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अनुच्छेद 370 के फैसले में जस्टिस कौल ने कहा- घावों को भरने की जरूरत है

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बड़ा फैसला सुनाया. वहीं, जस्टिस कौल ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर एक आयोग गठित करने की सिफारिश की. Justice Kaul Reconciliation commission

Wounds Require Healing Justice Kaul recommends setting up Truth and Reconciliation commission in JK
अनुच्छेद 370 के फैसले में जस्टिस कौल ने कहा- घावों को भरने की जरूरत है
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 11, 2023, 2:18 PM IST

Updated : Dec 11, 2023, 3:31 PM IST

अनुच्छेद 370

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने सोमवार को केंद्र को जम्मू-कश्मीर में राज्य और लोगों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच और रिपोर्ट करने के लिए 'सच्चाई और सुलह' आयोग (Truth and Reconciliation commission) स्थापित करने की सिफारिश की. न्यायमूर्ति कौल ने इस बात पर जोर दिया कि प्रक्रिया समयबद्ध होनी चाहिए और समिति को सुलह के उपायों की सिफारिश करनी चाहिए. न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि आयोग अतीत के घावों को माफ करने में सक्षम हो सकता है और एक साझा राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करने का आधार बना सकता है.

5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत शामिल थे. पीठ ने 16 दिनों तक मामले में दलीलें सुनीं. पीठ के सभी न्यायाधीशों ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखा.

न्यायमूर्ति ने बहुमत के फैसले से सहमति जताते हुए एक अलग निर्णय दिया. इसमें राज्य और लोगों दोनों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच और रिपोर्ट करने के लिए एक निष्पक्ष सत्य और सुलह समिति की स्थापना की सिफारिश की. न्यायमूर्ति कौल ने इसे समयबद्ध करने पर जोर देते हुए कहा कि स्मृति लुप्त होने से पहले आयोग का गठन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि युवाओं की एक पूरी पीढ़ी अविश्वास की भावना के साथ बड़ी हुई है. न्यायमूर्ति ने यह भी माना कि अनुच्छेद 370 अस्थायी था, स्थायी नहीं. न्यायमूर्ति कौल ने आयोग के गठन पर जोर देते हुए कहा कि घावों को भरने की जरूरत है.

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि यह सरकार को तय करना है कि आयोग का गठन किस तरीके से किया जाना चाहिए और उसे इसमें शामिल मुद्दों की संवेदनशीलता पर विचार करना चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आयोग को एक आपराधिक अदालत नहीं बनना चाहिए और उसे बातचीत के लिए एक मंच प्रदान करना चाहिए और दक्षिण अफ्रीका में स्थापित सत्य और सुलह आयोग का हवाला दिया.

वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय की टिप्पणी: धारा 370 को हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'धारा 370 और 35 ए अब अतीत की बात हैं.' ईटीवी भारत से बात करते हुए अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'यह एक ऐतिहासिक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट ने एक राष्ट्र एक संविधान की अवधारणा को बरकरार रखा है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा.'

सबसे बड़ी बात यह है कि सभी पांच जजों ने एक स्वर में कहा है कि अनुच्छेद 370 और 35 ए अस्थायी थे और इसे हटाने का केंद्र सरकार का फैसला सही था. शीर्ष अदालत ने 30 सितंबर 2024 से पहले चुनाव कराने की बात कही. हम सभी को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार और शीर्ष अदालत को धन्यवाद देना चाहिए.' सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है और राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण अनुच्छेद 370 एक अंतरिम व्यवस्था है. शीर्ष अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने का आदेश संवैधानिक रूप से वैध है.

'पांच अगस्त 2019 और आज की तारीख इतिहास में दर्ज होगी' : संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का बचाव करने में केंद्र की ओर से प्रमुख वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को कहा कि सरकार के पांच अगस्त 2019 के फैसले को बरकरार रखने का उच्चतम न्यायालय का फैसला देश के इतिहास में दर्ज किया जाएगा.

मेहता ने कहा कि पांच अगस्त 2019 से पहले अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने की प्रक्रिया में इकलौते वकील के रूप में शामिल और उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष दलीलें रखने के कारण यह उनके लिए भी ऐतिहासिक दिन है.

उन्होंने कहा, 'पांच अगस्त 2019 और आज की तारीख भारत के इतिहास में दर्ज की जाएगी, जब अतीत की एक बड़ी संवैधानिक गलती को आखिरकार सरकार ने ठीक कर दिया है.'

उन्होंने कहा, 'यह केवल हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की दृढ़ इच्छाशक्ति और हमारे गृह मंत्री अमित शाह जी का दृढ़ संकल्प और शानदार रणनीति है जिसने इस ऐतिहासिक फैसले को संभव बनाया. देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा.'

मेहता ने कहा कि उन्हें उस पूरी प्रक्रिया का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला जिसने उनके अनुकरणीय संकल्प, छोटे से छोटे विवरण के बारीकी से समन्वय और संसदीय प्रक्रिया के समन्वय का प्रदर्शन किया.

सॉलिसिटर जनरल ने एक बयान में कहा, 'उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायिक निर्णय ऐतिहासिक और दुर्लभ है. पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मामले पर निर्णय दिया जिसमें सबसे पांच वरिष्ठ न्यायाधीश - भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति भूषण आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल थे - भारत के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक ऐतिहासिक पीठ और इसमें भारत के तीन भावी प्रधान न्यायाधीश। सभी पांचों दिग्गज न्यायाधीश हैं जो निर्विवाद रूप से बड़े विद्वान हैं.'

देश के शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि पीठ ने तीन सप्ताहों तक सभी पक्षों को बहुत धैर्यपूर्वक सुना. उन्होंने कहा, 'और आज ऐसा फैसला आया है जो अद्भुत विद्वता, कानून के शासन के लिए चिंता और धर्म, लैंगिकता, जाति या नस्ल की परवाह किए बिना जम्मू कश्मीर के प्रत्येक नागरिक के समानता के मौलिक अधिकारों के लिए स्पष्ट चिंता का प्रदर्शन कर रहे इस महान देश के इतिहास में दर्ज किया जाएगा.'

मेहता ने कहा, 'हमारे संविधान में अनुच्छेद 370 को शामिल किए जाने के पीछे के इतिहास को विस्तारपूर्वक पढ़े जाने के कारण, मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि सरदार वल्लभभाई पटेल की आत्मा को आज संतुष्टि मिली होगी क्योंकि जिस प्रावधान को वह भारत के संविधान में शामिल किए जाने से रोक नहीं सके थे, वह आखिरकार हटा दिया गया है. वह नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह जी को आशीर्वाद दे रहे होंगे.'

ये भी पढ़ें- बरकरार रहेगा अनुच्छेद 370 निरस्त करने का फैसला, सितंबर 2024 तक हों चुनाव: CJI

अनुच्छेद 370

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने सोमवार को केंद्र को जम्मू-कश्मीर में राज्य और लोगों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच और रिपोर्ट करने के लिए 'सच्चाई और सुलह' आयोग (Truth and Reconciliation commission) स्थापित करने की सिफारिश की. न्यायमूर्ति कौल ने इस बात पर जोर दिया कि प्रक्रिया समयबद्ध होनी चाहिए और समिति को सुलह के उपायों की सिफारिश करनी चाहिए. न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि आयोग अतीत के घावों को माफ करने में सक्षम हो सकता है और एक साझा राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करने का आधार बना सकता है.

5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत शामिल थे. पीठ ने 16 दिनों तक मामले में दलीलें सुनीं. पीठ के सभी न्यायाधीशों ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखा.

न्यायमूर्ति ने बहुमत के फैसले से सहमति जताते हुए एक अलग निर्णय दिया. इसमें राज्य और लोगों दोनों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच और रिपोर्ट करने के लिए एक निष्पक्ष सत्य और सुलह समिति की स्थापना की सिफारिश की. न्यायमूर्ति कौल ने इसे समयबद्ध करने पर जोर देते हुए कहा कि स्मृति लुप्त होने से पहले आयोग का गठन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि युवाओं की एक पूरी पीढ़ी अविश्वास की भावना के साथ बड़ी हुई है. न्यायमूर्ति ने यह भी माना कि अनुच्छेद 370 अस्थायी था, स्थायी नहीं. न्यायमूर्ति कौल ने आयोग के गठन पर जोर देते हुए कहा कि घावों को भरने की जरूरत है.

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि यह सरकार को तय करना है कि आयोग का गठन किस तरीके से किया जाना चाहिए और उसे इसमें शामिल मुद्दों की संवेदनशीलता पर विचार करना चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आयोग को एक आपराधिक अदालत नहीं बनना चाहिए और उसे बातचीत के लिए एक मंच प्रदान करना चाहिए और दक्षिण अफ्रीका में स्थापित सत्य और सुलह आयोग का हवाला दिया.

वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय की टिप्पणी: धारा 370 को हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'धारा 370 और 35 ए अब अतीत की बात हैं.' ईटीवी भारत से बात करते हुए अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'यह एक ऐतिहासिक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट ने एक राष्ट्र एक संविधान की अवधारणा को बरकरार रखा है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा.'

सबसे बड़ी बात यह है कि सभी पांच जजों ने एक स्वर में कहा है कि अनुच्छेद 370 और 35 ए अस्थायी थे और इसे हटाने का केंद्र सरकार का फैसला सही था. शीर्ष अदालत ने 30 सितंबर 2024 से पहले चुनाव कराने की बात कही. हम सभी को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार और शीर्ष अदालत को धन्यवाद देना चाहिए.' सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है और राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण अनुच्छेद 370 एक अंतरिम व्यवस्था है. शीर्ष अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने का आदेश संवैधानिक रूप से वैध है.

'पांच अगस्त 2019 और आज की तारीख इतिहास में दर्ज होगी' : संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का बचाव करने में केंद्र की ओर से प्रमुख वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को कहा कि सरकार के पांच अगस्त 2019 के फैसले को बरकरार रखने का उच्चतम न्यायालय का फैसला देश के इतिहास में दर्ज किया जाएगा.

मेहता ने कहा कि पांच अगस्त 2019 से पहले अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने की प्रक्रिया में इकलौते वकील के रूप में शामिल और उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष दलीलें रखने के कारण यह उनके लिए भी ऐतिहासिक दिन है.

उन्होंने कहा, 'पांच अगस्त 2019 और आज की तारीख भारत के इतिहास में दर्ज की जाएगी, जब अतीत की एक बड़ी संवैधानिक गलती को आखिरकार सरकार ने ठीक कर दिया है.'

उन्होंने कहा, 'यह केवल हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की दृढ़ इच्छाशक्ति और हमारे गृह मंत्री अमित शाह जी का दृढ़ संकल्प और शानदार रणनीति है जिसने इस ऐतिहासिक फैसले को संभव बनाया. देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा.'

मेहता ने कहा कि उन्हें उस पूरी प्रक्रिया का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला जिसने उनके अनुकरणीय संकल्प, छोटे से छोटे विवरण के बारीकी से समन्वय और संसदीय प्रक्रिया के समन्वय का प्रदर्शन किया.

सॉलिसिटर जनरल ने एक बयान में कहा, 'उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायिक निर्णय ऐतिहासिक और दुर्लभ है. पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मामले पर निर्णय दिया जिसमें सबसे पांच वरिष्ठ न्यायाधीश - भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति भूषण आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल थे - भारत के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक ऐतिहासिक पीठ और इसमें भारत के तीन भावी प्रधान न्यायाधीश। सभी पांचों दिग्गज न्यायाधीश हैं जो निर्विवाद रूप से बड़े विद्वान हैं.'

देश के शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि पीठ ने तीन सप्ताहों तक सभी पक्षों को बहुत धैर्यपूर्वक सुना. उन्होंने कहा, 'और आज ऐसा फैसला आया है जो अद्भुत विद्वता, कानून के शासन के लिए चिंता और धर्म, लैंगिकता, जाति या नस्ल की परवाह किए बिना जम्मू कश्मीर के प्रत्येक नागरिक के समानता के मौलिक अधिकारों के लिए स्पष्ट चिंता का प्रदर्शन कर रहे इस महान देश के इतिहास में दर्ज किया जाएगा.'

मेहता ने कहा, 'हमारे संविधान में अनुच्छेद 370 को शामिल किए जाने के पीछे के इतिहास को विस्तारपूर्वक पढ़े जाने के कारण, मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि सरदार वल्लभभाई पटेल की आत्मा को आज संतुष्टि मिली होगी क्योंकि जिस प्रावधान को वह भारत के संविधान में शामिल किए जाने से रोक नहीं सके थे, वह आखिरकार हटा दिया गया है. वह नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह जी को आशीर्वाद दे रहे होंगे.'

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Last Updated : Dec 11, 2023, 3:31 PM IST
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