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रूस-यूक्रेन टकराव से कच्चे तेल की कीमत में उछाल भारत के लिए भी चुनौती

रूस-यूक्रेन संकट के बीच वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आना भारत के लिए भी चुनौती है. कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गया है (crude prices high). मूडीज की रिपोर्ट में भी इसे लेकर चिंता जताई गई है. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानंद त्रिपाठी की रिपोर्ट.

crude prices hit new high
कीमत में उछाल
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Published : Feb 23, 2022, 10:01 PM IST

नई दिल्ली : यूक्रेन पर हमले की आशंका तथा रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों से मंगलवार को वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई. सितंबर 2014 के बाद से ये सबसे अधिक है. रूस प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक और दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है. भारत अपनी कुल कच्चे तेल जरूरतों का 80 प्रतिशत जबकि प्राकृतिक गैस की आवश्यकताओं का आधा हिस्सा आयात करता है.

वित्त मंत्री वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी मंगलवार को कहा था कि रूस-यूक्रेन संकट और वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी भारत में वित्तीय स्थिरता के लिए चुनौती है. वित्त मंत्री ने कहा था, 'यह कहना मुश्किल है कि कच्चे तेल की कीमत कहां जाएगी. एफएसडीसी की बैठक में भी हमने उन चुनौतियों पर गौर किया जिससे वित्तीय स्थिरता को खतरा है. कच्चा तेल उनमें से एक है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हालात चिंताजनक हैं.'

पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल की कीमत लगभग 40% बढ़ गई है. यह पिछले साल दिसंबर की शुरुआत में लगभग 70 डॉलर प्रति बैरल पर था.

भारत कच्चे तेल का लगभग 80% विदेशों से आयात करता है. गैस में भी अन्य देशों पर निर्भर है. रूस-यूक्रेन संकट के कारण किसी भी आपूर्ति में व्यवधान के गंभीर परिणाम होंगे क्योंकि न केवल पेट्रोल और डीजल की घरेलू कीमतें दबाव में होंगी बल्कि भारत का आयात भी काफी बढ़ जाएगा. पेट्रोल, डीजल की कीमतें पहले से ही उच्च स्तर पर हैं क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के करीब है जबकि डीजल 90 रुपये प्रति लीटर.

जनता के दबाव के कारण पिछले साल नवंबर में सरकार ने पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में 5 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी. केंद्र ने उत्पाद शुल्क में कटौती के बाद राज्यों द्वारा लगाए गए मूल्य वर्धित कर (वैट) या बिक्री कर में भी कटौती की गई, जिससे उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिली थी. अब कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब होने के कारण ये ऐसा हो सकता है कि पांच राज्यों में चुनाव के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में फिर बढ़ोत्तरी कर दी जाए.

मुद्रास्फीति का दबाव
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि का असर अन्य चीजों पर पड़ना स्वाभाविक है. डीजल मुख्य परिवहन ईंधन है, ऐसे में इसकी कीमतें बढ़ने से अन्य वस्तुओं की कीमतों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, जो मुद्रास्फीति पर दबाव डालेगा. अनुमानों के अनुसार, कच्चे तेल की कीमत में 10% की वृद्धि से भारत के थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में लगभग 1% की वृद्धि होती है, जो पिछले 11 महीनों से दोहरे अंकों में मंडरा रहा है.

मूडीज की रिपोर्ट में भी जताई गई चिंता
साख निर्धारण और शोध से जुड़ी कंपनी मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस ने भी इसे लेकर चिंता जताई है. मूडीज इनवेस्टर सर्विस के प्रबंध निदेशक माइकल टेलर ने बुधवार को कहा कि आयात की स्थिति में बदलाव से व्यापार पर असर दिख सकता है. हालांकि, मध्य एशिया में जिंस उत्पादक देशों के पास चीन को आपूर्ति बढ़ाने का विकल्प हो सकता है. आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी बाधाएं बढ़ेंगी और इससे क्षेत्र में मुद्रास्फीतिक दबाव बढ़ेगा.

टेलर ने कहा, 'दोनों देशों के बीच संघर्ष की स्थिति में वैश्विक स्तर पर तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की वैश्विक कीमतों में तेज उछाल आ सकता है. यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कुछ निर्यातकों के लिए सकारात्मक होगा. जबकि काफी संख्या में शुद्ध रूप से ऊर्जा आयातकों पर इसका असर नकारात्मक होगा.' उन्होंने कहा, 'हालांकि, राहत की बात यह है कि कई एशियाई अर्थव्यवस्थाओं का एलएनजी के लिये दीर्घकालीन आपूर्ति अनुबंध है. इससे हाजिर मूल्य में उतार-चढ़ाव का असर कम होगा.'

पढ़ें- यूक्रेन संकट, कच्चे तेल के ऊंचे दाम वित्तीय स्थिरता के लिये चुनौती : सीतारमण

नई दिल्ली : यूक्रेन पर हमले की आशंका तथा रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों से मंगलवार को वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई. सितंबर 2014 के बाद से ये सबसे अधिक है. रूस प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक और दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है. भारत अपनी कुल कच्चे तेल जरूरतों का 80 प्रतिशत जबकि प्राकृतिक गैस की आवश्यकताओं का आधा हिस्सा आयात करता है.

वित्त मंत्री वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी मंगलवार को कहा था कि रूस-यूक्रेन संकट और वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी भारत में वित्तीय स्थिरता के लिए चुनौती है. वित्त मंत्री ने कहा था, 'यह कहना मुश्किल है कि कच्चे तेल की कीमत कहां जाएगी. एफएसडीसी की बैठक में भी हमने उन चुनौतियों पर गौर किया जिससे वित्तीय स्थिरता को खतरा है. कच्चा तेल उनमें से एक है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हालात चिंताजनक हैं.'

पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल की कीमत लगभग 40% बढ़ गई है. यह पिछले साल दिसंबर की शुरुआत में लगभग 70 डॉलर प्रति बैरल पर था.

भारत कच्चे तेल का लगभग 80% विदेशों से आयात करता है. गैस में भी अन्य देशों पर निर्भर है. रूस-यूक्रेन संकट के कारण किसी भी आपूर्ति में व्यवधान के गंभीर परिणाम होंगे क्योंकि न केवल पेट्रोल और डीजल की घरेलू कीमतें दबाव में होंगी बल्कि भारत का आयात भी काफी बढ़ जाएगा. पेट्रोल, डीजल की कीमतें पहले से ही उच्च स्तर पर हैं क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के करीब है जबकि डीजल 90 रुपये प्रति लीटर.

जनता के दबाव के कारण पिछले साल नवंबर में सरकार ने पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में 5 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी. केंद्र ने उत्पाद शुल्क में कटौती के बाद राज्यों द्वारा लगाए गए मूल्य वर्धित कर (वैट) या बिक्री कर में भी कटौती की गई, जिससे उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिली थी. अब कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब होने के कारण ये ऐसा हो सकता है कि पांच राज्यों में चुनाव के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में फिर बढ़ोत्तरी कर दी जाए.

मुद्रास्फीति का दबाव
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि का असर अन्य चीजों पर पड़ना स्वाभाविक है. डीजल मुख्य परिवहन ईंधन है, ऐसे में इसकी कीमतें बढ़ने से अन्य वस्तुओं की कीमतों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, जो मुद्रास्फीति पर दबाव डालेगा. अनुमानों के अनुसार, कच्चे तेल की कीमत में 10% की वृद्धि से भारत के थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में लगभग 1% की वृद्धि होती है, जो पिछले 11 महीनों से दोहरे अंकों में मंडरा रहा है.

मूडीज की रिपोर्ट में भी जताई गई चिंता
साख निर्धारण और शोध से जुड़ी कंपनी मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस ने भी इसे लेकर चिंता जताई है. मूडीज इनवेस्टर सर्विस के प्रबंध निदेशक माइकल टेलर ने बुधवार को कहा कि आयात की स्थिति में बदलाव से व्यापार पर असर दिख सकता है. हालांकि, मध्य एशिया में जिंस उत्पादक देशों के पास चीन को आपूर्ति बढ़ाने का विकल्प हो सकता है. आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी बाधाएं बढ़ेंगी और इससे क्षेत्र में मुद्रास्फीतिक दबाव बढ़ेगा.

टेलर ने कहा, 'दोनों देशों के बीच संघर्ष की स्थिति में वैश्विक स्तर पर तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की वैश्विक कीमतों में तेज उछाल आ सकता है. यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कुछ निर्यातकों के लिए सकारात्मक होगा. जबकि काफी संख्या में शुद्ध रूप से ऊर्जा आयातकों पर इसका असर नकारात्मक होगा.' उन्होंने कहा, 'हालांकि, राहत की बात यह है कि कई एशियाई अर्थव्यवस्थाओं का एलएनजी के लिये दीर्घकालीन आपूर्ति अनुबंध है. इससे हाजिर मूल्य में उतार-चढ़ाव का असर कम होगा.'

पढ़ें- यूक्रेन संकट, कच्चे तेल के ऊंचे दाम वित्तीय स्थिरता के लिये चुनौती : सीतारमण

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