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MP News: कोरोना महामारी के बाद वायरल फीवर हुआ बहरूपिया, RSV के कारण मिल रहे खतरनाक लक्षण, सागर मेडिकल काॅलेज में अध्ययन

बारिश में भीगने, ठंडा-गर्म खाने-पीने और बारिश के सीजन में आमतौर पर लोग वायरल फीवर के शिकार हो जाते हैं. पहले इस बीमारी से ठीक होने में जहां 3-4 दिन का समय लगता था. वहीं अब इसकी अवधि बढ़ गई है. कहा जा रहा है कि वायरल फीवर अब और खतरनाक हो गया है. जिसे लेकर एमपी के सागर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में अध्ययन चल रहा है.

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वायरल फीवर
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 28, 2023, 5:53 PM IST

कोरोना महामारी के बाद वायरल फीवर हुआ बहरूपिया

सागर। आमतौर पर बरसात के सीजन में होने वाली बीमारियों को मौसमी बीमारियों या वायरल बुखार के नाम से जानते हैं और आम आदमी इसे बडे़ सहज तरीके से लेते हैं. अब तक देखने में आ रहा था कि बरसात के मौसम के दौरान फैलने वाला वायरल बुखार 3 से 5 दिन में ठीक हो जाता था, लेकिन पिछले डेढ़ साल से इसके लक्षणों में भारी बदलाव देखने मिला है. इसको लेकर चिकित्सा जगत में चिंता बढ़ रही है. वायरल बुखार के जो लक्षण हैं, उनमें तेजी से बदलाव देखने मिल रहा है.

माना जा रहा है कि कोरोना महामारी के बाद लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने और दूसरे कारणों से वायरस में बदलाव आ सकता है. ऐसे में सागर के बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज की सेंट्रल वायरोलाॅजी लैब वायरल बुखार के लक्षणों का अध्ययन कर रहे हैं. जिसमें सामने आया है कि R S V के कारण ये बदलाव देखने मिला है. हालांकि चिंता की बात इसलिए नहीं है कि निजी तौर पर इस बीमारी के बचाव की वैक्सीन बाजार में मौजूद है.

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सागर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज

क्या बदलाव देखने मिला: दरअसल बरसात के मौसम में कभी लगातार बारिश और फिर अचानक गर्मी से वायरल फीवर का असर देखने मिल रहा है, लेकिन इस बार वायरल फीवर से पीड़ित लोग सामान्य तौर पर ज्यादा गंभीर लक्षण से परेशान हैं. 10 से 15 दिन उनके ठीक होने में लग रहे हैं. जबकि आमतौर पर 5 दिन में वायरल फीवर ठीक हो जाता था और लोग वायरल फीवर से ज्यादा परेशान नहीं होते थे. इस मामले में बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के सेंट्रल वाॅयरोलाॅजी लैब के प्रभारी डाॅ सुमित रावत का कहना है कि "अभी कुछ महीने से जो बुखार देखने मिल रहा है. अमूमन बरसात के बाद फीवर का सिलसिला शुरू हो जाता है. इसमें कई प्रकार के लक्षण देखने मिलते हैं. सर्दी खांसी, सांस लेने में तकलीफ, हाथ पैर दर्द,कमर में दर्द, पीठ में दर्द की शिकायत सामनें आती है.

आमतौर पर कुछ साल पहले तक ये देखने में आता था कि ये तकलीफ दो चार दिन में ठीक हो जाती थी और पांचवे दिन आदमी काम पर जाने लगता था, लेकिन खासतौर पर कोरोना जैसी महामारी का सामना करने के बाद लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गयी है. लोगों को खान-पान,रहन-सहन बहुत सारी चीजों की इसमें अहम भूमिका है.

वायरल फीवर के लक्षणों के आधार पर अध्ययन: डाॅ सुमित रावत बताते हैं कि बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में आ रहे मरीजों में पिछले सालों की अपेक्षा दूसरे लक्षण और ज्यादा दिनों तक फीवर रहने के मामले में कोरोना के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के बाद हमनें देखा है कि इस बार वायरल फीवर में कई तरह की बीमारियों के लक्षण दिख रहे हैं. मेडिकल साइंस मानकर चल रही है कि इसमें दो चीजों की भूमिका हो सकती है. हम इस वायरस का अध्ययन कर रहे हैं और उसके दो आधार हैं कि कहीं कोरोना के कारण कम हुई रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण तो ये नहीं हो रहा है.

दूसरी तरफ हम ये भी देख रहे हैं कि वायरल फीवर के वायरस में कोई अंतर तो नहीं आया है. हम ये देख रहे हैं कि ये जो वायरस है, क्या ये और ज्यादा खतरनाक हो गया. अगर हो गया है तो वायरस में क्या बदलाव देखने मिल रहे हैं. हमारी स्टडी में सामने आया है कि पहले राइनो वायरस के कारण वायरल फीवर ज्यादा होता था, लेकिन पिछले एक डेढ़ साल के आंकड़ों से पता चला है कि अब R S V (Respiratory Syncytial Virus) के कारण हो रहा है. रेस्पिरेटरी सीनसीटियल वायरस की वजह से बच्चों और बुजुर्गों में वायरल फीवर निमोनिया में परिवर्तित हो रहा है. इस स्थिति में बहुत छोटे बच्चों और 65 साल से ऊपर के बुजुर्गों को वैंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है और जानलेवा भी हो सकता है.

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वायरल फीवर का शिकार हो रहे लोग

कैसे होगा वायरल फीवर का इलाज: डाॅ सुमित रावत बताते हैं कि "अब तक वायरल फीवर के मामले में आमतौर पर जो लोग मेडिकल काउंटर या फिर एंटीबायोटिक लेकर खुद इलाज कर लेते थे. डाक्टर को ना दिखाकर या सही तरीके से इलाज ना कराने से ये बीमारी 10 से 15 दिन तक असर कर रही है. कई बार 10-15 दिन तक बीमारी टिके रहने के कारण कई तकलीफें बढ़ जाती है. बुखार असहनीय बदन दर्द में बदल जाता है. लंबे समय तक खांसी चलने पर अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है. जहां तक इस वायरस से इलाज की बात करें तो आज RSV (रेस्पिरेटरी सीनसीटियल वायरस) और एच -1 एन -1 के मामले काफी सामने आ रहे हैं. इन दोनों बीमारियों के टीके निजी तौर पर मौजूद हैं. हालांकि सरकार वैक्सीनेशन नहीं करा रही है और हम व्यक्तिगत तौर पर भी वैक्सीन लगवा सकते हैं.

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कितना खतरनाक है R S V (Respiratory Syncytial Virus): इसके फैलने का तरीका कोरोना वायरस की तरह ही है. संक्रमित व्यक्ति के छीकने और खासने से इसके कण हवा में फैल जाते हैं, स्वस्थ व्यक्ति के आंख-नाक या मुंह के जरिए शरीर में पहुंचता है. पिछले साल इसी समय पर R S V ने अमेरिका में बड़ा संकट खड़ा कर दिया था. जिसके कारण इसकी वैक्सीन की खोज की गयी. ये वायरस आंख, नाक और मुंह के सहारे शरीर में प्रवेश कर मरीज के फेफड़ों और सांस नली पर असर करता है.

R S V (Respiratory Syncytial Virus) के लक्षण: सामान्य तौर पर R S V (Respiratory Syncytial Virus) के कारण आने वाले वायरल फीवर में नाक बंद हो जाती है और बहने लगती है. सूखी खांसी, हल्का बुखार, गले में सूजन, छींक आना, सिरदर्द जैसे सामान्य लक्षण होते हैं. जब वायरस ज्यादा असर करता है, तो तेज बुखार,सूखी खांसी, सांस लेने में तकलीफ और शरीर में आक्सीजन लेवल गिरने लगता है.

कोरोना महामारी के बाद वायरल फीवर हुआ बहरूपिया

सागर। आमतौर पर बरसात के सीजन में होने वाली बीमारियों को मौसमी बीमारियों या वायरल बुखार के नाम से जानते हैं और आम आदमी इसे बडे़ सहज तरीके से लेते हैं. अब तक देखने में आ रहा था कि बरसात के मौसम के दौरान फैलने वाला वायरल बुखार 3 से 5 दिन में ठीक हो जाता था, लेकिन पिछले डेढ़ साल से इसके लक्षणों में भारी बदलाव देखने मिला है. इसको लेकर चिकित्सा जगत में चिंता बढ़ रही है. वायरल बुखार के जो लक्षण हैं, उनमें तेजी से बदलाव देखने मिल रहा है.

माना जा रहा है कि कोरोना महामारी के बाद लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने और दूसरे कारणों से वायरस में बदलाव आ सकता है. ऐसे में सागर के बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज की सेंट्रल वायरोलाॅजी लैब वायरल बुखार के लक्षणों का अध्ययन कर रहे हैं. जिसमें सामने आया है कि R S V के कारण ये बदलाव देखने मिला है. हालांकि चिंता की बात इसलिए नहीं है कि निजी तौर पर इस बीमारी के बचाव की वैक्सीन बाजार में मौजूद है.

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सागर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज

क्या बदलाव देखने मिला: दरअसल बरसात के मौसम में कभी लगातार बारिश और फिर अचानक गर्मी से वायरल फीवर का असर देखने मिल रहा है, लेकिन इस बार वायरल फीवर से पीड़ित लोग सामान्य तौर पर ज्यादा गंभीर लक्षण से परेशान हैं. 10 से 15 दिन उनके ठीक होने में लग रहे हैं. जबकि आमतौर पर 5 दिन में वायरल फीवर ठीक हो जाता था और लोग वायरल फीवर से ज्यादा परेशान नहीं होते थे. इस मामले में बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के सेंट्रल वाॅयरोलाॅजी लैब के प्रभारी डाॅ सुमित रावत का कहना है कि "अभी कुछ महीने से जो बुखार देखने मिल रहा है. अमूमन बरसात के बाद फीवर का सिलसिला शुरू हो जाता है. इसमें कई प्रकार के लक्षण देखने मिलते हैं. सर्दी खांसी, सांस लेने में तकलीफ, हाथ पैर दर्द,कमर में दर्द, पीठ में दर्द की शिकायत सामनें आती है.

आमतौर पर कुछ साल पहले तक ये देखने में आता था कि ये तकलीफ दो चार दिन में ठीक हो जाती थी और पांचवे दिन आदमी काम पर जाने लगता था, लेकिन खासतौर पर कोरोना जैसी महामारी का सामना करने के बाद लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गयी है. लोगों को खान-पान,रहन-सहन बहुत सारी चीजों की इसमें अहम भूमिका है.

वायरल फीवर के लक्षणों के आधार पर अध्ययन: डाॅ सुमित रावत बताते हैं कि बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में आ रहे मरीजों में पिछले सालों की अपेक्षा दूसरे लक्षण और ज्यादा दिनों तक फीवर रहने के मामले में कोरोना के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के बाद हमनें देखा है कि इस बार वायरल फीवर में कई तरह की बीमारियों के लक्षण दिख रहे हैं. मेडिकल साइंस मानकर चल रही है कि इसमें दो चीजों की भूमिका हो सकती है. हम इस वायरस का अध्ययन कर रहे हैं और उसके दो आधार हैं कि कहीं कोरोना के कारण कम हुई रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण तो ये नहीं हो रहा है.

दूसरी तरफ हम ये भी देख रहे हैं कि वायरल फीवर के वायरस में कोई अंतर तो नहीं आया है. हम ये देख रहे हैं कि ये जो वायरस है, क्या ये और ज्यादा खतरनाक हो गया. अगर हो गया है तो वायरस में क्या बदलाव देखने मिल रहे हैं. हमारी स्टडी में सामने आया है कि पहले राइनो वायरस के कारण वायरल फीवर ज्यादा होता था, लेकिन पिछले एक डेढ़ साल के आंकड़ों से पता चला है कि अब R S V (Respiratory Syncytial Virus) के कारण हो रहा है. रेस्पिरेटरी सीनसीटियल वायरस की वजह से बच्चों और बुजुर्गों में वायरल फीवर निमोनिया में परिवर्तित हो रहा है. इस स्थिति में बहुत छोटे बच्चों और 65 साल से ऊपर के बुजुर्गों को वैंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है और जानलेवा भी हो सकता है.

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वायरल फीवर का शिकार हो रहे लोग

कैसे होगा वायरल फीवर का इलाज: डाॅ सुमित रावत बताते हैं कि "अब तक वायरल फीवर के मामले में आमतौर पर जो लोग मेडिकल काउंटर या फिर एंटीबायोटिक लेकर खुद इलाज कर लेते थे. डाक्टर को ना दिखाकर या सही तरीके से इलाज ना कराने से ये बीमारी 10 से 15 दिन तक असर कर रही है. कई बार 10-15 दिन तक बीमारी टिके रहने के कारण कई तकलीफें बढ़ जाती है. बुखार असहनीय बदन दर्द में बदल जाता है. लंबे समय तक खांसी चलने पर अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है. जहां तक इस वायरस से इलाज की बात करें तो आज RSV (रेस्पिरेटरी सीनसीटियल वायरस) और एच -1 एन -1 के मामले काफी सामने आ रहे हैं. इन दोनों बीमारियों के टीके निजी तौर पर मौजूद हैं. हालांकि सरकार वैक्सीनेशन नहीं करा रही है और हम व्यक्तिगत तौर पर भी वैक्सीन लगवा सकते हैं.

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कितना खतरनाक है R S V (Respiratory Syncytial Virus): इसके फैलने का तरीका कोरोना वायरस की तरह ही है. संक्रमित व्यक्ति के छीकने और खासने से इसके कण हवा में फैल जाते हैं, स्वस्थ व्यक्ति के आंख-नाक या मुंह के जरिए शरीर में पहुंचता है. पिछले साल इसी समय पर R S V ने अमेरिका में बड़ा संकट खड़ा कर दिया था. जिसके कारण इसकी वैक्सीन की खोज की गयी. ये वायरस आंख, नाक और मुंह के सहारे शरीर में प्रवेश कर मरीज के फेफड़ों और सांस नली पर असर करता है.

R S V (Respiratory Syncytial Virus) के लक्षण: सामान्य तौर पर R S V (Respiratory Syncytial Virus) के कारण आने वाले वायरल फीवर में नाक बंद हो जाती है और बहने लगती है. सूखी खांसी, हल्का बुखार, गले में सूजन, छींक आना, सिरदर्द जैसे सामान्य लक्षण होते हैं. जब वायरस ज्यादा असर करता है, तो तेज बुखार,सूखी खांसी, सांस लेने में तकलीफ और शरीर में आक्सीजन लेवल गिरने लगता है.

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