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सुप्रीम कोर्ट का उत्तराखंड सरकार को निर्देश, हरिद्वार से हटाया जाए अवैध निर्माण

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Published : Nov 19, 2020, 4:10 PM IST

हरिद्वार के चार क्षेत्रों से सभी अवैध निर्माण को लेकर आज उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई की और उत्तराखंड सरकार को सभी अवैध संरचनाओं को ध्वस्त करने का निर्देश दिया.

उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज उत्तराखंड सरकार को 31 मई, 2021 तक हरिद्वार के चार क्षेत्रों से सभी अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का निर्देश दिया है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने उत्तराखंड में सार्वजनिक भूमि पर अवैध निर्माण को हटाने से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया.

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आज शीर्ष अदालत को बताया किया कि 793 अवैध संरचनाओं में से केवल पांच संरचानाएं शेष रह गई हैं और अदालत के आदेश की वजह से सरकार उनको भी ध्वस्त करने के लिए बाध्य है.

इन मामले में एक इंटरवेनर्स (intervenors) अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने विध्वंस पर आपत्ति जताते हुए अदालत को बताया कि उनकी शिकायत को कहीं भी शामिल नहीं किया गया है. वह इस बात से सहमत थे कि यह संरचनाएं सार्वजनिक भूमि पर हैं.

पढ़ें - बड़ा फैसला : दिल्ली में सार्वजनिक स्थलों पर नहीं कर सकेंगे छठ पूजा

कोर्ट ने अपनी दलील में कहा कि वे निर्माण को न हटाने के बारे में नहीं पूछ सकते हैं, क्योंकि भूमि सिंचाई विभाग की है और वहां कोई स्थायी निर्माण नहीं किया जा सकता है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज उत्तराखंड सरकार को 31 मई, 2021 तक हरिद्वार के चार क्षेत्रों से सभी अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का निर्देश दिया है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने उत्तराखंड में सार्वजनिक भूमि पर अवैध निर्माण को हटाने से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया.

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आज शीर्ष अदालत को बताया किया कि 793 अवैध संरचनाओं में से केवल पांच संरचानाएं शेष रह गई हैं और अदालत के आदेश की वजह से सरकार उनको भी ध्वस्त करने के लिए बाध्य है.

इन मामले में एक इंटरवेनर्स (intervenors) अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने विध्वंस पर आपत्ति जताते हुए अदालत को बताया कि उनकी शिकायत को कहीं भी शामिल नहीं किया गया है. वह इस बात से सहमत थे कि यह संरचनाएं सार्वजनिक भूमि पर हैं.

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कोर्ट ने अपनी दलील में कहा कि वे निर्माण को न हटाने के बारे में नहीं पूछ सकते हैं, क्योंकि भूमि सिंचाई विभाग की है और वहां कोई स्थायी निर्माण नहीं किया जा सकता है.

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