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मुकदमे के दौरान मवेशियों को जब्त करने के नियम वापस ले सरकार : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुकदमों के दौरान कारोबारियों और ट्रांसपोर्टर्स के मवेशियों को जब्त करने संबंधी 2017 के नियम पशुओं की क्रूरता से रोकथाम कानून के खिलाफ हैं. अदालत ने केंद्र से कहा है कि अगर इन नियमों को वापस नहीं लिया गया या इनमें संशोधन नहीं किया गया तो इन पर रोक लगा दी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jan 4, 2021, 4:32 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि मुकदमों के दौरान कारोबारियों और ट्रांसपोर्टर्स के मवेशियों को जब्त करने संबंधी 2017 के नियमों को वापस ले या इसमें संशोधन करे, क्योंकि ये पशुओं की क्रूरता से रोकथाम कानून के खिलाफ हैं.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि केंद्र ने अगर इन नियमों को वापस नहीं लिया या इनमें संशोधन नहीं किया गया तो इन पर रोक लगा दी जाएगी, क्योंकि कानून के तहत दोषी पाए जाने पर ही मवेशियों को जब्त किया जा सकता है.

पीठ ने कहा कि ये मवेशी संबंधित व्यक्तियों की आजीविका का साधन हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. सूद से कहा कि सरकार आरोपी को दोषी ठहराए जाने से पहले ही इस तरह मवेशियों को जब्त करके नहीं रख सकती है.

मामले की सुनवाई शुरू होते ही सूद ने पीठ को सूचित किया कि 2017 के नियमों को अधिसूचित किया जा चुका है.

पीठ ने कहा कि ये मवेशी आजीविका का साधन हैं. हम पालतू कुत्ते और बिल्लियों की बात नहीं कर रहे हैं. लोग अपने मवेशियों के सहारे जीते हैं. आप उन्हें व्यक्ति को दोषी ठहराये जाने से पहले ही जब्त करके नहीं रख सकते. आपके नियम कानून के विपरीत हैं. आप इन्हें वापस लें या हम इन पर रोक लगा देंगे.

सूद ने कहा कि नियमों को अधिसूचित किया जा चुका है, क्योंकि मवेशियों के साथ अत्याचार किया जा रहा था.

पीठ ने कहा, 'हम आपको यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि प्रावधान बहुत स्पष्ट है कि दोषी ठहराए जाने पर व्यक्ति अपना पशु गंवा देगा. आप नियम में संशोधन करें अथवा हम इस पर रोक लगा देंगे. हम ऐसी स्थिति नहीं रहने देंगे, जिसमें नियम कानून के प्रावधानों के विपरीत चल रहे हों.'

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने इस मामले में आवश्यक निर्देश प्राप्त करने के लिए सुनवाई एक सप्ताह स्थगित करने का अनुरोध किया, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया. इस मामले में अब 11 जनवरी को अगली सुनवाई होगी.

पशुओं से क्रूरता की रोकथाम कानून, 1960 के तहत पशुओं से क्रूरता की रोकथाम (देखभाल और मुकदमे की संपत्ति का रखरखाव) नियम, 2017 बनाए गए थे, जिन्हें 23 मई, 2017 को अधिसूचित किया गया था.

पढ़ें- कानून बनाने से 60 दिन पहले मसाैदा सार्वजनिक को दायर जनहित याचिका

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 17 अगस्त को केंद्र से कहा था कि इन नियमों को अधिसूचित किए जाने के बारे में वक्तव्य दिया जाए. न्यायालय ने बुफैलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर दो जुलाई, 2019 को केंद्र से जवाब मांगा था. इन कारोबारियों ने अपनी याचिका में 2017 के नियमों को चुनौती दी थी.

इन कारोबारियों का आरोप था कि उन्हें जबरन उनके मवेशियों से वंचित किया जा रहा है और इन नियमों के तहत जब्त किए जा रहे मवेशियों को 'गौशाला' भेजा जा रहा है.

याचिका में कहा गया था कि ये मवेशी अनेक परिवारों की जीविका का साधन हैं. एसोसिएशन ने याचिका में आरोप लगाया था कि 2017 में बनाए गए नियम 1960 के कानून के दायरे से बाहर निकल गए हैं.

मई, 2017 में बनाए गए इन नियमों के अनुसार, इस कानून के तहत मुकदमों का सामना कर रहे व्यक्ति के मवेशियों को मजिस्ट्रेट जब्त कर सकते हैं और इन मवेशियों को बाद में अस्पताल या गौशाला भेज दिया जाता है.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि मुकदमों के दौरान कारोबारियों और ट्रांसपोर्टर्स के मवेशियों को जब्त करने संबंधी 2017 के नियमों को वापस ले या इसमें संशोधन करे, क्योंकि ये पशुओं की क्रूरता से रोकथाम कानून के खिलाफ हैं.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि केंद्र ने अगर इन नियमों को वापस नहीं लिया या इनमें संशोधन नहीं किया गया तो इन पर रोक लगा दी जाएगी, क्योंकि कानून के तहत दोषी पाए जाने पर ही मवेशियों को जब्त किया जा सकता है.

पीठ ने कहा कि ये मवेशी संबंधित व्यक्तियों की आजीविका का साधन हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. सूद से कहा कि सरकार आरोपी को दोषी ठहराए जाने से पहले ही इस तरह मवेशियों को जब्त करके नहीं रख सकती है.

मामले की सुनवाई शुरू होते ही सूद ने पीठ को सूचित किया कि 2017 के नियमों को अधिसूचित किया जा चुका है.

पीठ ने कहा कि ये मवेशी आजीविका का साधन हैं. हम पालतू कुत्ते और बिल्लियों की बात नहीं कर रहे हैं. लोग अपने मवेशियों के सहारे जीते हैं. आप उन्हें व्यक्ति को दोषी ठहराये जाने से पहले ही जब्त करके नहीं रख सकते. आपके नियम कानून के विपरीत हैं. आप इन्हें वापस लें या हम इन पर रोक लगा देंगे.

सूद ने कहा कि नियमों को अधिसूचित किया जा चुका है, क्योंकि मवेशियों के साथ अत्याचार किया जा रहा था.

पीठ ने कहा, 'हम आपको यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि प्रावधान बहुत स्पष्ट है कि दोषी ठहराए जाने पर व्यक्ति अपना पशु गंवा देगा. आप नियम में संशोधन करें अथवा हम इस पर रोक लगा देंगे. हम ऐसी स्थिति नहीं रहने देंगे, जिसमें नियम कानून के प्रावधानों के विपरीत चल रहे हों.'

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने इस मामले में आवश्यक निर्देश प्राप्त करने के लिए सुनवाई एक सप्ताह स्थगित करने का अनुरोध किया, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया. इस मामले में अब 11 जनवरी को अगली सुनवाई होगी.

पशुओं से क्रूरता की रोकथाम कानून, 1960 के तहत पशुओं से क्रूरता की रोकथाम (देखभाल और मुकदमे की संपत्ति का रखरखाव) नियम, 2017 बनाए गए थे, जिन्हें 23 मई, 2017 को अधिसूचित किया गया था.

पढ़ें- कानून बनाने से 60 दिन पहले मसाैदा सार्वजनिक को दायर जनहित याचिका

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 17 अगस्त को केंद्र से कहा था कि इन नियमों को अधिसूचित किए जाने के बारे में वक्तव्य दिया जाए. न्यायालय ने बुफैलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर दो जुलाई, 2019 को केंद्र से जवाब मांगा था. इन कारोबारियों ने अपनी याचिका में 2017 के नियमों को चुनौती दी थी.

इन कारोबारियों का आरोप था कि उन्हें जबरन उनके मवेशियों से वंचित किया जा रहा है और इन नियमों के तहत जब्त किए जा रहे मवेशियों को 'गौशाला' भेजा जा रहा है.

याचिका में कहा गया था कि ये मवेशी अनेक परिवारों की जीविका का साधन हैं. एसोसिएशन ने याचिका में आरोप लगाया था कि 2017 में बनाए गए नियम 1960 के कानून के दायरे से बाहर निकल गए हैं.

मई, 2017 में बनाए गए इन नियमों के अनुसार, इस कानून के तहत मुकदमों का सामना कर रहे व्यक्ति के मवेशियों को मजिस्ट्रेट जब्त कर सकते हैं और इन मवेशियों को बाद में अस्पताल या गौशाला भेज दिया जाता है.

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