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मानव तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस, खत्म करना बड़ी चुनौती

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Published : Jul 30, 2020, 6:36 AM IST

Updated : Jul 30, 2020, 9:41 AM IST

मानव तस्करी को रोकना और इससे पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से 30 जुलाई को विश्व मानव तस्करी विरोधी दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर पढ़ें, भारत में मानव तस्करी पर हमारी विशेष रिपोर्ट....

world day against of trafficking in persons
विश्व मानव तस्करी विरोधी दिवस

हैदराबाद : दुनियाभर में हर साल 30 जुलाई को विश्व मानव तस्करी विरोधी दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य मानव तस्करी को रोकना और पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने 2013 में 30 जुलाई के दिन को मानव तस्करी के विरुद्ध विश्व दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी. प्रस्ताव A/ RES/ 68/192 को अपनाते हुए इसे स्वीकृति प्रदान की गई थी. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि मानव तस्करी के शिकार व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा व उनकी स्थिति के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इस दिवस को मनाया जाना आवश्यक है.

मानव तस्करी क्या है

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार धमकी, बल प्रयोग या अन्य प्रकार की जबरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी, धोखे से, शक्ति के दुरुपयोग या भुगतान प्राप्त करने के लिए या शोषण के उद्देश्य से किसी अन्य व्यक्ति पर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के लिए लाभ देने के बहाने मानव की भर्ती, परिवहन, स्थानांतरण, उत्पीड़न या प्राप्ति को मानव तस्करी के रूप में परिभाषित किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) के अनुसार, मानव तस्करी एक जघन्य अपराध है जो दुनिया के हर क्षेत्र को प्रभावित करती है. मानव तस्करी का शिकार होने वालों 72 प्रतिशत महिलाएं व लड़कियां हैं, और 2004 से 2016 तक बाल पीड़ितों का प्रतिशत दोगुना से अधिक है.

कार्य जिसके लिए सबसे अधिक तस्करी होती है:

घरेलू सेवा- निजी घरों में काम करने वाले कर्मचारियों को सेवा करने या धोखाधड़ी करने के लिए मजबूर किया जाता है और उनसे कहा जाता है कि उनके पास छोड़ने का कोई विकल्प नहीं है.

सेक्स ट्रैफिकिंग- वे महिलाएं, पुरुष या बच्चे जिनको जबरदस्ती कमर्शियल सेक्स इंडस्ट्री में लाया जाता है और उनकी मर्जी के खिलाफ उनके साथ जबरदस्ती और धोखाधड़ी की जाती है.

जबरन मजदूरी- इंसानों को हिंसा की धमकी और बिना किसी भुगतान के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. इन दासों को संपत्ति माना जाता है और उन्हें बेचने के लिए उनका शोषण किया जाता है.

बंधुआ मजदूर- ऐसे व्यक्ति जो कर्ज चुकाने के लिए काम करने को मजबूर होते हैं और कर्ज चुकाने तक उन्हें मजदूरी के लिए विवश किया जाता है. यह दुनिया में दासता का सबसे आम रूप है.

बाल श्रम- किसी भी रूप में बच्चों से कार्य करवाना, चाहे वह जबरन श्रम, घरेलू सेवा, बंधुआ मजदूरी या यौन तस्करी हो.

जबरन विवाह- महिलाएं और बच्चे जो उनकी मर्जी के बिना या उनकी मर्जी के खिलाफ दूसरों से शादी करने के लिए मजबूर होते हैं. तस्कर और आतंकवादी समूह युद्ध में पकड़े गए गरीब लोगों या भेदभाव का सामना करने वाले लोगों का शिकार करते हैं.

मानव तस्करी की शिकार संयुक्त राष्ट्र की पहली सद्भावना राजदूत नादिया मुराद को संघर्ष क्षेत्रों में तस्करी और यौन हिंसा को रोकने के लिए कार्य करने के लिए 2018 में नोबेल शांति पुरस्कार से सह-सम्मानित किया गया था.

भारत में मानव तस्करी

भारत में मानव तस्करी 20 से 65 मिलियन लोगों को प्रभावित कर सकती है. महिलाओं और लड़कियों की देह व्यापार और जबरन शादी के उद्देश्यों के लिए देश के भीतर तस्करी की जाती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पुरुषों की संख्या के मुकाबले महिलाओं की संख्या कम है, यानी लिंग अनुपात में अत्यधिक असमानता है.

भारत में बच्चों की एक बड़ी संख्या को कारखानों में श्रमिक के तौर पर, घरेलू नौकर, भिखारी और कृषि श्रमिक के रूप में जबरन कार्य करवाया जाता है. वहीं, विद्रोही या आतंकवादी समूहों द्वारा बाल सैनिकों के रूप में बच्चों का उपयोग किया जाता है.

भारत में मानव तस्करी से संबंधित संवैधानिक और विधायी प्रावधान

एंटी ट्रैफिकिंग सेल (एटीसी): केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2006 में एंटी-ट्रैफिकिंग नोडल सेल की स्थापना की गई थी. यह मानव तस्करी के अपराध का मुकाबला करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्य करती है.

एंटी-ट्रैफिकिंग विधेयक को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी द्वारा 2018 में पेश किया गया था. यह बिल लोकसभा में पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में पास नहीं होने के कारण यह बिल निरस्त हो गया.

  • इस विधेयक में जिला, राज्य और केंद्रीय स्तर पर संस्थागत तंत्र बनाने का प्रस्ताव है. इसमें 10 साल तक के कठोर कारावास और तस्करी के संगीन मामलों में कम से कम एक लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है, जिसमें बंधुआ मजदूरी के लिए लोगों को खरीदना या बेचना, एक बच्चे को प्रभावित करना और पीड़ित को एड्स जैसी जानलेवा बीमारियां होना शामिल है.
  • विधेयक में तस्करी के मामलों के समन्वय, निगरानी और निरीक्षण के लिए एक राष्ट्रीय तस्करी विरोधी ब्यूरो (NATB) की स्थापना का प्रस्ताव है. यह राहत और पुनर्वास समिति और पुनर्वास निधि प्रदान करता है, जिसके लिए शुरुआती आवंटन 10 करोड़ रुपये होगा.

भारत में मानव तस्करी से संबंधित कानून

1) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 (1) मानव तस्करी और जबरन श्रम पर प्रतिबंध लगाता है.

अनुच्छेद 23 (1)- जबरन श्रम, भीख मंगवाने के लिए या इस प्रकार के अन्य कार्यों के लिए मानव की तस्करी प्रतिबंधित है और इसका उल्लंघन कानून के अनुसार एक दंडनीय अपराध होगा.

अनुच्छेद 21- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जीने का अधिकार केवल एक शारीरिक अधिकार नहीं है, बल्कि इसके दायरे में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है.

2) अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1986 (ITPA) देह व्यापार के लिए तस्करी को दंडित करता है.

3) बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976, बाल श्रम (निषेध और उन्मूलन) अधिनियम 1986 और किशोर न्याय अधिनियम भारत में बंधुआ और जबरन श्रम पर प्रतिबंध लगाते हैं.

4) भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (ए) और 372 क्रमशः अपहरण और नाबालिगों को वेश्यावृत्ति में बेचने पर रोक लगाती है.

5) इसके अलावा, फैक्ट्रीज एक्ट, 1968 श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देता है.

भारत में वर्तमान स्थिति

  • गृह मंत्रालय ने 332 जिलों में मानव तस्करी निरोधी इकाइयां (AHTUs) स्थापित करने के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की है.
  • एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2018 के दौरान राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लापता बच्चों की कुल संख्या 67134 थी.
  • राष्ट्रीय जांच एजेंसी (संशोधन) अधिनियम 2019 के जरिए मानव तस्करी से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 370 और 370 ए के तहत मामलों की जांच करने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सशक्त बनाया गया है.
  • भारत सरकार ने निर्भया फंड के तहत 100 करोड़ रुपये की लागत से सभी जिलों में मानव तस्करी निरोधी इकाइयां (AHTUs) स्थापित करने / मजबूत करने के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता को भी मंजूरी दी है.

शीर्ष पांच राज्यों में मानव तस्करी के मामले

  • पश्चिम बंगाल में 2016 में मानव तस्करी के 3579 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 172 मामले दर्ज हुए.
  • महाराष्ट्र में 2016 में मानव तस्करी के 517 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 311 मामले दर्ज किए गए.
  • राजस्थान में 2016 में मानव तस्करी के 1422 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 86 मामले दर्ज किए गए.
  • तेलंगाना में 2016 में मानव तस्करी के 229 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 242 मामले दर्ज किए गए.
  • आंध्र प्रदेश में 2016 में मानव तस्करी के 239 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 240 मामले दर्ज किए गए.

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, सभी मानव तस्करी पीड़ितों में से अधिकांश- 71 प्रतिशत - महिलाएं और लड़कियां हैं और एक तिहाई बच्चे हैं.

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार लापता महिलाओं और बच्चों की संख्या

शीर्ष चार राज्य-

राज्य वर्ष
201620172018
महाराष्ट्र283162927933964
पश्चिम बंगाल249372813331299
मध्य प्रदेश214352658729761
दिल्ली120671220213272

महाराष्ट्र में वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान महिलाओं के लापता होने के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए.

लापता बच्चे : साल 2018 के दौरान कुल 67,134 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गई है. गुमशुदा बच्चों के मामलों में मध्य प्रदेश पहले स्थान पर है.

राज्य2018 में मामले
मध्य प्रदेश 10038
पश्चिम बंगाल8205
बिहार6950
दिल्ली6541
तमिलनाडु 4271

मानव तस्करी पर कोरोना महामारी का प्रभाव

  • कोविड-19 महामारी से नाजुक उम्र में बच्चों के यौन शोषण की संभावन बढ़ रही है. स्कूलों के बंद होने से ऑनलाइन यौन शोषण का खतरा बढ़ सकता है.
  • मिश्रित प्रवासन गतिविधियों में तस्करी का जोखिम.
  • कोरोना का प्रकोप दुनियाभर के लोगों को प्रभावित कर रहा है. यह आर्थिक गतिविधियों और आजीविका के विकल्पों को बाधित कर रहा है. जो लोग पहले से ही कमजोर थे, वे उन तस्करों के लिए और भी कमजोर हो सकते हैं जो लाभ पाने के लिए वैश्विक अनिश्चितताओं का फायदा उठा रहे हैं.
  • कोरोना महामारी के कारण सामग्री, सामाजिक और आर्थिक नुकसान का सामना कर रहे लोग खुद को तस्करी और अन्य मानव अधिकारों के उल्लंघन के उच्च जोखिमों में पा सकते हैं.
  • विभिन्न देशों में पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन के कारण, तस्करी का शिकार व्यक्ति शोषण के स्थान पर फंस जाते हैं और भागने में असमर्थ हो जाते हैं.
  • आर्थिक नुकसान के कारण तस्करी के शिकार व्यक्तियों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुरक्षा के बिना असुरक्षित परिस्थितियों में लंबे समय तक हिंसा और जबरन काम करने का अनुभव हो सकता है.

हैदराबाद : दुनियाभर में हर साल 30 जुलाई को विश्व मानव तस्करी विरोधी दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य मानव तस्करी को रोकना और पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने 2013 में 30 जुलाई के दिन को मानव तस्करी के विरुद्ध विश्व दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी. प्रस्ताव A/ RES/ 68/192 को अपनाते हुए इसे स्वीकृति प्रदान की गई थी. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि मानव तस्करी के शिकार व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा व उनकी स्थिति के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इस दिवस को मनाया जाना आवश्यक है.

मानव तस्करी क्या है

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार धमकी, बल प्रयोग या अन्य प्रकार की जबरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी, धोखे से, शक्ति के दुरुपयोग या भुगतान प्राप्त करने के लिए या शोषण के उद्देश्य से किसी अन्य व्यक्ति पर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के लिए लाभ देने के बहाने मानव की भर्ती, परिवहन, स्थानांतरण, उत्पीड़न या प्राप्ति को मानव तस्करी के रूप में परिभाषित किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) के अनुसार, मानव तस्करी एक जघन्य अपराध है जो दुनिया के हर क्षेत्र को प्रभावित करती है. मानव तस्करी का शिकार होने वालों 72 प्रतिशत महिलाएं व लड़कियां हैं, और 2004 से 2016 तक बाल पीड़ितों का प्रतिशत दोगुना से अधिक है.

कार्य जिसके लिए सबसे अधिक तस्करी होती है:

घरेलू सेवा- निजी घरों में काम करने वाले कर्मचारियों को सेवा करने या धोखाधड़ी करने के लिए मजबूर किया जाता है और उनसे कहा जाता है कि उनके पास छोड़ने का कोई विकल्प नहीं है.

सेक्स ट्रैफिकिंग- वे महिलाएं, पुरुष या बच्चे जिनको जबरदस्ती कमर्शियल सेक्स इंडस्ट्री में लाया जाता है और उनकी मर्जी के खिलाफ उनके साथ जबरदस्ती और धोखाधड़ी की जाती है.

जबरन मजदूरी- इंसानों को हिंसा की धमकी और बिना किसी भुगतान के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. इन दासों को संपत्ति माना जाता है और उन्हें बेचने के लिए उनका शोषण किया जाता है.

बंधुआ मजदूर- ऐसे व्यक्ति जो कर्ज चुकाने के लिए काम करने को मजबूर होते हैं और कर्ज चुकाने तक उन्हें मजदूरी के लिए विवश किया जाता है. यह दुनिया में दासता का सबसे आम रूप है.

बाल श्रम- किसी भी रूप में बच्चों से कार्य करवाना, चाहे वह जबरन श्रम, घरेलू सेवा, बंधुआ मजदूरी या यौन तस्करी हो.

जबरन विवाह- महिलाएं और बच्चे जो उनकी मर्जी के बिना या उनकी मर्जी के खिलाफ दूसरों से शादी करने के लिए मजबूर होते हैं. तस्कर और आतंकवादी समूह युद्ध में पकड़े गए गरीब लोगों या भेदभाव का सामना करने वाले लोगों का शिकार करते हैं.

मानव तस्करी की शिकार संयुक्त राष्ट्र की पहली सद्भावना राजदूत नादिया मुराद को संघर्ष क्षेत्रों में तस्करी और यौन हिंसा को रोकने के लिए कार्य करने के लिए 2018 में नोबेल शांति पुरस्कार से सह-सम्मानित किया गया था.

भारत में मानव तस्करी

भारत में मानव तस्करी 20 से 65 मिलियन लोगों को प्रभावित कर सकती है. महिलाओं और लड़कियों की देह व्यापार और जबरन शादी के उद्देश्यों के लिए देश के भीतर तस्करी की जाती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पुरुषों की संख्या के मुकाबले महिलाओं की संख्या कम है, यानी लिंग अनुपात में अत्यधिक असमानता है.

भारत में बच्चों की एक बड़ी संख्या को कारखानों में श्रमिक के तौर पर, घरेलू नौकर, भिखारी और कृषि श्रमिक के रूप में जबरन कार्य करवाया जाता है. वहीं, विद्रोही या आतंकवादी समूहों द्वारा बाल सैनिकों के रूप में बच्चों का उपयोग किया जाता है.

भारत में मानव तस्करी से संबंधित संवैधानिक और विधायी प्रावधान

एंटी ट्रैफिकिंग सेल (एटीसी): केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2006 में एंटी-ट्रैफिकिंग नोडल सेल की स्थापना की गई थी. यह मानव तस्करी के अपराध का मुकाबला करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्य करती है.

एंटी-ट्रैफिकिंग विधेयक को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी द्वारा 2018 में पेश किया गया था. यह बिल लोकसभा में पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में पास नहीं होने के कारण यह बिल निरस्त हो गया.

  • इस विधेयक में जिला, राज्य और केंद्रीय स्तर पर संस्थागत तंत्र बनाने का प्रस्ताव है. इसमें 10 साल तक के कठोर कारावास और तस्करी के संगीन मामलों में कम से कम एक लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है, जिसमें बंधुआ मजदूरी के लिए लोगों को खरीदना या बेचना, एक बच्चे को प्रभावित करना और पीड़ित को एड्स जैसी जानलेवा बीमारियां होना शामिल है.
  • विधेयक में तस्करी के मामलों के समन्वय, निगरानी और निरीक्षण के लिए एक राष्ट्रीय तस्करी विरोधी ब्यूरो (NATB) की स्थापना का प्रस्ताव है. यह राहत और पुनर्वास समिति और पुनर्वास निधि प्रदान करता है, जिसके लिए शुरुआती आवंटन 10 करोड़ रुपये होगा.

भारत में मानव तस्करी से संबंधित कानून

1) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 (1) मानव तस्करी और जबरन श्रम पर प्रतिबंध लगाता है.

अनुच्छेद 23 (1)- जबरन श्रम, भीख मंगवाने के लिए या इस प्रकार के अन्य कार्यों के लिए मानव की तस्करी प्रतिबंधित है और इसका उल्लंघन कानून के अनुसार एक दंडनीय अपराध होगा.

अनुच्छेद 21- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जीने का अधिकार केवल एक शारीरिक अधिकार नहीं है, बल्कि इसके दायरे में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है.

2) अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1986 (ITPA) देह व्यापार के लिए तस्करी को दंडित करता है.

3) बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976, बाल श्रम (निषेध और उन्मूलन) अधिनियम 1986 और किशोर न्याय अधिनियम भारत में बंधुआ और जबरन श्रम पर प्रतिबंध लगाते हैं.

4) भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (ए) और 372 क्रमशः अपहरण और नाबालिगों को वेश्यावृत्ति में बेचने पर रोक लगाती है.

5) इसके अलावा, फैक्ट्रीज एक्ट, 1968 श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देता है.

भारत में वर्तमान स्थिति

  • गृह मंत्रालय ने 332 जिलों में मानव तस्करी निरोधी इकाइयां (AHTUs) स्थापित करने के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की है.
  • एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2018 के दौरान राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लापता बच्चों की कुल संख्या 67134 थी.
  • राष्ट्रीय जांच एजेंसी (संशोधन) अधिनियम 2019 के जरिए मानव तस्करी से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 370 और 370 ए के तहत मामलों की जांच करने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सशक्त बनाया गया है.
  • भारत सरकार ने निर्भया फंड के तहत 100 करोड़ रुपये की लागत से सभी जिलों में मानव तस्करी निरोधी इकाइयां (AHTUs) स्थापित करने / मजबूत करने के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता को भी मंजूरी दी है.

शीर्ष पांच राज्यों में मानव तस्करी के मामले

  • पश्चिम बंगाल में 2016 में मानव तस्करी के 3579 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 172 मामले दर्ज हुए.
  • महाराष्ट्र में 2016 में मानव तस्करी के 517 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 311 मामले दर्ज किए गए.
  • राजस्थान में 2016 में मानव तस्करी के 1422 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 86 मामले दर्ज किए गए.
  • तेलंगाना में 2016 में मानव तस्करी के 229 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 242 मामले दर्ज किए गए.
  • आंध्र प्रदेश में 2016 में मानव तस्करी के 239 मामले सामने आए थे, जबकि 2018 में 240 मामले दर्ज किए गए.

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, सभी मानव तस्करी पीड़ितों में से अधिकांश- 71 प्रतिशत - महिलाएं और लड़कियां हैं और एक तिहाई बच्चे हैं.

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार लापता महिलाओं और बच्चों की संख्या

शीर्ष चार राज्य-

राज्य वर्ष
201620172018
महाराष्ट्र283162927933964
पश्चिम बंगाल249372813331299
मध्य प्रदेश214352658729761
दिल्ली120671220213272

महाराष्ट्र में वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान महिलाओं के लापता होने के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए.

लापता बच्चे : साल 2018 के दौरान कुल 67,134 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गई है. गुमशुदा बच्चों के मामलों में मध्य प्रदेश पहले स्थान पर है.

राज्य2018 में मामले
मध्य प्रदेश 10038
पश्चिम बंगाल8205
बिहार6950
दिल्ली6541
तमिलनाडु 4271

मानव तस्करी पर कोरोना महामारी का प्रभाव

  • कोविड-19 महामारी से नाजुक उम्र में बच्चों के यौन शोषण की संभावन बढ़ रही है. स्कूलों के बंद होने से ऑनलाइन यौन शोषण का खतरा बढ़ सकता है.
  • मिश्रित प्रवासन गतिविधियों में तस्करी का जोखिम.
  • कोरोना का प्रकोप दुनियाभर के लोगों को प्रभावित कर रहा है. यह आर्थिक गतिविधियों और आजीविका के विकल्पों को बाधित कर रहा है. जो लोग पहले से ही कमजोर थे, वे उन तस्करों के लिए और भी कमजोर हो सकते हैं जो लाभ पाने के लिए वैश्विक अनिश्चितताओं का फायदा उठा रहे हैं.
  • कोरोना महामारी के कारण सामग्री, सामाजिक और आर्थिक नुकसान का सामना कर रहे लोग खुद को तस्करी और अन्य मानव अधिकारों के उल्लंघन के उच्च जोखिमों में पा सकते हैं.
  • विभिन्न देशों में पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन के कारण, तस्करी का शिकार व्यक्ति शोषण के स्थान पर फंस जाते हैं और भागने में असमर्थ हो जाते हैं.
  • आर्थिक नुकसान के कारण तस्करी के शिकार व्यक्तियों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुरक्षा के बिना असुरक्षित परिस्थितियों में लंबे समय तक हिंसा और जबरन काम करने का अनुभव हो सकता है.
Last Updated : Jul 30, 2020, 9:41 AM IST
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