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मिड-डे मिल हर बच्चे का कानूनी अधिकार : डॉ सिल्विया - Government of Karnataka

कर्नाटक सरकार ने राज्य के 249 तालुकों में से केवल 49 मिड-डे मिल योजना को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है. इस पर सामुदायिक चिकित्सा के एमडी डॉ सिल्विया ने कहा है कि मिड-डे मिल बच्चों का कानूनी अधिकार है औ रप्रत्येक बच्चों को कक्षा आठ तक मिड-डे मिल दिया जाना चाहिए.

प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Jun 23, 2020, 11:28 PM IST

Updated : Jun 23, 2020, 11:37 PM IST

बेंगलुरु : मध्याह्न भोजन (मिड-डे मिल) विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा है. देश में कुछ बच्चे वंचित पृष्ठ भूमि के हैं, जो दिन में एक बार भरपूर भोजन के लिए इस योजना पर निर्भर रहते हैं. हालांकि, लॉकडाउन के दौरान कर्नाटक सरकार ने प्रदेश भर में तीन महीने के लिए इस योजना को रोक पर रोक लगा दी थी.

हाल ही में बीएस येदियुरप्पा सरकार ने सूखाग्रस्त इलाकों में बच्चों को दोबारा दोपहर का खाना देने का फैसला किया है. इसके लिए सरकार ने 249 तालुकों में से केवल 49 तालुकों को चुन कर इस योजना को पुनः आरंभ करने के लिए के लिए सरकार ने मंजूरी दी है.

डॉ सिल्विया (सामुदायिक चिकित्सा के एमडी और सार्वजनिक स्वास्थ्य डॉक्टर) ने ईटीवी भारत से कहा कि मिड-डे मिल बच्चों का कानूनी अधिकार है और किसी भी सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला दान नहीं है.

जानकारी देती डॉ सिल्विया

उन्होंने कहा कि प्रत्येक बच्चों को कक्षा आठ तक मिड-डे मिल दिया जाना चाहिए, जिसमें 450 से 700 कैलोरी ऊर्जा और 12 से 15 ग्राम प्रोटीन के साथ पोषण आहार शामिल हो.

उन्होंने कहा कि राज्य में 36 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं और उनमें एक बड़ा हिस्सा दलित और आदिवासी समाज से है.

डॉ. सिल्विया के अनुसार कुपोषण से बच्चों की वृद्धि में कई समास्याएं हो सकती है और इससे बच्चों को संक्रमण, एनीमिया और दस्त होने का खतरा ज्यादा होगा. विशेष रूप से इस महामारी के दौरान बच्चों को श्वसन संबंधी शिकायत होने की वजह से कोरोना संक्रमित होने की संभावना अधिक होती है.

उन्होंने कहा कि हमेशा स्कूल-आधारित रसोई होनी चाहिए- यह स्थानीय होनी चाहिए, यह विविध और सांस्कृतिक रूप से होनी चाहिए, जो बच्चों के लिए उपयोगी हो और बच्चों को पोषक आहार मिल सके.

कर्नाटक में, सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कम से कम 53.47 लाख छात्र दोपहर के भोजन करते हैं. 2.5 दशक पहले वंचित वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने और उन्हें भूख से बचाने के लिए यह योजना लागू की गई थी. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी कई राज्यों में यह योजना सही रूप से लागू नहीं हो पाई है.

बता दें कि प्रारंभिक शिक्षा में पोषण के लिए नामित प्रत्येक छात्र को वर्ष में 200 दिन, 300 कैलोरी ऊर्जा और 8-12 ग्राम प्रोटीन प्रदान किया जाना चाहिए. देशभर में तीन चौथाई बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार-38 प्रतिशत आबादी का वजन कम है. क्योंकि उन्हें संतुलित आहार नहीं मिल पाता.

डॉ. सिल्विया के अनुसार देशभर में पोषण आहार बढ़ाने के लिए दूध, अंडे, मांस और मछली की पसंद सहित पशु खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देना अधिक महत्वपूर्ण है.

बेंगलुरु : मध्याह्न भोजन (मिड-डे मिल) विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा है. देश में कुछ बच्चे वंचित पृष्ठ भूमि के हैं, जो दिन में एक बार भरपूर भोजन के लिए इस योजना पर निर्भर रहते हैं. हालांकि, लॉकडाउन के दौरान कर्नाटक सरकार ने प्रदेश भर में तीन महीने के लिए इस योजना को रोक पर रोक लगा दी थी.

हाल ही में बीएस येदियुरप्पा सरकार ने सूखाग्रस्त इलाकों में बच्चों को दोबारा दोपहर का खाना देने का फैसला किया है. इसके लिए सरकार ने 249 तालुकों में से केवल 49 तालुकों को चुन कर इस योजना को पुनः आरंभ करने के लिए के लिए सरकार ने मंजूरी दी है.

डॉ सिल्विया (सामुदायिक चिकित्सा के एमडी और सार्वजनिक स्वास्थ्य डॉक्टर) ने ईटीवी भारत से कहा कि मिड-डे मिल बच्चों का कानूनी अधिकार है और किसी भी सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला दान नहीं है.

जानकारी देती डॉ सिल्विया

उन्होंने कहा कि प्रत्येक बच्चों को कक्षा आठ तक मिड-डे मिल दिया जाना चाहिए, जिसमें 450 से 700 कैलोरी ऊर्जा और 12 से 15 ग्राम प्रोटीन के साथ पोषण आहार शामिल हो.

उन्होंने कहा कि राज्य में 36 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं और उनमें एक बड़ा हिस्सा दलित और आदिवासी समाज से है.

डॉ. सिल्विया के अनुसार कुपोषण से बच्चों की वृद्धि में कई समास्याएं हो सकती है और इससे बच्चों को संक्रमण, एनीमिया और दस्त होने का खतरा ज्यादा होगा. विशेष रूप से इस महामारी के दौरान बच्चों को श्वसन संबंधी शिकायत होने की वजह से कोरोना संक्रमित होने की संभावना अधिक होती है.

उन्होंने कहा कि हमेशा स्कूल-आधारित रसोई होनी चाहिए- यह स्थानीय होनी चाहिए, यह विविध और सांस्कृतिक रूप से होनी चाहिए, जो बच्चों के लिए उपयोगी हो और बच्चों को पोषक आहार मिल सके.

कर्नाटक में, सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कम से कम 53.47 लाख छात्र दोपहर के भोजन करते हैं. 2.5 दशक पहले वंचित वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने और उन्हें भूख से बचाने के लिए यह योजना लागू की गई थी. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी कई राज्यों में यह योजना सही रूप से लागू नहीं हो पाई है.

बता दें कि प्रारंभिक शिक्षा में पोषण के लिए नामित प्रत्येक छात्र को वर्ष में 200 दिन, 300 कैलोरी ऊर्जा और 8-12 ग्राम प्रोटीन प्रदान किया जाना चाहिए. देशभर में तीन चौथाई बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार-38 प्रतिशत आबादी का वजन कम है. क्योंकि उन्हें संतुलित आहार नहीं मिल पाता.

डॉ. सिल्विया के अनुसार देशभर में पोषण आहार बढ़ाने के लिए दूध, अंडे, मांस और मछली की पसंद सहित पशु खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देना अधिक महत्वपूर्ण है.

Last Updated : Jun 23, 2020, 11:37 PM IST
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