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रेपो रेट बढ़ने से आपका लोन कितना हुआ महंगा, समझें

रिजर्व बैंक ने आज रेपो दर में वृद्धि की घोषणा की. इसका सीधा अर्थ है कि आपका लोन महंगा हो गया. आपको पहले के मुकाबले अतिरिक्त ब्याज चुकाने होंगे. आप अंदाजा लगाइए कि आज से 20 साल पहले यदि आपने 20 लाख रुपये का कोई कर्ज लिया होगा, तो आज की तारीख में आपको करीब-करीब दो लाख रुपये अतिरिक्त चुकाने होंगे. आरबीआई ने सिर्फ इस वित्तीय वर्ष में तीन बार रेपो दर बढ़ाए हैं. 1.4 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है. रेपो दर के बढ़ने का अर्थ होता है कि बैंक आपको महंगे दर पर लोन उपलब्ध करवाएगा. पढे़ं पूरी खबर.

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Published : Aug 5, 2022, 7:55 PM IST

Updated : Aug 5, 2022, 8:20 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को खुदरा महंगाई को काबू में लाने के लिये नीतिगत दर रेपो को 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.4 प्रतिशत कर दिया. इससे मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ने के साथ आवास, वाहन और अन्य कर्ज लेना महंगा होगा. चालू वित्त वर्ष की चौथी मौद्रिक नीति समीक्षा में लगातार तीसरी बार नीतिगत दर बढ़ाई गई है. कुल मिलाकर 2022-23 में अबतक रेपो दर में 1.4 प्रतिशत की वृद्धि की जा चुकी है. इसके साथ ही प्रमुख नीतिगत दर महामारी-पूर्व के स्तर से ऊपर पहुंच गयी है. फरवरी, 2020 में रेपो दर 5.15 प्रतिशत थी. इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने कहा कि आरबीआई के तटस्थ नीतिगत दर तक पहुंचने तक रेपो दर में वृद्धि का सिलसिला जारी रख सकता है.

अब आप आसान भाषा में समझिए कि किस तरह से कर्ज लेना महंगा हो गया है --- आपको बता दें कि जब भी आप होम लोन लेते हैं, तो दो तरह की ब्याज दरें होती हैं. एक को फ्लोटर रेट और दूसरे को फ्लेक्सिबल रेट कहा जाता है. प्लोटर रेट का मतलब होता है कि आपका ब्याज दर फिक्स्ड रहेगा. यानी रेपो रेट बढ़ता है या घटता है, इसका कोई भी प्रभाव आपके लोन पर नहीं पड़ने वाला है. लेकिन प्लेक्सिबल रेट का मतलब होता है ब्याज दर का बदलना. यह रेपो रेट पर निर्भर होता है. रेपो रेट में जैसे ही बदलाव होंगे, आपकी ईएमआई प्रभावित हो जाएगी. ईएमआई किसी भी लोन पर चुकाई जाने वाली मासिक किस्त को कहा जाता है.

इसे और अधिक सरल भाषा में समझना चाहें, तो समझ सकते हैं. मान लीजिए आपने आज से 20 साल पहले 20 लाख रुपये का एक होम लोन लिया था. तब आपने यह तय किया था कि इसे हम 20 सालों में चुका देंगे. उस समय की ब्याज दर 7.55 प्रतिशत थी. उस समय के हिसाब से ब्याज दर 18.81 लाख रु. बनता है. यानी आपको मूल धन और ब्याज (20 + 18.81 = 38.81) मिलाकर 38.81 लाख रुपये चुकाने थे. लेकिन ब्याज दर बढ़ जाने की वजह से आपको 38.81 लाख नहीं, बल्कि 40.29 लाख चुकाने होंगे. क्योंकि इस समय ब्याज दर 8.05 प्रतिशत हो गई है. आप यह कह सकते हैं कि सीधे तौर पर आपको करीब-करीब दो लाख रुपये अधिक चुकाने होंगे.

इससे आप एक और निष्कर्ष निकाल सकते हैं- मात्र आधी फीसदी ब्याज दर बढ़ जाए, तो 20 लाख रुपये के लोन पर दो लाख रुपये का फर्क पड़ जाता है. इसके आधार पर आप अनुमान लगा सकते हैं कि आपने यदि अधिक रुपये का लोन ले रखा है, तो आपको कितनी रकम चुकानी होगी. एक साधारण अनुमान है कि 30 लाख रुपये के लोन पर करीब-करीब ढाई लाख रुपये अतिरिक्त चुकाने होंगे.

कुछ प्रमुख बैंकों के होम लोन की दरें, ये सभी दरें नई रेपो दर की घोषणा होने से पहले की हैं, यानि इनमें बढ़ोतरी होनी तय है. सभी लोन 30 लाख रुपये के लोन पर आधारित हैं.

--पीएनबी--- 7.45 -8.85 फीसदी

--एसबीआई ---7.55-8.55 फीसदी

--बैंक ऑफ महाराष्ट्र ---6.8-8.2 फीसदी

--बैंक ऑफ बड़ौदा ---- 6.9-8.25 फीसदी

--यूनियन बैंक ऑफ इंडिया --- 6.9-8.6 फीसदी

--पंजाब एंड सिंध बैंक ---- 6.6-7.7 फीसदी

--बैंक ऑफ इंडिया --- 7.25-8.6 फीसदी

क्या है रेपो रेट- जिस दर पर रिजर्व बैंक अन्य बैंको को कर्ज देता है, उसे रेपो दर कहते हैं. जाहिर है, जब रिजर्व बैंक रेपो दर बढ़ाएगा, तो बैंकों को लोन अधिक महंगा मिलता है. और यदि बैंकों को खुद लोन महंगा मिलेगा, तो वह फिर अधिक दर पर ग्राहकों को लोन देंगे. इसके उलट यदि रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को कम दर पर ऋण उपलब्ध करवाएंगे, तो बैंक भी अपने ग्राहकों को कम दर पर ब्याज देंगे.

आखिर रिजर्व बैंक ने रेपो दर में बदलाव क्यों किया - अर्थशास्त्र का नियम है कि यदि बाजार में अधिक नकदी उपलब्ध होगा, तो चीजें महंगी होती हैं. इसलिए रिजर्व बैंक रेपो दर बढ़ाता है. इससे लोन महंगे हो जाते हैं. अब ग्राहक लोन से बचना चाहता है. और लोन नहीं मिलेगा, तो वह खरीददारी या निवेश भी नहीं करेगा. इसका अर्थ है कि बाजार में कैश कम हो जाएंगे. मांग कम हो जाएगी. और जैसे ही मांग कम हो जाएगी, महंगाई घटने लगती है.

इसके ठीक उलट, जब बाजार में मांग की बहुत अधिक कमी होने लगती है और इकोनोमी की रफ्तार सुस्त हो जाती है, तो रिजर्व बैंक बाजार में अधिक नकदी का फ्लो करता है. इसके लिए रेपो दर घटा दिया जाता है. रेपो रेट घटने से लोन सस्ते हो जाते हैं. और लोन जैसे ही सस्ता हुआ, लोग पैसा लेकर निवेश या खरीददारी शुरू कर देते हैं.

ये दोनों कदम इकोनोमी को बैलेंस करते हैं. इससे ही जुड़ा एक और टर्म है- रिवर्स रेपो रेट. दरअसल, हर बैंक को अपनी नकद राशि का एक हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. रिजर्व बैंक इसके बदले बैंकों को ब्याज देता है. इसलिए बाजार से कैश फ्लो को कम करना होता है, तो रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो रेट अधिक कर देता है. यानी बैंक अधिक ब्याज पाने के लिए ज्यादा पैसा रिजर्व बैंक के पास जमा कर देते हैं. पर, रिवर्स रेपो रेट यदि कम कर दिया जाए, तो बैंक रिजर्व बैंक के पास पैसा नहीं रखते हैं. और पैसा बाजार में उपलब्ध रहता है. यानी कैश अधिक से अधिक बाजार में ही रहता है.

लोन महंगा करने पर रिजर्व बैंक ने क्या दिया जवाब- जब कोई ऋण की मांग होती है, तो बैंक उस ऋण वृद्धि को तभी बनाए रख सकते हैं और उसका समर्थन कर सकते हैं, जब उनके पास अधिक जमा राशि हो. वे ऋण वृद्धि का समर्थन करने के लिए केंद्रीय बैंक के धन पर हर वक्त निर्भर नहीं रह सकते हैं... उन्हें अपने खुद के संसाधन और कोष जुटाने होंगे.

नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को खुदरा महंगाई को काबू में लाने के लिये नीतिगत दर रेपो को 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.4 प्रतिशत कर दिया. इससे मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ने के साथ आवास, वाहन और अन्य कर्ज लेना महंगा होगा. चालू वित्त वर्ष की चौथी मौद्रिक नीति समीक्षा में लगातार तीसरी बार नीतिगत दर बढ़ाई गई है. कुल मिलाकर 2022-23 में अबतक रेपो दर में 1.4 प्रतिशत की वृद्धि की जा चुकी है. इसके साथ ही प्रमुख नीतिगत दर महामारी-पूर्व के स्तर से ऊपर पहुंच गयी है. फरवरी, 2020 में रेपो दर 5.15 प्रतिशत थी. इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने कहा कि आरबीआई के तटस्थ नीतिगत दर तक पहुंचने तक रेपो दर में वृद्धि का सिलसिला जारी रख सकता है.

अब आप आसान भाषा में समझिए कि किस तरह से कर्ज लेना महंगा हो गया है --- आपको बता दें कि जब भी आप होम लोन लेते हैं, तो दो तरह की ब्याज दरें होती हैं. एक को फ्लोटर रेट और दूसरे को फ्लेक्सिबल रेट कहा जाता है. प्लोटर रेट का मतलब होता है कि आपका ब्याज दर फिक्स्ड रहेगा. यानी रेपो रेट बढ़ता है या घटता है, इसका कोई भी प्रभाव आपके लोन पर नहीं पड़ने वाला है. लेकिन प्लेक्सिबल रेट का मतलब होता है ब्याज दर का बदलना. यह रेपो रेट पर निर्भर होता है. रेपो रेट में जैसे ही बदलाव होंगे, आपकी ईएमआई प्रभावित हो जाएगी. ईएमआई किसी भी लोन पर चुकाई जाने वाली मासिक किस्त को कहा जाता है.

इसे और अधिक सरल भाषा में समझना चाहें, तो समझ सकते हैं. मान लीजिए आपने आज से 20 साल पहले 20 लाख रुपये का एक होम लोन लिया था. तब आपने यह तय किया था कि इसे हम 20 सालों में चुका देंगे. उस समय की ब्याज दर 7.55 प्रतिशत थी. उस समय के हिसाब से ब्याज दर 18.81 लाख रु. बनता है. यानी आपको मूल धन और ब्याज (20 + 18.81 = 38.81) मिलाकर 38.81 लाख रुपये चुकाने थे. लेकिन ब्याज दर बढ़ जाने की वजह से आपको 38.81 लाख नहीं, बल्कि 40.29 लाख चुकाने होंगे. क्योंकि इस समय ब्याज दर 8.05 प्रतिशत हो गई है. आप यह कह सकते हैं कि सीधे तौर पर आपको करीब-करीब दो लाख रुपये अधिक चुकाने होंगे.

इससे आप एक और निष्कर्ष निकाल सकते हैं- मात्र आधी फीसदी ब्याज दर बढ़ जाए, तो 20 लाख रुपये के लोन पर दो लाख रुपये का फर्क पड़ जाता है. इसके आधार पर आप अनुमान लगा सकते हैं कि आपने यदि अधिक रुपये का लोन ले रखा है, तो आपको कितनी रकम चुकानी होगी. एक साधारण अनुमान है कि 30 लाख रुपये के लोन पर करीब-करीब ढाई लाख रुपये अतिरिक्त चुकाने होंगे.

कुछ प्रमुख बैंकों के होम लोन की दरें, ये सभी दरें नई रेपो दर की घोषणा होने से पहले की हैं, यानि इनमें बढ़ोतरी होनी तय है. सभी लोन 30 लाख रुपये के लोन पर आधारित हैं.

--पीएनबी--- 7.45 -8.85 फीसदी

--एसबीआई ---7.55-8.55 फीसदी

--बैंक ऑफ महाराष्ट्र ---6.8-8.2 फीसदी

--बैंक ऑफ बड़ौदा ---- 6.9-8.25 फीसदी

--यूनियन बैंक ऑफ इंडिया --- 6.9-8.6 फीसदी

--पंजाब एंड सिंध बैंक ---- 6.6-7.7 फीसदी

--बैंक ऑफ इंडिया --- 7.25-8.6 फीसदी

क्या है रेपो रेट- जिस दर पर रिजर्व बैंक अन्य बैंको को कर्ज देता है, उसे रेपो दर कहते हैं. जाहिर है, जब रिजर्व बैंक रेपो दर बढ़ाएगा, तो बैंकों को लोन अधिक महंगा मिलता है. और यदि बैंकों को खुद लोन महंगा मिलेगा, तो वह फिर अधिक दर पर ग्राहकों को लोन देंगे. इसके उलट यदि रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को कम दर पर ऋण उपलब्ध करवाएंगे, तो बैंक भी अपने ग्राहकों को कम दर पर ब्याज देंगे.

आखिर रिजर्व बैंक ने रेपो दर में बदलाव क्यों किया - अर्थशास्त्र का नियम है कि यदि बाजार में अधिक नकदी उपलब्ध होगा, तो चीजें महंगी होती हैं. इसलिए रिजर्व बैंक रेपो दर बढ़ाता है. इससे लोन महंगे हो जाते हैं. अब ग्राहक लोन से बचना चाहता है. और लोन नहीं मिलेगा, तो वह खरीददारी या निवेश भी नहीं करेगा. इसका अर्थ है कि बाजार में कैश कम हो जाएंगे. मांग कम हो जाएगी. और जैसे ही मांग कम हो जाएगी, महंगाई घटने लगती है.

इसके ठीक उलट, जब बाजार में मांग की बहुत अधिक कमी होने लगती है और इकोनोमी की रफ्तार सुस्त हो जाती है, तो रिजर्व बैंक बाजार में अधिक नकदी का फ्लो करता है. इसके लिए रेपो दर घटा दिया जाता है. रेपो रेट घटने से लोन सस्ते हो जाते हैं. और लोन जैसे ही सस्ता हुआ, लोग पैसा लेकर निवेश या खरीददारी शुरू कर देते हैं.

ये दोनों कदम इकोनोमी को बैलेंस करते हैं. इससे ही जुड़ा एक और टर्म है- रिवर्स रेपो रेट. दरअसल, हर बैंक को अपनी नकद राशि का एक हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. रिजर्व बैंक इसके बदले बैंकों को ब्याज देता है. इसलिए बाजार से कैश फ्लो को कम करना होता है, तो रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो रेट अधिक कर देता है. यानी बैंक अधिक ब्याज पाने के लिए ज्यादा पैसा रिजर्व बैंक के पास जमा कर देते हैं. पर, रिवर्स रेपो रेट यदि कम कर दिया जाए, तो बैंक रिजर्व बैंक के पास पैसा नहीं रखते हैं. और पैसा बाजार में उपलब्ध रहता है. यानी कैश अधिक से अधिक बाजार में ही रहता है.

लोन महंगा करने पर रिजर्व बैंक ने क्या दिया जवाब- जब कोई ऋण की मांग होती है, तो बैंक उस ऋण वृद्धि को तभी बनाए रख सकते हैं और उसका समर्थन कर सकते हैं, जब उनके पास अधिक जमा राशि हो. वे ऋण वृद्धि का समर्थन करने के लिए केंद्रीय बैंक के धन पर हर वक्त निर्भर नहीं रह सकते हैं... उन्हें अपने खुद के संसाधन और कोष जुटाने होंगे.

Last Updated : Aug 5, 2022, 8:20 PM IST
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