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surguja Inspirational Story तिब्बती रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर ने 8 एकड़ में बनाया नाशपती और लीची गार्डन, 5 देशों की वरायटी उपलब्ध - Inspirational Story

ex army litchi farm Mainpat छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मैनपाट में तिब्बती कैंप हैं. इसी तिब्बती कैंप में एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर लाकपा खेती किसानी कर रहे हैं. आधुनिक खेती से एक्स आर्मी मैन ने मैनपाट में 8 एकड़ जमीन को नाशपाती और लीची गार्डन में बदल दिया है. इस गार्डन में कुल 27 प्रकार के फलदार वॄक्ष लगाए गए हैं लेकिन मुख्य रूप से लीची और नाशपाती ही लगाए गये हैं. मैनपाट का क्लाइमेट भी इन फलों के लिए अनुकूल होने के कारण इनके खेतों में 27 किस्म के फलों की पैदावार हो रही है. जिसमें कई बाहर के देशों की भी प्रजातियां है. litchi garden in surguja

ex army litchi farm Mainpat
मैनपाट में एक्स आर्मी चीफ का लीची फार्म
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Published : Feb 16, 2023, 2:11 PM IST

मैनपाट में एक्स आर्मी चीफ का लीची फार्म

सरगुजा: रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर लाकपा बताते हैं " मेरा जन्म मैनपाट में ही हुआ है यहीं पढ़ाई किया. पढ़ने के बाद मैं आर्मी में भर्ती हुआ और 2017 में मैं रिटायर हुआ. रिटायरमेंट के बाद मैं यहां फार्मिग करता हूँ. पहले जो खेती का तरीका था, हम सब जानते हैं उसमें तो ज्यादा फायदा नहीं है. इसलिये मैंने इसको बदलकर आज के युग में जो खेती का तरीका होता है उस तरह से लगाया है. मैंने लीची और नाशापती लगाए हैं. 27 किस्म का फ्रूट लगाया हूं. इसके साथ ही गैप में इंटर क्रॉपिंग करता रहता हूं. इस तरह से 12 महीने खेती होती है. "

5 देशों के लीची की वराइटी: "मैं इंडियन आर्मी में था. मेरे कई ऐसे दोस्त बने जो अलग लग देशों में रहते हैं. मैं उनके सामने अपनी बात रखता था. तो उन्होंने मुझे सपोर्ट किया जिससे मैनपाट में थाईलैंड, चाइना, बांग्लादेश और वियतनाम का लीची है. चार बाहर देश का है. इसके साथ ही हमारा भारत का बिहार, मुजफ्फरपुर की लीची की किस्म है. "

गार्डन में 1 हजार से ज्यादा फलदार वृक्ष: "लीची के 408 पेड़ हैं. नासपाती 400 पेड़ हैं. अन्य फ्रूट भी हैं. लीची की ये जो फसल तैयार होगी. उसका तीसरा साल होगा और नाशपती का दूसरा साल होगा. इसमे कोई नुकसान नहीं है फायदा ही है. क्योंकि दो तीन साल से हम इसका रिजल्ट देख रहे हैं. बढ़िया है."

Mainpat Festival 2023: मैनपाट महोत्सव में अंबिकापुर के अमन ने माहौल को बनाया सूफियाना

बागवानी से हुई तरक्की: "जब पूर्वज भारत आये तो वो समय और अभी के समय के जमीन आसमान का अंतर है. उस समय तो यहां जंगल था. ज्यादातर ये तिब्बती लोगों के लिये ही था. ठंड में रहने के कारण तिब्बती लोगों के यहां बसाया गया था. पहले गरीबी थी लेकिन अब तरक्की हो गई है. "

किसानों को सिखाते हैं आधुनिक खेती: "मैं किसानों को बताता हूं कि पहले जमाने का जो खेती का तरीका है उसमें फायदा नहीं है तो नई पद्धति के साथ किसानी करें. लोग इसे देखने आते हैं. अब ये टूरिस्ट प्लेस बन चुका है. लोग दूर दूर से इसे देखने आते हैं. तो मैं उनको नई खेती के तरीके के बारे में बताता हूं. "

विदेशों में डिमांड: लाकपा अपने फार्म में 27 प्रकार में फलों के साथ खरगोश पालन, मधुमक्खी पालन के साथ इमारती लकड़ियां भी किनारे किनारे लगाते हैं. इनके फार्म में उत्पादित होने वाला शहद अमेरिका जाता है. पूरा शहद ये भारत से बाहर बेच देते हैं.

मैनपाट में एक्स आर्मी चीफ का लीची फार्म

सरगुजा: रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर लाकपा बताते हैं " मेरा जन्म मैनपाट में ही हुआ है यहीं पढ़ाई किया. पढ़ने के बाद मैं आर्मी में भर्ती हुआ और 2017 में मैं रिटायर हुआ. रिटायरमेंट के बाद मैं यहां फार्मिग करता हूँ. पहले जो खेती का तरीका था, हम सब जानते हैं उसमें तो ज्यादा फायदा नहीं है. इसलिये मैंने इसको बदलकर आज के युग में जो खेती का तरीका होता है उस तरह से लगाया है. मैंने लीची और नाशापती लगाए हैं. 27 किस्म का फ्रूट लगाया हूं. इसके साथ ही गैप में इंटर क्रॉपिंग करता रहता हूं. इस तरह से 12 महीने खेती होती है. "

5 देशों के लीची की वराइटी: "मैं इंडियन आर्मी में था. मेरे कई ऐसे दोस्त बने जो अलग लग देशों में रहते हैं. मैं उनके सामने अपनी बात रखता था. तो उन्होंने मुझे सपोर्ट किया जिससे मैनपाट में थाईलैंड, चाइना, बांग्लादेश और वियतनाम का लीची है. चार बाहर देश का है. इसके साथ ही हमारा भारत का बिहार, मुजफ्फरपुर की लीची की किस्म है. "

गार्डन में 1 हजार से ज्यादा फलदार वृक्ष: "लीची के 408 पेड़ हैं. नासपाती 400 पेड़ हैं. अन्य फ्रूट भी हैं. लीची की ये जो फसल तैयार होगी. उसका तीसरा साल होगा और नाशपती का दूसरा साल होगा. इसमे कोई नुकसान नहीं है फायदा ही है. क्योंकि दो तीन साल से हम इसका रिजल्ट देख रहे हैं. बढ़िया है."

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बागवानी से हुई तरक्की: "जब पूर्वज भारत आये तो वो समय और अभी के समय के जमीन आसमान का अंतर है. उस समय तो यहां जंगल था. ज्यादातर ये तिब्बती लोगों के लिये ही था. ठंड में रहने के कारण तिब्बती लोगों के यहां बसाया गया था. पहले गरीबी थी लेकिन अब तरक्की हो गई है. "

किसानों को सिखाते हैं आधुनिक खेती: "मैं किसानों को बताता हूं कि पहले जमाने का जो खेती का तरीका है उसमें फायदा नहीं है तो नई पद्धति के साथ किसानी करें. लोग इसे देखने आते हैं. अब ये टूरिस्ट प्लेस बन चुका है. लोग दूर दूर से इसे देखने आते हैं. तो मैं उनको नई खेती के तरीके के बारे में बताता हूं. "

विदेशों में डिमांड: लाकपा अपने फार्म में 27 प्रकार में फलों के साथ खरगोश पालन, मधुमक्खी पालन के साथ इमारती लकड़ियां भी किनारे किनारे लगाते हैं. इनके फार्म में उत्पादित होने वाला शहद अमेरिका जाता है. पूरा शहद ये भारत से बाहर बेच देते हैं.

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