नई दिल्ली : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी बढ़ोतरी का ऐलान किया है. इससे मुख्य नीतिगत दर बढ़कर 6.50 प्रतिशत हो गई है. सामान्यत: आरबीआई द्वारा रेपो रेट बढ़ाने से बैंक लोन महंगा हो जाता है. यानी होम लोन, कार लोन और अन्य लोन पर EMI ज्यादा देनी पड़ती है. इससे आपकी EMI कितनी महंगी होगी और आपके बजट पर कितना असर पड़ेगा, आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में. हम एक उदाहरण से ही इसे समझ लेते हैं, किस तरह से आपका लोन पहले के मुकाबले महंगा हुआ है.
आपकी जेब पर कितना पड़ेगा असर, समझें - मान लीजिए कि आपने 20 साल के लिए 30 लाख रु. का लोन लिया है. इसका मतलब यह हुआ कि आपको अगले 20 सालों में मूलधन और ब्याज दोनों चुकाने हैं. मान लेते हैं कि मई 2022 में हमने यह लोन लिया था. उस समय होम लोन पर ब्याज दर 6.7 फीसदी था (अलग-अलग बैंकों की अलग-अलग दरें होती हैं). यानी उस समय ब्याज की रकम 22,272 रुपये थी. इसे ही ईएमआई कहते हैं.
आज की तारीख में होम लोन पर ब्याज की दर बढ़ते-बढ़ते 9.2 फीसदी के आसपास हो चुकी है. इस दर पर ब्याज की गणना करेंगे, तो यह रकम 27,339 रुपये हो जाएगी. यानी 4657 रुपये प्रति माह ज्यादा चुकाने होंगे. इस तरह से एक साल में आपको करीब-करीब 52-53 हजार रुपये अधिक चुकाने होंगे. जाहिर है, इसे किस तरह से आप बैलेंस करेंगे, यह बहुत बड़ी चुनौती है. या तो आपको अपनी आमदनी बढ़ानी होगी, या फिर खर्च में कटौती करनी पड़ेगी या फिर आपकी सैलरी उतनी बढ़ जाए. पर, वास्तविकता यही है कि आपका इनमें से किसी भी फैक्टर पर वश नहीं है.
इसे दूसरे उदाहरण से समझें- मान लीजिए 2023 में आपने 25 लाख रुपये का होम लोन 20 साल के लिए लिया है, जिस पर 9.2 फीसदी की ब्याज दर है. इसके चलते आपकी मासिक ईएमआई 22ं,816 रुपये बनेगी. लेकिन पुरानी दर पर इसे कैलकुलेट करें, यानी मई 2022 के रेट पर, तब आपका ईएमआई कम होता. मई 2022 में होम लोन की दर 6.7 प्रतिशत (औसत) था. इसके आधार पर हमारा ईएमआई 18,935 रुपये पड़ता. इसे अगर 8.70 प्रतिशत के दर पर कैलकुलेट करें, तो ईएमआई का अमाउंट 22,093 रुपये ही होता.
रेपो रेट बढ़ने पर क्या है समाधान - आम आदमी के परेशानी को समझते हुए ईटीवी भारत ने इसके समाधान के लिए SBI के रिटायर्ड अधिकारी व बैंक मामलों के जानकार वीके सिन्हा से बात की. उन्होंने बताया कि EMI के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए एक उपाय है लोन रिस्ट्रक्चर. लोन रिस्ट्रक्चर को एक्जाम्पल से समझें, कि आपने पांच साल पहले 25 लाख रुपए का लोन लिया था. EMI चुकाते- चुकाते अब वर्तमान में अब कुल 20 लाख अमाउंट बचा. अब बैंक से आप कहें कि आपका लोन रिस्ट्रक्चर करें. इसके बाद बैंक 20 लाख रुपए के हिसाब से नया EMI का कैलकुलेशन करेगा. इसका फायदा ये होगा कि पहले आप 25 लाख पर EMI चुकाते थे, लेकिन Loan Restructure के बाद 20 लाख रुपए पर ईएमआई चुकाना होगा. इसलिए समय-समय पर लोन रिस्ट्रक्चर करवाते रहना चाहिए.
EMI क्या है ? - EMI क्या होता है इस बार में बताते हुए वीके सिन्हा ने बताया कि EMI यानी Equated monthly installment. अगर इसे सरल भाषा में कहें तो ये समान मासिक किश्तें होती हैं, यानी किसी लोन को चुकाने या सामान को खरीदने पर जो समान मासिक किश्तों का भुगतान किया जाता है उसे हम EMI कहते हैं. उन्होंने आगे कहा कि जब आप EMI यानी मासिक किश्त चुकाते हैं, तो इसमें आपके मूल रूपये के अलावा ब्याज भी शामिल होता है यानी जो आपकी मासिक किश्त होती है उसमें ब्याज के रूपये भी जोड़ दिए जाते हैं.
रेपो रेट क्या है? - वीके सिन्हा ने रेपो रेट को समझाते हुए कहा कि यह वह ब्याज दर है, जिसपर कॉमर्शियल बैंक अपनी फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं. इसमें बढ़ोतरी का मतलब है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया जाने वाला कर्ज महंगा होगा और मौजूदा लोन की मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ेगी. संक्षेप में रेपो रेट को समझना चाहें तो कह सकते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जिस ब्याज दर पर कॉमर्शियल बैंकों को लोन दिया जाता है, उसे रेपो रेट कहते है.
रेपो रेट बढ़ाने से महंगाई कम कैसे होगी - रेपो रेट बढ़ाने से महंगाई कम कैसे होगी इस पर वीके सिन्हा ने बताया कि रेपो रेट बढ़ने से बैंक लोन महंगे होंगे, जिस वजह से लोग लोन कम लेते हैं यानी उनके पास कैश (लाईबलिटि) कम होता है. इस वजह से बाजार में तरलता कम हो जाती है. मुद्रा में तरलता कम होने से लोग खरीदारी कम करते हैं. कम खरीदारी से मांग कम होती है और कीमतें गिर जाती हैं. इस तरह रेपो रेट महंगाई नियंत्रित करने में मददगार होता है. इसके अलावा रेपो रेट GDP (Gross Domestic Product) को भी इंडिकेट करता है. ऐसे में बढ़ा हुए Repo Rate National Growth के लिए अच्छा इंडिकेटर होता है.
वीके सिन्हा ने आगे कहा, आरबीआई एक्ट 1934 (45 ZA) के अनुसार महंगाई की दर 4% तक करना अनिवार्य कर दिया गया है. लेकिन आरबीआई को थोड़ी रियायत देते हुए +2/-2 का टॉलरेंस बैंड दिया गया है. यानी महंगाई दर कुछ महीनों के लिए 2% या 6% तक हो सकता है. लेकिन लंबे समय तक महंगाई दर का बहुत कम या ज्यादा होना अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डालता है. ऐसे में महंगाई दर और आर्थिक वृद्धि दर में संतुलन बनाना आरबीआई के लिए एक चुनौती है.
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