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Teachers Day 2023: कोरबा में शिक्षक नोहर चंद्रा के प्रयास ने बदली तस्वीर, भटगांव सरकारी प्राइमरी स्कूल में डिजिटल शिक्षा से भविष्य गढ़ रहे बच्चे - कोरबा में शिक्षक नोहर चंद्रा

Teachers Day : कोरबा के प्राथमिक स्कूल भटगांव में शिक्षकों ने शिक्षा की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी है. स्कूल में डिजिटल माध्यम से पढ़ाई कराई जाती है. बच्चे बड़े एलईडी स्क्रीन पर वीडियो ऑडियो के माध्यम से सीखते हैं. यहां शिक्षा का स्तर इस कदर बढ़ा है कि इस गांव के बच्चों का चयन नवोदय विद्यालय में हुआ है.Digital Education In Korba Primary School, Teachers Day Special

teachers day special
शिक्षक दिवस विशेष
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 4, 2023, 9:47 PM IST

Updated : Sep 6, 2023, 5:18 PM IST

कोरबा में शिक्षक नोहर चंद्रा के प्रयास ने बदली तस्वीर

कोरबा: कहते हैं कि असली बदलाव की शुरुआत शिक्षा से होती है. इस कहावत को कोरबा जिले के एक शिक्षक ने सच कर दिखाया है. अपने 15 साल के करियर में शिक्षक ने पूरे गांव की तस्वीर ही बदल डाली. यहां अक्सर बच्चियां पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देती थीं. लेकिन अब वह 12वीं पास करने लगी हैं. 5 सितंबर को शिक्षक दिवस है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको कोरबा के डिजिटल स्कूल और उस स्कूल के शिक्षक के बारे में बताने जा रहा है, जिन्होंने यहां शिक्षा की दशा और दिशा को ही बदल दिया है.

स्कूल के शिक्षक ने बदली शिक्षा की दशा और दिशा: दरअसल, हम बात कर रहे हैं शिक्षक नोहर चंद्रा की. कोरबा जिले के प्राथमिक स्कूल भटगांव में शिक्षक के पद पर कार्यरत नोहर चंद्रा ने इस गांव में शिक्षा की दशा और दिशा दोनों ही बदल डाली है. एक वक्त था जब यहां के बच्चों को पढ़ाई का महत्व तक नहीं पता था. इस गांव में अब डिजिटल स्कूल चलाया जा रहा है. बच्चे एलईडी स्क्रीन पर ऑडियो-वीडियो के माध्यम से पढ़ाई करते हैं. शिक्षक नोहर चंद्रा को इस नेक पहल के लिए राज्यपाल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

2013 से स्कूल में शुरू हुआ बदलाव (Digital Education In Korba Primary School ): इस स्कूल की तस्वीर को बदलने में यहां पदस्थ शिक्षक नोहर चंद्रा का बड़ा योगदान है. नोहर चंद्रा कहते हैं कि "वैसे तो मेरी पदस्थापना इस स्कूल में साल 2008 में हो गई थी. लेकिन साल 2013 से मैंने नवाचार करना शुरू किया. सार्वजनिक उपक्रमों से सहयोग मांगा और जनसमुदाय का सहयोग लिया. लोगों ने भी खुलकर सहयोग किया. विभाग से संसाधन उपलब्ध होने का इंतजार नहीं किया. जिसका परिणाम मुझे मिलने लगा. पहले यहां की बच्चियां 12वीं तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती थी. पांचवीं के बाद ही बच्चियां पढ़ाई छोड़ देती थी. उनका एडमिशन भी मैंने कस्तूरबा गांधी में करवाना शुरू किया. ताकि उन्हें आवासीय शिक्षा मिले और वह 12वीं तक पढ़ सके. अब तो पूरे पंचायत में कई बच्चियों ने 12वीं पास कर ली है."

एलईडी के जरिए होती है पढ़ाई: प्राथमिक स्कूल भटगांव का प्रवेश द्वार अन्य सरकारी स्कूलों से अलग है. रंगीन कलाकारी के कारण इस स्कूल का लुक किसी निजी प्ले स्कूल की तरह दिखता है. बच्चे पूरे अनुशासन से और अच्छी तरह से ड्रेस पहन कर स्कूल पहुंचते हैं. इतना ही नहीं स्कूल में पहली से पांचवी तक की पढ़ाई एलईडी स्क्रीन के माध्यम से कराई जाती है. स्कूल के क्लास रूम में एक बड़ी एलइडी स्क्रीन मौजूद है, जिसमें ऑडियो, वीडियो के माध्यम से बच्चों को पढ़ाया जाता है. इससे बच्चों को सिखाने में काफी मदद मिलती है. बच्चे डिजिटल माध्यम से आसानी से चीजों को समझ लेते हैं.

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कई बच्चों का चयन नवोदय विद्यालय में हुआ: खास बात यह है कि गांव के कई बच्चों का चयन नवोदय विद्यालय में हुआ है. जो कि आदिवासी बच्चों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. स्कूल को डिजिटल बनाने में शिक्षकों और जनसमुदाय का महत्वपूर्ण योगदान है. सार्वजनिक उपक्रमों ने भी स्कूल को संवारने में सहयोग किया है. इस स्कूल को वनांचल और पिछड़ेपन के लिए पहचाना जाता था. हालांकि अब यहां शिक्षा का स्तर बदलने से बच्चों में भी उत्साह देखने को मिल रहा है. यही कारण है कि बच्चे नवोदय स्कूल में भी चयनित होने लगे हैं.

लर्न विद फन के तर्ज पर बच्चों को दी जा रही शिक्षा: आमतौर पर सरकारी प्राइमरी स्कूल का ख्याल मन में आते ही टाट पट्टी पर बैठे बच्चों की तस्वीर मन में उभरने लगती है. प्राथमिक स्कूल भटगांव में आते ही आपकी सोच बदल जाएगी. यहां बच्चों के बैठने के लिए बाकायदा फर्नीचर मौजूद है. यहां के बच्चे टाट पट्टी पर नहीं बल्कि बेंच पर बैठकर पढ़ते हैं. यहां के बच्चों को लर्न विद फन के तर्ज पर मॉडर्न टेक्निक से पढ़ाया जाता है.

स्कूल में बाउंड्री वॉल की मांग: इस स्कूल के शिक्षकों ने अपने स्तर पर इस स्कूल की तस्वीर को जरूर बदल दिया है. स्कूल के पीछे एक खुला ट्रांसफार्मर है. साथ ही स्कूल के पीछे एक पुराना कुआं है. दोनों से बच्चों को खतरा है. स्कूल प्रबंधन ने विभाग से बाउंड्री वॉल की मांग तो की है. लेकिन यह मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है. स्कूल में बाउंड्री वॉल बन जाने से यहां के बच्चों को किसी तरह का कोई खतरा नहीं होगा.

कोरबा में शिक्षक नोहर चंद्रा के प्रयास ने बदली तस्वीर

कोरबा: कहते हैं कि असली बदलाव की शुरुआत शिक्षा से होती है. इस कहावत को कोरबा जिले के एक शिक्षक ने सच कर दिखाया है. अपने 15 साल के करियर में शिक्षक ने पूरे गांव की तस्वीर ही बदल डाली. यहां अक्सर बच्चियां पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देती थीं. लेकिन अब वह 12वीं पास करने लगी हैं. 5 सितंबर को शिक्षक दिवस है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको कोरबा के डिजिटल स्कूल और उस स्कूल के शिक्षक के बारे में बताने जा रहा है, जिन्होंने यहां शिक्षा की दशा और दिशा को ही बदल दिया है.

स्कूल के शिक्षक ने बदली शिक्षा की दशा और दिशा: दरअसल, हम बात कर रहे हैं शिक्षक नोहर चंद्रा की. कोरबा जिले के प्राथमिक स्कूल भटगांव में शिक्षक के पद पर कार्यरत नोहर चंद्रा ने इस गांव में शिक्षा की दशा और दिशा दोनों ही बदल डाली है. एक वक्त था जब यहां के बच्चों को पढ़ाई का महत्व तक नहीं पता था. इस गांव में अब डिजिटल स्कूल चलाया जा रहा है. बच्चे एलईडी स्क्रीन पर ऑडियो-वीडियो के माध्यम से पढ़ाई करते हैं. शिक्षक नोहर चंद्रा को इस नेक पहल के लिए राज्यपाल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

2013 से स्कूल में शुरू हुआ बदलाव (Digital Education In Korba Primary School ): इस स्कूल की तस्वीर को बदलने में यहां पदस्थ शिक्षक नोहर चंद्रा का बड़ा योगदान है. नोहर चंद्रा कहते हैं कि "वैसे तो मेरी पदस्थापना इस स्कूल में साल 2008 में हो गई थी. लेकिन साल 2013 से मैंने नवाचार करना शुरू किया. सार्वजनिक उपक्रमों से सहयोग मांगा और जनसमुदाय का सहयोग लिया. लोगों ने भी खुलकर सहयोग किया. विभाग से संसाधन उपलब्ध होने का इंतजार नहीं किया. जिसका परिणाम मुझे मिलने लगा. पहले यहां की बच्चियां 12वीं तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती थी. पांचवीं के बाद ही बच्चियां पढ़ाई छोड़ देती थी. उनका एडमिशन भी मैंने कस्तूरबा गांधी में करवाना शुरू किया. ताकि उन्हें आवासीय शिक्षा मिले और वह 12वीं तक पढ़ सके. अब तो पूरे पंचायत में कई बच्चियों ने 12वीं पास कर ली है."

एलईडी के जरिए होती है पढ़ाई: प्राथमिक स्कूल भटगांव का प्रवेश द्वार अन्य सरकारी स्कूलों से अलग है. रंगीन कलाकारी के कारण इस स्कूल का लुक किसी निजी प्ले स्कूल की तरह दिखता है. बच्चे पूरे अनुशासन से और अच्छी तरह से ड्रेस पहन कर स्कूल पहुंचते हैं. इतना ही नहीं स्कूल में पहली से पांचवी तक की पढ़ाई एलईडी स्क्रीन के माध्यम से कराई जाती है. स्कूल के क्लास रूम में एक बड़ी एलइडी स्क्रीन मौजूद है, जिसमें ऑडियो, वीडियो के माध्यम से बच्चों को पढ़ाया जाता है. इससे बच्चों को सिखाने में काफी मदद मिलती है. बच्चे डिजिटल माध्यम से आसानी से चीजों को समझ लेते हैं.

Children Sweeping In School: नौनिहालों के हाथों में किताब के बदले झाड़ू !
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कई बच्चों का चयन नवोदय विद्यालय में हुआ: खास बात यह है कि गांव के कई बच्चों का चयन नवोदय विद्यालय में हुआ है. जो कि आदिवासी बच्चों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. स्कूल को डिजिटल बनाने में शिक्षकों और जनसमुदाय का महत्वपूर्ण योगदान है. सार्वजनिक उपक्रमों ने भी स्कूल को संवारने में सहयोग किया है. इस स्कूल को वनांचल और पिछड़ेपन के लिए पहचाना जाता था. हालांकि अब यहां शिक्षा का स्तर बदलने से बच्चों में भी उत्साह देखने को मिल रहा है. यही कारण है कि बच्चे नवोदय स्कूल में भी चयनित होने लगे हैं.

लर्न विद फन के तर्ज पर बच्चों को दी जा रही शिक्षा: आमतौर पर सरकारी प्राइमरी स्कूल का ख्याल मन में आते ही टाट पट्टी पर बैठे बच्चों की तस्वीर मन में उभरने लगती है. प्राथमिक स्कूल भटगांव में आते ही आपकी सोच बदल जाएगी. यहां बच्चों के बैठने के लिए बाकायदा फर्नीचर मौजूद है. यहां के बच्चे टाट पट्टी पर नहीं बल्कि बेंच पर बैठकर पढ़ते हैं. यहां के बच्चों को लर्न विद फन के तर्ज पर मॉडर्न टेक्निक से पढ़ाया जाता है.

स्कूल में बाउंड्री वॉल की मांग: इस स्कूल के शिक्षकों ने अपने स्तर पर इस स्कूल की तस्वीर को जरूर बदल दिया है. स्कूल के पीछे एक खुला ट्रांसफार्मर है. साथ ही स्कूल के पीछे एक पुराना कुआं है. दोनों से बच्चों को खतरा है. स्कूल प्रबंधन ने विभाग से बाउंड्री वॉल की मांग तो की है. लेकिन यह मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है. स्कूल में बाउंड्री वॉल बन जाने से यहां के बच्चों को किसी तरह का कोई खतरा नहीं होगा.

Last Updated : Sep 6, 2023, 5:18 PM IST
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