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सरगुजा में विराजमान हैं अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ, रहस्यमयी जलधारा से होता है शिवलिंग का अभिषेक, रामजी ने किया था स्थापित

Ardhanarishwar Jaleshwarnath Shivalinga:भगवान राम ने वनवास काल में सरगुजा में अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ शिवलिंग की स्थापना की थी. इस शिवलिंग पर रहस्यमयी जलधारा आज भी अभिषेक करती है. इस जल स्रोत का पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है.

Ardhanarishwar Jaleshwarnath Shivalinga
अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 21, 2024, 7:11 PM IST

Updated : Jan 21, 2024, 9:01 PM IST

सरगुजा में विराजमान हैं अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ

अम्बिकापुर: भगवान श्रीराम वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ के कई जगहों से होकर गुजरे थे, इसके प्रमाण आज भी कई जगहों पर मौजूद है. भगवान राम के वन गमन के कई प्रमाण सरगुजा में भी मिलते हैं. इसलिए राम वन गमन परिपथ यहां से बनाया गया. सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले के प्रतापपुर के जंगलो में एक शिवलिंग स्थापित है. ये शिवलिंग आज भी एक रहस्य बना हुआ है. इस शिवलिंग पर साल के 12 महीने जल की अविरल धारा बहती रहती है. पहाड़ से निकलने वाले इस जल स्रोत का पता कोई नहीं लगा पाया है. आज तक किसी को पता नहीं चल पाया कि इस जल का स्रोत क्या है?

भगवान राम ने किया था स्थापित: मान्यता है कि भगवान राम-लक्ष्मण और माता सीता जब वनवास के समय यहां से गुजरे थे, तो उन्होंने इस शिवलिंग को यहां स्थापित किया था. तभी से पहाड़ से निकल रही जल धारा अनवरत शिवजी का अभिषेक करती आ रही है. आगे जाकर इस जलधारा को एकत्र कर दिया गया है. इसका उपयोग लोग नहाने और पीने के लिए भी करते हैं. लोगों की मानें तो मिनरल से भरपूर यह पानी बेहद स्वादिष्ट लगता है.

जानिए क्या कहते हैं शोधकर्ता: इस बारे में ईटीवी भारत ने शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी से बातचीत की. उन्होंने बताया कि, " ग्रामीणों में मान्यता है कि भगवान राम यहां आए थे. उन्होंने ने ही यहां इस शिवलिंग की स्थापना कर इसे जालेश्वर महादेव के रूप में स्थापित किया था. इस शिवलिंग पर पहाड़ से निकलने वाली जल धारा अनवरत बहती रहती है. कुछ वैज्ञानिकों ने जानने का प्रयास भी किया कि आखिर यह जल धारा कहां से निकलती है? लेकिन वो असफल रहे. ये जरूर समझ आता है कि ये पानी धरती के नीचे का है क्योंकि यहां का जल ठंड में गर्म और गर्मी में ठंडा रहता है."

राजा को आया था स्वप्न: कहा जाता है कि सालों पहले यहां के राजा को एक स्वप्न आया था कि जंगल में जमीन के नीचे एक शिवलिंग है. राजा ने मजदूरों से खोदाई करवाई तो शिवलिंग निकला. राजा इसे महल के पास स्थापित करना चाहते थे हालांकि ले जाते वक्त शिवलिंग पर एक सबल का प्रहार लगा और उसमें से रक्त की धारा फूट पड़ी. पुरोहितों ने कहा कि महादेव कुपित हो गये हैं. वो यहां से नहीं जाना चाहते हैं. इस बाद उसी स्थान पर मंदिर बनाकर पूजा शुरू की गई.

शिवपुर में स्थापित अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ: इस शिवलिंग को लोग अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ कहते हैं. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने वनवास काल में इस शिवलिंग की स्थापना कर पूजा- अर्चना की थी. भगवान श्रीराम जब शिवपुर में शिवलिंग स्थापित किए, उस वक्त माता सीता और लक्ष्मण जी भी साथ आये थे. शिव मंदिर के पास नाले में सीता पांव नाम का एक जगह भी है. यहां माता सीता के पैर के निशान हैं. इसी चरण चिन्ह के एड़ी वाले हिस्से से निरंतर जल बहती रहती है, इसे स्थानीय लोग ‘‘गोसाई ढोढ़ी‘‘ के नाम से जानते हैं.

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सरगुजा में विराजमान हैं अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ

अम्बिकापुर: भगवान श्रीराम वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ के कई जगहों से होकर गुजरे थे, इसके प्रमाण आज भी कई जगहों पर मौजूद है. भगवान राम के वन गमन के कई प्रमाण सरगुजा में भी मिलते हैं. इसलिए राम वन गमन परिपथ यहां से बनाया गया. सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले के प्रतापपुर के जंगलो में एक शिवलिंग स्थापित है. ये शिवलिंग आज भी एक रहस्य बना हुआ है. इस शिवलिंग पर साल के 12 महीने जल की अविरल धारा बहती रहती है. पहाड़ से निकलने वाले इस जल स्रोत का पता कोई नहीं लगा पाया है. आज तक किसी को पता नहीं चल पाया कि इस जल का स्रोत क्या है?

भगवान राम ने किया था स्थापित: मान्यता है कि भगवान राम-लक्ष्मण और माता सीता जब वनवास के समय यहां से गुजरे थे, तो उन्होंने इस शिवलिंग को यहां स्थापित किया था. तभी से पहाड़ से निकल रही जल धारा अनवरत शिवजी का अभिषेक करती आ रही है. आगे जाकर इस जलधारा को एकत्र कर दिया गया है. इसका उपयोग लोग नहाने और पीने के लिए भी करते हैं. लोगों की मानें तो मिनरल से भरपूर यह पानी बेहद स्वादिष्ट लगता है.

जानिए क्या कहते हैं शोधकर्ता: इस बारे में ईटीवी भारत ने शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी से बातचीत की. उन्होंने बताया कि, " ग्रामीणों में मान्यता है कि भगवान राम यहां आए थे. उन्होंने ने ही यहां इस शिवलिंग की स्थापना कर इसे जालेश्वर महादेव के रूप में स्थापित किया था. इस शिवलिंग पर पहाड़ से निकलने वाली जल धारा अनवरत बहती रहती है. कुछ वैज्ञानिकों ने जानने का प्रयास भी किया कि आखिर यह जल धारा कहां से निकलती है? लेकिन वो असफल रहे. ये जरूर समझ आता है कि ये पानी धरती के नीचे का है क्योंकि यहां का जल ठंड में गर्म और गर्मी में ठंडा रहता है."

राजा को आया था स्वप्न: कहा जाता है कि सालों पहले यहां के राजा को एक स्वप्न आया था कि जंगल में जमीन के नीचे एक शिवलिंग है. राजा ने मजदूरों से खोदाई करवाई तो शिवलिंग निकला. राजा इसे महल के पास स्थापित करना चाहते थे हालांकि ले जाते वक्त शिवलिंग पर एक सबल का प्रहार लगा और उसमें से रक्त की धारा फूट पड़ी. पुरोहितों ने कहा कि महादेव कुपित हो गये हैं. वो यहां से नहीं जाना चाहते हैं. इस बाद उसी स्थान पर मंदिर बनाकर पूजा शुरू की गई.

शिवपुर में स्थापित अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ: इस शिवलिंग को लोग अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ कहते हैं. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने वनवास काल में इस शिवलिंग की स्थापना कर पूजा- अर्चना की थी. भगवान श्रीराम जब शिवपुर में शिवलिंग स्थापित किए, उस वक्त माता सीता और लक्ष्मण जी भी साथ आये थे. शिव मंदिर के पास नाले में सीता पांव नाम का एक जगह भी है. यहां माता सीता के पैर के निशान हैं. इसी चरण चिन्ह के एड़ी वाले हिस्से से निरंतर जल बहती रहती है, इसे स्थानीय लोग ‘‘गोसाई ढोढ़ी‘‘ के नाम से जानते हैं.

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Last Updated : Jan 21, 2024, 9:01 PM IST
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