गरियाबंद: कोरोना वायरस के खिलाफ चल रही जंग में पूरा देश एकजुट हो गया है. सभी घर पर ही रहकर लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान सरकार ने जरूरी वस्तुओं की दुकानों को खुला रखने का निर्देश जारी किया था, जिसके बाद से ही राशन,सब्जी और दूध-डेयरी जैसी दुकान संचालित हो रही हैं. बावजूद इसके ऐसे कई छोटे व्यवसायी हैं, जिन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. कहने को तो इन्हें लॉकडाउन में छूट मिली हुई है फिर भी इनका व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हो रहा है.
हम बात कर रहे हैं डेयरी संचालित करने वाले ऐसे व्यवसायियों की, जिन्हें अपने साथ-साथ पशुओं का भी ख्याल रखना होता है. इनकी ही तरह किसान भी खासे परेशान हैं इन्हें जल्द होने वाली फसल कटाई की चिंता सता रही है. ETV भारत ने ऐसे ही दो भाइयों से बात की जिनमें से एक डेयरी संचालक है और दूसरा किसान.
लॉकडाउन की मार झेल रहा परिवार
गरियाबंद के आमंदी गांव में रहने वाला एक परिवार लॉकडाउन की मार झेल रहा है. आवश्यक वस्तुओं में शामिल होने के बाद भी डेयरी संचालक को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है. डेयरी संचालक चुन्नीलाल भारती का कहना है कि उनका व्यापार पूरी तरह से ठप पड़ गया है. कई ग्राहकों ने कोरोना के डर से दूध लेना ही छोड़ दिया है. जो ग्राहक दूध ले रहे हैं वे दरवाजा नहीं खोलते बस बाहर रखकर जाने बोल देते हैं. दूध की डिलीवरी करने के समय कई बार तो पुलिस उन्हें सम्मान से जाने देती है और कई बार उन्हें वापस लौटना पड़ता है.
पशु आहार की भी बढ़ गई कीमत
डेयरी संचालक ने बताया कि गाय, भैंस को खिलाने वाले जिस पशु आहार की कीमत पहले एक हजार प्रति क्विंटल थी वही अब एक हजार 150 रुपए हो गई है. भैंस के चारा की मात्रा कम नहीं की जा सकती भले ही दूध की खपत कम हो जाए. कई लोगों ने दूध लेना बंद कर दिया है, इससे बचे हुए दूध को बछड़ों को पिला दिया जाता है. ऐसे में दूध की आवक कम और खर्च ज्यादा हो रहा है.
फसल की निंदाई का आ गया समय
किसान घनश्याम भारती की मानें तो उन्हें अपनी फसलों की चिंता सता रही है. फसलों की निंदाई का समय आ गया है और खेत में काम करने के लिए मजदूर की जरूरत है लेकिन अभी कोई भी आने को तैयार नहीं है. लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से खेत में काम कराना भी मुश्किल हो गया है. हार्वेस्टर का नहीं मिलना भी किसानों के लिए एक समस्या बन गया है. राज्य की सीमाओं को सील करने के बाद बाहर से आने वाले सभी वाहनों को रोक दिया जाता है. ऐसे में किसानों तक हार्वेस्टर नहीं पहुंच रहा है.