.
गंगा बेसिन के नियम (Ganga Basin)
गंगा बेसिन के नियम के तहत इसमें शामिल शहरों को पानी का बेहतर प्रबंधन करना है. इसके तहत नालियों के पानी का ट्रीटमेंट, सीवरेज का ट्रीटमेंट और उसके पानी का रीयूज, नदियों में केमिकल्स जाने से रोकना है. इसके साथ ही ऐसे शहरों में जल संवर्धन पर भी ज्यादा ध्यान देना है. जैसे रेन वाटर हार्वेस्टिंग, जल के प्राकृतिक साधनों का संरक्षण, तालाब, कुंओं का संरक्षण व संवर्धन किया जाना है. अंबिकापुर शहर का पानी भी गंगा बेसिन में जाता है. यहां के छोटे-छोटे नाले पहले छोटी नदी का रूप लेते हैं और फिर उत्तर प्रदेश की रिहंद नदी में मिलते हैं.रिहंद का पानी सोन नदी से होते हुए गंगा में मिलता है. इसलिए इस जिले को गंगा बेसिन में शामिल किया गया है.
FSTP से सेप्टिक के मलबे का ट्रीटमेंट
अंबिकापुर नगर निगम एनजीटी के नियमों का पालन कर रहा है. यहां 5 साल पहले ही एफएसटीपी प्लांट लगा लिया गया है. जिसमे शहर के घरों के सेप्टिक टैंक से निकलने वाले मलबे का ट्रीटमेंट किया जाता है. उससे निकलने वाले साफ पानी का रीयूज गार्डन की सिंचाई या कंस्ट्रक्शन वर्क में किया जाता है. अंबिकापुर की एफएसटीपी यूनिट मलबे को फिल्टर कर साफ पानी देती है. इस यूनिट की विशेषता ये है कि फिल्टरेशन के बाद एक भी स्लज इस मशीन में नहीं बचता है.
नालियों के पानी का प्राकृतिक ट्रीटमेंट
शहर की नालियों के पानी को भी काफी हद तक साफ कर दिया जाता है. इसके बाद ही यह पानी बड़े नालों से होकर नदियों में जाता है. दरअसल शहर का ज्यादातर नालियों का पानी मरीन व दूसरे तालाबों में जमा होता है. ऐसे तालाब जहां नालियों का पानी पहुंचता है. वहां नगर निगम ने 2019 में विशेषज्ञों की मदद से ऐसा सिस्टम बनाया जो नालियों के पानी को कई चरणों मे साफ करता है. जैसे जैसे पानी आगे बहता है वो क्रमशः साफ होता जाता है. इस कड़ी में सबसे पहले दलदल में कुछ ऐसे प्लांट लगाए गए हैं. जो पानी को साफ करते हैं. इसके बाद पत्थरों के अलग अलग साइज के अवरोध बनाकर पानी को साफ किया जाता है. इस प्रक्रिया के बाद पानी तालाब में पहुंचता है. जिसमे बतख रखी जाती हैं. बतख भी पानी को साफ रखने में बड़ी सहायक होती हैं. इसके बाद इस तालाब में वाटर फाउंटेन लगाया गया है. इसके माध्यम से भी फाउंटेन से वापस गिरने वाली बूंदे आक्सीजन जनरेशन के माध्यम से इस जल को साफ करती है.
अंडर ग्राउंड सीवरेज सिस्टम
नगर निगम ने सभी कॉलोनियों में अंडर ग्राउंड सीवरेज सिस्टम और एसटीपी (सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान )प्लांट की अनिवार्यता कर रखी है. बिना एसटीपी प्लांट के निर्माण की अनुमति नगर निगम नहीं देता है. इस लिहाज से अंबिकापुर शहर में कई बड़ी कॉलोनियों में एफटीपी प्लांट के जरिये पानी को फिल्टर कर उसका रियूज किया जा रहा है. पानी साफ होने के बाद ही उसे नगर निगम के नाले तक छोड़ा जाता है. कई कालोनियों में यह प्लांट चालू हैं. कुछ निर्माणाधीन कालोनियों में काम चल रहे हैं. स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छता सर्वेक्षण में मिलने वाले अंकों में भी ये सारे नियम शामिल हैं. अंबिकापुर नगर निगम क्षेत्र में 15 एमएलडी क्षमता से ज्यादा का सीवरेज ट्रीटमेंट सिस्टम मौजूद है. जो यहां की आबादी के हिसाब से फिलहाल पर्याप्त है.
जल संवर्धन में काम
जल संवर्धन की दिशा में अंबिकापुर नगर निगम ने खूब प्रयास किये हैं. जल के पुराने श्रोत को साफ किया है. शहर के सभी तालाबों को साफ कर उसमें ब्यूटीफिकेशन प्वाइंट बना दिया है. कभी बदबू देने वाले तालाब आज साफ सुथरे और गार्डन में बदल चुके हैं. तालाबों और नदियों में लोग कचरा ना फेंके इसके लिए किनारे बड़े-बड़े घड़े रखे गए हैं. ताकि कचरे का रीयूज हो सके और जल स्रोत साफ रहे.
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ज्यादातर घरों में नहीं है रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
लेकिन अब भी अंबिकापुर नगर निगम नल संवर्धन के एक काम में कुछ ज्यादा सफलता नहीं प्राप्त कर सका है. रेन वाटर हार्वेस्टिंग में अंबिकापुर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. साल 2018 में इसके लिए नगर निगम ने मिशन मूड में मुहिम छेड़ी थी लेकिन अधिकारियों के ट्रांसफर के बाद वो भी ठंडे बस्ते में चली गई. नगर निगम क्षेत्र में बिना रेन वाटर हार्वेस्टिंग के भवन निर्माण हो ही नहीं सकता. भवन अनुज्ञा के लिए हार्वेस्टिंग बनाने की राशि भी नगर निगम में घर स्वामी को जमा करनी होती है. लेकिन बावजूद इसके लोग वर्षा के जल के लिए सोकपिट नहीं बनवाते हैं. नगर निगम के पास हर घर का पैसा जमा होता है. नियत समय में अगर घर का मालिक वाटर हार्वेस्टिंग खुद से बनवा लेता है तो नगर निगम राशि वापस कर देती है. नहीं बनवाने की शर्त पर राशि राजसात कर दी जाती है. अब उस राशि के एवज में नगर निगम को संबंधित घर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग बनवाना होता है. लेकिन अब भी जिले के ज्यादतर घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं है.
जागरूकता की जरूरत
स्वच्छ भारत मिशन व शहरी विकास मंत्रालय की तरफ से नगरीय निकायों को समय-समय पर नियमों की जानकारी दी जाती है. लेकिन स्थिति देखकर लगता नहीं कि बाकी के निकाय इस मामले में गंभीर हैं. या फिर उन्हें इस संवेदनशील मामले की जानकारी भी है या नही. गंगा जैसी बड़ी और पवित्र नदी को बचाने की इस मुहिम में गंगा बेसिन में शामिल निकायों को गंभीर होना होगा. आम लोगों को भी इसके प्रति जागरूक होने की जरूरत है. क्योंकि गंगा को बचाकर आप और हम अपने ही भविष्य को बचायेंगे. जल संवर्धन किसी नदी के नाम के लिए नहीं बल्कि इंसान की जिंदगी के लिये जरूरी है. लिहाजा निकाय तो अपना काम कर ही लेगी. जरूरत है आम लोगों को वाटर हार्वेस्टिंग जैसे मसलों को समझकर उसकी अनिवार्यता को समझने की.